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जल की कीमत

जल की कीमत हम लोग नहीं समझ रहे लेकिन जल की कीमत हमे तब पता चलेगी जब जल की एक बंद को भी हम तरसने लगेंगे, जल या पानी का नाम सुनते ही पहली बात क्या आती है ध्यान में ये जीवन है जीवन का अभाज्य अंग है इसके बिना जीवन का अंत और यह बात बहुत सच्ची और अपरिवर्तनशील है इसका कोई विकल्प भी नहीं हे जल का विकल्प सिर्फ़ और सिर्फ़ जल ही है, जो हमारे शरीर का 70 फ़ीसदी है इसी प्यारे अजूबे रसायन जिसमें हाइड्रोजन के दो हिस्से है और आक्सीजन का एक हिस्सा है जो आपके जीवन में नस नस में घुला हुआ है और मज़े की बात जल का बेशकीमती होने के बाद भी इसकी अनदेखी इसका ग़लत दोहन होता इसे waste किया जाता है।

इस पर गौर नहीं किया जाता, लापरवाह होकर पानी को बर्बाद किया जाता है, पानी की टंकी भर जाती है लेकिन घंटों तक मोटर चलती ही रहती है, गाड़ियों के लिए बाल्टी से ना पानी डालकर बल्कि उन पर पाइप चलाकर पानी डाला जाता है जिससे पानी बहुत खराब होता है, यदि आप देखो तो जो पानी घरों में बोतल से भरकर आता है, जब उसको साफ किया जाता है तो कितना ही पानी उस प्रक्रिया में नाली बहा दिया जाता है उसका संरक्षण करने की कोई पक्रिया नहीं बनाई जाती यही हमारे भीतर कमी है।

जल की कीमत तब मनुष्य को पता चलेगी जब यह अद्भुत रसायन की कमी होगी , अभी बीच बीच में ट्रेलर आते रहते है उसे हम सीरियसली नहीं लेते इसके मनुष्यता को गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे ।
अभी तक मंनुष्य इतिहास में जो भी सभ्यता विकसित हुई वो किसी नदी के किनारे से ही विकसित होके फली फूली ।
समय आ सकता है या आम सा मिलने वाला पदार्थ जितना सोना चाँदी धन दे और बदले में न मिले ।

सब को मिलके मजबूत इरादे से इस जीवन की मुख्य धरोहर को बढ़ाने ( स्वयं की ही रक्षा है यह कार्य ) और स्वच्छ रखने के कार्य में लगे चाहे वो बड़ी बड़ी industries द्वारा इसक pollute करने का कार्य को कम या रोकने का या इन्ही इंडस्ट्रीज़ द्वारा ज़मीनी पानी को ख़राब करने से रोकने का हो या फिर बारिश के पानी का संरक्षण का हो जिससे धरती का वाटर टेबल में सुधार का गहरा विषय हो और ऐसी साइंस विकसित करे जैसी मां प्रकृति की है जिसमें सब अपनी भूख भी मिटा रहे है और परस्पर योगदान भी कर रहे मां प्रकृति की जीवन को संजोने के कार्य में ।

कहते है तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा उसके विभाजन को लेकर होगा यह जल या पानी संकट की लड़ाई का बिगुल बज चुका है यह आपकी निजी तथा सामूहिक लड़ाई है अपने और आने वाले नये जीवनों के बचाने का विषय है ।

आशा की किरणों के साथ वाणी को विश्राम जो बहुत कुछ अनकहा रह गया उसके लिए माफ़ी चाहूँगा ।

राम लालवानी

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हमारी पृथ्वी का हृदय

पर्यावरण हमारी पृथ्वी का हृदय
उसे साँवरे नहीं इस बात में कोई संदेह ।

सब इस प्रकृति माँ का दिया देय….
इसका सही प्रयोग से करे व्यय ।

पेड़ पौधे धरती की संपदा….
सिर्फ़ उसका दोहन लाएगी विपदा ।

स्वयं से करे पर्यावरण को सुरक्षित
अपनी लालचो को करे संयमित ।

पर्यावरण में गहरा असंतुलन….
तापमान बढ़ रहा कट रहे है वन ।
एक तकलीफ़ हो रहा जलवायु परिवर्तन ।

इस गहरी समस्या पे दे ध्यान….
कैसे बाहर आयेंगे बने बुद्धिमान ।
नहीं तो जल्द गर्कं हो जाएँगे सब श्रीमान ।

