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बर्ट्रांड रोसल

बर्ट्रांड रोसल मैंने हिंदुतत्व को पढ़ और जान लिया की यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है, हिंदुतत्व पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिंदुतत्व के बड़े विचारक सामने आएंगे एक दिन एस आएगा की हिन्दू ही दुनिया की वास्तविकता उतएजन होगा।

बर्ट्रांड रोसल
Burtrand rosal

बस कोशिश है

बस कोशिश है
हां कोशिश है कुछ लिखने की, कुछ बता देने की, कुछ भीतर जो हो रहा है, दिल में उसको बयां कर देने की, ये जो कोशिशे है ना लगातार चलती रहनी चाहिए।
जो मन के भीतर है दबा कहीं यह कोशिश है, उन सभी दबे हुए विचारो के लिए एक कोशिश है, जो उन विचारों को बाहर निकाले ओर उनके साथ कुछ बाते हो, कुछ तालमेल बने वरना वो विचार कही घुटकर मर ना जाए, जिन विचारों से चल रहा है यह जीवन

जिनको बाहर निकाल पाना बहुत मुश्किल सा है।

लेकिन फिर भी बस एक कोशिश है, कुछ हो जाने की, कुछ करने की
कुछ कह पाना
कुछ समझा पाना
कुछ बता पाना, कुछ हो पाना,

आशा ओर निराशा

जीवन कभी आशा ओर निराशा के तत्वों से निर्मित…..
आश ओर निराश दोनो ही अस्थाई उनका बल सीमित….

इससे उपजी शिक्षा से स्वयं के जीवन को सजना संवारना ….
मेरे दर्द से बड़े बड़े दूसरों के दर्द इस सत्य को सदा पहचाना ।

जीवन कभी आशा ओर निराश के तत्वों से निर्मित,
आशा ओर निराशा, दोनों ही अस्थाई, उनका बल सीमित।

जब आशा की किरणें बांधती हैं सपनों की डोर,
प्रेरणा के पंखों पर उड़ जाता है मन मोर।

सपनों की भूमि पर खिलती है खुशियों की बारिश,
आनंद के संगीत सुनती है मन में मधुर वादियां।

लेकिन जब निराशा की घटाएं छाती पर सँवार,
धैर्य के पंखों से उड़ जाता है अचल संघर्ष।

परिश्रम की धूप में तपते हैं सपनों के बीज,
उग्र विपत्तियों के मैदान में जीवन भर संघर्ष करते हैं।

आशा और निराशा, जीवन के दो पहलू हैं,
ये चक्रव्यूह बनाते हैं अनुभवों का मेल-जोल।

हर नये सवेरे को लेकर आती है आशा की बूंद,
जो जीने की आग होती है दिलों में नई उमंग।

पर जब तन को घायल करे विचारों की हिमाकारी,
निराशा की धूंस छाती को बांध लेती है बंधकारी।

हार नहीं माननी चाहिए जब आशा की खिलती है खेती,
दृढ़ संकल्प और प्रगति के संग बढ़ती है आगे हर रेती।

निराशा के बादलों को तोड़कर आकाश को छू लो,
नये सपनों की उड़ान भरो आशा की परिंदों के साथ।

आशा ओर निराशा, जीवन के दो पहलू हैं,
इनका संगम बनाता है हमें बेहतर इंसान।

मैं पुरुष हूँ

मैं पुरुष हूँ, पुरुष जिसे जल्दी समझदार बनना है और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ भी उठाना है , चाहे उसे जिम्मेदारी समझे या जिम्मेदारियों का बोझ लेकिन उठाना पुरुष को ही है, शादी करनी है, ताकि माँ बाप की इच्छाये पूरी हो, लेकिन खुद की इच्छा का दम घोट दो, तुम अकेले रहना चाहते हो लेकिन समाज आपको बंधनो में बाँधना चाहता है, वो चाहता है की हम उनके अनुसार चले, जो समाज चाहता है वही हम करे।

क्योंकि आप  पुरुष हो आपको बहुत सारी जिम्मेदारियां उठानी है , परिवार की खुशी के लिए अपनी खुशियो का गला घोट देना है, आप क्या बनना चाहते हो ओर क्या होना चाहते हो ये बाद में है पहले आपके परिवार की इच्छा महत्व रखती है। वो आपसे क्या चाहते है।

आपको एक अनुशासित पुरुष होना है आपको अपने माता पिता , भाई बहन , बीवी बच्चों सबके लिए ideal बनना है।

क्योंकि आप पुरुष हो,

एक दिल जो टूटा भी है ओर जुड़ भी गया है, रहने की चाहत अकेले की है फिर भी कही खालीपन सा भी महसूस होता है लेकिन ये सिर्फ कभी कभी होता है जो कभी कभी वाला रिक्त स्थान है वो भर लेना चाहता हूं।

एक डर है जो बयान नही कर पाता हूं, खुल कर रो नही पाता क्योंकि मैं एक आदमी हूं, सिर्फ इसलिए मैं अपने आसुओ को भीतर ही रोक नजर आता हूँ, कुछ चाहकर भी नहीं किसी को इस दिल का हाल नहीं बता पाता हूँ, बताना चाहू भी अगर तो लोग क्या कहेंगे तू एक पुरुष है ओर पुरुष होते हुए रोता है, शायद इसलिए भीतर ही सब दुख दर्द रोक रह जाता हूँ मन का हाल किसी को नहीं बताता हूँ इसलिए भी मैं पुरुष, कहलाता हूँ।

