ये जो मुझे थोड़ा बहुत इश्क होता नजर आया ये तो सच है तेरे साथ होने से ही नजर आया है ये कुछ खट्टा, कुछ मीठा, तीखा , फीका बस जैसा भी आया तेरे होने से ही आया … के अब झुठला कैसे दु इस इश्क़ को जो मनचला बन बावरा तेरे ही ख्यालो में हर वक़्त डूबता सा नजर आया … तू ही बतादे ,तू कुछ तो समझा दे
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मुस्कुराहट
परेशानिया खुद दम तोड़ देती है, जब वो मेरी मुस्कुराहट के सामने आती है।
मुस्कुराहट के सामने तो अच्छे अच्छे झुक जाते है, लक्ष्मी देवी भी वही आती है जहां मुस्कुराहट होती है, मुस्कुराने से बहुत सारी समस्याओ का हल हो जाता है, बहुत बड़ी बड़ी परेशानी खुद ही छोटी होने लगती है।
मुस्कुराहट में जादू है, एक अद्भुत शक्ति है, इस शक्ति का प्रयोग करो, बहुत बड़ी बड़ी लड़ाई टल जाती है जब इन होंठों पर मुस्कुराहट आती है।
हिम्मत कर राही
हिम्मत कर राही
कोशिश करते रहो, कभी न मानो हार ।
हर मुश्किल से लड़ने को,
हरदम रहो तैयार।
अच्छा हो चाहे , चाहे हो बुरा समय ।
तुम्हें रहना होगा, सदा ही निर्भय।
हिम्मत की बागडोर को, कभी न छोड़ना बीच राह ।
आगे ही बढ़ते रहना, होना न गुमराह।
जिंदगी की डगर माना है नहीं आसान ।
आखिर तुम्हें बनानी है अपनी नई पहचान।
भीड़ से अलग हो जाने का , न करना कोई गुमान ।
मिलकर आगे बढ़ते रहना , छिपाना ना मुस्कान।
इस दुनिया की फुलवारी में, हैं खिले अनेकों सुमन ।
पर तुम्हें बनाना है, गुलाब जैसा मन।
अपने होठों की हंसी को, रखना हमेशा बरकरार।
वक्त आकर ठहरेगा , तुम्हारे लिए इक बार।
Akme mittal
“आपकी सोच”
“सोच को बदलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए” क्या आपकी सोच है? आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है, क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब
हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है, उस सोच को बदलों
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है, जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराने विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है, नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना
अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है, की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है, दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ? लेकिन सोच को बदलों तभी थ जीवन बदलेगा
जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है, और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है, या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो , इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ ।
आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है, परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??
आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है, पहले स्वयम को जानना होगा |
और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है, सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है, इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।
जाग्रत कौन है?
वास्तव में सुख से कौन सोता है? जाग्रत कौन है?
दो प्रश्न हैं और उनका उत्तर है जिनकी संक्षिप्त व्याख्या दो भागो में करते हैं .
पहले प्रश्न पर चलते हैं, दोनों का उत्तर पढ़ना आवश्यक है इस पूरी स्थिति को समझने के लिए.
वास्तव में कौन है जो समाधि निष्ठ हो कर सुख से सोता है?
वही व्यक्ति अथवा सत्ता जो परमात्मा के स्वरुप में हमारे ही अंतकरण में स्थित या स्थापित है! परमात्मा का एक “स्वरुप” ही हम हैं और वह ही सब करता है. “हम” कौन हैं फिर? “मै जो जाग्रत अवस्था में सोचता है, करता है, जिसे भूख प्यास लगती है हमारा अहंकार है जो हमें इस शरीर से जोड़कर उसी को “मै – हम” बना देता है, पर आत्मिक ज्ञान होने पर जब सब दीखता है तो ज्ञात होता है के जिस सत्ता को हम “मै ” समझते थे, वह तो केवल एक हाड मांस का एक शरीर है जिसे चलाने वाला वही अंतकरण में स्थापित देव मूर्त परम आत्मा है।
जिसे हम अनदेखा कर, इस शरीर व् मायावी संसार के चक्कर में, पाप पर पाप करते चले जाते हैं. याद रखे के इसीलिए हम सुख से नहीं सो पाते, क्यूंकि हमने पापो का इतना बोझ पीठ पर लाद रखा है के हम दुःख में ही रहते हैं पर जब हम उस अंतर स्थित स्थापित सत्ता से जुड़ जाते हैं और इस संसार के मायावी रूप के लबादे को उतार कर, हलके फुल्के हो जाते हैं।
जाग्रत कौन है? यदि हम यह जान पाए तभी हम अपने भीतर के सभी कार्यों होते देख पाएंगे
अपने पाप कर्मो पर दृष्टि डालते हैं तब हम जिस स्थिति व् अवस्था में होंगे वहां न कोई चिंता होगी न किसी पाप कर्म का बोझ होगा न कभी न पूरी होने वाली इच्छाओ, स्वरूपी राक्षसो का भय होगा, तब हम अपने उस स्वरुप में सम्मलित होकर एक ही रूप में होंगे और वह ही हमारा वास्तविक रूप है, ये जो दीखता है वह तो उसी स्वरूप के भावो का प्रत्यक्ष प्रतिरूप है. जब इस बाहरी रुप को उस आंतरिक स्वरुप से जोड़ देंगे तो हमें इस संसार से कोई विशेष लालच ,मोह या जुड़ाव नहीं रहेगा. इसीलिए “मै ” और “सत्ता” सुख से सोएँगे।
औरत ना होती
औरत ना होती तो जिंदगी अधूरी होती
क्या जिंदगी पूरी होती अगर तुम ना होती ?