सब जगह भिन्न भिन्न पेड़ उगाये…..
जल कटाव मिट्टी पहाड़ो को बचाये ।
हर दिन पर्यावरण दिवस जी कर मनाये ।
इस धरती को मानव का स्वर्ग बनाये ।
ख़ुद भी जिए दूसरी को भी जिवाए ।
यह मंत्र पढ़े और पढ़ाये ।

पर्यावरण, हमारी पृथ्वी का हृदय है। यह हमारे सभी जीवनों की जड़ है और हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है। पर्यावरण हमें स्वच्छ और ऊर्जावान वातावरण प्रदान करता है जो हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।

हालांकि, आजकल हमारे पर्यावरण को नष्ट करने की चिंता बढ़ रही है। वनस्पति और जीव-जंतुओं के नष्ट होने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, वायु प्रदूषण और जल संकट के कारण पर्यावरण की स्थिति गंभीर हो रही है।

हमें इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है। हमें अपनी भूमिका समझनी चाहिए और सुस्थित और सुरक्षित पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। हमें प्रदूषण कम करने, वनरक्षण को बढ़ावा देने, जल संरचनाओं को सुधारने और जल संचय करने के लिए जागरूक होना चाहिए। वन्य जीवों की संरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामरिक मुकाबला भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

हमारे पर्यावरण को साँवरने के लिए हमें साझा संगठनिक प्रयास करने, अधिकांशतः संयुक्त राष्ट्र की मान्यताओं और समझौतों का पालन करने और नवाचारी तकनीकों का उपयोग करके समस्याओं का समाधान ढ़ूंढ़ने की आवश्यकता है। पर्यावरण के हित में सतत और संवेदनशील प्रगति करना हमारा कर्तव्य हद्वारा जारी यह संदेश स्वर्णिम संकट को दर्शाता है। पर्यावरण हमारी माता की तरह है, और हमें उसे सावरना हमारा दायित्व है। इसके बिना, हमारा अस्तित्व खतरे में है। हमें संयुक्त रूप से कार्य करना होगा और पर्यावरण की सभी मान्यताओं का पालन करना होगा ताकि हम इसे सुरक्षित रख सकें। हमें जल संचय, प्रदूषण नियंत्रण, और वन संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। साथ ही, हमें नवाचारी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जो पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी में सुधार ला सकें। यदि हम इन समस्याओं के सामाजिक, आर्थिक, और वैज्ञानिक मुद्दों को संगठित रूप से समझते हैं और उन्हें हल करने के लिए सक्रिय रूप से काम करते हैं, तो हम पर्यावरण को सावर सकते हैं। पर्यावरण हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने योग्य एक अमूल्य धरोहर है, और हमें इसकी सुरक्षा करनी चाहिए।

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चाय की तलब

चाय की तलब सी लग रही लेकिन मुझे आजकल चाय ही नहीं मिल रही है। इस चाय की तलब भी अब खत्म हो गई है अब उतनी अलब नहीं लगती जितनी मुझे पहले लगा करती थी, मेरी चाय की आदत में अब कमी आ गई है, अब मैं सिर्फ 3 बार चाय पिता हूँ, बल्कि जो तीसरी बार वाली चाय उसकी भी तलब अब बंद हो गई है, इसलिए वो चाय कभी पी लेता हूँ कभी नहीं अब इसी वजह से मेरा पेट भी ठीक रहने लगा है।

अधिक चाय के सेवन से हमारी पाचन शक्ति कमजोर होने लगती है, साथ ही हमारी भूख भी कम हो जाती है यदि हम चाय का अधिक मात्रा में सेवन करते है तो।

अब जो तीसरी वाली चाय उसके मिलने ओर न मिलने से मुझे कोई खास फर्क नहो पड़ता क्युकी अब मेरी चाय की तलब थोड़ी कम हो गई है, जिस तरह से मुझे मेरे समय पर चाय ना मिलने पहले फर्क पड़ता था की अब इस समय चाय मिलनी चाहिए नहीं तो मेरा मूड खराब हो जाता था, बार बार दिमाग सिर्फ चाय चाय चिल्लाता रहता था।

