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किताबे

किताबे जिससे कि हमें ज्ञान प्राप्त होता है। आखिरकार सभी प्रकार की जानकारी व ज्ञान का मूलभूत स्रोत यह किताबें ही है। किताबों में ही सभी प्रकार की जानकारी को एकत्र करके रखा जा सकता है। हमारे पूर्वजों ने भी नाना प्रकार के विषयों के ऊपर जानकारी इकट्ठी करके किसी न किसी ग्रंथ या किताब में उसे संजोकर रखा तभी तो हम आज उस ज्ञान को प्राप्त कर पाए हैं।

प्राचीन समय में कागज का आविष्कार होने से पहले हमारे पूर्वज लिखने के लिए भोज पत्रों का इस्तेमाल किया करते थे। इन भुज पत्रों के आगे और पीछे दोनों तरफ लिखावट होती थी और इन्हीं से किताबें बनाई जाती थी। उस समय लिखावट के लिए भी पेड़ों की टहनियों की कलम बनाकर इस्तेमाल की जाती थी। जब फूलों को पीसकर स्याही तैयार की जाती थी। समय के साथ साथ कागज और फिर आधुनिक कागज का आविष्कार होता गया और भोज पत्रों के स्थान आधुनिक कागज पत्रों ने ले ली और कागज के बाद भी आज कंप्यूटर ने उन कागजों का स्थान ले लिया।

सर्वप्रथम कागज का आविष्कार चीन में हुआ था।और कागजी मुद्रा का आविष्कार भी सर्वप्रथम चीन में ही हुआ था। आज से 200 साल पहले राजा रवि वर्मा के द्वारा हमारे देश में प्रिंटिंग प्रेस स्थापित की गई वह कई किताबों की छपाई की गई। प्रिंटिंग प्रेस के आने से पहले राजाओं के दरबार में कई ज्ञानि व्यक्तियों की आवश्यकता होती थी, जो कि किसी एक किताब को अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद करते थे। इसके अलावा एक ही किताब को लिखने के लिए काफी समय लग जाता था परंतु आज के समय में आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस के आने से एक साथ लाखों किताबे बहुत ही कम कम समय में छापी जा सकती हैं।

आज जो हम अपने इतिहास के बारे में जानते हैं वह सिर्फ इन किताबों की वजह से ही तो जानते हैं। जो कुछ हमारे पूर्वज हमारे लिए किताबों में लिख गए उसी को पढ़कर हम प्राचीन समय के समाज के बारे में जानकारी एकत्र कर पाते हैं।

यह किताबे ही है जो ज्ञान का असीम भंडार हैं। प्रत्येक देश में प्रत्येक भाषा में प्रत्येक विषय पर लिखी गई किताबों से ही हम उस विषय के बारे में उस भाषा के बारे में उस देश के बारे में जानकारी एकत्र कर पाते हैं और किताब किसी न किसी भाषा में होती है परंतु जिस समय में भाषाओं का अविष्कार नहीं हुआ था चित्रों द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे वह जानकारी एकत्र करते थे , फिर धीरे-धीरे भाषाओं का विकास होने लगा, कुछ प्राचीन भाषाओं में पाली प्राकृत वह संस्कृत भाषाएं भी आती है। कई बौद्ध व जैन धर्म ग्रंथ जो कि आज से 5000 वर्ष पूर्व लिखे गए उनमें पाली भाषा व प्राकृत भाषा मिलती है। इससे हमें ज्ञात होता है कि उस समय पाली में प्राकृत भाषाओं का काफी प्रचलन था। सनातन धर्म की प्राचीन पुस्तकें जैसे के महाभारत, श्रीमद् भागवत गीता वह वेद व पुराण आदि संस्कृत भाषाओं में लिखे गए हैं। इससे हमें ज्ञात होता है कि उस समय के कालखंड में संस्कृत भाषा का काफी प्रचार था।

चाहे हम गूगल इंटरनेट व कंप्यूटर पर कितना ही समय क्यों ना बिता लें परंतु ज्ञान का असीम सोर्स दो किताबें ही है हमें किताबों के साथ भी कुछ समय बिताना चाहिए। इससे हमारा ज्ञान वर्धन भी होगा।

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योग क्या है

योग क्या है आप जानते हैं ? असल में योग क्या है ?
क्या योग शब्द सुनते ही आपके दिमाग में शरीर को अलग-अलग अवस्थाओं में रखने की फोटो सामने आने लगती है ?
क्या आप योग को केवल एक शरीर की चर्बी घटाने का या फिर अत्यधिक बढ़े हुए वजन को कम करने का माध्यम समझते हैं?

ऐसे ही न जाने कितने सवाल है अलग-अलग मनुष्यों के मस्तिष्क में आते हैं। मैं काफी समय से योग से जुड़ा हुआ हूं। योग के बारे में मैंने काफी पढ़ा भी है और समझा भी है, परंतु यह कैसी प्रक्रिया है जिसे आप केवल पढ़कर नहीं समझ सकते, इसमें आपको स्वयं संलग्न होना पड़ेगा, केवल तभी आप इसकी गुणवत्ता को समझ पाएंगे।

शरीर की चर्बी घटाना या वजन को कम करने के लिए एक कारगर उपाय है इसमें कोई शंका वाली बात नहीं है परंतु योग को इतना छोटा समझना काफी गलत होगा।


हमारे में से अधिकतर लोग योग को सिर्फ आसन तक ही जानते हैं या फिर प्राणायाम, जो कि आजकल कई योगियों ने प्रचलित कर दिया है। परंतु इसके और भी कई आयाम है।


अगर आप हिंदी भाषा के भी जानकार है तो योग का हिंदी में अर्थ होता है जोड़ना या जमा करना। ठीक उसी प्रकार एक योगी स्वयं को इस प्रकृति से जोड़ता है। योग के भी कई प्रकार है। जैसे कि अष्टांग योग,कर्म योग, भक्ति योग या ज्ञान योग इत्यादि। यहां में केवल अष्टांग योग की पर बात करना ज्यादा अच्छा समझता हूं क्योंकि जिस योग के बारे में आज का मनुष्य समझता है, वह अष्टांग योग का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है।

अष्टांग योग:
अष्टांग का सीधा सा अर्थ है आठ अंगों का होना। योग के आठ अंग कौन से हैं क्या आप जानते हैं?

