शब्द तो बन बैठा हूँ
लेकिन शब्दों को कह नहीं पाता हूँ
बस खुद में ही कही नजर आता हूँ
शब्द हूँ शब्दों से कतराता हूँ
कभी छुपक जाता हूँ ,
कभी दुबक जाता हूँ ,
बाहर नहीं आ पाता हूँ ,
घबरा कर बैठ भीतर ही जाता हूँ ,
यू मुझमे छिपा दर्द बहुत लेकिन कह कुछ नहीं पाता हूँ
बिना मतलब के चिल्लाता हूँ
हर किसी को बताता हूँ
शब्द हूँ मैं
लेकिन कुछ बोल नहीं पाता हूँ
भीतर की गहरी बाते जुबा पर ला नहीं पाता हूँ
जब भी बारी आई मेरी बोलने की सहमा सहमा नजर आता हूँ
शब्द हूँ मैं
लेकिन ज़्यादार मौन ही नजर आता हूँ
शब्द हूँ मैं
ना जाने ये बात भी कैसे जान पाया हूँ
लेकिन किसी को बता नहीं पाया हूँ