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मेरा बचपन

आज एहसास हुआ है मुझको
की मेरा बचपन कही छूट गया है

जिंदगी से जिंदगी का नाता
थोड़ा और ज्यादा बस छूट गया है

सवाल बहुत किये अपने आपसे
जवाब यही था मेरा बचपन छूट गया है

आज फिर बारिश की बूंदों ने यह एहसास दिल दिया है
प्यार से भरा और प्यारा था बचपन जो कही छूट गया है

बिना डर के भीग जाने के लिए भाग जाया हम करते थे
आज मोबाइल रखा है जेब में इस बात से डरा हम करते है

घंटो मिट्टी में खेला हम करते थे घर जाना है
हम इस बात पर भी सोचा नही करते थे।

मेरा बचपन कही छूट गया मानो आज
जिंदगी से जिंदगी का नाता टूट गया

बचपन में बीमार होने में भी अच्छा लगता था
आज बीमार हो जाये तो तकलीफ सी लगती है

नंगे पांव मिलो चल आया करते थे तकलीफ नही थी
आज घर में चप्पल नही उतरती ये तकलीफ सी है

“आपकी सोच”

“सोच को बदलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए”  क्या आपकी सोच है? आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है, क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है, उस सोच को बदलों
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है, जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराने विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है, नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है, की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है, दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ? लेकिन सोच को बदलों तभी थ जीवन बदलेगा

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है, और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है, या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो , इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ ।

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है, परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है, पहले स्वयम को जानना होगा |

और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है, सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है, इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

समस्याए क्या है

समस्याए क्या है ? इनको कैसे दूर करे ? जब आप रोड पर गाडी चला रहे है।अथवा चल रहे है कृप्या मुह पर कपडा बाँध कर चले या मास्क ले ले ताकि आप प्रदूषण से बच सके इसी के साथ साथ आपको थूकने की आदत है तो वो भी धीरे धीरे छूटने लगेगी

आप पान,बीड़ी,तम्बाकू आदि का सेवन करते है तो उस आदत से भी कुछ समय के लिए बच पाएंगे

दिल्ली जैसे शहर में 50 साल की उम्र में आपके गुर्दे ख़राब होने लग जाते है। और जीवन पर उसका बहुत असर पड़ता है। छोटी-छोटी बातो से अपने जीवन को स्वस्थ और सुन्दर बनाये जिससे जीवन जीने के लिए और बेहतर हो पाये

आज हमारे जीवन जीने की सीमा छोटी होती जा रही है आप 100 साल का जीवन भी आराम से व्यतीत कर सकते है यदि आप स्वस्थ है उस स्वस्थता को पाने के लिए आप खुद और अपने आस पास के वातावरण को सुन्दर और स्वस्थ बनाये समस्याए क्या है इनको समझे ओर दूर करे

1.अपने आस पास के वातावरण में पेड़ पोधे लगाये यदि आपकी छत पर जगह है तो उस स्थान पर पोधे लगाये ताकि हम अपने वातावरण को और सुरक्षित कर सके पेड़ पोधे से जीवन को स्वस्थ होने के लिए शक्ति प्राप्त होती है।

2 जब तक आयु 18 वर्ष न हो तब तक उन्हें वहां चलाने की आज्ञा न दे कानूनी रूप से भी अधीकृत ना करे आजकल हमारे घरो में इतने सारे स्कूटर एवम् बाइक साइकिल है उस पर भी प्रतिबंध लगाये प्रदूषण रोड से घर आ पंहुच जायेगा वो वक़्त दूर नहीं है जब हमे घर पर भी मास्क पहन कर बैठना पड़ेगा ।

यदि हो सके तो अपने बच्चों को साइकिल दे जिससे उनका शरीर भी तंदुरस्त और मजबूत साथ ही आपका वातावरण भी स्वस्थ रहेगा।

3.ज्यादा से ज्यादा सार्वजानिक वाहन का प्रयोग करे और निजी प्रयोग में कमी लाये इससे धन की बचत भी होती है तथा प्रदूषण पर भी नियंत्रण होता है। हम सभी वातावरण को साफ़ करने की कोशिश करे नाकि उसे अस्वस्थ करे।

4.ध्वनि प्रदूषण– सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करने से वातावरण में ध्वनि प्रदूषण में भी कमी आती है। निजी वाहन से हम ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देते है। तथा वायु प्रदूषण भी फैलाते है।

5.साइकिल व् पैदल चलने की कोशिश ज्यादा से ज्यादा करे जिससे आप अपना स्वास्थ्य भी अच्छा रख पाएंगे जिससे हमे आयुष्य प्राप्त होता है। हम उम्र की सिमा बढ़ती है, हम बीमारियो तथा रोग ग्रस्त जीवन से दूर रहते है।