यह सभी आठ अंग इस प्रकार हैं:
१ यम
२ नियम
३ आसन
४ प्राणायाम
५ प्रत्याहार
६ धारणा
७ ध्यान
८ समाधि

साधारणतया आज के समय में मनुष्य बिना ज्ञान के अभाव में सीधा आसन करने की कोशिश करता है। परंतु यह थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इसके लिए आपको अपने सारे नियम पालन करने होंगे। सर्वप्रथम योगी का खानपान उसकी दिनचर्या योग के अनुकूल होनी आवश्यक है। आसन करने के समय उसका उदर बिल्कुल साफ होना चाहिए। इसके अलावा आपको एसी जगह का चुनाव करना होगा जहां आपको वायु पर्याप्त मात्रा में मिल सके।

इसके बाद अगर बात की जाए आसनों की तो आसन कई प्रकार के हो सकते हैं। परंतु साधारणतया मैंने ध्यानात्मक आसन, खड़े होकर किए जाने वाले आसन और लेट कर किए जाने वाले आसनो की श्रेणी में रख सकते हैं।

ध्यानात्मक आसन का सीधा सा अर्थ है वे सभी आसन जिन्हें की एक स्थिति में बैठकर किया जा सकता है। इसमें प्रचलित नाम है पद्मासन, सिद्धासन, गोमुखासन, विरासन, अर्ध पद्मासन तथा वज्रासन इत्यादि।

सभी आसनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है, परंतु पद्मासन को आसान श्रेष्ठ कहा जाता है। इसमें योगी को अपने दोनों पैरों को मोड़कर विपरीत जंघाओं पर रखना होता है वह मेरुदंड को बिल्कुल सीधा रखना होता है। यह आसन ना केवल आपके पैरों पर कि जाओ डालता है परंतु आपके पूरे शरीर को मजबूत बनाता है। जब आप इस आसन को लंबे समय तक अभ्यास रद्द हो जाते हैं तो आप इसे अलग-अलग अवस्थाओं में भी कर सकते हैं। परंतु जब शुरुआती समय में अगर यह असर नहीं होता तो आप केवल एक पैर दूसरी जगह पर रखकर अर्ध पद्मासन से शुरुआत कर सकते हैं। फिर धीरे-धीरे अभ्यास रात होने के बाद आप पूर्ण पद्मासन की स्थिति में आ जाएंगे।

इसके अलावा बात अगर वज्रासन की की जाए तो केवल यह एक आसन है जिसे आप भोजन के उपरांत भी कर सकते हैं। यह आपकी पाचन प्रक्रिया को भी तो सुदृढ़ करता ही है, साथ साथ आपकी हड्डियों को भी बहुत मजबूती प्रदान करता है। यदि आप जोड़ों के दर्द से पीड़ित है, या फिर आपके पैर बहुत कमजोर है, तो आपको यह आसन शुरू करना चाहिए। केवल कुछ ही समय के अभ्यास के बाद आप पाएंगे कि आपके पैरों के घुटने काफी मजबूत हो जाएंगे। इसी प्रकार बाकी सभी आसनों की भी अपनी अपनी अलग-अलग उपयोगिता है, अगर मैं अपने अनुभव से कहूं तो मुझे पद्मासन की स्थिति सबसे श्रेष्ठ लगती है।

प्रणायाम:
आजकल व्यक्ति टीवी देख कर या पुस्तकों में पढ़ कर कुछ प्राणायाम कर रहा है वह भी उसकी उपयोगिता और तरीके को जाने बिना। आज के समय में सबसे ज्यादा अगर लोग जानते हैं तो कपालभाति और अनुलोम विलोम को। लेकिन जहां तक मैं समझता हूं, कपालभाति एक प्राणायाम ना होकर एक शुद्धि क्रिया है, जो कि योग के षट्कर्मों में से एक है। और अगर बात की जाए अनुलोम-विलोम की तो उसे अधिकतर योगी नाड़ी शोधन प्राणायाम के नाम से जानते हैं। अर्थात नाड़ियों को शुद्ध करने वाला प्राणायाम।

मेरे अर्थात प्राणायाम का सीधा सा अर्थ है प्राणों को एक अलग आयाम देना अर्थात एक अलग रास्ता देना। बात यह आती है कि यह प्राण क्या है। योग में प्राणों को वायु रूप बताया गया है व उसके पांच प्रकार बताए गए हैं।
प्राणवायु
अपान वायु
उदान वायु
व्यान वायु
समान वायु

मानव शरीर के संचालन में इन्ही पांच प्रकार की वायु का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है।

अलग-अलग प्पुस्तकों में अलग-अलग प्राणायामो के बारे में जानकारी मिलती है परंतु प्राणायाम के तीन मुख्य अंग बताए गए हैं:
रेचक
कुंभक
पूरक

श्वास को भीतर लेना, श्वास को बाहर छोड़ना और रुकना।
अब रुकने में भी दो अवस्थाए मुख्य रूप से बताई गई है:
बाहरी कुंभक
आंतरिक कुंभक

बाहरी कुंभक अर्थात शरीर की सारी वायु को बाहर निकाल कर उसी अवस्था में रुके रहना। इस स्थिति को धीरे धीरे बढ़ाया जा सकता है।
और आंतरिक कुंभक अर्थात स्वस्थ शरीर में पूरी तरह भरकर अंदर ही रोके रखना।
इन दोनों ही स्थितियों के अपने-अपने शारीरिक व मानसिक लाभ है। अब अगर नाड़ी शोधन या अनुलोम-विलोम की बात की जाए तो इसमें बात आती है नाड़ियों की।

योग के अनुसार मानव शरीर में 72000 नाडिया पाई जाती है। जिनमें की तीन प्रमुख है:
इड़ा
पिंगला
सुषुम्ना

इड़ा और पिंगला कोई सूर्य और चंद्र नाड़ी कहा जाता है। इसके ऊपर पूरा एक विज्ञान है जिसे स्वर विज्ञान कहा जाता है।

इसके साथ ही योग में कई क्रियाओं के बारे में बताया गया है। शांभवी क्रिया, अग्निसार क्रिया, वज्रोली और अश्विनी क्रिया आदि।

योग को केवल इतने से शब्दों में नहीं बताया जा सकता है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा विज्ञान है। फिर भी हमने संक्षिप्त तौर पर थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश की है अगर इसमें कोई त्रुटि हुई हो तो हम क्षमा चाहते हैं और सभी सुधारात्मक कार्यों का स्वागत करते हैं।

