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बस और मेट्रो

एक समय था जब नीली वाली प्राइवेट बस चला करती थी उसमे बहुत भीड़ होती थी और लोग लटक लटक जाते थे, ज्यादातर लोग गेट पर ही खड़े हो जाते थे आज जब मेट्रो चलने लगी है तब भी लोगों में वही आदत है, लोग गेट पर ही खड़े रहते है वहाँ से हटते ही नहीं है पता नहीं लोगों को क्या लगता है, की उन्हे वही खड़ा रहना है जैसे एकदम से कूदेंगे जैसे ही मेट्रो रुकेगी, चाहे मेट्रो में भीड़ हो या नहीं लेकिन उन लोगों को तो गेट पर ही खड़ा होना है, जैसे सारा आनंद उनको गेट पर ही मिलेगा, किसी को भीतर आने ओर बाहर जाने का रास्ता आसानी से नहीं मिल पाता है, ये लोग ऐसे अढ़ कर खड़े हो जाते है जैसे की अब जगह नहीं बची है किसी को प्रवेश नहीं होगा।

नीली बस और मेट्रो
courtesy of image alamy नीली बस

आजकल तो बस और मेट्रो के तो गेट बंद हो जाते है इसमे लटक भी नहीं सकते फिर भी यह लोग गेट पर खड़े होते है, पहले जो नीली वाली बसे चलती थी उन्मे ज़्यादार लोग बस की सीढ़ियों पर ही खड़े रहते थे, तब गेट नहीं बंद होते तो ज्यादातर लोग गेट पर ही लटक जाते थे चाहे भीड़ हो या नहीं फिर भी बसों में लटकने की आदत बनी हुई थी।

तो मुझे इन गेट पर खड़े होने वाले लोगों को देखकर वही दृश्य याद आता है जो आजसे 15 साल पहले  होता था, लोग उस समय एक बस के इंतजार में आधे घंटे तक खड़े रहते थे लेकिन आज इतनी जल्दी होती है, एक मेट्रो का इंतजार वो 2 मिनट नहीं कर पाते पता नहीं कितनी जल्दी है, अब लोगों को की उनसे इंतजार के 2 मिनट नहीं बीतते दिल्ली मेट्रो के कुछ स्टेशन जैसे राजीव चौक, कश्मीरी गेट स्टेशन पर तो लोग ऐसे धक्का मुक्की करते है जैसे दूसरी कोई मेट्रो ही नहीं आएगी।

मेट्रो का सफर बहुत आरामदायक हो चुका है पहले से बेहतर है सब कुछ बेहतर हो रहा है फिर भी इंसान परेशान सा लगता है, इतना आरामदायक जीवन हो चला है फिर भी कही फंस हुआ लग रहा है ये इंसान।

दिल्ली मेट्रो और बस
दिल्ली मेट्रो

आज से 10 साल पहले जब रात 9 बजे बस सर्विस नहीं थी या कम थी तब घंटे भर तक एक बस का इंतजार करना पड़ता था ओर वो भी बिल्कुल भरी हुई आती थी, लेकिन आज के समय में लगातार बस भी है ओर मेट्रो भी हर 2 मिनट बाद मेट्रो आ जाती है, रात 11 बजे तक तो मेट्रो चलती है कुछ स्टेशन के लिए 12 बजे तक की भी सर्विस है फिर भी लोग बेचैन हो जाते है।

समय के साथ सबकुछ बेहतर हो रहा है लेकिन क्या इंसान बेहतर हो पा रहा है इंसान उसी तरह से, उसी सोच के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा है उसमे कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।

सफर रोज मेट्रो का

सफर रोज मेट्रो का कुछ इस तरह से चल रहा है, जैसे जिंदगी का कुछ हिस्सा एक दूसरे हिस्से को मिल रहा है।

यात्रा रोज़ की, मेट्रो की रेलों में,
जीवन का टुकड़ा चल रहा है अधिकारों में।
यात्रा का हर स्थान, हर स्टेशन नया,
कुछ दूसरे हिस्से को सलाम कर जाता है।

जैसे सफर चलता है, जीवन भी चलता है,
हर किसी को अपना रास्ता ढूंढ़ना है।
मिलते हैं रास्ते, ना जाने कहाँ कहाँ,
दूसरे हिस्से को पाने का सब्र करता है।

