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दिल्ली की बस

मैं लगभग 3 साल बाद आज दिल्ली की बस से सफर कर रहा था, लेकिन आज बस में भीड़ को देखकर ऐसा लगा की बस पुरुषों के लिए तो रह ही नहीं गई, इन बसों में सिर्फ महिलाये ही सफर कर रही है, वो भी ऑफिस जाने के लिए नहीं सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने रिश्तेदारों व बाजार के लिए बस में सफर हो रहा है लेकिन जो महिलाये ऑफिस जा रही है वह इस योजना का सही ढंग से लाभ भी नहीं उठा पाती वो तो मेट्रो में जा रही या ऑटो में ही आना जाना कर रही है।

दिल्ली की बस का सफर भी कुछ ऐसा है मानो खचाखच भीड़ बस ओर कुछ नहीं केजरिवाल सरकार ने महिलाओ की टिकट मुफ़्त में कर रखी है अब पुरुष तो बस में दिख ही नहीं रहा, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है बेचारा पुरुष हर जगह महिलाये है बस, मुझे महिलाओ से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सरकारी बसों में पुरुषों को कोई स्थान ही न दे, एक तो सफर मुफ़्त ऊपर से सीट की जगह पर लिखा होता है की यह सीट महिलाओ की है लेकिन पुरक्षों की सीट कही भी रिजर्व नहीं होती, अब बेचारा पुरुष करे भी तो क्या करे।

कहाँ जाए जो चल चल कर थक जाता है वो किसी से बोल भी नहीं पाता की आज मैं बहुत थका हुआ हूँ मुझे सीट दे दो, वो बेचारा पुरुष कुछ रुपये बचाने की वजह से हर समय ऑटो में नहीं जाता, गाड़ी नहीं बुक करता भीड़ भाड़ भरी बस में लटकर भी चल देता है उन सरकारी बसों का घंटों तक इंतजार भी कर लेता है की ऑटो के पैसे बच जाएंगे, ज्यादा बस बदल लेगा तो ज्यादा पैसे लग जाएंगे इसलिए सीधे अपने रूट वाली बस का ही इंतजार वो करता है।

लेकिन महिलाये कितनी ही बस बदलकर चली जाती है, महिलाये तो बिना सोचे समझे ऑटो ओर गाड़ी भी कर के चलती है, क्युकी वो अपनी सहूलियत ज्यादा देखी है, उनको रिजर्व सीट तो हर जगह मिल ही जाती है, फिर चाहे उनकी सीट पर कोई बुजुर्ग भी बैठा हो वो उनको उठाकर खुद बैठ जाती इनको इसमे भी कोई शर्म नहीं आती।

क्या इस समय सरकारी बसे मुनाफे में चल रही है? जहां तक हमे लगता है की सरकारी बस घाटे में ही चल रही है क्युकी ज्यादातर संख्या तो महिलाये की होती है बस में जिनका किराया माफ है दिल्ली की सरकार की ओर से, ओर जो व्यक्ति चढ़ते है उनके पास होते है फिर सरकारी बस मुनाफे में कैसे हो पाएगी।

दिल्ली की मेट्रो का सफर

आज ऐसे ही निकल पड़ा उन अनजान राहों पर जहां शायद मुझे जाना नहीं था, बस आज ऐसे ही घर से निकल गया मेट्रो का लुफ़त लेने क्युकी काफी दिनों से बाहर नहीं जा रहा था।

मैं तो आज सोचा की चल निकलू यू कही,

कुछ वक्त गुजार आऊ खुद के संग,

कही खुद में तन्हा ना रह जाऊ ,

खुद से आज रूबरू तो हो आऊ

बस यू हम बाहर निकल कुछ तस्वीरे खींच लाए ओर द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक घूम आए, सफर कुछ खास लंबा नहीं था फिर भी हम लुफ़त उठा लाए , मेट्रो से बाहर भी नहीं निकले सफर को मेट्रो में ही पूरा कर आए , चड़े थे द्वारका मेट्रो से वापसी में नवादा से घर वापस आए , यदि द्वारका मोड पर ही उतरते तो फाइन लग जाता है।

ब्लू लाइन पर चलने वाली मेट्रो

द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक 9 स्टेशन कुल है, और यह ब्लू लाइन का रूट है, कुछ मेट्रो ट्रेन द्वारका तक खतम हो जाती है, ओर कुछ सीधी द्वारका सेक्टर 21 तक यदि आप द्वारका वाली मेट्रो में बैठो ओर आपको द्वारका सेक्टर 21 जाना है, या ढाँसा बस स्टैन्ड की और तो आपको दूसरी मेट्रो बदलनी होगी।

यू ही कही भी कभी निकलना आसान होता है क्युकी उसमे बहुत सर दिमाग नहीं लगाना होता बस खुद को बाहर निकल चल लेना ही ठीक है।