धन्यवाद

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परीक्षा

परीक्षा

हम सबका ऐसा सोचना है कि परीक्षा के बल विद्यालय जीवन में ही होती है। परंतु विद्यार्थी चाहे विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करता हो या फिर किसी विश्वविद्यालय में परीक्षा उसका एक अभिन्न अंग होता है। पूरे साल में किसी विद्यार्थी ने क्या किया क्या नहीं किया क्या कितना उसे समझ आया इन सब का आकलन करना ही परीक्षा का मुख्य उद्देश्य होता है। सच पूछिए तो केवल पूरे साल की विद्यार्थी के ज्ञान को आप इनको ही परीक्षा के रूप में रखा जाता है,
यह विद्यार्थी के ज्ञान का आकलन का एक तरीका मात्र है।       

परंतु आज के समय में विद्यार्थियों के मन में परीक्षा का एक ऐसा डर बैठा हुआ है, कि उस डर की वजह से न जाने कितने ही विद्यार्थी मानसिक तौर से बीमार हो रहे हैं।
आज के समय में मानसिक बीमारियों की बहुत बड़ी बाजार परीक्षा का डर भी है। 

परीक्षा में अपने आप में कोई डर होने का मतलब नहीं है परंतु हम जब प्रतिस्पर्धा पर आते हैं विद्यार्थी पर जबरदस्ती का प्रभाव डालते हैं, और किसी दूसरे की तरह होने की चाह उस विद्यार्थी को मानसिक व्याधियों से ग्रस्त कर देती है। हर विद्यार्थी की अपनी एक क्षमता होती है और उसी क्षमता की पहचान के लिए ही परीक्षा निर्धारण किया गया है।  हर बार परीक्षा का अर्थ केवल इतना है कि विद्यार्थी अपनी क्षमता को जाने और अपने आप से प्रतिस्पर्धा करें और अगली बार अपनी पिछली क्षमता से अच्छा प्रदर्शन करें और वह अपनी कमियों को जान सके अपनी गलतियों को सुधार सकें। पिछली परीक्षा में की गई अपनी गलतियों को सुधारने के लिए परीक्षा के परिणाम दिए जाते हैं।

परंतु किसी भी विद्यार्थी परीक्षा में आए उसके अंको के माध्यम से ही जांचा नहीं जा सकता हर एक विद्यार्थी या हर एक बालक किसी न किसी एक विषय में अच्छा होता है। या फिर  ऐसा कहा जाए कि हर कोई विद्यार्थी हर एक विषय में अच्छा नहीं होता हर किसी की अपनी पसंद वह अपनी इच्छाएं होती है जिस विषय में विद्यार्थी की इच्छा अच्छी है इच्छा शक्ति रखती है उस विषय को वह जल्दी और आसानी से सीख सकता है।

  परीक्षा केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं परंतु यह तो प्रत्येक मनुष्य के लिए जीवन के हर मोड़ पर देखने को मिलती है। समय-समय पर मनुष्य को परीक्षा की घड़ी का सामना करना पड़ता है। और उनसे निकलने के लिए मनुष्य को नए-नए तरीकों से कोशिश करनी पड़ती है यह पूरा जीवन कई पड़ाव पर परीक्षाएं लाता है।

Written by Pritam Mundotiya

राजधानी दिल्ली

राजधानी दिल्ली के बारे कुछ बाते

दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है। भारत के चार महानगरों में से एक है। और एक ऐतिहासिक शहर भी है। दिल्ली महानगर में मुगल काल की भी कई विश्व विख्यात विरासते आज भी मौजूद है। इसी दिल्ली में 16वीं शताब्दी मे तब्दील हुई जामा मस्जिद लाल किला आज भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वही पास ही में चांदनी चौक जैसा एक भव्य बाजार मौजूद है जिसमें कि तरह-तरह के व्यंजन पकवान वह हर तरह की खरीदारी के सामान उपलब्ध हो जाता है।    

    दिल्ली को तीन और से हरियाणा की सीमा लगती है, जबकि इस के पूर्वी छोर पर उत्तर प्रदेश की सीमा लगती है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र लगभग 573 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली शहर की आबादी 11 मिलियन है जोकि मुंबई के बाद भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है।       

                                     अगर दिल्ली शहर की प्राचीनता की बात की जाए तो 10 वीं शताब्दी में यहां पर तोमर राजाओं का राज्य था। उन्हीं तोमर राजाओं का एक वंशज पृथ्वीराज चौहान था जिसने कि दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। और वही पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम हिंदू शासक था। उस पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली में लगातार तुर्क और मुगलों का आक्रमण होने लगा। जिसमें कि पृथ्वीराज चौहान के तुरंत बाद गुलाम राजवंश आया उसके बाद खिलजी, तुगलक , सैयद और लोरी राजवंश आए। यह सभी मुस्लिम शासक थे। इसके बाद अंत में पानीपत की लड़ाई में बाबर ने लोधी व राजवंश को हराकर दिल्ली में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी। इसी मुगलिया सल्तनत में बाबर के बाद बाबर का वंशज हुमायूं आया जिसने की दिनपनाह महल जो कि आज के समय में पुराने किले के नाम से मशहूर है का निर्माण करवाया। और हुमायूं की मृत्यु भी उसी दिन प्रणाम महल में सीढ़ियों से गिरकर हुई थी।     

                अनेक दर्शनीय स्थल जैसे की कुतुब मीनार, सिकंदर लोदी का मकबरा, इंडिया गेट आदि कई विरासत ए आज भी मौजूद है।  

राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर
राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर

   अगर हम नई दिल्ली की बात करें तो नई दिल्ली को अंग्रेजों ने सन 1911 में अपनी राजधानी बनाया। अंग्रेजों ने भी दिल्ली में कई भव्य इमारतों का निर्माण करवाया। आज इतना भव्य इंडिया गेट हम देखते हैं असल में यह प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विरासत के रूप में तैयार किया गया वह उन सैनिकों के नाम आज भी इंडिया गेट पर लिखे हुए हैं। उसके अलावा राष्ट्रपति भवन विधान सभा वह कनॉट प्लेस भी अंग्रेजों के द्वारा ही बसाई गई विरासत है।    

          आध्यात्मिक तौर पर भी दिल्ली शहर में काफी पुरानी विरासत ए रही है। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया भी इसी दिल्ली में रहे हैं जिन्होंने दिल्ली में 15 राजाओं का शासन देखा और उन्हीं के शिष्य अमीर खुसरो जोकि तबले के अविष्कारक और खड़ी बोली के जनक भी हैं उन्होंने भी 10 राजाओं का शासन देखा वह उन 10 राजाओं के दरबार में रहे। उसके अलावा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार भी हमें महरौली क्षेत्र में देखने को मिल जाएगी राजा कुतुबुद्दीन ने इन्हीं के नाम पर कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।

