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बस ओर मेट्रो

बस ओर मेट्रो

एक समय था जब नीली वाली प्राइवेट बस चला करती थी, उसमे बहुत भीड़ होती थी और लोग लटक लटक जाते थे, ज्यादातर लोग गेट पर ही खड़े हो जाते थे, आज जब मेट्रो चलने लगी है तब भी लोगों में वही आदत है लोग गेट पर ही खड़े रहते है, वहाँ से हटते ही नहीं है।

पता नहीं लोगों को क्या लगता है की उन्हे वही खड़ा रहना है, जैसे एकदम से कूदेंगे जैसे ही मेट्रो रुकेगी, चाहे मेट्रो में भीड़ हो या नहीं, लेकिन उन लोगों को तो गेट पर ही खड़ा होना है जैसे सारा आनंद उनको गेट पर ही मिलेगा, किसी को भीतर आने ओर बाहर जाने का रास्ता आसानी से नहीं मिल पाता है, ये लोग ऐसे अढ़ कर खड़े हो जाते है, जैसे की अब जगह नहीं बची है किसी को प्रवेश नहीं होगा।

मेट्रो के तो गेट बंद हो जाते है, इसमे लटक भी नहीं सकते फिर भी यह लोग गेट पर खड़े होते है, पहले जो नीली वाली बसे चलती थी, उन्मे ज़्यादार लोग बस की सीढ़ियों पर ही खड़े रहते थे।

तो मुझे इन गेट पर खड़े होने वाले लोगों को देखकर वही दृश्य याद आता है, जो आजसे 15 साल पहले  होता था, लोग उस समय एक बस के इंतजार में आधे घंटे तक खड़े रहते थे, लेकिन आज इतनी जल्दी होती है, एक मेट्रो का इंतजार वो 2 मिनट नहीं कर पाते पता नहीं कितनी जल्दी है।

अब लोगों को की उनसे इंतजार के 2 मिनट नहीं बीतते दिल्ली मेट्रो के कुछ स्टेशन जैसे राजीव चौक, कश्मीरी गेट, स्टेशन पर तो लोग ऐसे धक्का मुक्की करते है, ओर उसके बाद जैसे की दूसरी कोई मेट्रो तो ही नहीं आएगी इस तरह से वो उसमे धक्का मुक्की करने लग जाते है।

मेट्रो का सफर बहुत आरामदायक हो चुका है, पहले से बेहतर है सब कुछ बेहतर हो रहा है फिर भी इंसान परेशान सा लगता है, इतना आरामदायक जीवन हो चला है, फिर भी कही फंस हुआ लग रहा है ये इंसान..

आज से 10 साल पहले जब रात 9 बजे बस सर्विस नहीं थी या कम थी तब घंटे भर तक एक बस का इंतजार करना पड़ता था ओर वो भी बिल्कुल भरी हुई आती थी, लेकिन आज के समय में लगातार बस भी है ओर मेट्रो भी हर 2 मिनट बाद मेट्रो आ जाती है रात 11 बजे तक तो मेट्रो चलती है, कुछ स्टेशन के लिए 12 बजे तक की भी सर्विस है फिर भी लोग बेचैन हो जाते है।

समय के साथ सबकुछ बेहतर हो रहा है, लेकिन क्या इंसान बेहतर हो पा रहा है इंसान उसी तरह से, उसी सोच के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा है उसमे कोई बदलाव नहीं दिख रहा है!

Restart

Fir se restart likhne ke liye kar raha hoon umeed karta hu ab main lagatar likhta rahunga aur dher saari aapse baat karunga aur kuch nayi baate btaunga, har roj kuch likhne ko yeh baat jaruri nahi hai lekin main likhne ki koshish karta rahunga bas isi umeed main likhta rahunga.

likhne se jo mann mei dba hua hota hai vo bahar nikal jata hai, bahut saari pareshaniya to likhne bhr se hi khatam ho jati hai, likhne se sukun milta hai, likhne se mann accha rehta hai, bahut jyada mood swing bhi nahi hota jab aap likhte hai, shabdo mei thehraav aata hai…

yadi aap kahi ruk gaye hai to usey restart kare vahi ruke na rahe, restart karna jaruri hai nahi toh jo sapne dekhe the vo adhure hi reh jayenge.

