दुख क्या है ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने का कारण क्या है?
जीवन में जब हम विषम परिस्थिति देखते है तब हम चिंता यानी दुःख को आमंत्रण देने लग जाते है, जिसकी वजह से हमारे मन और मस्तिष्क में नकरात्मक विचारो का संग्रह होना शुरू हो जाता है,
वैसे तो दुख जैसा कुछ भी नही है, बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है, इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ,ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है।
और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा इस दुख शब्द ने हमारे मस्तिष्क को जकड़ कर रखा हुआ है जिसके कारण हम शुभ विचारों का चिंतन नहीं कर पाते , यदि हम हम अच्छे विचारों का लगातार चिंतन करे ओर नकारात्मक विचारों का चिंतन लगातार करते रहे तो दुख हमारे जीवन में कभी आए ही नहीं।
ताकि हम इससे छूट ही ना सके दुख मात्र एक शब्द है एक विचार है एक ऐसी नकरात्मक सोच है जो हमारे मस्तिष्क पर लगातार हावी हो रही है जिसकी वजह से हमारे भीतर डर भी बढ़ता है
अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है।
अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है।
दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है।
जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख ही एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी होने लग जाओगे, तो फिर यह दुख भी ओर समय तक रुक जाता है और चिंताएं बढ़ाता है, तथा आप जितना दुख का चिंतन करते है यह उतना ही और बढ़ता जाता है,
इसलिए दुख का चिंतन नहीं करे इसे स्वीकार ले और यह दुख स्वत ही दूर हो जाएगा , दुख आपके पास कभी भी रुकने , ठहरने के लिए नहीं आता यह दुख सिर्फ आपको यह बताने आता है की अब तुम्हारा वक्त बदलने वाला है।
इसलिए दुख जैसा रिश्तेदार कहा मिलेगा? जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसे रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए।
दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले?
दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है मात्र कुछ भी नहीं है, अनेकानेक सम्भवनाओ के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी।
दुख और सुख समानांतर ही बात है, लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत कम समय के लिए हमारे साथ रह पाता है क्युकी सुख का जो चिंतन है उसे हम बहुत जल्दी हटा देते है हमारे मन में डर रहता है यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है, और सुख से अछूता होता जा रहा है।