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ऐमज़ान के विज्ञापन

एक ऐमज़ान के विज्ञापन में मनोज बजपाई कहते है की सबजिया अनलाइन खरीदो नहीं तो महंगा पड़ेगा, लेकिन वे खुद अपनी सब्जी बाजार से ढूंढ ढूंढ कर खुद लाते है ऐसे घटिया ओर जलील लोग कहाँ से आते है मुझे यह बात समझ नहीं आती है कुछ रुपये कमाने के चक्कर में कुछ भी करते है कितने दोगले है यह लोग, क्या आप ऐमज़ान से शॉपिंग करते है, यदि हाँ, तो आपको कितना सस्ता पड़ता है ओर कितना महंगा, आपको आज भी ज्यादातर समान बाजार में सस्ता मिल जाता है, जबकी वही समान online महंगा मिलता है, साथ ही उसमे भेजने का खर्च अलग से जुड़ जाता है, इससे आने वाले समय में जो नुकसान होता दिख रहा है, वो यही की समान का मूल्य अधिक कर देना ओर सस्ता बता कर बेच देना क्युकी आप online में ज्यादा तुलना नहीं कर पाते, जबकी बाजार में जाकर ज्यादा समान देख सकते है समझ सकते है ओर ज्यादा से ज्यादा मूल्य की पहचान होती है, ओर मोल भाव भी हो जाता है, जो online संभव नहीं है, साथ ही हमे उसका अनुभव होता है।

क्या महंगा पड़ेगा ओर क्या सस्ता पड़ेगा आपको online की खरीदारी से, क्या आपको सबकुछ महंगा पड़ता है ऑफलाइन में लेने से, या अनलाइन में महंगा समान मिलता है, आपका क्या जवाब है, ओर क्या दिककते आती है? आपको अनलाइन ओर ऑफलाइन में, अब ऐमज़ान के विज्ञापन से तो ऐसा ही लगता है की अनलाइन समान सस्ता है बाकी सभी दुकानदार महंगा बेच रहे है, वह सभी दुकानदारों को झूठा ओर चोर साबित करने में लगे हुए है।

कुछ विज्ञापन ऐसे आते है, नहीं तो महंगा पड़ेगा अरे भाई क्या महंगा पड़ेगा तुम खुद तो सब्जी बाहर लेने जाते हो ओर हमे ज्ञान बाँट रहे हो की अनलाइन खरीदो गजब का दोगलापन है भाई यह तो, वैसे ये लोग पैसे के पीछे क्यू इतना भाग चलते है, इंसानियत की जिम्मेदारी को छोड़ आगे निकल चलते है यह लोग, फिल्मों से पैसा कमाने आते है लेकिन पता नहीं क्या क्या बेचने लग जाते है। इसी तरह से कपिल शर्मा भी जिनको कपिल शर्मा शो से काफी अच्छा पैसा मिलता है लेकिन ये भी जनरेशन को बिगाड़ने में लगे है हाल में ही कपिल शर्मा ने भी 360 गेमिंग app का विज्ञापन दिया जिसमे हरभजन सिंह भी साथ में दिखे, जितना बड़ा आदमी उतनी ओछी हरकते है इन लोगों को कितना ही आप कुछ कहे इन लोगों के बारे में ये सुधरेंगे तो है नहीं ये लोग पैसा कमाने के लिए कुछ भी करते है।

इस समय मार्केट काफी अलग है क्या अनलाइन ओर क्या ऑफलाइन इन दोनों में से क्या चुने ओर क्या नहीं बहुत बार यह बात समझ नहीं आती क्योंकि जीतने भी अभिनेता ओर अभिनेत्री है यह सब लोग अनलाइन शॉपिंग करने के लिए विज्ञापन करवाते है, जिसकी वजह से लोग online बहुत तेजी से भाग रहे है।