Saath hee aapse bhi umeed karta hu ki aap mere saath apne vicharo ko saanjha karenge

mujhe likhna pasand aapko kya aapko bhi likhna pasand hai yadi haa toh kuch likh kar aap mujhe email kar sakte hai ham use apni website par publish karenge

good night friends

सुस्ती भरा दिन

एक सुस्ती भरा दिन यूं ही बीत चला गया जिसका पता भी नही चला, आज पूरे दिन रजाई में लेटा और बैठा रहा फिर क्या था बस मैं अपने ही ख्यालों में कही गुम रहा कुछ विचार आए और कुछ नही

सुस्ती शारीरिक थी लेकिन दिमागी कतई भी नही कभी उठ बैठ जाता और अपनी स्पाइरल वाली नोटबुक में लिख देता बस आज यही किया क्युकी आज कही जाना तो नही था सप्ताह के आखिरी दो दिन दिल्ली बंद है

कुछ विचारो पर कार्य किया और कुछ नही
कुछ विचार बहुत जरूरी थे और कुछ का कोई मतलब नहीं था , कुछ ऐसे विचार थे जिनसे 2022 को प्लान करना था और कुछ ऐसे जिनको दिमाग से हटाना था

लगातार विचारो से खेलना मेरी आदत बन गई है हां मुझे व्यायाम करना कोई खास पसंद नही है लेकिन अपने विचारो को देखने में नही संकुचता तनिक भी

यह आज सुस्ती भरा दिन आज ऐसे ही खतम होने लगा था तो सोचा कुछ लिख देता हूँ वैसे कुछ खास नहीं था बस यही की विचारो को देखना , पढ़ना , समझना , जानना अत्यंत है जरूरी क्युकी इन्ही से बनती जिंदगी पूरी

अपने विचारो को यूं ही मत बिगाड़े इन्हे बस सवारे

यही था आज का विचार चलता हूं सुस्ताता हूं फिर आता रहूंगा बार बार मिलूंगा आपसे यही हर बार

अकल लगाओ

अपनी अकल लगाओ, इतना दिमाग क्रिकेट और फिल्मों में हम अपना लगा देते है तो क्या होता,
यदि इतना दिमाग पढ़ाई और काम करने में लगा दे तो शायद हम भी एक सफल व्यक्ति बन सकते है, सही है क्या ? किसी भी चीज को पाने को चाहत आपको कहा तक ले जा सकती है।

ऐसा बचपन में सुनने को मिलता था लेकिन, आजतक अकल मैं नही बैठा यह सबक मुझे आज भी फेसबुक पर देखने को मिल रहा है आंखे गड़ा कर बैठ हम जाते 9 घंटे तक पलके भी नहीं झपकाते बस मोबाइल की स्क्रीन को ऊपर और नीचे ही कर समय बिताते।

फ़िल्म देखने जाते और अपनी सीट को ऐसे पकड़ कर बैठते है कि कुर्सी थोड़ी सी भी आगे पीछे ना हो जाये,कोई सीन निकल ना जाए बस यह कुर्सी ऐसी की ऐसी रहे
अगर इतनी मेहनत पढ़ाई में लगाये होते बिना पलक झपकाए पढ़ें और पढ़े तो टॉपर ही ना बन जाये
लेकिन हमको ये बात काहे को समझ आये।

पढ़ाई में मन नही लगता
काम में मन नही लगता
जो चीज़ करने बैठता हूं उसी से दूर भागने लगता हूं,
फिर क्या करूँ और क्या नही ? यही समझ नही आता

दुखडा मेरा है, खुद को ही मैं समझाता हूं
देखते ही देखते साथ वाले टोपर भी बन गए ,
तो कुछ बड़े बिजनेसमैन भी बन गए
मै ना जाने क्यों वही का वही अटक गया

लगता है में कही भटक गया
नींद बड़ी प्यारी लगती थी इसलिए
जिंदगी में नीचे लटक गया
सुबह उठ नही पाता था जल्दी

पढ़ नही पाता था देर तक
कानो मैं लीड लगाकर सो जाता था,
जो याद किया था वो भी भूल जाता था

फिर घंटो तक जो पढ़ा था उसीको दोहराया करता था
इतनी गलती करने पर भी में नही पछताया करता था
इसका नतीजा हार है यही एक विचार है।

अपनी अकल लगाओ यू ही समय को ना तुम व्यर्थ में गवाओ।

यह भी पढ़ो: अपनी अकल लगाओ, अपनी अकल लगाओ, समझ अपनी अपनी,

कर्मों का हिसाब

कर्मों का हिसाब कैसे होता है ? हमारे पूर्वज हमें यही बताते है, कि एक बड़ी दाढ़ी वाला बाबा ऊपर बैठा हमारे कर्मों का हिसाब करेगा उसके पास सारा लेखा जोखा है, हमारे कर्मो का जिससे हमारे आगे का जन्म निर्धारित होता है

क्या आप इस बात को मानते है??