कितना ही भीतर मचा रहे कोहराम लेकिन उसको बाहर नहीं छलकाता हूँ अपने भीतर ही अपनी भावनाओ को मैं छिपाता हूँ।

क्योंकि मैं एक पुरुष हूं

मन भीतर

मन भीतर हो रही है उछल कूद

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन भीतर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

निकला हूँ

निकला हूँ उस ठिकाने को ढूँढने , जिसका पता भी नहीं मालूम मुझे

बस निकल चला हूँ, अपनी उन राहों की ओर जहां

मैं घूमता हूँ दिन भर , दिन भर ढूँढता भी हूँ मैं

खुद को ही ना जाने कहाँ कहाँ ढूँढता हूँ मैं

कहाँ मिलूँगा-कहाँ मिलूँगा यही एक सवाल है जो

मैं खुद से बार बार पूछता हूँ

क्या मैं खुद को ढूंढ पाऊँगा , निकला हूँ मैं

खुद के सवालों से ही मैं जूझ रहा हूँ ,

खुद से ही बस यही एक सवाल पूछ रहा हूँ मैं

ढूँडु खुद को कैसे यह एक सवाल कर रहा हूँ

कहाँ कहाँ ढूढू खुद को बस यही एक सवाल है

जवाब तो नहीं पता मुझे इसका कब मिलेगा

ये मुझको नहीं खबर है बस लापता हूं

निकला हूँ मैं उस ठिकाने को ढूँढने जिसका पता नहीं मालूम मुझे

मन यू हलचल

कभी कभी मन यू हलचल सी मचाए , कभी जिंदगी यह घबराए ,कभी ख्वाब खूब सजाए ,कभी गम भुलाये ,नज़रों की तारीफ़ों से मैं खुद को भगाऊ ,न उसकी सहमतों से ओर न मेरी अड़हतों , यह पंछी अब पिंजरों से न ठगे, इतनी शरारत करे ये मन

क्या बनना है

हम सभी अपनी जिंदगी में कुछ बनना तो चाहते है लेकिन क्या बनना है यह बात बहुत कम लोग ही जानते है, जैसे जैसे उम्र बढ़ती है वह जो बनना चाहते थे उस रास्ते से भी भटक जाते है, जाना तो कही ओर था लेकिन चले कही ओर जाते है बस इसी दुविधा में अपनी जिंदगी पीछे छोड़ कही दूसरे रास्ते में भटक जाते है ओर उस भटके हुए रास्ते से वापस लौट नहीं पाते क्युकी अब सफर सफर बहुत पीछे छूट गया है बस यही कहते हुए वो लोग नजर आते है……

आपको जिंदगी में क्या बनना है ? और क्यों? यह एक सवाल आपको लगातार चुभना चाहिए , खुद से पूछना चाहिए ताकि आप इस सवाल को हल कर सको, ओर समझ सको अपनी जिंदगी का असल उद्देशय क्या है?

जिंदगी में बहुत सारे भटकाव आते है, उन्मे से ये भी एक बहुत बड़ा भटकाव है लेकिन हमे इसका हल ढूँढना है, हमे जाना तो कही ओर होता है लेकिन हम चल दिए कही ओर ही होते है इसलिए हमे अपनी मंजिल, अपना रास्ता पता होना चाहिए यदि हमे नहीं पता तो उसे खोजना बहुत जरूरी है।

हमारी मनपसंद चीज क्या है? जो हमे करनी है, बस उसको जानना है, यदि नहीं पता तो ढूंढो उसे, उसकी तलाश शुरू करदों, कही वो तलाश अधूरी ना रह जाए ये जीवन की जो प्यास है वो प्यास फिर प्यास ही ना रह जाए

फिर कही देर न हो जाए इसलिए आज से शुरू करो

धन्यवाद

आपका मित्र : रोहित शब्द

कभी पुराना नहीं होता

लिखना कभी भी पुराना नहीं होता यदि आपको भी लगता है की जो मैंने कई साल पहले लिखा था आज वो कुछ हल्का हो गया है या काफी पुराना हो गया , या यह बचपन में लिख दिया था अब इसका कोई मूल्य नहीं है तो यह बात सही नहीं है क्युकी यदि आप कल बच्चे थे तो आज कोई ओर बच्चा है जो इस बात को पढ़ेगा ओर अपनी जिंदगी से मेल करेगा अब यह शब्द उनके लिए है।

बहुत काम आएगी क्युकी अब आपकी सोच विकसित हो गई है लेकिन जब आप लिख रहे थे तब वह उस लेवल पर थी इसलिए उन शब्दों को हमेशा पढ़ते रहे,और कुछ ना कुछ लिखते रहे सीखते रहे अपने ही शब्दों से बहुत कुछ मिल जाता है, क्युकी लिखा हुआ कभी पुराना नहीं होता वह एक खजाने के रूप में है उसका प्रयोग करे ।

मोह से दूर

मैंने कुछ छोड़ा नहीं है ये तो खुद ही छूट गया है क्युकी जो पीछे छूटा है वो मेरा नही था आगे मिलेगा वो भी मेरा नही होगा क्युकी जब और आगे बढूंगा तो वो भी पीछे ही छूट जायेगा , इसलिए किसी भी चीज से बांधना क्यों खुद को जब वो आपकी नही है
“मोह से दूर”