नहीं तो यू ही उलझे रहोगे की अब निकलूँगा, अब जाऊंगा घूमने, कल का प्लान बनाता हूँ, कल जाऊंगा अपने दोस्तों के साथ वो प्लान बस टाल मटोल में खत्म हो जाते है ओर वैसे भी एक वक्त आता है जब सभी दोस्त व्यस्त हो जाते है।

क्या तब भी प्लान बनाओगे या फिर यू ही खुद के साथ निकल चलोगे, निकल चलो यार कब तक यू ही बैठ खुद को जिंदगी के कामों में उलझते रहोगे।

क्या आप भी यू ही कही भी कैसे भी निकल पड़ते है? यदि हाँ तो आप भी अपने अनुभव शेयर करे।

नए नियम लागू

आज से नए नियम लागू हुए जानिए क्या है वो नियम जो आपको फॉलो करने होंगे, मेट्रो में सफर अब हुआ 50% और यात्रा को खड़े होकर तय करना अब दंडनीय अपराध होगा जिस पर जुर्माना लगाया जाएगा।

ऑटो, टैक्सी में सफर सिर्फ अब फिर से दो लोग ही कर पाएंगे।

बस में भी एक सीट पर एक व्यक्ति बैठेगा, मुह पर मास्क लगाना अनिवार्य नहीं तो होगा जुर्माना

दिल्ली की सभी बड़ी मार्केट अब ओड और इवन के आधार पर ही खुलेगी।

शर्तों के साथ अब दिल्ली में होगा सफर, सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सरकार ने लिया फैसला इन्ही नए नियम लागू होने के साथ होगा सब चालू।

चुनाव के बाद


चुनाव के बाद क्या होता है, आप सभी एक बात समझिए हम लोग क्या देखते है ? क्या पढ़ते है ? टीवी देखते है और अख़बार पढ़ते है आजकल तो क्या दिखाया जा रहा है और क्या पढ़ाया हा रहा है यह सबको पता है इसके साथ ही मोबाइल के द्वारा हम सोशल मीडिया पर जो समय बिताते है उसमे भी बहुत सारी बाते झूठी होती है और कुछ वॉट्सएप बाबा का ज्ञान अब किस पर विश्वास करे ओर किस पर नहीं यह हम सभी के लिए एक चुनौती भरा विषय है।

हम सभी लोग अपने अनुभव पर वोट दे रहे है जैसा हम लोगो के साथ हो रहा है उसी के आधार पर वोट जाता है जो सुनते है देखते है बस वही सब इसी आधार पर वोट दिया गया है यह बात स्पष्ट हो चुकी है।

दिल्ली वालो के बारे में बहुत कुछ लोग बोल रहे है लगातार कुछ ना कुछ लिखा जा रहा है दिल्ली वाले मुफ्तखोर हो गए है दो कौड़ी की बिजली पानी के लिए बिक गए है।

दिल्ली की जनता ने फ्री के लिए कोई वोट नहीं किया उन्होंने काम भी किया इस बात से आपको सहमत होना चाहिए हर बात में नकारना गलत बात है। और काम नहीं भी किए ऐसा भी है। उसके लिए मै दुबारा लिखूंगा की उन्होंने क्या किया है और क्या नहीं

यह बात बहुत गलत है जिस प्रकार से लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिए।

कौन किसको वोट देना चाहता है यह उसका मौलिक अधिकार है आप उसे उसका निर्णय लेने से नहीं रोक सकते

बहुत सारे विचार मंथन करते हुए लोगो ने अपना दिया है और इस बात को स्वीकार करना चाहिए

जीत अब किसी भी पार्टी की हुईं है इसका यह तात्पर्य नहीं है आपको देशद्रोही बोलने का अधिकार है दिल्ली देश की राजधानी है और यह अधिकार आपको बिल्कुल भी नहीं है कि आप अभद्र शब्दो का प्रयोग करे

अपने शब्दो पर नियंत्रण रखना अतिआवश्यक है बहुत जल्दी कुछ लोग अपना आपा खो देते है यदि आप स्वयं  विवेकी नहीं हो तो आप दूसरों को क्यों कोश रहे हो ??

खुद के विचार इतने सीमित दायरे में सिमट गए और आप इल्जाम दिल्ली की जनता पर लगा रहे है।

यह समय आत्ममंथन का है , देशमंथन, विचारमंथन का है दिल्ली मंथन का है अपने विचार ओर मत के लिए ही अपना नेता चुनने का अधिकार दिया है और उसके चलते ही दिल्ली का चुनाव तय हुआ है, अब आप इसमें घृणा के बीज ना बोए तो बेहतर है।

चुनाव के बाद सोचिए और समझिए।