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क्यों के बादल जब

जब क्यों के बादल छटते …
केसे से आसानी से निपटते ।

क्यों एक प्रश्नचिन्ह …
उत्तर उसकी ज़मीन ।

जीवन उलझा उलझा….
उसको स्वीकारना ही विधा ।

या तो लगे रहो मुन्ना भाई…
एक से निपटो दूसरे की बारी आई ।

जीवन क्यों से केसे का सफ़र….
अच्छे से निबटेगा तो जाएगा सुधर ॥

प्रार्थना सब का जीवन हो खुशहाल….
छोटी छोटी ख़ुशियों को रखना सम्भाल ॥

क्यों के बादल छटते,
और आसमान धूमिल हो जाते,
उम्मीदों की किरणें ढलती,
मन में आशा की भावना जगती।

जीवन की धारा प्रवाहित हो जाती,
संघर्षों से राह हलकी पड़ जाती,
अनुभवों की पटरी पलट जाती,
खुशियों की बौछार बरसाती।

जब क्यों के बादल छटते,
मन की चिंताएं जटिल हो जातीं,
मन्दिरों में आंधी चलती,
प्रेम की दीप्ति बुझ जाती।

धूप की खिलकारी गायब हो जाती,
अंधकार की घटाएं छाया दे जाती,
क्यों के बादल आच्छादित होते,
विश्वास की बूंदें बरसाते।

प्रश्नों की घनी घटा तन लेती,
समय की गति धीमी हो जाती,
जीवन की नाई धारा बहाती,
सामर्थ्य के बाग खिलाती।

जब क्यों के बादल छटते,
मन की बिछुड़ाने चलते,
सौभाग्य की बूंदें निर्माते,
विपत्ति की लहरें टालते।

आओ छोड़ दें मन के पार्श्ववर्ती,
क्यों के बादल के आधार पर,
संकटों को हम मिटा देंगे,
प्रशांति के बारिश कर देंगे।

अपनी आंखों में नया आकार देंगे,
विद्या की बूंदें बरसा देंगे,
ज्ञान के बादल छा जाएंगे,
जगत को नई दिशा देंगे।

क्यों के बादल छटते ही हैं,
आशा के बगीचे खिल जाते हैं,
अंधकार से ज्ञान का आलोक फैलाते हैं,
जीवन की रोशनी को बढ़ाते हैं।