Written by Pritam Mundotiya

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घूमने के फायदे

घूमने के फायदे क्या है ? घूमने का अर्थ है एक जगह से दूसरी जगह जाना यह साधारण भाषा में हम इसे स्थानांतरण भी कह सकते हैं। कभी-कभी तो बीमार व्यक्तियों के चिकित्सा के लिए भी चिकित्सक उनको स्थान परिवर्तन की सलाह देते हैं।

  एक जगह पर रहते रहते हम उस स्थान के आदी हो जाते हैं। स्थान बदलने पर जलवायु बदलती है, हवा बदलती है, पानी बदलता है।
 
  यह तो हुई मौसम की बात इससे अलावा हमें अलग-अलग जगह जाने से अलग-अलग जगह के रीति रिवाज तौर-तरीकों को जानने का मौका मिलता है।
 
ज्ञान केवल हमें किताबों से ही नहीं मिलता बल्कि हम जितने ज्यादा लोगों में बैठते हैं जितने ज्यादा लोगों से मिलते हैं उतना ही हमें ज्ञान मिलता है।
जितनी ज्यादा लोगों से हमारा मेलजोल होता है इतना ज्यादा ही हम दुनिया के तौर-तरीकों को आसानी से सीख पाते हैं।      
                    
    यह उसी प्रकार सत्य है जिस प्रकार के एक भरे पूरे परिवार में एक बच्चा बहुत जल्दी बोलना सीख जाता है वह सभी क्रियाकलापों को बहुत जल्दी सीख जाता है। मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं जो कि हिंदुस्तान में कई राज्यों में घूमे हैं और बिना किसी विशिष्ट ज्ञान के उन्हें भारत की कई अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान भी है और साथ में वहां की परंपराओं को आसानी से समझ पाते है।

घूमने के फायदे
घूमने के फायदे

घूमने के फायदे 

दुनिया में अलग-अलग जगह जाने पर आपको अलग-अलग जगह के व्यंजनों का पता चलता है। अलग-अलग जगह के रीति-रिवाजों का ज्ञान होता है अलग-अलग जगह के लोगों की सोच का पता चलता है। अगर आप अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल एक ही जगह रहते हैं तो आपको कभी भी बाहर के समाज का ज्ञान नहीं हो सकता आप केवल कुएं के मेंढक की तरह बने रहेंगे।
   
आज के समय में बच्चों का यही तो हाल है कि वह घर से बाहर निकलना नहीं चाहते।
सभी का मन यही करता है कि सबकुछ घर बैठे-बैठे ही मिल जाए और तो और खेल खेलने के लिए भी कोई बच्चा बाहर नहीं जाना चाहता।

मोबाइल में या वीडियो गेम पर सारे खेल उपलब्ध है इससे उनका शारीरिक विकास भी रुक जाता है।     
 
हमने कई ऐसे महापुरुषों के बारे में पढ़ा है जिन्होंने पूरी दुनिया में भ्रमण करके पूरी दुनिया का ज्ञानार्जन किया। उसमें सबसे ऊपर तो नाम गुरु नानक देव जी का ही है जिन्होंने पैदल ही पूरी दुनिया की यात्रा की। जितना ज्यादा आप एक जगह से दूसरी जगह पर जाओगे आपको उतने ही ज्यादा समाज के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।   
 
एक पुरानी कहावत भी है कि
             
कोस कोस पर बदले पानी और 5 कोस पर बदले वाणी”।   
                              
 अर्थात हमारे देश में इतनी विविधता है कि हर थोड़ी ही दूर चलने पर पानी में विविधता जाती है और और थोड़ी दूर चलने पर लोगों की वाणी में विविधता जाती है अर्थात लोगों की बोली में अंतर आ जाता है।

Written by Pritam Mundotiya

मोबाइल फोन

 
मोबाइल फोन भी टेलीफोन का ही एक दूसरा रूप है। टेलीफोन का अर्थ होता है दूरभाष यंत्र और मोबाइल शब्द का अर्थ होता है चलता फिरता हुआ, तो इस प्रकार मोबाइल फोन का अर्थ हुआ चलता फिरता हुआ दूरभाष यंत्र। प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि अनंत समय तक साधनाएं किया करते थे और अपने विचार सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति तक आदान प्रदान किया करते थे। जैसे कि आज के युग में हम टेलीपैथी के नाम से भी जानते हैं।

परंतु आज हमें इस कार्य के लिए कोई मेहनत करने की, कोई साधना करने की तथा समय व्यर्थ करने की जरूरत नहीं है। हमारे पास एक छोटा सा यंत्र जिसे हम  मोबाइल फोन कहते है वह ऐसा यंत्र है जिससे कि हम पूरे विश्व में कहीं भी किसी से भी कभी भी बात कर सकते हैं अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। और जैसा कि हमने पौराणिक कथाओं में पड़ा है कि ऋषि मुनि लोग ध्यान लगाकर दूर बैठे व्यक्ति के बारे में भी देख लिया करते थे। आज इस कार्य के लिए हमें कोई ध्यान लगाने की जरूरत नहीं है। हमारे मोबाइल फोन में ही इस तरह के कार्य आसानी से हो सकते हैं। हम लोग वीडियो कॉलिंग या छायाचित्र के द्वारा किसी भी व्यक्ति से उसे देखते हुए बात कर सकते हैं। केवल एक छोटे से मोबाइल फोन की सहायता से , बस केवल हमें आवश्यकता है तो उसमें इंटरनेट सुविधा डलवाने की

           एक लंबे समय से हमारी सभ्यता में घड़ियां बांधने का प्रचलन चल रहा था। जब भी हमें समय देखना होता था तो घड़ी की ओर इशारा जाता था घड़ी की और हमारी नजर जाती थी परंतु आज के समय में इस मोबाइल फोन ने हमसे कलाई घड़ियों का प्रचलन भी बहुत ही कम कर दिया है।आज के समय में जब भी हमें समय देखना होता है हम मोबाइल फोन की तरफ एकदम से जाते हैं। यहां तक कि आजकल तो मौसम विभाग की खबरें भी मोबाइल फोन पर देख लिया करते हैं। छोटी बड़ी घटनाओं के लिए हम लोग केलकुलेटर यूज किया करते थे परंतु इस मोबाइल फोन ने  हीं उस कैलकुलेट का भी अब काम खत्म कर दिया है।
          