6.अच्छा भोजन – अपने आहार को बदले आजकल हम ज्यादातर बर्गर,पिज़्ज़ा,ब्रेड, मैदा आदि की चीज़ों का सेवन ना करे जिससे आपका स्वस्थ अच्छा रहे बर्गर आदि से हमारा पेट, लीवर, पाचन करने की क्षमता कम हो जाती है। जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हम बहुत सारी चीज़ों का सेवन नहीं कर पाते तथा बीमारियो से ग्रस्त हो जाते है इसलिए हमे Junk food के सेवन दूर रहना चाहिए

7. तम्बाकू- तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, आदि का सेवन ना करे इससे बहुत खतरनाक बीमारिया उत्पन्न होती है।

इस उम्मीद

उम्मीद यह शब्द है जो हमे कही से कही तक ले जा सकते है और फिर वापस घूम कर ज्यों का त्यों खड़ा कर देता है, यह शब्द है जिसकी वजह से सारा संसार चक्कर पर चक्कर लगा रहा है यदि आपको किसी ने बोल दिया बस उम्मीद लगा कर रखो की सब ठीक हो जाएगा, तो आप इस उम्मीद का ऐसे साथ पकड़ लोगे और उसके साथ नए नए अनेको शब्दों को जोड़ने की कोशिश करने लगोगे की कुछ और आपको समझ नही आएगा।
जैसे की मुझे उम्मीद है , जो तुम कह रहे हो वही ठीक है , भरोसा है मुझे , उम्मीद करता हूं ऐसा ही हो , इत्यादि अनेको शब्द आप उसी भरोसे पर अब जीने लग जाओगे तथा उन शब्दों को अपना सहारा बना लोगे।
यदि इस उम्मीद के बीच एक शब्द ऐसा जुड़ गया “शंका”
तो अब क्या होगा ?? आपने जितनी उम्मीद लगाई है उसमे शंका आने लगेगी जिसकी वजह से मन के भीतर “भय” शब्द उतपन्न होगा उस भय के कारण आपके भीतर एक और सोच उतपन्न होगी नकरात्मक यदि ऐसा हुआ तो फिर आप दो शब्दों के मध्य में आ जाओगे “हुआ तो” ,
“नही हुआ तो” फिर आप अपने मस्तिष्क में कुछ विचार लाते हो।

अब इसके ऐसा होने पर मैं तो बिल्कुल ही समाप्त हो जाऊंगा अगर ऐसा होता है , तो बहुत सारे अन्य अन्य विचारो का हमारे भीतर प्रकट होना जिस के कारण मानसिक असन्तुलन हो सकता है और जिस वजह से हमारे सुख और दुख की निर्भरता बढ़ती और घटती है तथा जिन कारणों से हम हमेसा दुख को कम और सुख को ज्यादा करने में लगे रहते है तथा इसी सुख के कारण हम अनेको शब्दों का सहारा लेते है।

इसका उदाहरण मैं आपको इस तरह से दे सकता हूं जैसा की हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने जी नारा दिया अच्छे दिन आने वाले है। अब हम सभी इस उम्मीद में रहने लगे की अच्छे दिन आने वाले है जिसके साथ हमारे भीतर बहुत सारे ऐसे विचार , शब्द जुड़ गए जिनकी वजह से हमने अपने सपने , अपनी , अकांशाएँ बढ़ा ली और और हम भविष्य की और देखने लगे ,

जैसे की
“हमारा स्वछ भारत”
“युवा वर्ग को नौकरी ”
मंहगाई पर अंकुश
जल्दी तरक्की
चोर बाजारी बन्द
सुनहरे अवसर उधोगपतियो के लिए
बेहतर जीवन
हमारे धन का उचित प्रोयोग
और इत्यादि बहुत सारे ऐसे सपने जो हम देखने लगे
लेकिन जैसे जैसे समय बित्त रहा था हमारे मन मस्तिष्क में शंका पैदा होने लगी
क्या सच में ?
ऐसा होगा क्या ?

जाग्रत कौन है?

वास्तव में सुख से कौन सोता है? जाग्रत कौन है?

दो प्रश्न हैं और उनका उत्तर है जिनकी संक्षिप्त व्याख्या दो भागो में करते हैं .

पहले प्रश्न पर चलते हैं, दोनों का उत्तर पढ़ना आवश्यक है इस पूरी स्थिति को समझने के लिए.

वास्तव में कौन है जो समाधि निष्ठ हो कर सुख से सोता है? 