यदि हां तो क्यों ?? ओर नहीं तो क्यों नहीं??

हमारे कर्म , हमारी सोच पर निर्भर करते है, जैसा हम सोचते है, वैसा ही हम करते चले जाते है उसके ही हिसाब से हमारे कर्म बन रहे है, वह अच्छे है या बुरे इस बात का हमें ध्यान रहता भी है ओर नहीं भी , कुछ हम जानबुझ कर करते है ओर कुछ अनजाने में हो जाते है।

लेकिन यह सही है या गलत इसका मापदंड क्या है?

कोरोना काल में जीवन

कोरोना काल में जीवन कैसा था, यह समय है जब सभी लोग अपने काम धंधों से भी झुझ रहे है, ओर साथ ही बीमारी से भी सभी लोग आजकल परेशान है कि आगे क्या होगा ? कैसे परिवार ओर जीवन चलेगा ? क्या हम जीवित भी रहेंगे या नहीं

हम सभी के मन में बहुत सारे ऐसे विचार आ रहे है जो हमें नकारात्मक जीवन की और धकेल रहे है क्या हम इं सभी विचारो से बाहर निकल पाएंगे या फिर जीवन कि स्तिथि ओर परिस्थती ओर भी गंभीर हो जाएगी

कोरोना काल में जीवन का क्या होगा ओर क्या नहीं यह किसी को भी नहीं पता था, इसलिए सभी बैठे है अपने घरों में , हम सभी के मन में डर घर कर चुका है।

दसवीं ओर बारहवी की परीक्षा भी अटकी हुई है कॉलेज की परीक्षा भी जैसे तैसे ले रहे है ऑनलाइन से लेकिन उससे क्या होगा ? बच्चो को किताब खोलकर पेपर देने की अनुमति दी गईं है क्या बच्चो का बौद्धिक स्तर बढ़ रहा है

ना ही बच्चो की शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है ना ही उनको कोई अवसर मिल रहा है। पिछले डेढ़ साल से बच्चे घर पर ही है अब उनका पढ़ाई से मन भी हट रहा है। जब हम सभी घर में रहने लग जाते है तो घर , परिवार के किर्या कलापो में उलझ कर रह जाते है जिससे हमारे लक्ष्य हमसे दूर हो जाते है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सभी अपने लक्ष्यों से दूर हो जाते है कुछ अपने लक्ष्यों को भेदने के लिए ओर ज्यादा तेयार होकर बाहर आते है लेकिन ज्यादातर लोग अपने लक्ष्यों से भटक जाते है ऐसा ही आजकल हो रहा है

बेरोज़गारी बढ़ रही है , व्यवसाय घट रहा है नए परिणाम नहीं आ रहे है , नया कुछ करने को नहीं मिल रहा है। गरीब मजदूर , माध्यम वर्ग ओर अमीर सभी इस बोझ के तले अब दब रहे है, की कैसे उभरेंगे फिर से

सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर के बारे में रोचक तथ्य वैसे तो सचिन तेंडुलकर के बारे जितना बताया जाए उतना कम ही है फिर भी 32 ऐसी बाते जिन्हे जानना चाहिए।

1. 1995 में सचिन तेंदुलकर नकली मूंछ-दाढ़ी और चश्मा लगाकर फ़िल्म ‘रोजा’ देखने गए थे, लेकिन उनका चश्मा गिरते ही सिनेमा हॉल में मौजदू लोगों ने उन्हें पहचान लिया।

2. यह बेहद कम लोग ही जानते हैं कि सचिन तेंदुलकर अपने पिता रमेश तेंदुलकर की दूसरी पत्‍नी के पुत्र है। रमेश तेंदुलकर की पहली पत्‍नी से तीन संताने हुई, अजीत, नितिन और सविता तीनों सचिन से बड़े है।

3. सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर प्रसिद्ध संगीतकार सचिन Dev Burman के बहुत बड़े फ़ैन थे. उन्होंने अपने बेटे का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा.