धूप-छाँव, गाड़ी में आवाज़ों की बौछार,
जीवन की कठिनाइयों का कर रहा सामना यहां।
एक दूसरे को संभालते, संगठित ढंग से,
जिंदगी भी सीख रही है सहनशीलता यहां।

मेट्रो की रेलें, जीवन का प्रतीक हैं,
जोड़ती हैं अलग-अलग लोगों की भीड़ को।
प्यार और सदभावना से भरी यात्रा है यह,
जहां दूसरे हिस्से को जीने का मौका मिलता है।

सफर रोज मेट्रो का, एक बदलाव है,
जिंदगी का आदान-प्रदान यहां दिखाई देता है।
एक दूसरे से जुड़े रहने की शिक्षा देता,
ओर जीवन को सही दिशा में ले जाता है।

चलती रहे मेट्रो की यात्रा, बढ़ती रहे रेलें,
जीने का संघर्ष रहे सबके पास अवसर।
जब सफर के अंत में हम एक दूसरे को मिलें,
जिंदगी का सफर एक संगठित हिस्सा बन जाए संगीत।

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दिल्ली मेट्रो में शराब

दिल्ली मेट्रो में शराब की बोतल ले जाने पर मिली छूट , शराब पीने वाले लोगो के लिए यह खुशी की बात है, काफी लंबे समय से यह सवाल पूछा जा रहा था की दिल्ली मेट्रो में शराब ले जाना कब शुरू होगा, तो लो जी हो ही गया है , हम मान लेते है अधिकांश लोग ऐसी हरकते नहीं करेंगे की मेट्रो परिसर में शराब नहीं पियेंगे लेकिन उन कुछ लोगों का क्या जो कही भी शुरू हो जाते है।

जैसा की हम सभी जानते है मेट्रो ट्रेन में संगीत बजाना दंडनीय अपराध है परंतु फिर भी लोग तेज आवाज में गाना सुनते है, विडिओ देखते है, खान-पीना मना है परंतु फिर भी लोग खाते है, पीते है उनका क्या होगा? उन्हे आप रोक नहीं पा रहे है अब एक ओर नई मुसीबत आप ले आए है,

हो सकता है मेट्रो में आप सुबह , दिन ओर शाम को इन गतिविधियों पर रोक लगा सके परंतु उस समय का क्या जब बहुत काम यात्री होते है, उन जगहों का क्या जहां मेट्रो में कैमरा नहीं पहुच पाता है, क्या झट से पता चलेगा की यह व्यक्ति शराब का सेवन कर रहा है क्या आप तभी प्रकट हो जाएंगे? और इस हरकत को रोक सकेंगे ? कैसी होगी रोकथाम यह कुछ सवाल है, जिनके बारे में दिल्ली मेट्रो व सरकार को सोचना चाहिए आप गंदगी फैलाने की अनुमति दे रहे हो ओर फिर कह रहे हो की गंदगी करोगे तो आप पर कार्यवाही होगी।

आपको यह मेट्रो परिसर में शराब ले जाने की रोक सदा के लिए बरकरार ही रखना चाहिए।

अब एक यात्री अपने साथ शराब की 2 बोतल लेकर मेट्रो में यात्रा कर सकता है, जैसा की बताया जा रहा है मेट्रो में शराब पीकर यात्रा नहीं की जा सकती पिछले कई दिनों में जब मैं मेट्रो सवार होकर अपने घर की ओर जा रहा होता था तो मैंने कई यात्रियों को शराब के नशे में मेट्रो में जाते हुए देखा है क्या अब यह बढ़ नहीं जाएगा?