जब तक नहीं मिलती मन शांत नहीं होता था लेकिन अब वह बात नहीं है, वो हाल नहीं है इस दिमाग का अब मन ओर दिमाग दोनों शांत है, अब चाय की जरूरत खत्म हो गई है, या फिर मन अब समझ चुका है की चाय इस शरीर की जरूरत नहीं है, और वैसे भी चाय की आदत अच्छी नहीं है जिसे छोड़ ही देना चाहिए क्युकी चाय पेट खराब करती है, गैस की अधिक समस्या चाय के कारण ही होती है, कब्ज भी चाय की वजह होती है।

आपका आलस चाय की वजह से बढ़ जाता है, चाय में कोई शारीरिक व मानसिक शक्ति नहीं होती बस यह एक आदत है जो लग चुकी है हम सभी को इसके कोई फायदे नहीं है, लेकिन हम सभी बचपन से ही चाय का सेवन करते है, इसलिए हमे चाय की आदत लगी होती है, जो अब हमे छोड़ देनी चाहिए।

इसके अलावा बहुत सारे पे पदार्थ है जिनका हम सेवन कर सकते है, ओर वे हमारी सेहत के लिए अच्छे होते है, यदि आप चाय छोड़ नहीं सकते तो कम तो अवश्य ही कर सकते है।

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यादों से कैसे बचे

किसी की यादों से कैसे बचे:इसके लिए आपको अपने ध्यान को दूसरी ओर केंद्रित करना होगा तभी आप उनकी यादों से बच सकते है

किसी की यादों से कैसे बचे, क्या किसी के साथ क्या उनके साथ आप की कोई बेकार यादे जुड़ गई है या कोई छोड़ कर चला गया है याडे जब दिल दुखती है तभी उन यादों से बचने की कोशिश की जाती है, आप उनके बारे में अपने विचार को बदल दीजिए वह यादे आपको कभी दुख , तकलीफ नहीं देगी।

आप उनके साथ बिताए अच्छे पलों को याद कीजिए ओर जीवन का सुखद आनंद लीजिए हर किसी से हमने कुछ न कुछ सीखा ही होता है जो चला गया उन्होंने भी कुछ सिखाया ही है एस सोचिए।

यादे बुरी है ऐसा सोचकर आप यादों से दूर ना भागे, बस अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनकी यादों का उपयोग कीजिए।

जीवन बहुत बड़ा है सिर्फ कुछ महीनो ओर सालों की यादे आपके बहुत बड़े जीवन पर कैसे अपना शासन कर सकती है उन यादों को अपने ऊपर हावी न होने दे उनसे आगे बढ़े ओर कुछ बड़ा करे।

पुरानी यादों से कैसे बचे:

सबसे पहले तो उस इंसान को माफ करदे जिसकी याद आपको आ रही हो कोई भी इंसान वो बाते याद नहीं करता जो सुलझी हो इंसान की आदत होती है वहीं बात सोचने की जहां गड़बड़ हो, तो माफ करने से आप अपने दिमाग में सुलझोगे उसकी गलती माफी लायक ना भी हो या फिर गलती आपकी हो आपको माफी मन में उसको माफी देनी है इससे आप मन में सुलझ जाओगे

आपको सारी सोशल मीडिया से ब्लॉक नहीं करना है, क्यों की आपका दिमाग का ट्रिगर वहीं जाएगा कि आपने उसे ब्लॉक कर रखा है unblock ka trigger आपको परेशान करेगा। बताया ना दिमाग वहीं जाता है जो चीजें अनसुलझी हो और ना नंबर डिलीट kre ना फोटो ये सब वहीं करे तो सोने पे सुहागा आपको दिमाग का ट्रिगर अपने को प्रेरित करने वाली चीजों को दूर ही रखे तो अच्छा है इसलिए ऐसा पहले ना करे

उसकी यादों से आनंद लेना बंद करे हम उनके साथ बिताए पल को इसलिए याद करते है क्यों की हमे आनंद अपनापन लगता है और ये सोच कर हमे बुरा लगता कि ये पल दोबारा हमारे साथ नहीं होंगे उस वक़्त दिल में गहरा सा एक दर्द होता है जिसे प्यार में तड़प कहते है हमे ये वार वार इस यादों को हल्के में लेना होगा जैसे अरे यार ये तो नॉर्मली ही था कुछ स्पेशल नहीं था