वही व्यक्ति अथवा सत्ता जो परमात्मा के स्वरुप में हमारे ही अंतकरण में स्थित या स्थापित है!  परमात्मा का एक “स्वरुप” ही हम हैं और वह ही सब करता है. “हम” कौन हैं फिर? “मै  जो जाग्रत अवस्था में सोचता है, करता है, जिसे भूख प्यास लगती है हमारा अहंकार है जो हमें इस शरीर से जोड़कर उसी को “मै – हम”  बना देता है, पर आत्मिक ज्ञान होने पर जब सब दीखता है तो ज्ञात होता है के जिस सत्ता को हम “मै ” समझते थे, वह तो केवल एक हाड मांस का एक शरीर है जिसे चलाने वाला वही अंतकरण में स्थापित देव मूर्त परम आत्मा है।

जिसे हम अनदेखा कर, इस शरीर व् मायावी संसार के चक्कर में, पाप पर पाप करते चले जाते हैं. याद रखे के इसीलिए हम सुख से नहीं सो पाते, क्यूंकि हमने पापो का इतना बोझ पीठ पर लाद रखा है के हम दुःख में ही रहते हैं पर जब हम उस अंतर स्थित स्थापित सत्ता से जुड़ जाते हैं और इस संसार के मायावी रूप के लबादे को उतार कर, हलके फुल्के हो जाते हैं।

जाग्रत कौन है? यदि हम यह जान पाए तभी हम अपने भीतर के सभी कार्यों होते देख पाएंगे

अपने पाप कर्मो पर दृष्टि डालते हैं तब हम जिस स्थिति व् अवस्था  में होंगे वहां न कोई चिंता होगी न किसी पाप कर्म का बोझ होगा न कभी न पूरी होने वाली इच्छाओ, स्वरूपी राक्षसो का भय होगा, तब हम अपने उस स्वरुप में सम्मलित होकर एक ही रूप में होंगे और वह ही हमारा वास्तविक रूप है, ये जो दीखता है वह तो उसी स्वरूप के भावो का प्रत्यक्ष प्रतिरूप है. जब इस बाहरी रुप को उस आंतरिक स्वरुप से जोड़ देंगे तो हमें इस संसार से कोई विशेष लालच ,मोह या जुड़ाव नहीं रहेगा. इसीलिए “मै ” और “सत्ता” सुख से सोएँगे।

बुरा अच्छा समय

बुरा अच्छा समय  – सुख दुःख

समय सूर्य की किरण जैसे दमकता व् चलता रहता है सब ठीक चलता है हर वस्तु सुख देती है हर चीज़ सही दिशा में है. फिर लगता है सूर्य की नन्ही सी किरण भी कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती, लगता है काले बादलो में घनघोर अँधेरा अपनी छाया से जैसे सारे प्रकाश को खा जाता है. अशुभ, अति क्रूर, दुखदायी व् आघातक समय जब आता है लगता है सब समाप्त हो जाएगा।

क्या समय कभी बुरा या अच्छा होता है?

समय तो सूर्य की तरह सदैव चमकता, चलायमान है हम जो चाहे करें, प्रतिक्रिया करें अथवा उपेक्षित कर कुछ न करें सूर्य देव एक ज्वाला बने अपनी सत्ता में रहते हैं और जीवनदायनी पृथ्वी जैसे ग्रह को ऊर्जा देते रहते हैं. काल भी इसी तरह चलता रहता है.

समय है क्या? समय काल रूप में एक आयाम है, जो दिखे न दिखे चलता रहता है कभी नहीं रुकता। समय रेखीय नहीं अर्थात एक रेखा में नहीं चक्र में घूमता है. हमारे आकाशिक ब्रह्माण्ड में मनुष्य व् देवों के लिए समय चक्र घूमता है जैसे हर ग्रह अपने कक्ष में घूमता है. युगों पूर्व जब भारत धरती के गोलाकर अटूट भूखंड का केंद्र भाग था तभी से उसके ऋषिओं को खगोल व् काल चक्रों का ज्ञान था.

समय के चक्रो को हम ३६० अंशो में बांटते हैं उनका अध्ययन करने के लिए. हर ग्रह का अपना समय चक्र है जब हम दो भिन्न ग्रहो के समय चक्रों का अध्ययन करतें हैं तो उसे नक्षत्र-विद्या भी कहते  है पर उसके अंतर सूक्ष्म प्रकाशमान ऊर्जा के प्रभावों व् पृथ्वी पर तत्वों व् जीवों पर उनके पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन को हम ज्योतिष भी कहते हैं. ज्योतिष शास्त्र इन्ही काल चक्रों का नियमबद्ध अध्ययन हैं. ३६० अंशो को हम ३० अंशो के १२ भागों में इसलिए बांटते हैं ताकि इनको अच्छी तरह समझा जाए, ज्ञान आत्मसार करने समझने के लिए अध्ययन को अध्यायों में बाँटना पड़ता है, जैसे पूरी रोटी आदमी के मुँह में नहीं डाल सकते उसके टुकड़े करने पड़ते हैं. पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य दृश्य मान व् अदृश्य ग्रह हमारे आकाशगंगा ब्रह्मांड में स्थित हैं ज्योतिष विज्ञान पृथ्वी को या सूर्य को केंद्र मानकर किसी भी जन्मी सत्ता या घटना की तिथि अनुसार काल चक्रो, ग्रहो व् उपग्रहों के प्रभाव अनुसार, उसका विश्लेषण करता है.