हमें डायरी लिखने के लिए एक डायरी नोटपैड और कलम की आवश्यकता होती थी परंतु आज के समय में डायरी के सभी फीचर्स हमें इस मोबाइल फोन में आसानी से उपलब्ध है, हमें अपने साथ में कोई डायरी लेकर घूमने की आवश्यकता नहीं है। याद कीजिए वह पुराने दिन जब लोगों के फोन नंबर हम डायरी में लिखा करते थे और वह टेलीफोन डायरेक्टरी आया करती थी जिसमें किस शहर के सभी जरूरी फोन नंबर लिखे होते थे, परंतु आज न जाने वह डायरेक्टरी कहां खो गई है। दुनिया भर की जानकारी हम पल भर में केवल एक इंटरनेट कनेक्शन की सहायता से हमारे फोन में ही देख सकते हैं।

इसमें मनोरंजन के लिए भी बहुत कुछ है। हां आज के समय में टेलीविजन का प्रचलन भी इसने काफी कम कर दिया है। हमें जो भी देखना होता है सीधा यूट्यूब ऑन किया और देख लिया,  चाहे आप को कुछ भी सीखना हो आप इस मोबाइल फोन की सहायता से बहुत आसानी से सीख सकते हैं।
अगर आप बेहतरीन खाना खाने के शौकीन है या खाना बनाने के तो आप आसानी से खाना बनाना भी इस पर सीख सकते हैं। आज के समय में आप दुनिया में कहीं भी जाएं आपको किसी से रास्ता पूछने की आवश्यकता नहीं है इस मोबाइल फोन ने आपको एक मैप की सहायता दी है जिससे कि आप आसानी से पूरी दुनिया के रास्ते की जानकारी पल भर में प्राप्त कर सकते हैं।

छोटे बच्चे हो या बड़े सभी के लिए मनोरंजन के साधन मोबाइल फोन पर उपलब्ध है।                                            परंतु इस मोबाइल फोन में कुछ अच्छाइयां है तो कई बुराइयां भी है। हमारे समाज कि काफी चीजें आज हमें देखने को नहीं मिलती। जब मोबाइल फोन नहीं था तो सभी बच्चे एक-दूसरे के साथ मैदान में खेला करते थे हस्ट पुष्ट  भी रहते थे और उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहता था, जबकि आज के समय में सभी बच्चे सिर्फ मोबाइल फोन गेम्स में लगे रहते हैं जिससे उनकी आंखें भी कमजोर होती है और और शरीर भी कमजोर होता है। एक ही घर में रहते हुए हम एक दूसरे से बात नहीं कर पाते केवल इस मोबाइल फोन की वजह से।

इस मोबाइल फोन की वजह से हम आज इतने व्यस्त हो गए हैं कि बस पूछिए मत क्युकी इस बात आकलन करना अब बहुत मुश्किल हो चुका है।

कोई भी कभी भी आपको फोन कर देता है। चाहे सामने वाला किस भी  परिस्थिति में है इस से कोई मतलब नहीं। आप चाहे बाथरूम में हो या बेडरूम में यह कभी भी बज जाता है। कभी-कभी तो आधी रात में फोन बजता है तो इतना गुस्सा आता है कि बस क्या कहें। क्युकी दूरियां घत गई है कभी भी किसी को आपकी याद आती या कोई काम होता है तो बस बटन दबाए ओर आपसे बात करना शुरू आप व्यस्त है या नहीं इस बात का उन्हें क्या पता ??

सच्ची मित्रता इस फोन की वजह से खो गई है। वह सच्चे मित्र जो साथ रहा करते थे खेला खुदा करते थे आज न जाने कहां गुम हो गए हैं। आज इस मोबाइल फोन की सहायता से सोशल साइट्स पर हम चाहे हजारों मित्र बना ले परंतु एक सच्चा मित्र हमें देखने को नहीं मिलता है आज के समय के बच्चों में शायद इसी वजह से आज के समय के बच्चों में काफी सारी मानसिक बीमारियां भी पनप रही है। परीक्षाएं पहले भी होती थी बच्चे पहले भी पढ़ा करते थे, परंतु इस तरह के मानसिक विकार केवल आज के बच्चों में ही देखने को मिलते हैं।  

अंत में अपने शब्दों को विराम देते हुए केवल यही कहना चाहूंगा कि विज्ञान ने मनुष्य के जीवन को तो आसान किया है लेकिन कई सारी बुराइयां भी दी है।

किसी भी चीज में कुछ अच्छाइयां होती है तो कुछ बुराइयां भी होती है, यह केवल हम पर निर्भर करता है कि हम किसी भी वस्तु का या किसी भी चीज का कितने अच्छे से इस्तेमाल करना जानते हैं यह कितने अच्छे से इस्तेमाल कर रहे हैं। कोई भी वस्तु उसके लिए पात्र व्यक्ति के हाथ में ही शोभा देती है अपात्र व्यक्ति के हाथ में तो गलत ही होगा। आज के समय में हम छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल दे देते हैं जो कि मुझे लगता है ठीक नहीं है। मुझे तो अपना स्कूल खत्म होने के बाद में मोबाइल मिला था और मेरा यही कहना है कि कम से कम विद्यालय जीवन में तो बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जाए।         

  धन्यवाद

Written by Pritam Mundotiya

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शब्द क्या है?

शब्द क्या है? 
हम लोग सुबह से शाम तक सारा दिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, परंतु फिर भी बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो शब्दों का महत्व जान पाते हैं। हमें अपनी सभी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। परंतु देखा जाए तो असल में शब्द है क्या?         
अधिकांश है हमारा सोचना होता है कि शब्द केवल ध्वनियों के मिलाने से बनते हैं। परंतु केवल ध्वनियों के योग से ही शब्द नहीं बनते शब्दों में भावनाएं अभिव्यक्त होती हैं। यह सारा संसार ही शब्दों के पीछे ही चल रहा है।                                     

शब्द क्या है?
शब्द

चाहे आप संसार के किसी भी विषय का अध्ययन करें आपको शब्दों की आवश्यकता जरूर होगी।      
हर शब्द मूल के है क्या?        
हमारे द्वारा बोला गया कोई भी शब्द या कोई भी ध्वनि कभी खत्म नहीं होती। वह ध्वनि इस अनंत ब्रह्मांड में गूंजती रहती है। इस ब्रह्मांड का कोई आदि व अंत नहीं है। और इसी अनंत ब्रह्मांड में हमारे द्वारा बोले गए शब्द व ध्वनियां गूंजती रहती हैं । 
      
 शब्दों के कई प्रकार के प्रभाव भी होते हैं।                                   

हमने ध्वनि चिकित्सा के बारे में भी पड़ा है। कई प्रकार के अलग-अलग संगीत की ध्वनि मनुष्य के इलाज के लिए फायदेमंद होती है। यहां तक कि हम जो विभिन्न भाषाओं में गीत संगीत सुनते हैं। चाहे वह आधुनिक संगीत हो या फिर शास्त्रीय संगीत या फिर किसी भी भाषा का संगीत सब शब्दों के योग से ही तो बने हैं। इसी संगीत से मनुष्य सदियों से अपना मनोरंजन करते आए हैं।
     