जिस वक़्त आप उस व्यक्ति से बात करते थे या WhatsApp chat ya social media पर बात करते थे या कॉल में बात उस वक़्त आपको ज्यादा याद आएगी तो उस वक़्त को गुजारने के लिए बुरी आदत में ना पड़ जाए जैसे शराब सिगरेट इत्यादि क्यों की कुछ समय में आपको वहीं आदत हो जाएगी ,इसलिए उस समय में अच्छी बुक पढ़े अच्छी बुक पीडीएफ फाइल डाउनोड करे, अच्छी आदतें बनाइए आगे आप जब इससे उभर जाएंगे आपको फायदा मिलेगा

उसको भुलाने के लिए किसी जगह डिपेंड नहीं रहे जैसे की आप दोस्तो के पास जाते हो की उसकी याद ना आए कुछ देर तो आपको याद नहीं आएगी पर जैसे ही आप अकेले रहो तब एक दम से उसकी याद आने लगती है तो आपको सहारे नहीं ढूंढ ना है सहारे से आप भूलने की कोशिश करोगे तो आपके दिमाग को पता होता हैं दिमाग का ट्रिगर आपको कुछ देर रुक देगा किन्तु वो जनता है समस्या सुलझी नहीं है तो दिमाग वहीं जाएगा

अब सबसे अहम काम ये है कि आपको खाली समय को भरना होगा पर इसलिए नहीं की उसकी याद ना आए बल्कि इसलिए कि उसकी यादों को रोकने के लिए आप जो बेफिजूल के काम करोगे जैसे किसी भी जान अनजान को मेसेज भेजना किसी से भी बात करना बिना मतलब की या नया रिश्ता बनाने की ओर प्रेरित होना ये बाद ने चलकर आपको दुख देगा रिग्रेट feel करवाएगा इसलिए उस खाली समय को अच्छे कामों में भरों क्यों की आदत तो आपको उसके बदले में किसी भी चीज की होगी ही

बदला लेने की ना सोचे जैसे में उसको बताऊंगा या बताऊंगी की में कोन था /थी अपना ईगो सेटिस्फाई करने के चक्कर में आप ना की भूल पाओगे बल्कि खुद की स्थिति और परिवार की स्थिति को भी बिगड़ दोगे इससे आपका वक़्त फ़िज़ूल जाएगा उसकी याद में खुद को किसी के भी सामने प्रूफ करने जरूरत नहीं है, हा उसने बहुत बुरी तरह छोड़ा हो पर बदले की भावना से आप कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे अनसुलझे हो जाओगे फिर याद आपको रहेगी ही खुद में विश्वास करे आप खुश हो बस,

अब शांत बैठ जाओ और मन में सोचना प्यार सबसे अच्छी चीज होती है दुनिया में अगर भूलना इतना आसान होता तो दुनिया में प्यार जैसा शब्द नहीं होता ये हमारी अच्छाई ही है की हम भूल नहीं पाते वरना कोई भी किसी को अपने मतलब के लिए आसानी से छोड़ सकता था, में खुश हूं कि में एक बहुत अच्छा इंसान हूं जिसके दिल में प्यार करूणा है गहरी सास लेकर छोड़ो अब सब ठीक है वक़्त के साथ हर चीज नॉर्मल हो जाती है ज्यादा तकलीफ हो तो डॉक्टर की मदद ले सकते ह

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फिज़िक्स वालाह

फिज़िक्स वालाह कौन है अलख पांडे इस पूरी सीरीज अलख पांडे के किरदार को दिखाया जाता है, जिनको देखकर यह प्रेरणा मिलती है की परिस्थितिया ओर चुनौतिया कितनी ही आए लेकिन अपने रास्ते से पीछे नहीं हटना , जिस तरह का स्वभाव इस सीरीज में दिखाया गया है, क्या उसी तरह का स्वभाव था उनका उस समय भी , बहुत ही उग्र ओर काफी नासमझ किरदार रहा है उनकी जिंदगी जिन्हे अपनी जिंदगी के बारे कुछ नहीं पता बस पढ़ाना अच्छा आता है बाकी किरदार में कुछ खास नही।

कुछ विशेष क्या है, अलख पांडे उर्फ फिज़िक्स वालाह में जो इस सीरीज में दिखाया जा रहा है। अभी तक मैंने इनके 4 एपिसोड देखे है जिनमे उनकी खुद्दारी दिखती है की वो बच्चों से ज्यादा पैसे नहीं लेंगे, ओर किसी दूसरे के साथ इसलिए नहीं जुड़ना की वो पैसे ज्यादा दे रहा है क्युकी फिज़िक्स वालाह बिकाऊ नहीं है, उन्होंने 75 लाख रुपये हर महीने के ऑफर को भी ठुकरा दिया क्युकी वह सिर्फ एक बिकाऊ टीचर नहीं बनना चाहते थे , वह कुछ बच्चों को पढ़ना भी चाहते है।