समय ख़राब या अच्छा नहीं होता पर हर जन्मे जीव व् सत्ता पर समय चक्रो का प्रभाव बहुत सूक्षम रूप से पड़ता है. यह कोई जादू या चमत्कार नहीं है न ही कोई ज्योतिष किसी जीव या सत्ता पर केंद्रित ऊर्जा के प्रभाव से बचा सकता है, हाँ हम जान कर कोई निवारण ढूंढ सकते हैं.

समय बुरा नहीं होता, जीव के जीवन काल के कुछ हिस्से इस अवतरित जन्म में बुरे या भले होते हैं.

आप ने देखा होगा संभवतः अनुभव भी किया होगा जब हमारा अच्छा समय होता है हम नशे जैसी कृत्रम आनंद अवस्था में होते हैं. जब दुःख के काले बादल छाते हैं तो हम ईश्वर को स्मरण करते  हैं, शास्त्रों के पठन व् मन्त्र उच्चारित करके मांगते हैं के हे प्रभु रक्षा करो मुझे बचा लो, अमुक को बचा लो, वो  गिर रहा है उसे संभाल लो इत्यादि।

अदृश्य जगत से संसर्ग व् सम्पर्क

भारत के महा ज्ञानी संतो महात्माओं ने कई बार दोहराया है गाया भी है जिसे संभवतः आपने सुना भी है, की प्रार्थना अदृश्य जगत से संपर्क करने के लिए ऐसा  यन्त्र है जिसका प्रभाव है पर – वह तभी होता है जब प्रार्थना अपने सुखमय, आनंदित व् अच्छे समय में करें. चाहे हम धन्यवाद दें, उपासना करें वह कहीं नहीं जायेगी जब हम उसे अपने स्वार्थ  हेतु केवल दुःख में करें।  इसीलिए शायद ज्ञानी अन्तरध्यानी सत्ताओं को दुःख  के समय में भी इतनी पीड़ा नहीं होती जितना जन साधारण को होती है. प्रभु वह परम आत्मा सुहृदय स्थायी सत्ता है जो स्थायी रूप से सदा आनंदित है वहां पहुँच या संसर्ग का साधन केवल वह “समय” है जब हम आनंद  और सुख की चरम अवस्था में हों तभी हमारी प्रार्थना कहीं जायेगी. इस अवस्था में सम्पर्क बिना शब्दों के होता है. हमारे भाव प्रभु तक पहुँच सकते हैं और अपनी आत्मा के केंद्र में द्रवित हो मन के ऊपर पड़े विकार भी धो डालेंगे. 

दुःख ?  सुख में तो सब हमें मित्र समझेंगे पर दुःख में अपने कर्म या कोई भी साथ न दे तो हम अदृश्य जगत की शरण में जाते हैं. दुःख तो समुपस्थित या लगभग तय हैं के आएंगे ही बचना कठिन है चाहे कुछ भी करें इस जन्म में चाहे दुष्कर्म या पाप न भी हों पिछले जन्म के पाप उभरेंगे; वह भी तब जब हम कभी सोच भी नहीं सकते। सुनने में बुरा लगता है. बुरा नहीं सत्य है. सत्य सदैव कडुवा है ग्रहण करो या नहीं।

बुरा अच्छा समय

बुरे समय में प्रभु से प्रार्थना न कर उसे धन्यवाद दें के कृपया इन दुखों के सहने की क्षमता देना, जो भी हो रहा है मेरे ही अज्ञानता पूर्वक किये कार्यो के परिणाम हैं. जब समय पर पढ़े नहीं परीक्षा फल तो दुखद ही है.

बार बार धन्यवाद करें जीवन धारा अभी भी बहे जा रही है बस जल कम हो रहा है.  दुःख  के समय केवल तब आते हैं जब हम सुख में, मौज में आनंद में तो परमात्मा को भूले रहे और अब स्वार्थवश काम पड़ा तो उसे याद करलें, मंदिरो मस्जिदो में माथा रगड़ें – ऐसा करने से कुछ प्राप्त नहीं होता.

तो अच्छे समय में  प्रार्थना कर सम्पर्क स्थापति करें। बुरे समय में धन्यवाद देते रहें। जब भी कभी परमात्मा के आँखों से दर्शन करने हों तो गायों के पास जाकर बैठ जाएँ उनकी सेवा करें; किसी भी जीव जो वेदना में हैं उसे अपनी निष्काम सेवा द्वारा आरोग्य करने की चेष्टा करें, ऐसा होने पर आपका सन्देश अदृश्य जगत तक तत्काल पहुंचेगा.

