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बोरियत वाला मस्तिष्क

बोरियत वाला मस्तिष्क है क्या आपका ? आप खाली बैठते है?
या खाली बैठे है कुछ करने को है नही लेकिन करना बहुत कुछ चाहते है शरीर छटपटा रहा है कुछ करने को लेकिन क्या करू क्या नही बस समझ नही आ रहा है, किधर जाउ किधर नही जाउ कुछ नही समझ आ रहा है बस दिमाग खाली बैठ ऐसा लग रहा है पकता ही जा रहा है।

खाली बैठे है तो फ़ोन के नंबर ही चेक करले हम कितने नंबर है हमारे फोन में या फिर कितने वॉट्सएप कॉन्टेक्ट है? किसका मैसेज आया है किसका नहीं आदि इत्यादि ही देखले हम भी जरा
इधर उधर अखबार पढ़ले कुछ ना कुछ करले लेकिन कुछ तो करले बस यही चल रहा है लेकिन यह नही पता क्या करना चाहते है।

क्या करने के लिए कुछ नही है क्या इधर उधर की बाते कर रहे है ?  क्या सोच रहे है?
या कुछ सोचनेे के लिए नही क्या कुछ सोचना चाह रहे हो कुछ सोचने की कोशिश तो कर रहे परंतु कुछ कर नही पा रहे हो आपका शरीर भी बिल्कुल सुस्त नही है किसी भी किर्या में तो आप क्यों और क्या करना चाहोगे?

कैसे करोगे ये क्या समय है की में कर भी नही पा रहा हूं लेकिन करना चाहता हु कुछ करने को है नही हर एक चीज़ से मैं बोर से महसूस कर रहा हूं।
क्या करू?  क्या ना करू? 

बस यही एक विचार मन, मस्तिष्क में घूम रहा है कुछ काम करने को नही या काम में मन नही लग रहा कभी बाहर जाते है कभी अंदर आते है

कभी बातो को खिंचने की कोशिश करते है किसी भी काम में मन नही लग रहा किसी से बात करने का मन नही कर रहा है सिर्फ बैठे है कुछ हो नही रहा है समय भी बीत नही रहा है धीरे धीरे समय निकल रहा है घड़ी ठीक से चल रही है या नही ? बस जल्दी से समय बीत जाए यह समय क्यों नहीं बीत रहा है?

यह बोरियत वाला मस्तिष्क है क्या आपको अपने विचारो में क्या कभी कुछ महसूस होता है इस मस्तिष्क को पहचानो अपने इस मस्तिष्क को देखो ये क्या करना चाहता है क्या कर रहा है? या फिर यह मस्तिष्क आपका कुछ देर में ही बोर होने का संदेश देता है या फिर लगातार किसी कार्य में लगने की कोशिश करता है।

हम सिर्फ समय बिताना चाहते है परन्तु यह नहीं देखना चाहते कि यह दिमाग क्या कहना चाहता है इस दिमाग को नहीं समझना चाहते बस इधर उधर उलझना चाहते है इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश नहीं करना चाहते

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सिर्फ ये मन

सिर्फ ये मन , बुद्धि भाग रहे है बाकी कुछ नही चाहे तुम बैठ जाओ एक बंद कमरे में फिर भी तुम्हारा तुम्हे दौड़ा कर ले जायेगा बाहर, जरा देखो तो सही खुद को तुम्हारी दौड़ बाहर से तो है ही नही, तुम्हारी दौड़ भीतर की है जिसे तुम नही देख रहे बस भाग रहे हो उन दौड़ते हुए लोगो को देखकर जो बस दौड़ रहे है उन्हे भी नही पता कहा जाना है और अब तुम भी भूल गए हो की तुम्हे कहां जाना था , तुम्हारी मंजिल क्या है, तुम्हारा ठिकाना कहां है बस तुम दौड़ रहे हो।

सिर्फ ये मन, बुद्धि चाहते हैं स्वतंत्रता,
कमरे में बैठे, विचारों का संग्रह किया,
लेकिन तुम्हारी दौड़ विचारों को नहीं रोक सकती,
बाहर जगती वास्तविकता, जिसे तुम्हें देखना है।

तुम्हारी दौड़ बाहर से है, देखो अपने अंतर को,
विचारों का मार्ग चुनो, दुनिया में निकलो,
धैर्य और संवेदनशीलता से यात्रा करो,
तुम्हे अपने सच्चे आप को पहचानना है।

जहां तुम्हारी इच्छाएं और सपने बहुतेरे,
उन्हें पूरा करने का अवसर ढूंढ़ो।
जब तक तुम नहीं निकलोगे दौड़ने के लिए,
तब तक तुम नहीं जान पाओगे अपनी सीमाएं।

बाहर जगती वास्तविकता तुम्हें पुकार रही है,
तुम्हारे सपनों को साकार करने के लिए।
अपनी क्षमताओं को पहचानो और उन्हें प्रगति में लाओ,
तुम्हारी दौड़ से जीवन को सजाओ और सार्थक बनाओ।

मन क्या है?

मन क्या है ? मन क्या चाहता है ? मन शरीर का एक अंग नही है, यह शरीर से अलग है,
मन हमेसा हम नए नए कार्यो उलझता है मन सिर्फ नए कार्य ही करने चाहता है, यह मन का स्वभाव है, यह मन की पृकृति है की यह सिर्फ नए की खोज में लगातार लगा रहे यह पुराने को भूल जाता है, छोड़ देता है हर दूसरे पल में कुछ ना कुछ नया करने की इच्छा इस मन में रहती है।

जिसकी वजह से हम कुछ ना कुछ कार्यो को करना चाहते है, और खाली बैठ नही पाते मन तो कभी इस दिमाग को व्यस्त रखता है। खाने, घूमने, खेलने, आदि कार्य करने या कुछ भी सोचने आदि के कार्यो में हमेसा उलझाए रखता है।

हम क्यों खाली खाली महसूस कर रहे है या करते है ? क्या हमारे पास कुछ नही है करने को ?
या हम कुछ अलग कुछ नया हम करना चाहते है।

हम क्यों अपने आपको खाली खाली देखते हैै ?

क्यों हमारा मस्तिष्क खाली खाली सा महसूस कर रहा है हमारा मन हमेसा नए कार्यो में नई चीज़ों की तरफ आकर्षित होता है, तथा शरीर पुराने की मांग करता है जो पिछले दिन किया था उसी कार्य को करना चाहता है परंतु मन नए कार्यो में लगाना चाहता है, ये सिर्फ कुछ स्थानों पर शांति चाहता है जैसे बीते हुए दिन में क्या हुआ था ? वही दुबारा चाहता है।

उसी को बार बार दोहराना चाहता है शरीर आलसी है, मन नित नए कार्यो की अग्रसर होता है, अर्थात यह मन नया चाहता है, इसलिए हमेसा हम एक छोर को छोड़ते है, तो दूसरे छोर की और भागते है, एक कार्य पूरा नही होता बस दूसरेे कार्य में लग जाना चाहते है, एक मिनट भी हम मन हमे खाली बैठने नही देता बस किसी ना किसी कार्य में लगातार लगाए रखता है।

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