अगर देखा जाए तो आगे जीवन ओर भी ज्यादा व्यस्त हो जाएगा जिसकी वजह से ऑफलाइन ओर अनलाइन की दौड़ में अनलाइन जीत सकती है, क्युकी ऑफलाइन में बहुत सारी ऐसी दिककते है जिनका समाधान नहीं हो रहा है, जो लोग इस मार्केट के साथ जुड़े रहेंगे सिर्फ वही अच्छा व्यवसाय बना सकते है जो की बड़ी कंपनी हो सकती है, जिनकी खुद की दुकाने है वह बैठ सकते है, खुद की जमिनो पर कारोबार होना फेर भी संभव है, लेकिन किराये पर दुकान लेकर व्यवसाय चलना काफी हद् तक मुश्किल होगा ओर किराये पर दुकान लेकर बैठ जाना संभव होना बहुत मुश्किल है जैसे जैसे व्यवसाय का आधुनिकीकरण हो रहा है। लोग अपने घरों से बाहर नहीं आना चाहते, जो समय अब उन्हे घूमने के लिए चाहिए उसको अब वही लगाना चाहते है, उस समय को शॉपिंग करके खराब नहीं करना चाहते।

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उगरम फिल्म

नंदी जैसी सफल फिल्म देने के बाद, अभिनेता अल्लारी नरेश और निर्देशक विजय कनकमेडला एक एक्शन थ्रिलर, उग्रम के साथ वापस आ गए हैं। नंदी की तरह उगरम फिल्म भी सच्ची घटनाओं पर आधारित है। मिरना मेनन ने मुख्य भूमिका निभाई। फिल्म सिनेमाघरों में आ चुकी है और देखते हैं कैसी है यह उगरम फिल्म

अभिनीत: अल्लारी नरेश, मिरना मेनन, इंद्रजा, शरथ लोहिताश्व निदेशक: विजय कनकमेदला निर्माता: साहू गरपति और हरीश पेड्डी संगीत निर्देशक: श्री चरण पकाला छायांकन: सिद्धार्थ जे

कहानी:                                                                                                                               एक ईमानदार व बहुत गुस्सेल पुलिसकर्मी शिव कुमार (अल्लारी नरेश) को अपर्णा (मिरना मेनन) से प्यार हो जाता है। उन दोनों की शादी हो जाती है और अपर्णा एक लड़की को जन्म देती है। जहां शिव कुमार अपनी नौकरी के प्रति बहुत जुनूनी हैं, वहीं अपर्णा अपने पति से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं क्योंकि वह अपने परिवार को पूरा समय नहीं दे रहे है इस वजह से अपर्णा को शिव कुमार घर छोड़ने के लिए निकल पड़ता है , उसी दौरान अपर्णा ओर उसकी लड़की लापता हो जाती है, जबकि शिव गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। शिव कुमार की पत्नी और बेटी का क्या हुआ? क्या लापता मामलों और उसके परिवार के लापता होने के बीच कोई संबंध है? शिव ने कैसे सुलझाया पूरा रहस्य? यह कहानी की जड़ का हिस्सा है। यही वो हिस्सा जिसे फिल्म ओर बांध लेती है

प्लस पॉइंट:                                                                                               कॉमेडी किंग अल्लारी नरेश एक शानदार अभिनेता भी हैं। कई बार, उन्होंने कुछ लीक से हटकर फिल्मों में असाधारण अभिनय से अपनी काबिलियत साबित की है। उग्रम फिल्म में हमें नरेश में वह अभिनेता देखने को मिलता है। जो अपने ईमानदार प्रदर्शन व गुस्सेल रूप से सभी को आश्चर्यचकित कर देते हैं। नरेश पुलिस की भूमिका के लिए आवश्यक तीव्रता लाते हैं, और सहजता से अभिनय करते हैं। वह एक्शन दृश्यों में बहुत अच्छे हैं, और उनके द्वारा किए गए प्रयास बहुत स्पष्ट हैं। वह फिल्म को शुरू से लेकर अंत तक अपने कंधों पर उठाते हैं। चरित्र-प्रधान फिल्म में नरेश को देखना बहुत अच्छा था।