सोना चांदी या लोहा

सोना चांदी या लोहा —- एक बार एक पूर्ण संत सत्संग में बता रहे थे कि मानव जन्म दुर्लभ है चौरासी लाख योनियों को पार करके मिलता है। तभी किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया —-
महात्मा जी पर हमने तो सुना है कि कई बार मनुष्य का पुनर्जन्म होता है और उसे सब याद रहता है तो समझाएं ऐसा कैसे होता है। क्या यह सत्य है.

महात्मा जी– आपकी बात भी सत्य है ऐसा भी होता है क्योंकि
कबहु करि करूणा नर देहि
दाँत ईस बिनु  हेतु  स्नेही
ईश्वर बिना किसी कारण जीव पर कृपा करते हैं क्योंकि चौरासी लाख योनियों में जीव नया कर्म नहीं कर सकता। ईश्वर प्रेम वश कृपा कर दोबारा मानव तन प्रदान करते हैं परन्तु जीव के भावानुसार
व्यक्ति–“देवी देवता कैसे बनते हैं क्या उनके भी कर्म होते हैं या,,,,
महात्मा जी– मानव के पुण्य कर्म ही देवी देवता के लोक भी ले जाते हैं।
मानव चाहे तो दानव बन जाए चाहे तो देवता बन जाए और चाहे तो मोक्ष और मुक्ति पा ले
व्यक्ति– कौन सी योनि उत्तम है देवी देवता की या मानव की
महात्मा जी– मानव योनि लोहे के समान है और देवता योनि चाँदी के समान है। आप बताओ किसका मूल्य और सौंदर्य अधिक होगा
व्यक्ति– चाँदी का।
महात्मा जी– ठीक ! पर लोहे का मूल्य और सौंदर्य कम है चाँदी से पर यदि लोहा पारस मणि का स्पर्श कर ले तो वह सोना बन जाता है और उसका मूल्य और सौंदर्य चाँदी से अधिक हो जाएगा।
मानव यदि पूर्ण संत के सानिध्य में चला जाए तो वह सोना बन जाता है।
और चाँदी वैसी ही रहती है
मानव योनि एक ऐसी योनि है जो मुक्ति का द्वार है।
हर व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि वो कोन सा मार्ग चुनता है।
व्यक्ति– अगर पूर्ण सन्त के सानिध्य से ही सोना बन सकते हैं तो फ़िर सभी मानव योनि प्राप्त जीव सोना क्यों नहीं बन जाते हैं
महात्मा जी– क्योंकि सभी पूर्ण सन्त के शरण में नहीं जाते हैं।
व्यक्ति– ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि कई लोग तो सन्त के पास जाना पसंद नहीं करते हैं तो कई लोग ग़लत गुरु के हाथों में पड़ जाते हैं और बचते हैं कुछ लोग तो उनमें से वे लोग पूर्ण सन्त के शरण में जाते हैं।
व्यक्ति– ग़लत सन्त के शरण में जाते हैं तो ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि उन्हें अपने पूर्व सन्तों के वचनों पर विश्वास नहीं होता है अपने धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जानकारी नहीं होती है या फ़िर जानकर भी अंधे की तरह अपनी श्रद्धा और भक्ति को लुटाते हैं और अधर्मी-पाखंडी लूटते हैं।
व्यक्ति– महात्मा जी ! कृपया कर हमें पूर्ण सन्त की कोई पहचान बताएं ताकि हम भी अपने मानव जन्म को सोना बनाकर सफ़ल कर सकें।


महात्मा जी– गुरु कई प्रकार के होते हैं। तंत्र गुरु तो मन्त्र गुरु तो बाहरी ज्ञान प्रदायक गुरु, शस्त्र गुरु तो शास्त्र गुरु लेकिन इन सब के अलावा भी एक गुरु होते हैं जिन्हें पूर्ण सन्त की संज्ञा दी गई है। पूर्ण सन्त की संज्ञा इसलिए दिए हैं क्योंकि पूर्ण परमात्मा से जुड़े हुए होते हैं। वे पूर्ण परमात्मा को स्वयं देखे हुए होते हैं और केवल उनमें ही सामर्थ्य होता है कि चाहे कैसा भी मानव प्राणी हो चाहे उसमे पात्रता हो या नहीं उसका मानव जन्म ही काफ़ी है परमात्मा के दर्शन के लिए और पूर्ण सन्त वहीं करवाते हैं। सभी धार्मिक-ग्रन्थों में और महापुरुषों ने यहीं पहचान बताया है और चाहे जो गुरु के शरण में चले जाएं लेकिन जब तक पूर्ण सन्त के शरण में नहीं गए तब तक सोना बनना असम्भव है।
व्यक्ति– क्या आप हमें परमात्मा के दर्शन करा सकते हैं महात्मा जी
महात्मा जी ने उस जिज्ञासु को उसके भीतर ही परमात्मा का दर्शन करवा दिया। और वो जिज्ञासु भी अपने भीतर दर्शन कर धन्य-धन्य हो गया।


