जैसे ही हम सुबह उठे बस तभी बितर में ही हमे चाय मिल जाए तो उससे बढ़िया क्या हो सकता है यह तो आजकल हर किसी की इच्छा होती है की उसे बिस्तर में ही चाय मिल जाए ओर फिर वो बिस्तर से बाहर निकले क्युकी सुबह की चाय की बात ही कुछ ओर होती है, सुबह समय चाय की तलब तो ऐसी होती है, मानो बिना चाय दिन की शुरुआत ही न हो रही हो, लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा, ओर शरीर खुल जाएगा, सर्दियों में तो चाय का मिलन बिस्तर में ऐसे लगता है की कोई ख्वाब ही पूरा हो गया हो।
चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है।
मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।
चाय की तलब कुछ बढ़, कुछ घट रही है।
ये साली चाय की तलब मुझे लग रही है, क्या इसकी महक तुम तक भी पहुँच रही है।
या सिर्फ चाय की महक मुझे ही मदमस्त कर रही है,
चाय की चुस्की लिए जा रहा हूँ, मैं चाय अब पिए जा रहा हूँ
चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है।
की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।
कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना .. ….