4. स्कूल टाइम में सचिन अपने दोस्तों के साथ वड़ा पाव खाने का कॉम्पीटीशन रखते थे। विनोद कांबली को वे कई बार इस रेस में हरा चुके हैं।

5. स्कूली जीवन में उनके अच्छे दोस्त अतुल रानाडे ने उनके घुंघराले बालों के कारण उन्हें लड़की समझ लिया था।

6. बचपन में यदि सचिन नेट्स में पूरा सत्र बिना आउट हुए खेल लेते, तो उनके कोच ‘रमाकांत अचरेकर’ उन्हें एक सिक्का  देते थे. सचिन के पास ऐसे 13 सिक्के हैं।

7. मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में 1988 में खेले एक दिवसीय अभ्यास मैच में सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के लिए फ़ील्डिंग की थी।

8. जब सचिन महज 14 साल के थे, तब Sunil Gavaskar ने उन्हें बहुत ही हल्के पैड तोहफे में दिए थे। अंडर-15 टीम के कैंप के दौरान Indore में वे पैड चोरी हो गए थे।

9. गेंदबाजों को दिन में तारे दिखाने वाले सचिन को नींद में चलने की बीमारी है। एक बार एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने इस बात का खुलासा किया था। उनकी इसी आदत के कारण अकसर उनके घरवाले और टीम के साथी खिलाड़ी परेशान रहते हैं।

10. सचिन तेंडुलकर Left Hander हैं। जी हां, यह सच है। वैसे तो सचिन सीधे हाथ से बल्लेबाजी करते हैं। बॉलिंग में भी उनका सीधा हाथ काम करता है, लेकिन Autograph देने के लिए वे बायें हाथ का इस्तेमाल करते हैं।

11. Dennis Lillee और सचिन तेंदुलकर के रिश्ते पर काफ़ी बात हुई है. M.R.F के फाउंडर लिली ने ही सचिन को गेंदबाजी छोड़ बल्लेबाजी पर ध्यान देने की सलाह दी थी. लिली ने जिन खिलाड़ियों को तेज़ गेंदबाज़ बनने से मना किया उनमें Sourav Ganguly भी शामिल थे.

12. 1995 में सचिन तेंदुलकर नकली मूंछ-दाढ़ी और चश्मा लगाकर फ़िल्म ‘रोजा’ देखने गए थे, लेकिन उनका चश्मा गिरते ही सिनेमा हॉल में मौजदू लोगों ने उन्हें पहचान लिया.

13.  दिलचस्‍प तथ्‍य यह है कि सचिन जब कभी भी टीम के साथ बस में होते हैं तो वे हमेशा पहली पंक्ति में बायीं तरफ की खिड़की वाली सीट पर बैठते हैं।

14. सचिन तेंदुलकर 14 साल की उम्र में मुंबई की रणजी टीम में शामिल हुए. इतनी कम उम्र में मुंबई की Ranji Team में शामिल होने वाले वे पहले खिलाड़ी थे.

15. Sachin ने Pakistan के ख़िलाफ़ अपने पहले टेस्ट मैच में सुनील गावस्कर से उपहार में मिले पैड्स को पहन कर खेला था.

16. 1996 के विश्वकप में सचिन के बल्ले पर किसी भी कंपनी का लोगो नहीं था. विश्वकप के तुरंत बाद टायर बनने वाली कंपनी MRF ने उनसे करार कर लिया था.

17. सचिन तेंदुलकर ने रणजी, दलीप और ईरानी ट्राफ़ी के अपने पहले ही मैचों में शतक जमाए. ऐसा करने वाले वे भारत के एकमात्र बल्लेबाज़ हैं. उनका यह रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है.

18. सचिन ने अपने ज्यादातर बड़े स्कोर गोकुलाष्टमी, होली, रक्षा बंधन और दीपावली जैसे भारतीय त्योहारों पर ही बनाए हैं।

19. सचिन ने अपने टेस्ट करियर में कभी तीसरे क्रम पर बल्लेबाजी नहीं की। बतौर सेकंड ओपनर वे कुल 1 बार उतरे।

20. सचिन के नाम एक खास रिकॉर्ड दर्ज है। वे जिस भी Ranji Match में खेले हैं, उनकी टीम हर बार विजयी रही है।

21. एकमात्र रणजी मैच जिसमें सचिन हारी हुई मुंबई टीम का हिस्सा थे वह Haryana के खिलाफ था।