फिल्म की शुरुआत अच्छी है और पहला भाग अच्छी गति से आगे बढ़ता है। पारिवारिक ड्रामा साफ-सुथरा है, जिसे पूरे परिवार संग देखी और दूसरी तरफ, नायक के चरित्र को अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है। पहले घंटे में एक शानदार दृश्य है जहां नरेश कुछ छेड़छाड़ करने वालों को दंडित करता है। इस विशेष अनुक्रम को समझदारीपूर्ण और प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जाता है।

एक प्रमुख एक्शन सीक्वेंस, जो दूसरे भाग में आता है, अच्छी तरह से निष्पादित किया गया है। मिरना मेनन को अच्छी भूमिका मिली और उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। शत्रु ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन्होंने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। श्री चरण का बैकग्राउंड स्कोर कुछ एक्शन ब्लॉक को ऊंचा उठाता है।

नकारात्मक अंक

उग्रम फिल्म के साथ सबसे बड़ी निराशा मुख्य बिंदु, यानी लापता मामलों के मुद्दे को संभालने के तरीके से है। यह विशेष पहलू केवल दूसरे भाग में ही केंद्र में आता है, और कोई उम्मीद कर सकता है कि उसके बाद कार्यवाही उग्र और दिलचस्प होगी। लेकिन जांच के कोण में दम नहीं है, और यह काफी सामान्य है।

दूसरे भाग में अचानक एक गाना आता है जो प्रवाह को प्रभावित करता है। लोगों के अपहरण का मुख्य कारण बड़े पैमाने पर निराश करता है, क्योंकि यह कुछ ऐसा है जिसे हमने कई फिल्मों में देखा है। परिचित कहानी दूसरे घंटे में मौजूद सकारात्मक पहलुओं पर भारी पड़ती है। अगर निर्देशक ने मुख्य मुद्दे में कुछ नया पहलू जोड़ा होता, तो चीजें बहुत बेहतर होतीं।

खलनायक का चरित्र ख़राब तरीके से लिखा गया है, और क्लाइमेक्स प्रभाव को काफी प्रभावित करता है। नायक एक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित है, लेकिन अंत में उस पहलू को अचानक नजरअंदाज कर दिया जाता है। कुछ संवाद मूर्खतापूर्ण लगे। इंद्रजा का किरदार प्रभाव छोड़ने में असफल रहता है।

तकनीकी पहलू:   संगीतकार श्री चरण पकाला ने अच्छा काम किया। कुछ गाने अच्छे हैं और उनका बैकग्राउंड ठोस है। सिद्धार्थ की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है और उनके गहरे फ्रेम फिल्म की टोन के अनुरूप हैं। संपादन लगभग ठीक है. उत्पादन मूल्य अच्छे हैं. संवाद और बेहतर हो सकते थे।

निर्देशक विजय कनकमेदला की बात करें तो उन्होंने उगरम फिल्म के साथ अच्छा काम किया। पहले हाफ को अच्छे तरीके से संभाला, लेकिन जब दूसरे हाफ की बात आई तो उन्होंने पकड़ थोड़ी खो दी। हालाँकि उसे नरेश से सर्वश्रेष्ठ मिलता है, लेकिन कथानक के लिहाज से उग्रम फिल्म उतना महान नहीं है। परिचित मेडिकल माफिया एंगल ने फिल्म को कुछ हद तक निराश किया है। फिर भी, नरेश का शानदार प्रदर्शन और अच्छे तकनीकी मूल्य फिल्म को अच्छी कमाई की

क्या फिल्म देखने लायक है ? कुल मिलाकर, उगरम फिल्म एक अच्छी एक्शन थ्रिलर है। अल्लारी नरेश हर संभव प्रयास करते हैं और सराहनीय प्रदर्शन करते हैं। दोनों हिस्सों में कुछ दृश्यों को अच्छी तरह से निष्पादित किया गया है और सभी एक्शन ब्लॉक बहुत बढ़िया हैं। लेकिन मुख्य मुद्दा परिचित कहानी के साथ है क्योंकि यह फिल्म को अगले स्तर तक जाने से रोकती है। इसलिए उग्रम इस सप्ताह के अंत में एक बार देखी जाने वाली फिल्म बन जाएगी।

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