इस सीरीज में दिखाया है, की वह प्रेम करके पछता रहे है, एक मुस्लिम वर्ग की महिला ओर अलख हिन्दू परिवार से है परंतु अड़चने सानिया के परिवार से वह अपने परिवार में ये बात बता नहीं पाती ओर इन दोनों का रिश्ता उसी बीच में रुक जाता है यही से अलख पांडे की जिंदगी में मोड दिखाई देता है, वह कुछ दिनों के लिए घर छोड़ निकल पड़ते है खुद की तलाश में इन्ही सवालों में वे भी कूद जाते यही ओर जिंदगी ओर खुद की राह को समझने के लिए अकेले ही निकल जाते है , यहाँ उनका दिमाग कुछ ओर चीजों को सोचने में लग जाता है यही से उनके विचार खुलने लगते है , एक अंग्रेजी ग्रुप से मिलने के बाद

अलख पांडे उर्फ फिज़िक्स वालाह
अलख पांडे

सिर्फ पढ़ाने की भूख दिखती है , कुछ अपना करने की चाहत जो इनको आगे बढ़ने से कभी रोक नहीं पाएगी , किसी भी व्यक्ति को जब कुछ करने की चाहत होती है तो फिर कितनी ही अड़चने आए वो उनका सामना कर ही लेता है,

एक सीरीज आई है फिज़िक्स वाला के सफर की उन्होंने कैसे अपना सफर तय किया,

हम लीडर है हमे lead करना है भाग 5 में जब फिज़िक्स वालाह अपने लिए एक एप बनवाते है तब प्रतीक कहता है हम लीडर है हमे lead करना है, यही सोच इसी तरह के शब्द हमे पुश करते है हमारे जीवन में जो हमे स्टेप फॉरवर्ड ओर बड़े कदम उठाने के लिए साहस देते है।

भाग 6: जब आप किसी मुकाम को हासिल कर लेते हो ओर फिर लोग उसे तोड़ने के लिए हर मुकिम कोशिश करते है, और उन मुश्किलों के सामने डटकर खड़े हो जाते हो, हार नहीं मानते , आप टूटे जरूर हो लेकिन बिखर नहीं गए बस खुद आप इतना संभाल कर खड़े हो जाते हो , की आपको हटा नहीं सकता बस यही पूरी कोशिश रहती है इस पूरे भाग में इस समय दिमाग कुछ काम नहीं कर पाता की जब आप देखते हो , आप अपने काम पर ध्यान दे या फिर अपने दुश्मनों से लड़े बस यही दिमाग में चलता है इसीको भाग 6 में दिखाया किस तरह से अलख पांडे जूझते है उन सभी परेशानियों से जब उनके टीचर उनको छोड़ कर जाने लग जाते।

मनपसंद जगह

आज फिर मैं अपनी मनपसंद जगह पर गया जहां मैंने पहली किताब लिखी थी, फिर से एक नई शुरुआत के लिए उसी समय जैसे में पहले जाता था, कॉफी होम सुबह 11 बजे खुलता है 2013 – 2014 में में सुबह 10.30 बजे लगभग पहुंच जाता था और बाहर ही गेट खुलने का इंतजार करता था, उस समय बस कुछ ही लोग आते थे।

मनपसंद जगह कॉफी होम
मनपसंद जगह कॉफी होम

लेकिन आज जब मैं 11.20 पहुंचा तब बहुत सारे लोग पहले से वहाँ पहुंचे हुए थे, एक समय था जब वह भीड़ बहुत कम होती थी इस समय और जब दोपहर लंच का समय होता था तब भीड़ बढ़ जाती थी बस उसी समय ही भीड़ ज्यादा होती थी और लोग आते और जाते रहते थे, लेकिन अब ज्यादातर लोग ठहरे रहते है, पहले बहुत ज्यादा संख्या में बुजुर्ग लोग आते थे।