जिंदगी के हर हिस्से में तुम हो
कहानी और किससे में तुम हो
हर जीत में तुम हो
हर हार में भी तुम हो
सुबह भी तुम शाम भी तुम हो
ख़ुशी भी तुम हो गम भी तुम हो
धुप भी तुम छाव भी तुम हो
मिठास भी तुम हो खटास भी तुम हो
कभी कभी बेस्वाद भी तुम हो
जीवन के हर स्वाद में तुम हो
माँ बहन पत्नी और बेटी भी तुम ही हो
जीवन के हर रूप और स्वरुप में तुम हो
मुझे बनाने वाली भी तुम हो
मुझे बिगाड़ने वाली भी तुम हो
मुझे ऊँचाई पर पहुचाने वाली भी तुम
और उस ऊँचाई से नीचे गिराने वाली भी तुम हो
तुम से ही पैदा होती मेरी हर इच्छा है
तुम नहीं हो तो शायद जीवन ना ही हो
यह इच्छा है।
औरत ना होती तो जिंदगी कैसी होती।
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आंखे भीग जाती है
आंखे भीग जाती है
जब मैं तेरे बारे सोचता हूँ,
दिन का चैन खो जाता है
और
रातो की नींद उड़ जाती है
सारे सपने भूल जाता हूं
ना सोता हूं ना जागता हु
पागलो की तरह बड़बड़ाता हुआ
लोगो को नजर आता हूं
जब मैं तेरे बारे में सोचता हूं , आंखे भीग जाती है
ना काम कर पाता हूं
ना खाली बैठ पाता हूं
तेरी याद में ना जाने कहाँ खो जाता हूं
तुझको भूल ही नही पाता हूं
फिर ये बात भी गलत लगती है
कि मैं तेरे बारे सोचता हूं
तू तो मेरे खयालो से नही जाती है
हर पल हर दम तू मेरी
सांसो की धड़कनों में धड़कती
हुई सुनी जाती है
फिर कैसे कह रहा था मैं
की जब भी तू मेरी यादों में आती है
अब तो यह बात मेरी सांसो ने भी झुठलादी है
की जब तू मेरी यादों में आती है।
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जिंदगी तेरे बिना
जिंदगी तेरे बिना कुछ ऐसी है और कुछ वैसी है जिंदगी
और जब तू साथ है तो लगता है कि कुछ है जिंदगी
हाल क्या बताऊँ ?
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
बस मसक्कत से भरी है जिंदगी
जब
तू दूर जाती है तो रूठ जाती है जिंदगी
तू पास आती है
तो मुस्कुराती और खिलखिलाती भी खूब है ये जिंदगी
गम ए छुपाये नहीं ये छुपता
लगता है बेमुरम्मद सी है जिंदगी
आंसुओ से आँखे भर भर जाती है
जब तू इन आँखों से दूर चली जाती है
चिरागे रोशन तू कर जाती है
जब तू फिर से पास आती है
ना जाने
क्यों जिंदगी तेरे बिना
बेतहासा बेहाल सी है जिंदगी
लगता है कुछ फटेहाल सी है जिंदगी
लेकिन
जब तू पास होती है तो कमाल सी है जिंदगी
ना जाने क्या क्या करती धमाल सी है ये जिंदगी
इसलिए
तू दूर जाना मत मुझे छोड़ कर
वरना लगेगी दुर्भर सी ये जिंदगी
अगर
तू पास है तो हर हाल में मस्त है ये जिंदगी
तू साथ है इसलिए जबरदस्त भी है ये जिंदगी
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
जिंदगी तेरे बिना कुछ ऐसी है कुछ वैसी है जिंदगी
जिंदगी जिंदगी जिंदगी
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समय का अंधेरा तला
समय का अंधेरा तला
जिसके अंदर तू बैठा छिपा आ बाहर आज तू फिेर से कर
चहल पहल
कुछ तो कर
ना बैठ यू तू
क्यों तू है सहमा सहमा
क्यों है तू बैठा यू
समय के उस अंधेरे तले में
ना छुपकर यू बैठ तू
आ बाहर कुछ फुसफुसाहट करे
आ चल उठ कुछ बात करे
थोड़ा सा साथ चले
थोड़ी सी कुछ शरारत, गुदगुदाहट करे
आपस में कुछ और की बात करे
चल उठ खड़ा हो कुछ दूरी ,
कुछ फासले हम तय करे
जो मंजिल राह देख रही है तेरी,
उस मंजिल की और आ आज साथ हम चले
कुछ दूरियां कुछ फासले तय करे हम
हो जाने दे कुछ हरकत , हो जाने दे जो होना है
जिंदगी जी लेने से पहले
काहे अंधेरे तले में
हम छिपकर मरे
बाहर आ रोशनी में ,
देख चकाचोंध रोशनी सूरज की ,
यह सूरज कैसे खुद जल कर
दुनिया को रोशन करे
चल उठ खड़ा हो
कुछ दूरी कुछ फासले हम तय करे
तू काहे समय के अंधेरे तले में
जी लेने से पहले क्यों तू मरे
समय का अंधेरा तला
जिसके अंदर तू बैठा छिपा आ बाहर आज तू फिेर से कर
चहल पहल
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