    लोहा हो या चांदी या सोना लेकिन मानव जन्म पाकर ही मानव को निर्णय लेना पड़ता है कि उसे क्या बनने की चाह है। मानव जन्म मिला है सोना बनने के लिए लेकिन ये पूर्णसंत के शरण में जाने के बाद ही होगा लेकिन आज कलयुग में इतने सारे गुरु हो गए हैं कि सोना बोलकर पीतल थमा देते हैं और अज्ञानी मानव थाम भी लेते हैं क्योंकि उनके पास पहचान नहीं होता है। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि जब भी पूर्ण सन्त धारण करने जाएं तो धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जाएं।
मानव जन्म आपका है अब आपको निर्णय लेना है कि आपको क्या बनना है लोहा या चांदी या सोना
                                           
अनुज अवस्थी

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गुरु की आज्ञा

गुरु की आज्ञा——एक शिष्य था श्री चंद्रमोहन जी महाराज का जो भिक्षा लेने के लिए गांव में गया और घर-घर भिक्षा की मांग करने लगा।

  • !श्री चंद्रमोहन जी महाराज ! भिक्षा देहिं….*
  • श्री चंद्रमोहन जी महाराज! भिक्षा देहिं….*
         भीतर से जोर से दरवाजा खुला ओर एक  बड़ी-बड़ी दाढ़ी वाला तान्त्रिक बाहर निकला और चिल्लाते हुए बोला— मेरे दरवाजे पर आकर किसी ओर का गुणगान करता है। कौन है ये समर्थ??
    शिष्य ने गर्व से कहा– * मेरे श्री चंद्रमोहन जी महाराज … जो सर्व समर्थ है।*
      तांत्रिक ने सुना तो क्रोध में आकर बोला कि इतना दुःसाहस की मेरे दरवाजे पर आकर किसी ओर का गुणगान करता है तो देखता हूँ कितना सामर्थ है तेरे गुरु में??
    मेरा श्राप है कि तू कल का उगता सूरज नही देख पाएगा अर्थात् तेरी मृत्यु हो जाएगी।
      शिष्य ने सुना तो देखता ही रह गया और आस-पास के भी गांव वाले कहने लगे कि इस तांत्रिक का दिया हुआ श्राप कभी भी व्यर्थ नही जाता.. बेचार युवा में ही अपनी जान गवा बैठा….
        शिष्य उदास चेहरा लिए वापस आश्रम की ओर चल दिया और सोचते-सोचते जा रहा था कि आज मेरा अंतिम दिन है लगता है मेरा समय खत्म हो गया है।
       आश्रम में जैसे ही पहुँचा। गुरु श्री चंद्रमोहन जी महाराज जी हँसते हुए बोले — ले आया भिक्षा?
      बेचारा शिष्य क्या बोले—-?????
     

  गुरुदेव हँसते हुए बोले कि भिक्षा ले आया।
शिष्य– जी गुरुदेव! भिक्षा में अपनी मौत ले आया!  और सारी घटना सुना दी ओर एक कोने में चुप-चाप बैठ गया।
गुरुदेव बोले अच्छा चल भोजन कर ले।
शिष्य– गुरुदेव! आप भोजन करने की बात कर रहे है और यहाँ मेरा प्राण सुख रहा है। भोजन तो दूर एक दाना भी मुँह में न जा पाएगा।
गुरुदेव बोले— अभी तो पूरी रात बाकी है अभी से चिंता क्यों कर रहा है चल ठीक है जैसी तुम्हारी इक्षा। ओर यह कहकर गुरुदेव भोजन करने चले गए।
  फिर सोने की बारी आई तब गुरुदेव शिष्य को बुलाकर बोले– हमारे चरण दबा दे!
शिष्य– मायूस होकर बोला! जी गुरुदेव जो कुछ क्षण बचा है जीवन के उस क्षण में आपकी सेवा कर ही प्राण त्याग करूँ यहिं अच्छा होगा। ओर फिर गुरुदेव के चरण दबाने की सेवा शुरू की।
गुरुदेव बोले– चाहे जो भी चरण छोड़ कर मत जाना कही।
शिष्य– जी गुरुदेव कही नही जाऊँगा।
गुरुदेव– अपने शब्दों को तीन बार दोहराए की चरण मत छोड़ना, चाहे जो हो जाए।
   यह कह कर गुरुदेव सो गए।
शिष्य पूरी भावना से चरण दबाने लगा।
  रात्रि का पहला पहर बीतने को था अब तांत्रिक अपनी श्राप को पूरा करने के लिए एक देवी को भेजा जो धन से भरी थी सोने-चांदी, हीरे-मोती से भरी।
    शिष्य चरण दबा रहा था। तभी दरवाजे पर वो देवी प्रकट हुई और कहने लगी– कि इधर आओ ओर ये सोने-चांदी से भरा ये ले लो। शिष्य भी बोला– जी मुझे लेने में कोई परेशानी नही है लेकिन क्षमा करें! मैं वहाँ पर आकर नही ले सकता हूं। अगर आपको देना ही है तो यहाँ पर आकर दे दीजिए।
  वो देवी सुनी तो कहने लगी कि– नही !! नही!! तुम्हे यहाँ आना होगा। देखो कितना सारा है। शिष्य बोला– नही। अगर देना है तो यही आ जाइए।
तांत्रिक अपना पहला पासा असफल देख दूसरा पासा फेंका रात्रि का दूसरा पहर बीतने को था तब तांत्रिक ने भेजा….