लेकिन अब यंग क्राउड बहुत आता है, जिसकी वजह से भीड़ ज्यादा होती है, व्यक्ति अकेला होता था वो अपने साथियों का इंतजार करते  थे, और धीरे धीरे लोग इक्कठे होने लगते है कभी कोई किसी समय आता तो कोई किसी समय धीरे धीरे लोग जमा हो जाते थे, और अपने एक समय पर सब चले जाते थे उनमें से अधिकतर लोग रिटायर्ड होते थे।

आजकल सोशल मीडिया पर बहुत तेज़ी से कोई भी जगह प्रचलित हो जाती है, और लोग वहां पहुंचने लग जाते है, एक समय पर ये जगह बहुत ज्यादा लोगो को नही पता थी लेकिन आज इस जगह को हर कोई जानता है। क्युकी सभी लोगों को सोशल मीडिया पर इस जगह का पता चल रहा है, ओर वैसे भी यह जगह बहुत ही सुंदर है पेड़ के नीचे बैठकर बाते करना ओर समय बिताना तो हमेशा से ही अच्छा लगता है, यहाँ तो चाय, कॉफी व नाश्ता भी कर लेते है बैठकर ओर खूब बाते भी इसलिए यह जगह ओर भी खास हो जाती है।

यह मेरी मनपसंद जगहों में से एक है जहां मैं अक्सर जाना पसंद करता हूं, यहां बैठने के लिए जगह मिल जाती है और कोई रोक टोक नही होती की आप कितनी भी देर बैठो लेकिन आप अपने ऑफिस का काम लेकर नही जाए लैपटॉप का प्रयोग करना वर्जित है , इसलिए उसका उपयोग नही करे।  

आप यहां बैठकर लोगो के साथ मीटिंग कर सकते है अपने दोस्तो के संग घंटो बाते कर सकते है और स्पेशली साउथ इंडियन फूड आपको यहां मिलता है जिसको आप खा सकते है। 

समय बीत रहा है

समय बीत रहा है, दिन बस यूं ही बीत रहे है, जैसे मैं कुछ नही कर रहा इस वक्त बस नींद पूरी कर रहा हूं और बिना कुछ किए ही समय की हानि मैं कर रहा हूं, समय को व्यर्थ किए जा रहा हूँ

यह समय बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन फिर भी व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत हो रहा है, इस पर नियंत्रण में नही कर पा रहा हूं, बस समय यू ही भागा जा रहा है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं आ रहा है।
अपने समय को खोना बहुत ही निराशा से भरा हुआ एहसास होता है और यह समय फिर लौटकर नहीं आता यही सोचकर मैं कई बार घबरा जाता हूं। उस लौटे हुए समय को वापस भी नहीं ला पाता हूँ। खुद को बहुत सारी गलतिया करता हुआ ही नजर आता हूँ।

मैने लगभग 11 महीने का समय खराब कर दिया है जब मैं बहुत कुछ लिखना चाहता था लेकिन शायद मैं उतना लिख ही नही पाया, बहुत कुछ सोचना मैं चाहता था लेकिन उतना मैं सोच भी नही पाया बस इधर उधर के कार्यों में ही मैंने अपने समय को व्यर्थ में गवाया।

मैं बार बार किसी काम एक नई शुरुआत करता हूं और फिर से जीरो पर खड़ा हो जाता हूं, दूबारा उतनी मेहनत और उतना और उससे भी अधिक दिमाग लगाता हूं, नया काम करने के लिए नई चीज को सीखने के लिए फिर से नए कार्यों मे सफल होने के लिए,

लेकिन कुछ समय बाद ही मेरा मन उस कार्य से हट जाता है, उस कार्य के साथ मुझे बोरियत महसूस होती है सिर्फ पैसा कमाना ही जरूरी नहीं है, लेकिन उस कार्य में उतना आनंद भी आना चाहिए तभी उस कार्य के साथ लगातार रहा जाता है। उस कार्य को पूरे मन से किया जाता है।

समय बस यू ही बीत रहा है।

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म्यूजिक

म्यूजिक आज कल सभी को बहुत पसंद है, हर किसी की जुबान पर गाने ही होते है, लोग सफर में भी गाने सुनकर मनोरंजन करते है कुछ लोग गुनगुनाकर उनको म्यूजिक बहुत पसंद है, लेकिन ये गाने आपके दिमाग में लगातार चलते ही रहते है, जिसकी वजह से दिमाग में शोर बना ही रहता है। कभी भी हमारा दिमाग शांत नहीं होता, इसी वजह से हम ध्यान ओर पूजा में अपना मन नहीं लगा पाते, ओर मन अशांत सा बना ही रहता है, इस मन में फिर शांति आना मुश्किल सा लगता है जब संगीत किसी ना किसी प्रकार की ध्वनि दिमाग में बनी रहती है।  