22. सचिन जब भी बल्लेबाजी के लिये उतरे, मैदान पर कदम रखने से पहले वह सदैव सूर्य देवता को नमन करते।

23. क्रिकेट के प्रति उनका लगाव एक घटना से लगाया जा सकता है। वर्ल्ड कप 1999 के दौरान जब उनके पिताजी का निधन हुआ तो वह पिता की अन्त्येष्टि में शामिल हुए और वापस मैच खेलने लौट गये। अगले मैच में सचिन ने शतक ठोककर अपने दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि दी।

24. सचिन अपनी Ferrari के इतने दीवाने हैं कि वे अपनी पत्नी Anjali को भी इसे चलाने नहीं देते.

25. Third Umpire द्वारा आउट दिए जाने वाले पहले बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर हैं. 1992 में, डरबन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ़ खेले जा रहे टेस्ट मैच के दूसरे दिन जोंटी रोड्स के थ्रो के बाद यह मामला तीसरे अंपायर को रेफ़र किया गया. अंपायर कार्ल लाएबनबर्ग ने सचिन को आउट करार दिया था।

26. आपकी जानकारी के लिए बता दे कि सचिन 1990 में पहली बार टीवी पर दिखे. इसके बाद वे Kapil Dev के साथ कई विज्ञापनो में नज़र आए, सचिन तेंदुलकर पहली बार एक दवा कंपनी के ‘प्लास्टर’ के विज्ञापन में नज़र आये थे।

27. बच्चे, महिलाएं, बुर्जुग हर उम्र के लोग सचिन के दीवाने हैं. यही वह क्रिकेटर है, जिसने क्रिकेट को घर-घर पहुंचा दिया. कहा जाता है कि “सचिन के आउट होते ही आधा भारत टीवी बंद कर देता था”.

28.  सचिन तेंदुलकर का बैट लगभग 1.5 किलोग्राम का होता था. इतना भारी बल्ला सिर्फ़ दक्षिण अफ्रीका के लांस क्लूजनर इस्तेमाल करते थे.

29. सचिन तेंदुलकर सौरव गांगुली को ‘बाबू मोशाय’ कहते हैं और गांगुली उन्हें ‘छोटा बाबू’ कह कर पुकारते हैं.

30. सचिन के पिता रमेश तेंडुलकर ने सचिन को करियर की शुरुआत में ही शराब और सिगरेट के विज्ञापनों से दूर रहने की सलाह दी थी और सचिन ने भी अपने पिता से ऐसा न करने का वादा किया था।

31. सचिन ने अपना 5000वां, 10000वां और 15000वां रन भारतीय सरजमीं पर बनाए हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि उन्होंने अपना 5000वां और 10000वां रन ईडन गार्डन्स पर पूरे किए और दोनों अवसरों पर विरोधी टीम पाकिस्तान थी।

32. अब सचिन के रिटायरमेंट के बाद उनके बच्चे England के लिए भी खेल सकते हैं। क्योकीं उनकी नानी अन्नाबेल इंग्लैंड की हैं।33. भारत सरकार की तरफ़ से सचिन तेंदुलकर को पद्म विभूषण, राजीव गांधी अवॉर्ड (खेल), महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, पद्मश्री, अर्जुन अवॉर्ड और भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.

सचिन तेंदुलकर के बारे में रोचक तथ्य
सचिन तेंदुलकर

धीरज शब्द

धीरज शब्द का अर्थ क्या है? धीर , धीरज , सब्र, धैर्य, यह चारो शब्द इस एक Patience शब्द में बदल दिए गए है।
क्या आपको नहीं लगता?  कि हमारे शब्द कहीं खो गए है, हमारे हिंदी भाषा के शब्दों का हनन हो रहा है।

अंग्रेजी भाषी होना ठीक है, परन्तु उचित स्थान पर ही सही है जहां जरूरत हो बिना जरूरत के अंग्रेजी भाषा ठीक नहीं है, क्युकी अंग्रेज़ी में शब्दों का हनन होता है।

अब उन चारो शब्दों में कितना प्रेम है परन्तु Patience एक शब्द जिसमे ये चार शब्द आ गए क्या उसमे प्रेम दिखता है? क्या भावनाए पता चल रही है ? क्या वो शब्दों का एहसास , अनुभव मालूम पड़ रहा है, मेरे ख्याल से बिल्कुल भी नहीं, लेकिन हिन्दी भाषा में धीरज शब्द बहुत ही प्रिय लगता है, जिसका अर्थ बहुत अच्छे से निकल कर आता है।