परंतु इससे मेट्रो को क्या फायदा होगा जानने वाली बात यह है, क्या मेट्रो में लोगो के आने जाने की संख्या में बढ़ोतरी होगी? या मेट्रो को किसी अन्य प्रकार का फायदा होगा यह बात समझ नहीं आई इतनी विडिओ आने के तुरंत बाद ही दिल्ली मेट्रो ने यह फैसला लिया

क्यों? क्या जरूरत थी

बहुत सारे लोगो को देखा गया मेट्रो के भीतर ही गुटका खाते व थूकते हुए जब मेट्रो यात्रा करता हुआ व्यक्ति गुटखा खाकर थूक सकता है तो उसी प्रकार कुछ व्यक्ति शराब की बॉटल को खोलकर पी सकते है , इसलिए इस शराब की बोतल को लाने लेजाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

हमारा समाज इस तरह से नपुंसक हो चुका है की व किसी प्रकार का विरोध नहीं करता इसलिए लोग मनमानी कर रहे है यदि हम आपत्ति या विरोध करे तो बहुत सारी चीज़ें कभी लागू ही ना हो।

मेट्रो में शराब पीने पर जुर्माना तो लगेगा और हो सकता है जेल की सजा भी मिले परंतु यह कानून पास ही क्यों करना क्यो पर्मिशन देनी ही है सोचने ओर समझने वाली बात तो यह है क्या दिल्ली मेट्रो भी शराब का प्रचार करना चाह रही है?

क्या यह नियम दिल्ली में आने जाने के लिए है या फिर दिल्ली-नोएडा-गुरुग्राम के लिए भी?

आज से आप नोएडा में भी एक बोतल सील पैक ले जा सकते है चाहे आप रोड से होकर जाए या फिर मेट्रो से लेकर जाए आप सिर्फ एक बोतल शराब की सील पैक वाली लेकर ही जा सकते है।

मेट्रो का सफर

मेट्रो का सफर आज कुछ जो इस तरह से शुरू किया वो मजेनटा लाइन की और था, इस रूट पर वसंत विहार तक अधिकतम वही स्टेशन आते है जो कंटेनमेंट जोन है यहाँ पर सभी लोगों को आने ओर जाने की अनुमति नहीं होती जो इधर रहता है या कोई कार्ये करता है उसीको आने जाने अनुमति है, यदि इधर आपको जाना है तो आपको valid permission चाहिए होती है, तभी आपको उस ज़ोन में जाने की अनुमति मिलती है। जो स्टेशन कन्टैन्मन्ट ज़ोन में आते है उनकी अनाउन्स्मेन्ट पहले ही मेट्रो में होती है जिससे आपको यह पता चलता है की आप बिना वजह इधर नहीं उतर कर घूम सकते तो, तो इस बात का अवश्य ध्यान रखे। हम शायद करना के दौरान इस रूट पर से कही गए थे तब कंटेनमैंट जोन के लिए अनाउंस हुआ तो हमे लगा बहुत बड़ा कंटेनमेंट जोन है लेकिन आज जब फिर से इधर गए तो इसका मतलब यह आम रास्ता नहीं है भाई साहब तो इधर आना जाना प्रतिबंधित है।

जैसा की आप इस बॉर्ड को देख रहे है उसमे मेट्रो ट्रेन के कोचेस में कितनी जगह भरी हुई है उसे प्रतिशत में दिखाया गया है। जिससे यह पता चलता है की कौनसे कोच में कितने प्रतिशत लोग बैठे है, ओर आपको जगह मिल सकती है या नहीं इसी उद्देश्य से यह बोर्ड लगे है, इसी बोर्ड को देखकर आप भी उस कोच में एंट्री करे ओर सीट पर बैठे यह जनकपुरी पश्चिम से बोटोनिकल की मेट्रो के मध्य का रास्ता है।

मेट्रो का सफर कुछ इस तरह था
मुनिरका मेट्रो स्टेशन

 

जनकपुरी से सदर छावनी तक एक लंबी टनल है जो सबसे लंबी टनल रूट है दिल्ली मेट्रो का यही मेट्रो बोतनिकल गार्डन तक कई बार टनल से होकर गुजरती है, जब टनल से बाहर आती मेट्रो तब मैं बादलों की तस्वीर ले लेता आज कुछ मनमोहक दृश्य आसमान में बन रहे थे बादल जैसे मेरा मन लूट रहे थे, मैं जब निकला था घर तब समय नीचे वाली तस्वीर दर्शा रहा हूँ, बादलों की ओट में सूरज छुपम छिपम खेलते है ये भी बता रहा हूँ।

समय
समय

आज सूरज चाचू बड़े अच्छे मूड में थे एसा लगा की वो छुपम छुपाई खेल रहे थे कभी बादलों की ओट में छिप रहे थे तो कभी उस ओट से बाहर निकल रहे थे, जैसे बादलों से बाहर आते तो अद्द्भुत दृश्य बादलों का दिख रहा था, कुछ कुछ प्रतीत हुआ इंद्रधनुष भी कही बन रहा था लेकिन ना जाने वो मेरी आँखों से कही दूर छिप रहा था।