इसके अलावा मनुष्य के संपूर्ण जीवन के क्रियाकलापों में भी अलग-अलग प्रकार के संगीत का वर्णन मिलता है।

जैसे हम देखते हैं यदि कोई मनुष्य बहुत खुश है तो वह अलग प्रकार से गुनगुनाने लगता है। अगर कोई मनुष्य किसी बहुत ही व्यथा में है पीड़ित है तो वह आंसुओं के साथ कुछ ना कुछ गुनगुनाने लगता है। रोता हुआ मनुष्य भी अपनी भावनाओं के साथ कुछ शब्दों को व्यक्त करता है मनुष्य के जीवन सभी भावनाओं में मनुष्य संगीत का इस्तेमाल करता है।


  इन्हीं शब्दों के योग से ज्योतिष, खगोल शास्त्र, मंत्र शास्त्र आदि अनेकानेक विषय बनते हैं,जब हम किसी भी शब्द का उच्चारण करते हैं, तो उस शब्द के साथ कुछ ध्वनि तरंगे निकलती हैं वे ध्वनि तरंगे इस ब्रह्मांड में गूंजती हैं, और अलग-अलग ध्वनि तरंगों का अलग-अलग प्रभाव भी होता है।

जिस प्रकार हिंदू धर्म में ओम शब्द का वर्णन है, उसी प्रकार बौद्ध व जैन धर्मों में भी ओम शब्द का वर्णन है, भले ही यह अपने मतों को लेकर अलग-अलग हो परंतु इस एक शब्द पर यह सभी धर्म एकमत हैं,  अगर हम पाश्चात्य धर्मों को देखें जैसे कि इस्लाम व ईसाई धर्म में भी आमीन शब्द का प्रचलन है, हिंदी शब्दों में कुछ ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं, जो कि मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

हम सनातन धर्म में भी ओम, ऐऺ , क्लीम, श्री आदि बीज अक्षरों का वर्णन है। यह सभी कुछ सकारात्मक ध्वनि तरंगों को पैदा करके मनुष्य के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव लाने में सक्षम है।

हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में न जाने कितने ही अच्छे और बुरे शब्दों का इस्तेमाल पूरा दिन होता है, परंतु हमें अपने द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले शब्दों को ध्यान से इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि मुख से निकले हुए शब्द वापस नहीं आते, और अगर कोई व्यक्ति शब्दों का अच्छे से इस्तेमाल करने में सक्षम है, शब्दों के द्वारा मनुष्य के मन पर घाव भी किया जा सकता है।

हम आज के समय में देखते हैं कि इतने लोग मनोचिकित्सक के पास जाते हैं, जबकि वह केवल मनोरोगी से बात करता है, वह केवल सामने बैठे मनोरोगी के विचारों को उसके शब्दों के रूप में सुनता है, और अपने विचारों को अपने शब्दों के रूप में उसके मस्तिष्क की ओर प्रवाहित करता है, यह सभी खेल केवल शब्दों का ही है।

हम अपने मुंह से न जाने कितने ही अपशब्द निकालते हैं, और शब्दों के ही द्वारा हम परमात्मा का स्मरण भी करते हैं। हम सोचते हैं कि जिस समय हम परमात्मा का स्मरण कर रहे हैं, और शब्द निकाल रहे हैं, उस समय हमें परमात्मा देखता है और अपने मुखमंडल से  अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए यह नहीं सोच पाते।

अगर हमें शब्दों की असली महत्व को जानना है तो कुछ समय हमें निशब्द होकर रहना चाहिए, अर्थात मौन धारण भी करना चाहिए। अगर हमें अपने शब्दों में प्रभाव लाना है तो हमें शब्दों का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए। अगर हम दिन रात व्यर्थ के शब्द ही बोलते रहेंगे तो हमारे शब्दों की अहमियत नहीं रह जाएगी और हमारे शब्दों का प्रभाव भी कम हो जाएगा।

इसलिए हमें प्रत्येक शब्द को बहुत ही सोच समझ के इस्तेमाल करना चाहिए, संत कबीर दास जी ने भी अपने दोहे में कहा है, कि हर एक शब्द को हमें तराजू में तोल कर तब मुख से निकालना चाहिए।  
                                                
“भर सकता है घाव तलवार का बोली का घाव भरे ना”

Written by Pritam Mundotiya

शब्द का घाव न भरे कभी
शब्द के घाव ना भर पाए

भारतीय शिक्षा प्रणाली

भारतीय शिक्षा प्रणाली : भारत में शिक्षा सरकारी व निजी दोनों तरीके से दी जाती है। भारतीय संविधान के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को शिक्षा शिक्षा प्राप्त करना उनके मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। यह नीति 1 अप्रैल 2010 से लागू की गई थी।    
 
           इसके बाद भारत की प्राथमिक शिक्षा में काफी बढ़ोतरी हुई, 7 से 10 साल तक की बच्चों में लगभग तीन चौथाई जनसंख्या आज शिक्षित है। इसके अलावा भारत में अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में भी कई सुधार किए हैं जो कि आर्थिक सुधारों के अंतर्गत आते हैं। उच्च शिक्षा में अधिकतम सुधार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में की गई हैं। 2013 में उच्च शिक्षा में जनसंख्या का 24% शामिल था।        
  प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर भारत में निजी शिक्षा क्षेत्र भी 6 से 14 वर्ष की आयु के 29% छात्रों को शिक्षित करने में लगा है। वार्षिक शिक्षा सर्वे 2012 के अनुसार 96% ग्रामीण क्षेत्रों के 6 से 14 आयु के बच्चे भी शिक्षा प्राप्ति की ओर अग्रसर है। एक और सर्वे जो कि 2013 में शुरू किया गया था उसके अनुसार 229 मिलियन छात्र भारत के ग्रामीण और शहरी इलाकों से कक्षा शिक्षा क्षेत्र में संलग्न है।  
                     
  जनवरी 2019  तक भारत में 900 विश्वविद्यालय और 40000 कॉलेजों की स्थापना हो चुकी थी। भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में काफी संख्या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अथवा कुछ पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए भी आरक्षित की गई है।     
            