यदि आप आजकल रामायण देख रहे है, तो उसमें हिंदी के शब्दों का इतनी सहजता से प्रयोग हो रहा है, जो मन को हर्षित कर देता है ऐसी हिंदी पिछले 20 साल में किसी और धारावाहिक में नहीं दिखी।

क्यों अंग्रेज़ी भाषा पर इतना बल दिया जा रहा है ? क्यों हिंदी में अधिक से अधिक कार्य नहीं कराए जाते?
ऐसा क्या है अंग्रेज़ी में? ठीक है हम मान भी लें अंग्रेज़ी अतिआवश्यक है, आज के समय के अनुसार परन्तु हिंदी अत्यंत आवश्यक भाषा है जो पूरी तरह से वैज्ञानिक है हर एक स्वर , उच्चारण की स्तिथि अलग स्थान से निकलती है, जो सीधे आपके शरीर और मस्तिष्क को प्रभावित करती है और सभ्य शालीनता प्रदान करती है।

तथा आपके भीतर जो विकार है, उन्हें बाहर निकालती है परन्तु अंग्रेज़ी भाषा आपके भीतर विकार पैदा करती है। अंग्रेज़ी भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है, जो अर्थ का अनर्थ कर देते है, परन्तु हिंदी हर एक शब्द को सही अर्थ एवं ज्ञान की दृष्टि से प्रमाणित करती है।

हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है, और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है, उसके पीछे कुछ कारण है , अंग्रेजी या किसी अन्य  भाषा में ये बात देखने में नहीं मिलती।

क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय ध्वनि कंठ से निकलती है। एक बार बोल कर देखिये।
च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ तालू से लगती है। एक बार बोल कर देखिये।
ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है। एक बार बोल कर देखिये।
त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए, क्योंकि इनके उच्चारण के समय जीभ दांतों से लगती है। एक बार बोल कर देखिये।
प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के मिलने पर ही होता है। एक बार बोल कर देखिये।

यह सही हे कि हम अपनी भाषा पर गर्व करते हैं, परन्तु लोगो को इसका कारण भी बताईये इतनी वैज्ञानिकता दुनिया की किसी भाषा मे नही है।

हमारा सीधा संबंध इस भौतिक एवम् पार भौतिक सत्ता से जोड़ता है।

रामायण और महाभारत तो आपको वैज्ञानिक दृष्टि भी प्रदान करते है जिसमें आपको सामान्य विज्ञान और एडवांस टेक्नोलॉजी भी दिखती है। हम सभी जितना हिंदी से दूर हो रहे है उतनी ही बुद्धि कुमति की ओर अग्रसर है इस बुड्ढी को सुमति की कारण है तो हमें हमारी हिंदी भाषा , संस्कृत को सुदृढ करना होगा तभी हमारे विचारो में अधिक परिवर्तन दिखेगा

क्या आपने रामायण में भविष्यवाणी सुनी? जब लक्ष्मण भरत को मार देने के बारे में सोचता है आकाशवाणी का यही संदेश आता है बिना विचारे किसी मत पर पहुंचना बाद में पछतावे का कारण हो सकता है।

यह आकाशवाणी कोई कल्पना मात्र नहीं है यह सत्य है इसी प्रकार से पहले भविष्यवाणी होती थी यही भविष्यवाणी महाभारत में भी देखने को मिलेगी।

एक द्वापर युग की कथा है और एक त्रेता युग की परन्तु कलयुग में आकाशवाणी नहीं होती सुनाई से रही है क्युकी हम सभी अपने कोर अपनी आत्मा से दूर होते जा रहे है यही कारण है हमारा जीवन व्यस्त नहीं अस्त- व्यस्त हो रहा है।

यह भी पढे: शब्द क्या है, शब्द, आपके शब्द, शब्दों का संसार, शब्दों की बाते,

क्या सपने होते है?

सपने और सच क्या होते है सपने ? क्यों आते है हमे सपने ? क्या सच में सपने होते है ?
क्या असल जिन्दगी से कोई ताल्लुक है इन सपनो का ?