बादल
बादल

बादलों के दृश्य को देख मैं मनमोहक हुए जा रहा था मानो मैं बादलों सा होने की दुआ मांग रहा था लेकिन ये सच कहाँ होने को जा रहा था जैसे जैसे मेट्रो स्टेशन पास आ रहा था , मैं अभी जमीन पर हूँ मैं आसमान से बादलों को मांग रहा था।

मेट्रो का सफर कुछ इस तरह था
बादल

आज मेट्रो का सफर इतना ही किया बाकी फिर दुबारा मिलेंगे

दिल्ली की मेट्रो का सफर

आज ऐसे ही निकल पड़ा उन अनजान राहों पर जहां शायद मुझे जाना नहीं था, बस आज ऐसे ही घर से निकल गया मेट्रो का लुफ़त लेने क्युकी काफी दिनों से बाहर नहीं जा रहा था।

मैं तो आज सोचा की चल निकलू यू कही,

कुछ वक्त गुजार आऊ खुद के संग,

कही खुद में तन्हा ना रह जाऊ ,

खुद से आज रूबरू तो हो आऊ

बस यू हम बाहर निकल कुछ तस्वीरे खींच लाए ओर द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक घूम आए, सफर कुछ खास लंबा नहीं था फिर भी हम लुफ़त उठा लाए , मेट्रो से बाहर भी नहीं निकले सफर को मेट्रो में ही पूरा कर आए , चड़े थे द्वारका मेट्रो से वापसी में नवादा से घर वापस आए , यदि द्वारका मोड पर ही उतरते तो फाइन लग जाता है।

ब्लू लाइन पर चलने वाली मेट्रो

द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक 9 स्टेशन कुल है, और यह ब्लू लाइन का रूट है, कुछ मेट्रो ट्रेन द्वारका तक खतम हो जाती है, ओर कुछ सीधी द्वारका सेक्टर 21 तक यदि आप द्वारका वाली मेट्रो में बैठो ओर आपको द्वारका सेक्टर 21 जाना है, या ढाँसा बस स्टैन्ड की और तो आपको दूसरी मेट्रो बदलनी होगी।

यू ही कही भी कभी निकलना आसान होता है क्युकी उसमे बहुत सर दिमाग नहीं लगाना होता बस खुद को बाहर निकल चल लेना ही ठीक है।

नहीं तो यू ही उलझे रहोगे की अब निकलूँगा, अब जाऊंगा घूमने, कल का प्लान बनाता हूँ, कल जाऊंगा अपने दोस्तों के साथ वो प्लान बस टाल मटोल में खत्म हो जाते है ओर वैसे भी एक वक्त आता है जब सभी दोस्त व्यस्त हो जाते है।

क्या तब भी प्लान बनाओगे या फिर यू ही खुद के साथ निकल चलोगे, निकल चलो यार कब तक यू ही बैठ खुद को जिंदगी के कामों में उलझते रहोगे।

क्या आप भी यू ही कही भी कैसे भी निकल पड़ते है? यदि हाँ तो आप भी अपने अनुभव शेयर करे।

बस ओर मेट्रो

बस ओर मेट्रो

एक समय था जब नीली वाली प्राइवेट बस चला करती थी, उसमे बहुत भीड़ होती थी और लोग लटक लटक जाते थे, ज्यादातर लोग गेट पर ही खड़े हो जाते थे, आज जब मेट्रो चलने लगी है तब भी लोगों में वही आदत है लोग गेट पर ही खड़े रहते है, वहाँ से हटते ही नहीं है।

पता नहीं लोगों को क्या लगता है की उन्हे वही खड़ा रहना है, जैसे एकदम से कूदेंगे जैसे ही मेट्रो रुकेगी, चाहे मेट्रो में भीड़ हो या नहीं, लेकिन उन लोगों को तो गेट पर ही खड़ा होना है जैसे सारा आनंद उनको गेट पर ही मिलेगा, किसी को भीतर आने ओर बाहर जाने का रास्ता आसानी से नहीं मिल पाता है, ये लोग ऐसे अढ़ कर खड़े हो जाते है, जैसे की अब जगह नहीं बची है किसी को प्रवेश नहीं होगा।