भारतीय शिक्षा प्रणाली
भारतीय शिक्षा प्रणाली

भारतीय शिक्षा का इतिहास:         
भारत में शिक्षा प्रणाली का इतिहास बहुत पुराना है।भारत के इतिहास में हमें तक्षशिला विश्वविद्यालय के बारे में पता लगता है जो कि आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था। इसके अलावा हमें नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में भी इतिहास में जानकारी मिलती है जो कि पूर्वी भारत में स्थित था। इसके साथ ही यह दुनिया की प्राचीनतम शिक्षा व्यवस्था का विश्वविद्यालय था ऐसी जानकारी मिलती है। यहां सभी विषय पाली भाषा में पढ़ाए जाते थे। वह पूरी दुनिया में विख्यात आचार्य चाणक्य भी यही के एक अध्यापक थे जिनका की मौर्य साम्राज्य के बसने में एक महत्वपूर्ण योगदान था। 
  
   आधुनिक शिक्षा प्रणाली: 
भारत में अधिकतर शिक्षा बोर्ड 10 + 2 प्रणाली पर शिक्षा देते हैं। इस प्रणाली में 12 साल तक विद्यार्थी विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के बाद 3 साल वह विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करता है।  
             
आज जो हम भारत की शिक्षा प्रणाली को देखते हैं । वह कई चरणों से होकर गुजरी है। प्राचीन काल में भारत में गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी, जहां की एक विद्यार्थी अपने गुरु के सानिध्य में एक निश्चित अवधि तक घर से दूर रह कर के शिक्षा प्राप्त करता था।       परंतु सन 1835 में राजा राममोहन राय की सहायता से लॉर्ड विलियम बेंटिक ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली को लागू किया वे उस का माध्यम अंग्रेजी रखा। इसी शिक्षा प्रणाली को लॉर्ड मैकाले शिक्षा पद्धति भी कहा जाता है, क्योंकि विलियम बेंटिक है यह कार्य लॉर्ड मेकाले की सहायता से किया था।

जीवन क्या है?

जीवन क्या है?
जीवन क्या है?

जीवन क्या है?          आज के समय में आधुनिक मनुष्य का जीवन केवल खाना पीना और सोना ही रह गया है।  इसके विपरित जीवन में से नैतिकता और नैतिक विचार जैसे गायब ही हो गए हैं। आज का मनुष्य ना तो साहित्य पढ़ने में इच्छुक है और ना ही सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने का इच्छुक है।

हमने जितने भी महापुरुषों की जीवनी पढ़ीं है वह सभी महापुरुष केवल अपने लिए ना जी कर समाज के लिए जिए है तथा  अपना सारा जीवन देश, समाज व मनुष्य जाति के लिए समर्पित कर दिया परंतु आज का मनुष्य ना तो स्वयं को ही ठीक से रख रहा है ना ही स्वयं के ही नैतिक मूल्यों पर खरा उतर रहा है और ना ही देश समाज वह दूसरों के लिए कुछ कर पा रहा है, या फिर करना ही नहीं चाहता वह सिर्फ अपने लिए ही जीवन जीना चाहता है जैसे स्वार्थ से भर चुका हो आज मनुष्य

   आज के समय की भाग दौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य मात्र एक इंजन से चलने वाली गाड़ी की तरह रह गया है जो कि सिर्फ खाना खाता है और बचे हुए अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकाल देता है। फिर खाना खाता है और फिर
   काम से थकता है तो से जाता है । केवल यही आज के मनुष्य की दिनचर्या बन गई है ना तो आज का मनुष्य परिवार को समय दे पाता है और ना ही वह समाज प्रकृति के प्रति कुछ कर पाता है।
    हमें भी उन महापुरुषों की जीवनी अब पढ़नी चाहिए और उनसे प्रेरणा लेकर देश के लिए इस समाज के लिए हमारे पर्यावरण के लिए प्रकृति के लिए कुछ करना चाहिए अपने आप को प्रकृति के साथ चलाना चाहिए।
खाने-पीने और सोने से हटकर हमें हमारे परिवार , हमारे देश हमारे समाज में प्रकृति के प्रति भी हमारी कुछ जिम्मेदारियां हैं।

पारिवारिक जीवन:-   
हमारे जीवन में हमारे पारिवारिक जीवन का भी बहुत बड़ा रोल होता है परिवार दुनिया की सबसे छोटी परंतु महत्वपूर्ण इकाई है। मनुष्य जो कुछ भी सीखता है। सबसे पहले अपने परिवार से ही सीखता है परिवार से ही मनुष्य के अंदर उसके स्वभाव की झलक आती है।     
         
मनुष्य का स्वभाव:  
जीवन क्या है ? मनुष्य को अपने स्वभाव का निरंतर ध्यान रखना चाहिए  और बोली में मिठास रखनी चाहिए,  अहंकार से दूर रहना चाहिए  चाहे हम कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ले परंतु हमें अपने समाज में ही बने रहना है। देश दुनिया में हम जहां भी रहते हैं जिन लोगों के बीच रहते हैं वही सब हमारा समाज होता है। अगर हमारा स्वभाव हमारे समाज के अनुकूल नहीं है तो हमें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ।मनुष्य अकेला ही सब कुछ नहीं कर सकता। मनुष्य के अपने जीवन निर्वाह की आवश्यकता के लिए समाज की जरूरत होती है। क्युकी हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए है एक दूसरे पर निर्भर है
                        

  समाज से बढ़ती दूरियां:
आज का मनुष्य समाज से दूरियां बनाता जा रहा है और अकेले रहने के लिए मजबूर है छोटे-छोटे फ्लैट्स में अकेला रहता है,  घर परिवार से दूर बड़े शहरों में अकेला रहता है। कोई काम की तलाश में, कोई रोजगार की तलाश में तो कोई पढ़ाई के लिए।
अकेला रहने की वजह से और समाज से दूर होने की वजह से ही मनुष्य को आज के समय में न जाने कितने मानसिक तनाव और मानसिक बीमारियों ने घेर लिया है। 
      
 शारीरिक स्वास्थ्य:  
मनुष्य को कोई भी कार्य के लिए सबसे प्रथम अपने शरीर पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। हमारे शास्त्रों में भी वर्णन है “प्रथम सुख निरोगी काया”
जिस मनुष्य में शरीर स्वस्थ होता है उसी के शरीर में स्वस्थ बुद्धि का निवास होता है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हमें थोड़ा बहुत व्यायाम भी करना आवश्यक है अगर खुली हवा में सांस लेना प्राणायाम करना या कोई भी शारीरिक गतिविधियों में हमें लगे रहना चाहिए। आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हमें थोड़ा समय अपने स्वास्थ्य के लिए भी निकालना चाहिए शरीर स्वस्थ होगा तभी हम कोई भी कार्य कर पाएंगे। आज के समय में छोटी-छोटी बीमारी होने पर छोटा-छोटा मौसम बदलने पर हम बीमार पड़ जाते हैं हमारे शरीर की रोग निरोधक क्षमता भी बहुत कमजोर हो गई है जिसकी वजह से हम जल्दी जल्दी बीमार ही जाते है।   
                                      