कोई मेट्रो में गाना सुनता हुआ जा रहा है, तो कोई गाड़ी में तेज आवाज में गाना सुनता हुआ लेकिन हर जगह म्यूजिक चल रहा है, इतना शोर हो रहा है, जिससे हमारा दिमाग शांत नहीं बैठ पा रहा है। इतना शोर जब चलेगा हर जगह तो कैसे ही मन शांत हो पाएगा, इस शोर में कैसे इंसान अपने मन की बात सुन पाएगा।

अब बच्चे यदि पढ़ते है तो उनको किसी विषय को ज्यादा समय तक याद रखना मुश्किल हो जाता है, यदि बच्चे अधिक गाने सुनते है, इस तरह से उनकी यादस्त कमजोर होने लगती है, उनको किसी विषय को लंबे समय तक याद रखने में कठिनाई भी होती है। जिसका कारण म्यूजिक है, हम आज शास्त्रीय संगीत नहीं सुनते जो संगीत उनकी बुद्धि का विकास करते है, हम उन शोर गुल वाले गानों को सुनते है जिनकी वजह से दिमाग शांत नहीं बल्कि अशांत होता है।

इसलिए बचहो व बड़ों हम सभी को उसी तरह का संगीत सुनना चाहिए जो हमारे मन को शांत करता हो, नाकी उस संगीत को जो हमारे मन मस्तिष्क में शोर गुल पैदा करे, उस शोरगुल से हमारे सोचने ओर समझने की शक्ति पर बहुत असर पड़ता है इसके साथ ही हमारी भावनाए भी बदल भी जाती है, हमारे भीतर उन शब्दों का प्रवाह किया जाता है आजकल के संगीत से जिसकी आवश्यकता नहीं है। जिसमे जीवन के प्रति सजगता नहीं है उस प्रकार के संगीत को सुनने का कोई लाभ नहीं है।

लिखता हूँ

लिखता हूँ लेकिन कभी कभी तो लिखने का मन नहीं होता ओर कभी कभी तो यह सोचने में समय निकल जाता है, की क्या लिखू किसके बारे में लिखू जब लिखने बैठता हूँ तो फिर कई बार तो मैं लिख भी नहीं पाता या दो चार लाइन लिख कर बस वही रुक जाता हूँ, उस लिखे हुए को बीच में अधूरा छोड़ फिर किसी ओर विषय पर लिखने बैठ जाता हूँ, एस बहुत बार होता है मेरे साथ जब मैं लैपटॉप पर लिखता हूँ इसलिए पेन ओर कॉपी उठाकर ही लिखता हूँ जिससे मुझे एक ही विषय पर लिखने का जोर रहे।

मन में अब कोई दर्द भी नहीं है जिसको लिखू, जिसको कुरेद कर लिख दू अपने शब्दों में, कोई जिले, शिकवा व शिकायत नहीं किसी से जो मैं दुखी होकर लिखू , सुन है दुख में इंसान ज्यादा लिख लेता है, खुश होता है तो उसके पास शब्द नहीं होते या शब्दों में अपनी भावनए व्यक्त नहीं कर पाता।

मेरे साथ भी कुछ इसी तरह का लगता है, मेरा जीवन एक सीधी रेखा की तरह सीधा ही है जिसमे कोई हलचल नहीं है, ना शोर शराबा है, बस चुप शांत लहर है भीतर गहरी शांति ओर सन्नटा है, ना बहुत सारी इच्छाए जितना है उसमे संतुष्ट हूँ, ओर जीवन में यही उम्मीद भी करता हूँ सब अच्छा ओर शांति से ही चलता रहे सब खुश रहे सदेव शांति बनी रहे।

लेकिन जब हृदय टूट हुआ होता है, छिन्न भिन्न होता है, कुछ गीले शिकवे, शिकायते बहुत होती है किसी से तो हमारे मस्तिष्क में विचारों जमावड़ा सा लग जाता है, भीतर क्रोध भी भर जाता है, बुद्धि खुद में ही बड़बड़ाने लगती है, विचार अपनी कहानिया बना लेते है, ओर बहुत सारे ऐसे विचारों को जोड़ लेते है जो पहले से थे नहीं उनको आमंत्रण दे देते है, वही समय होता है जब व्यक्ति बहुत अधिक लिखने लगता है।