सपने या हकीकत सपने या हमारी सोच का कारण सपनो का हकीकत में साकार होना ना हो पाना हमारे असल जीवन में या जाग्रत अवस्था में इस समय में मेरा शरीर सो रहा है मैं कुछ नही कर रहा इस समय में सिर्फ अपने विचारो को देख रहा हूं जो मेरे मस्तिष्क में आ और जा रहे है लेकिन अब शरूर निस्किर्य है परंतु मस्तिष्क किर्यशील है इसलिए मन उन सभी विचारो के साथ छेड़खानी कर रहा है और और उन्हें बढ़ावा दे रहा है

और विचारो को खोता जा रहा हूं ऐसा लगता है मानो ये विचार कुछ पूरा करने की इच्छा रखते है जैसे अभी आसमान को अपने अंदर समेत लेना चाहते हो मैं भी इन विचारो की सिथति खोता जा रहा हु मैं भी इस सोच के साथ ही चल रहा हूं

मेरा शरीर जब सोता है तो शरीर को निस्किर्य अवस्था विचारो में प्रबलता लाती है।
जिसके कारण मानो मेरे छोटे छोटे विचारो को बड़े होने की  आज़ादी मिल गयी हो इन्होंने जानो कितनी ही स्तिथतियो को जन्म दे दिया कितनी ही बड़ी बड़ी कल्पना है गढ़ ली यह विचार अब खुद को ही इस शरीर और मस्तिष्क की सत्ता का मालिक समझने लग जाते है

एक छोटी सी स्थिति को पता नही कितना बड़ा पहाड़ से बनाने  लग गए विचार , विचार एक छोटे से पहलू को कितनी ही स्तिथतियो में अलग अलग प्रकार से लगव हो ?

यहॉ वो समय है जब मैं अपनी सोच को ही जिंदगी की हकीकत समझता हूं परंतु यह सोच भी मेरा साथ तब तक देती है जब तक मेरा शरीर सोया होता है जैसे ही मेरा शरीर उठता है ये सोच खो जाती है, और मैं वापस अपने शरीर को देखता हूं इस शारीरिक स्तिथि को देखता हूं जो सिर्फ आराम कर रहा है, और उठने वाला है हकीकत में तो जीवन असफल से लगता है हम अपने जीवन में ना जाने कितना ही कुछ करना चाहते है।

परंतु हम हर वस्तु चीज़ को नही प्राप्त कर पाते हमारे जीवन की सारी इच्छाओ को पूरा नही कर पाते हमारे जीवन की सच्चाई यह है की मानव जीवन अपने आप में असहाय से लगता है जब तक उसे अपने जीवन के सही रूप , सही दिशा सही अर्थो , सही शब्दो में ज्ञात नही होता , यह जीवन तो मानो निर्रथक से लगता है जब तक इसे सही दिशा , सही परिस्तिथि सही स्तिथि सही सोच नही मिलती क्योंकि हमारी शारीरिक क्षमता कम होती है और विचारो की शक्ति और कल्पना की कोई गणना नही है जिसके कारण हम असल जिंदगी में असहाय और कठिनाईयो से भरे भरे मालूम होते है इसी कारण हिमारी अधूरी सोच अधूरे कार्य हम सोते हुए पूरा करते है हम उन्ही बातो को अपने सपने समझ लेते है परंतु हकीकत में तो सपने होते ही नही है ये सिर्फ हमारी कल्पना मात्र होते है हमारे विचारो की कल्पनाशील बाते होती है हमारे विचारो के बादल होते है


जैसे हमारे मस्तिष्क में एक विचार आता है और मस्तिष्क की किर्या इसे बढ़ावा देती है जिसके कारण विचारो के बादल सोच में परिवर्तित होते है जिस प्रकार बादलो को आपस में टकराने से बारिश होती है और बारिश का पानी भूतल पर एकत्रित होता है उसी प्रकार हमारे विचारो के बादल भी आपस में टकराते है और सोच का रूप ले लेते है जिसके कारण हम उस सोच पर विचार करने लग जाते है।

हमारा मस्तिष्क विचारो से हर समय हर पल हर क्षण घिरा हुआ रहता है जिसके कारण हमारा मस्तिष्क आने जाने वाले विचारो पर विचार विमर्श की किर्या में हमेशा उलझा रहता है इन विचारो के दृश्य और इनकी इतनी कल्पनाएं हमारे मस्तिष्क में लगातार चलने वाली किर्याओ के एक सहायक रूप में होती है हमारे छोटे छोटे विचार एक बड़ी सोच का रूप लेते है हर एक विचार का अपना एक दृश्य होता है और दृश्य की अपनी एक कल्पना उसकी उचाई और गहराई के साथ होती है।

