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जिसने दुख दिया

जिसने दुख दिया उसे दे क्षमा का दान ….
अगली बार न कर सके रखे ध्यान ।
क्षमा दान नम्र व्यवहार का निर्माणदाता…
जो सब जीवनों का बनेगा सुखदाता ।

भूल चूक ग़लतियाँ कभी किसी से भी होती रहती…..
क्षमा ही चिकित्सा होवे इस सच्चाई की अनुभूति ।
जिसने दिया दुख उसे दे क्षमादान….
यह व्यवहार होवे हमारी पहचान।

जिसने दुख दिया उसे दे क्षमा का दान,
अगली बार न कर सके रखे ध्यान।

क्षमा दान नम्र व्यवहार का निर्माणदाता,
जो सब जीवनों का बनेगा सुखदाता।

दृढ़ संकल्प से करें इसकी प्रार्थना,
बढ़ाएं प्रेम का गहरा अभिमान।

अहंकार को त्यागें, दया का पाठ पढ़ें,
सबको समझें, सम्मान से व्यवहार करें।

स्वीकारें जीवन की अनिश्चितता को,
बढ़ाएं सबका अपार सम्मान।

बिना शर्तों के दें दया का वरदान,
हर कार्य में भरें प्रेम का अभियान।

बिना इच्छा के हों सेवा में लगे,
जीवन को सुखी और शांति से भरे।

हर अवसर पर रखें खुशहाली की दृष्टि,
हस्ती हुई अन्याय को उजागर करें।

क्षमा का दान अपनाएं व्यापार में,
विश्वासपूर्वक चलें सबसे साथ।

सभी को आदर और प्रेम से देखें,
जीवन को बनाएं आनंदमय और साथ।

जिसने दुख दिया उसे दे क्षमा का दान,
अगली बार न कर सके रखे ध्यान।

क्षमा दान नम्र व्यवहार का निर्माणदाता,
जो सब जीवनों का बनेगा सुखदाता।

अकल लगाओ

अपनी अकल लगाओ, इतना दिमाग क्रिकेट और फिल्मों में हम अपना लगा देते है तो क्या होता,
यदि इतना दिमाग पढ़ाई और काम करने में लगा दे तो शायद हम भी एक सफल व्यक्ति बन सकते है, सही है क्या ? किसी भी चीज को पाने को चाहत आपको कहा तक ले जा सकती है।

ऐसा बचपन में सुनने को मिलता था लेकिन, आजतक अकल मैं नही बैठा यह सबक मुझे आज भी फेसबुक पर देखने को मिल रहा है आंखे गड़ा कर बैठ हम जाते 9 घंटे तक पलके भी नहीं झपकाते बस मोबाइल की स्क्रीन को ऊपर और नीचे ही कर समय बिताते।

फ़िल्म देखने जाते और अपनी सीट को ऐसे पकड़ कर बैठते है कि कुर्सी थोड़ी सी भी आगे पीछे ना हो जाये,कोई सीन निकल ना जाए बस यह कुर्सी ऐसी की ऐसी रहे
अगर इतनी मेहनत पढ़ाई में लगाये होते बिना पलक झपकाए पढ़ें और पढ़े तो टॉपर ही ना बन जाये
लेकिन हमको ये बात काहे को समझ आये।

पढ़ाई में मन नही लगता
काम में मन नही लगता
जो चीज़ करने बैठता हूं उसी से दूर भागने लगता हूं,
फिर क्या करूँ और क्या नही ? यही समझ नही आता

दुखडा मेरा है, खुद को ही मैं समझाता हूं
देखते ही देखते साथ वाले टोपर भी बन गए ,
तो कुछ बड़े बिजनेसमैन भी बन गए
मै ना जाने क्यों वही का वही अटक गया

लगता है में कही भटक गया
नींद बड़ी प्यारी लगती थी इसलिए
जिंदगी में नीचे लटक गया
सुबह उठ नही पाता था जल्दी

पढ़ नही पाता था देर तक
कानो मैं लीड लगाकर सो जाता था,
जो याद किया था वो भी भूल जाता था

फिर घंटो तक जो पढ़ा था उसीको दोहराया करता था
इतनी गलती करने पर भी में नही पछताया करता था
इसका नतीजा हार है यही एक विचार है।

अपनी अकल लगाओ यू ही समय को ना तुम व्यर्थ में गवाओ।

यह भी पढ़ो: अपनी अकल लगाओ, अपनी अकल लगाओ, समझ अपनी अपनी,

बड़ी कुटिल

बड़ी कुटिल
बड़ी छली
सी सोच लगती है,
जब मै राजनीति की बाते करने लगता हूं
जिंदगी ही जिंदगी पर एक बोझ लगती है
अभी शुरुआत है या अंत पता नहीं चलता
एक धर्म , एक जाती , एक देश , एक वर्ण
किसी दूसरे का अधिकार बस छलते हुए ही है दिखता
अपनी सत्ता , अपना लालच ,दम, अहंकार और साहस पर क्यों ए इंसान तू चलता है ?
कौन हिन्दू है ? और कौन मुस्लिम है ?
इसका फैसला क्यों ?
ये तुच्छ सा इंसान करता है
धर्म परिवर्तन तो कभी धर्म के नाम पर ही लड़ता है
तकलीफ किसको किससे है ?
भाषा से है या वर्ण से है
ये कोई क्यों नहीं समझता है ?
एक देश है उसके टुकड़े तुम करना चाहो
क्या ऐसा दुस्साहस भी कोई करता है? बड़ी कुटिल बड़ी चली सी सोच लगती है