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सुबह की चाय

जैसे ही हम सुबह उठे बस तभी बितर में ही हमे चाय मिल जाए तो उससे बढ़िया क्या हो सकता है यह तो आजकल हर किसी की इच्छा होती है की उसे बिस्तर में ही चाय मिल जाए ओर फिर वो बिस्तर से बाहर निकले क्युकी सुबह की चाय की बात ही कुछ ओर होती है, सुबह समय चाय की तलब तो ऐसी होती है, मानो बिना चाय दिन की शुरुआत ही न हो रही हो, लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा, ओर शरीर खुल जाएगा, सर्दियों में तो चाय का मिलन बिस्तर में ऐसे लगता है की कोई ख्वाब ही पूरा हो गया हो।

चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है।

मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।

चाय की तलब कुछ बढ़, कुछ घट रही है।

ये साली चाय की तलब मुझे लग रही है, क्या इसकी महक तुम तक भी पहुँच रही है।

या सिर्फ चाय की महक मुझे ही मदमस्त कर रही है,

चाय की चुस्की लिए जा रहा हूँ, मैं चाय अब पिए जा रहा हूँ

चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है।

की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।

कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना .. ….

चाय की चुस्की

चाय की चुस्की की तलब सुबह के समय तो ऐसी होती है,
मानो बिना चाय मेरे दिन की शुरुआत ही न हो रही हो।
लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा,
चाय की महक तुम तक भी पहुच रही है, यही बस बात होगी।

चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है,
मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।
चाय की चुस्की, चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है,
की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।

कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना,
चाय के बिना दिन की शुरुआत अधूरी सी महसूस होना।
चाय की तलब जैसे जीवन की एक आधारभूत आवश्यकता,
जो मन को शांति देकर दिल को बहुत सुकून देती है।

चाय की चुस्की लेने से लगता है दिल खुश हो जाता है,
कलम और कागज़ की जोड़ी बनती है, जब चाय की मिठास के साथ।
चाय की तलब इतनी है कि अक्सर शब्दों की कमी हो जाती है,
की सिर्फ एक चाय की मुलाक़ात से ही सब कुछ कह जाती है।