 मानसिक स्वास्थ्य:
शरीर के साथ-साथ मनुष्य को अपने मस्तिष्क का भी ध्यान रखना चाहिए ,  मानसिक स्वास्थ्य का भी हमारे जीवन में एक बहुत बड़ा महत्व है। आज के समय में मनुष्य को बहुत सी मानसिक बीमारी और मानसिक तनाव ने घेर लिया है।  माना की साधारण मनुष्य और मानसिक बीमारी को पागलपन समझता है परंतु ऐसा नहीं है , मन , मस्तिष्क स्वस्थ तो तन भी स्वस्थ रहता है।

#Written by Pritam Mundotiya

कोविड 19

कोविड 19 कोरोनावायरस एक ऐसी बीमारी जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो कि इस वायरस से बचा हो।

अब यह बीमारी कोई प्रकृति का प्रकोप है या फिर बनाया गया कोई वायरस यह तो हम नहीं जानते परंतु हम तो सिर्फ इसके परिणामों को ही देख रहे हैं ऐसी बीमारी ना तो कभी आई है ना ही कभी आए हम यही कामना करते हैं। इसे बीमारी की जगह महामारी कहना और ज्यादा ठीक रहेगा। जोकि चाइना के वुहान शहर से शुरू होकर इटली पहुंची और इटली से सारी दुनिया में पहुंची।

दुनिया के बड़े बड़े देश जो हर चीज में विकास पूरक है वह भी आज इस वायरस के आगे घुटने टेके खड़े हैं। और हमारे देशवासियों का तो क्या कहना यह हमारे देश वासी हैं जो महामारी में भी लोगों का फायदा उठा रहे हैं जब शुरुआत में वायरस की खबर आई तो पूरी मार्केट से सैनिटाइजर गायब कर दिए ब्लैक में बेच रहे हैं 4:30 हजार का एक टेस्ट हो रहा है जो कि व्यक्ति को पहले भी कराना जरूरी है और ठीक होने के बाद भी कराना जरूरी है अगर एक इंसान के घर में 4 लोग भी हैं तो 18000 पहले और 18000 बाद में यानी कि ₹36000 वह सिर्फ टेस्ट टेस्ट में खर्च कर रहा है।

आखिर आम आदमी के पास इतना कौन सा खजाना है कि वह इतना खर्च करें सिर्फ टेस्ट टेस्ट के ऊपर अगर अस्पतालों की बात करें तो किसी एक मरीज को रखने के लिए ₹50000 लाख रुपए प्रति दिन के हिसाब से भी वसूले जा रहे हैं क्योंकि कोई ट्रीटमेंट बना ही नहीं है सुरक्षा है घर पर रहकर भी ठीक हो रहे हैं बीमारी की वजह से लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है अर्थव्यवस्था बिल्कुल पटरी पर आ गई है न जाने कितने उद्योग धंधे कारखाने सब बंद हो गए हैं कितने ही लोग बेरोजगार हो गए कितने ही लोगों का घर खर्च का पैसा नहीं है बच्चों की फीस लेने के लिए नहीं है

क्या तो आज ही खाएं और क्या करें और जिन लोगों का काम छूट गया है क्या उनको कोई राहत है अगर कुछ लोग पेट भरने के लिए खाना भी दे रहे हैं तो सिर्फ पेट भरने से ही इंसान का जीवन नहीं चलता इंसान के जीवन में शिक्षा जीवन स्तर भी कुछ मायने रखता है इस बीमारी ने सब की छवि एकदम मिटा दिए। अमेरिका देश चौकी दुनिया की सुपर पावर होने की दावा करता था।

कोविड 19 आज कोरोनावायरस के मारे अपने दरवाजे पूरी दुनिया के लिए बंद किए बैठा है परंतु एक बात और देखने में आई है हमारे देश भारत में लोगों में जागरूकता की बहुत कमी है जब तक हमारे स्वयं के ऊपर ना बीते तब तक हम जागरूक नहीं होते।कोरोनावायरस या कोविड-19 आज के समय में एक ऐसी बीमारी है जो भारत नहीं पूरे विश्व में फैल चुकी है, और इसकी चपेट में आ चुका है।

बीमारियां बहुत है इस दुनिया में वर्तमान में कई कारण भी है परंतु विषाणु जनित बीमारी सबसे खतरनाक आज के समय में है बीमारी के वैसे तो कोई कारण होते हैं जैसे कि बैक्टीरिया प्लाज्मोडियम सूक्ष्म जीव आदि परंतु आज के समय में हमारा रहन सहन भी बीमारियों का एक बड़ा कारण बन चुका है हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बहुत कम हो चुकी है।

भागदौड़ भरी जिंदगी और शारीरिक क्षमता को हमने बिलकुल छोड़ दिया है शारीरिक कार्य बिल्कुल कम कर दिया है अधिकतर ऑफिस में एक ही सीट पर पूरा दिन एक ही बैठा रहता है मैं तो कोई शारीरिक श्रम करता है ना उसे कोई पसीना आता है ना वह पर्यावरण के वातावरण के संपर्क में आता है एक कंप्यूटर चेयर कि आज के समय में इंसान के जीवन बन गया है। हमने पर्यावरण से जैसे-जैसे डोरी बनाना शुरू किया है हम बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं।

और पूरे विश्व को भी हमने खतरे में डाल दिया है विषाणु को इस पूरी दुनिया में कहीं कोई इलाज नहीं है विषाणु से केवल बचाव किया जा सकता है हमें भी अपनी ओर से पूरी सावधानी का पूरा बचाव रखना चाहिए दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए लापरवाही बिल्कुल नहीं बदलनी चाहिए हम जानते हैं कि पूरे विश्व में कितने व्यक्तियों की मृत्यु किस वायरस की वजह से हो चुकी है इसलिए हमें जितना हो सके सावधान रहना चाहिए घर पर रहते हुए हमें सभी देशों का पालन करना चाहिए। अपने आप को प्रकृति से भी जोड़ना चाहिए शारीरिक श्रम करना चाहिए थोड़ा व्यायाम भी जरूरी है भोजन मैं भी हमें बदलाव करना चाहिए

Written by Pritam Mundotiya