    शिष्य श्री चंद्रमोहन जी महाराज जी के चरण दबाने की सेवा कर रहा था तब रात्रि का दूसरा पहर बिता ओर तांत्रिक ने इस बार उस शिष्य की माँ की रूप बनाकर भेजा।
   शिष्य गुरु के चरण दबा रहा था तभी दरवाजे पर आवाज आई — बेटा! तुम कैसे हो??
शिष्य ने अपनी माँ को देखा तो सोचने लगा अच्छा हुआ जो माँ के दर्शन हो गए मरते वक्त माँ से भी मिल ले।
उस औरत जो माँ के रूप धारण की थी बोली– आओ बेटा गले से लगा लो! बहुत दिन हो गए तुमसे मिले।
शिष्य बोला– क्षमा करना मां! लेकिन मैं वहाँ नही आ सकता क्योंकि अभी गुरुचरण की सेवा कर रहा हूँ। मुझे भी आपसे गले लगना है इसलिए आप यही आ जाओ।
  फिर वो औरत देखी की चाल काम नही आ रहा है तो चली गई।
  रात्रि का तीसरा पहर बिता ओर इस बार तांत्रिक ने यमदूत रूप वाला राक्षस भेजा।
  राक्षस पहुँच कर शिष्य से बोला कि चल तुझे लेने आया हूँ तेरी मृत्यु आ गई है। उठ ओर चल…
शिष्य भी झल्लाकर बोला– काल हो या महाकाल मैं नही आने वाला ! अगर मेरी मृत्यु आई है तो यही आकर ले जाओ मुझे। लेकिन गुरु के चरण नही छोडूंगा! बस।
फिर राक्षस भी चला गया।
  सुबह हुई चिड़ियां अपनी घोसले से निकलकर चिचिहाने लगी। सूरज भी उदय हो गया।
  गुरुदेव श्री चंद्रमोहन जी महाराज जी नींद से उठे और बोले कि– सुबह हो गई?
शिष्य बोला– जी! गुरुदेव सुबह हो गई
गुरुदेव— अरे! तुम्हारी तो मृत्यु होने वाली थी न तुमने ही तो कहा था कि तांत्रिक का श्राप कभी व्यर्थ नही जाता। लेकिन तुम तो जीवित हो… गुरुदेव हँसते हुए बोले….
शिष्य भी सोचते हुए बोला– जी गुरुदेव लग तो रहा हूँ कि जीवित ही हूँ। फिर सारी घटना याद की रात्रि वाला फिर  समझ में आई कि गुरुदेव ने क्यों कहा था कि —

  • चाहे जो भी हो जाए चरण मत छोड़ना। शिष्य गुरुदेव के चरण पकड़कर खूब रोने लगा  बार बार यही कह रहा था— जिसके सर पर आप जैसे गुरु का हाथ हो उसे काल भी कुछ नही कर सकता है।
        गुरु की आज्ञा पर जो शिष्य चलता है उससे तो स्वयं मौत भी आने से एक बार नही अनेक बार सोचती है। तभी तो कहा गया है—-
    करता करें न कर सके, गुरु कर सो जान
    तीन-लोक नौ, खण्ड में गुरु से बड़ा न कोई
         स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गुरु की आज्ञा  सिर पर ले चले स्वयं प्रभु राम गुरु की आज्ञा पर चले।
      ओर पूर्णसद्गुरु में ही सामर्थ्य है कि वो प्रकृति के नियम को बदल सकते है जो ईश्वर भी नही बदल सकते है क्योंकि ईश्वर भी प्रकृति के नियम से बंधे होते है लेकिन पूर्णसद्गुरु नही।