जो हम रात को सोते हुए देखते है है यह कोई सपने नही होते यह सिर्फ हमारे विचारो को खुली छूट होती है उस समय हम पूर्णतया सोचते ही रहते है और विचारो की मथनी करते है जिससे की वो विचार बड़े हो जाते है और उनको हम आंखे बन्द करते हुए अनुभव कर 0आते दिन के समय भी हम सोचते है परंतु एक समय में कई कार्य कर रहे होते है जिनके कारण हमे पता नही चलता है की हम क्या सोच रहे है हिमारे मस्तिष्क में लगातार विचार आते रहते है जो हमारी आंखे सुबह से शाम तक देख रही है उसकी की फ़ोटो हमारे मस्तिष्क में विचार रूप में प्रकट होती है और उसका बड़ा रूप लेकर हमे नए नए दृश्य दिखाती है जैसा आप पूरे दिन सोचते हो उसी प्रकार का रात भर आपके मस्तिष्क में घूमता ररहते है छोटे छोटे विचार मिलकर बड़े बड़े समूह बना लेते है।

आंखे दृश्य देख रही है और विचार पैदा हुए जा रहे है,महीन विचार मस्तिष्क में आते है और समूह बनाते है इन समूह के घेरे ही आपके मस्तिष्क में सोच को बड़ा करते है वह सोच आपकी शब्दो में परिवर्तित होती है जिस पर आप कार्य करते हो और लगातार करते  ही रहते हो आपकी बुद्धि उन्ही दृश्यों के बारे में लगातार सोचती रहती है अलग अलग तरह से उसके हर पॉजिटिव और नेगेटिव तरीके को अपने ढंग से देखती है आपका दिमाग जैसा और जिस तरह से सोचता है रात को आप उसी तरह से सोचते है वो सभी दृश्य है जो आप रात में सोते समय देखते है इसके विप्रित कुछ भी नही है।

मालूम नहीं

मालूम नहीं यह एक ऐसा जवाब है जो अनेको दुविधाएं उतपन्न करता है, और इसका निष्कर्ष कुछ भी नही है और इस कुछ भी नही से प्राप्त होता है, आपके समय की हानि जिसका हर्जाना कोई भी नही भुगत सकता।

मालूम नहीं
मालूम नहीं

मालूम नहीं सिर्फ दो शब्द लेकिन मन में अनेकों प्रश्नों को जन्म दे देते है यह दो शब्द मान लीजिए आप किसी को अपने दिल का हाल बता दे, ओर उससे आपको एक बेहतर जवाब की अपेक्षा हो उसके बदले वो सिर्फ यह कह दे की पता नहीं तो आप समझेंगे, ना जवाब हा में आया ओर न ही ना में आया ओर साफ साफ शब्दों में आपके प्रश्न का उत्तर भी नहीं आया तो मन में तो हजारों पर्ष्णि का आना सहज ही है, यह एक दुविधा है आपको फिर से दुबारा वही प्रश्न पूछना होगा ओर फिर जवाब की तलाश में आप रहेंगे।

हो सकता है आप एक लंबा इंतजार भी करे उस जवाब के लिए जवाब आपके बहुत जरूरी है परंतु जवाब तो नहीं आया आप सिर्फ में लटके हो क्युकी जवाब ना हाँ था ओर ना ही ना उनका जवाब “पता नहीं” था जिसका यह अर्थ निकलता है तो इसका उत्तर उन्हे भी पता नहीं जवाब हाँ ओर ना कुछ भी हो सकता है।

समय तो अपनी गति में भाग रहा है ओर इंतजार जवाब के लिए लंबा होता जा रहा है, मन में सवाल बढ़ रहे है, मन में दवंध बढ़ रहा है, मन में चिड़चिड़ापन ओर परेशानी बढ़ती जा रही है जिसकी वजह से हम उस एक स्थिति में बंध जाते है

ना आप पीछे हट पा रहे हो ओर ना ही आगे बढ़ पा रहे हो जिस संबंध को या तो खत्म हो जाना था या आगे बढ़ जाना था उन दोनों में से कुछ नहीं हो रहा बस इनके विपरीत ही परिस्थिति बन रही होती है।

क्युकी जवाब “मालूम नही” था

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