उस समय सबकुछ शब्दों के माध्यम से बाहर आने लगता है, इसके विपरीत जब मन ओर मस्तिष्क, हृदय शांत होता है तब कोई राग द्वेष नहीं होता भीतर ना इच्छाए बहुत उच्चल मार रही होती तब विचार भी शांत मुद्रा में बैठ जाते है फिर वो भी बाहर नहीं आना चाहते विचार भी गहरी शांति का अनुभव लेना चाहते है, ओर शांत जीवन के साथ बस ज्यों के त्यो ही चलते है, फिर कुछ लिखना या नहीं लिखना बहुत जरूरी नहीं लगता, भीतर ही ठहराव बना रहे यह ज्यादा जरूरी सा लगता है।

लिखने का मन है तो कभी लिखना नहीं छोड़ना जो राग द्वेष के बुलबुले उठते है उनको शब्दों के द्वारा बाहर निकालते रहो, उन्हे लिखो ओर अपने शब्दों को जन जन तक पहुचाओ, जिसने सुधार हो , जीवन बेहतर हो ओर अच्छे रास्ते पर अग्रसर रहे, यही आशा करता हूँ

दिल्ली की बस

मैं लगभग 3 साल बाद आज दिल्ली की बस से सफर कर रहा था, लेकिन आज बस में भीड़ को देखकर ऐसा लगा की बस पुरुषों के लिए तो रह ही नहीं गई, इन बसों में सिर्फ महिलाये ही सफर कर रही है, वो भी ऑफिस जाने के लिए नहीं सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने रिश्तेदारों व बाजार के लिए बस में सफर हो रहा है लेकिन जो महिलाये ऑफिस जा रही है वह इस योजना का सही ढंग से लाभ भी नहीं उठा पाती वो तो मेट्रो में जा रही या ऑटो में ही आना जाना कर रही है।

दिल्ली की बस का सफर भी कुछ ऐसा है मानो खचाखच भीड़ बस ओर कुछ नहीं केजरिवाल सरकार ने महिलाओ की टिकट मुफ़्त में कर रखी है अब पुरुष तो बस में दिख ही नहीं रहा, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है बेचारा पुरुष हर जगह महिलाये है बस, मुझे महिलाओ से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सरकारी बसों में पुरुषों को कोई स्थान ही न दे, एक तो सफर मुफ़्त ऊपर से सीट की जगह पर लिखा होता है की यह सीट महिलाओ की है लेकिन पुरक्षों की सीट कही भी रिजर्व नहीं होती, अब बेचारा पुरुष करे भी तो क्या करे।

कहाँ जाए जो चल चल कर थक जाता है वो किसी से बोल भी नहीं पाता की आज मैं बहुत थका हुआ हूँ मुझे सीट दे दो, वो बेचारा पुरुष कुछ रुपये बचाने की वजह से हर समय ऑटो में नहीं जाता, गाड़ी नहीं बुक करता भीड़ भाड़ भरी बस में लटकर भी चल देता है उन सरकारी बसों का घंटों तक इंतजार भी कर लेता है की ऑटो के पैसे बच जाएंगे, ज्यादा बस बदल लेगा तो ज्यादा पैसे लग जाएंगे इसलिए सीधे अपने रूट वाली बस का ही इंतजार वो करता है।

लेकिन महिलाये कितनी ही बस बदलकर चली जाती है, महिलाये तो बिना सोचे समझे ऑटो ओर गाड़ी भी कर के चलती है, क्युकी वो अपनी सहूलियत ज्यादा देखी है, उनको रिजर्व सीट तो हर जगह मिल ही जाती है, फिर चाहे उनकी सीट पर कोई बुजुर्ग भी बैठा हो वो उनको उठाकर खुद बैठ जाती इनको इसमे भी कोई शर्म नहीं आती।

क्या इस समय सरकारी बसे मुनाफे में चल रही है? जहां तक हमे लगता है की सरकारी बस घाटे में ही चल रही है क्युकी ज्यादातर संख्या तो महिलाये की होती है बस में जिनका किराया माफ है दिल्ली की सरकार की ओर से, ओर जो व्यक्ति चढ़ते है उनके पास होते है फिर सरकारी बस मुनाफे में कैसे हो पाएगी।