    जय श्री प्रभु जी की…

क्या हम तैयार है

यह बात सोलह आने सच है हम चाहते तो है कि स्वछ भारत हो परंतु क्या हम तैयार है, अच्छे भारत के लिए, स्वच्छ व सुंदर भारत के लिए बस यही एक जरा सा सवाल हमे खुद से पूछ लेना चाहिए हम कही भी थूक देते है, खुले में शोच कर देते है गाड़ी से बाहर से कूड़ा फेक देते है, पानी की बोटल रास्ते में पीकर ही फेक देते है।

सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट हम ही पीते नजर आते है, कूड़ेदान को अपनी दुकान में ना रखकर दूसरे की दुकान के सामने हम डाल देते मेट्रो स्टेशन की दीवारों के बीच में गुटके के पाउच हम छिपा देते है, बस में सफर करते हुए ही हम बाहर थूकते हुए हम ही नजर आते है कितनी ही ट्रेन, बस हमारे लिए बनाई जा रही हो, परंतु हम ही उनको तोड़ देते है तथा गंदा भी हम ही करते हुए नजर आते है। क्या हम तैयार है?

एक सड़क का निर्माण हो रहा होता है तो उसके पत्थर भी हम लोग ही उठाकर घर ले जाते है।
दिल्ली, हरयाणा और उत्तर प्रदेश की सड़कें पूल जब बन रहे होते है तो पुलिस कर्मचारी लगाए जाते है ताकि कोई सामान ना चुरा ले जाये।

DDA के प्रोजेक्ट भी हमारे जैसे लोगो के कारण ही देर से होते है क्योंकि हमारे काम के लिए भी उन्हें सुरक्षा देनी पड़ती है ।

गाय, भेस रोज काट रही है क्योंकि ट्रैफिक पुलिस वाला रेड लाइट पर 500rs लेकर उस ट्रक को जाने देता है।

हम ही वो लोग है जिन्हें गाड़िया चाहिए और मुह पर मास्क भी हम ही को लगाना है उसके बाद चार लोगों मे बैठकर हम ही नजर आएंगे की बहार प्रदूषण व गर्मी बहुत है क्योंकि हमें यह कभी समझ नही आता कि इसका कारण हम ही है।

पानी नदी की तरह बहता रहता है तब परवाह नही है तब मेरा काम नही है यह सब बातें सामने आती है और जब चला जाता है तब रोते भी हम है फिर कोसते है सरकार को।

आज कल नई चीज देखने को मिल रही है parents ही अपने बच्चों को पनवाड़ी की दुकान पर लेकर जाते है फिर कहते है हमारा बच्चा गुटका सिगरेट और शराब पीने लग गया है
अब गलती किसकी ये कैसे समझ आये हमको रे।

क्या हम तैयार है? यह सवाल हमे स्वयं से पूछना चाहिए।

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जिंदगी एक कविता

जिंदगी एक कविता की भांति ही है, जिसमे आपको जिंदगी के हर उतार चदाव के बारे में मिलता है, जिस तरह से जिंदगी आपको प्रोत्साहित करती है उसी तरह कविता भी, कविता में ही जिंदगी की सच्चाई छुपी मिलती है जो शब्दों के माध्यम से आपको बताती है, रूबरू कराती है।

मुस्कराहट का ही तो एक नाम है जिंदगी
जरा इसे मुस्कुराने ही दो,

ना गम के साये में खोने जाने दो यह है जिंदगी
जिसे मिली उसे कदर नहीं है

जिसे न मिली उससे पूछो जरा क्या है जिंदगी ?
न तड़पाओ न रोने दो बड़ी प्यारी है जिंदगी

इसे खिलने दो जरा यह खिलना चाहती है
क्योंकि खिलखिलाती सी है यह जिंदगी

गुदगुदाती सी है जिंदगी
बहुत हसाती है यह जिंदगी

रुलाती भी बहुत है जिंदगी
मिलकर जीने का नाम है जिंदगी

बिछड़ने का नाम है जिंदगी
फिर मिल जाने का नाम भी है जिंदगी

प्यारी सी मुस्कान है यह जिंदगी
खुद में जीने का नाम है जिंदगी

रूठे हुए को मनाना है जिंदगी
किसी अपने से रूठ जाना भी है जिंदगी

इंतज़ार भी है जिंदगी
अधूरी प्यास है जिंदगी

सहलाती हुई माथे पर हाथ रखती माँ है यह जिंदगी
माँ का आँचल है जिंदगी

पिता की डांट का नाम है जिंदगी
खुदसे प्यार करने का नाम है जिंदगी

मैं से मैं मिल जाना है जिंदगी
तुम और मैं को खत्म कर देना है जिंदगी

जिंदगी एक कविता की भांति ही है बस इस जिंदगी को उसी तरह से जिओ

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