मेट्रो के तो गेट बंद हो जाते है, इसमे लटक भी नहीं सकते फिर भी यह लोग गेट पर खड़े होते है, पहले जो नीली वाली बसे चलती थी, उन्मे ज़्यादार लोग बस की सीढ़ियों पर ही खड़े रहते थे।

तो मुझे इन गेट पर खड़े होने वाले लोगों को देखकर वही दृश्य याद आता है, जो आजसे 15 साल पहले  होता था, लोग उस समय एक बस के इंतजार में आधे घंटे तक खड़े रहते थे, लेकिन आज इतनी जल्दी होती है, एक मेट्रो का इंतजार वो 2 मिनट नहीं कर पाते पता नहीं कितनी जल्दी है।

अब लोगों को की उनसे इंतजार के 2 मिनट नहीं बीतते दिल्ली मेट्रो के कुछ स्टेशन जैसे राजीव चौक, कश्मीरी गेट, स्टेशन पर तो लोग ऐसे धक्का मुक्की करते है, ओर उसके बाद जैसे की दूसरी कोई मेट्रो तो ही नहीं आएगी इस तरह से वो उसमे धक्का मुक्की करने लग जाते है।

मेट्रो का सफर बहुत आरामदायक हो चुका है, पहले से बेहतर है सब कुछ बेहतर हो रहा है फिर भी इंसान परेशान सा लगता है, इतना आरामदायक जीवन हो चला है, फिर भी कही फंस हुआ लग रहा है ये इंसान..

आज से 10 साल पहले जब रात 9 बजे बस सर्विस नहीं थी या कम थी तब घंटे भर तक एक बस का इंतजार करना पड़ता था ओर वो भी बिल्कुल भरी हुई आती थी, लेकिन आज के समय में लगातार बस भी है ओर मेट्रो भी हर 2 मिनट बाद मेट्रो आ जाती है रात 11 बजे तक तो मेट्रो चलती है, कुछ स्टेशन के लिए 12 बजे तक की भी सर्विस है फिर भी लोग बेचैन हो जाते है।

समय के साथ सबकुछ बेहतर हो रहा है, लेकिन क्या इंसान बेहतर हो पा रहा है इंसान उसी तरह से, उसी सोच के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा है उसमे कोई बदलाव नहीं दिख रहा है!

कौन है ये लोग ?

कहा से आते है ये लोग ? कौन है ये लोग जो रोज उटट पटाँग हरकते करते है लेकिन फिर भी इनको कुछ समझ नहीं आता बस ये तो अपनी फिकर करते है दुनिया को पागल समझते है,

मेट्रो में कुछ लोग सफर करते है खाते है पीते ओर अपना कूड़ा कचरा वही छोड़ जाते है साफ सफाई का ध्यान नहीं रखते, उन्हे अपनी जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं है क्या वो अपने घरों में भी ऐसा ही करते है नया जाने कौन सी शिक्षा वो ग्रहण कर रहे है अपनी जिम्मेदारियों से दूर भाग रहे है

क्या ये लोग जेन्डर स्पिसिफिक या फिर महिलाये और पुरुष दोनों को कहा जा सकता है ?

आज शुक्रवार दिनांक 16-12-2022 जब में दुकान से आ रहा था तो मेट्रो भारी हुई थी ओर में आज जो मेट्रो वृद्ध वाली सीट रिजर्व होती है उस जगह जाकर खड़ा हो गया तभी मेरे कानों ने कुछ बाते सुनी

आज मैंने दो बुजुर्ग व्यक्तियों को आपस में बाते करते हुए सुन की लड़किया हमारी सीट पर जाती फिर उठने का नाम ही नहीं लेती और यदि हम महिलाओ की सीट की बैठ पर जाते है तो तुरंत ही उठा देती है फिर उम्र का लिहाज भी नहीं करती है नया जाने ये कैसा समय आ गया है बिल्कुल भी शर्म नहीं बची है आजकल के बच्चों में की कोई बुजुर्ग उनके सामने खड़ा हुआ है ओर वो अपनी सीट छोड़कर उठते नहीं साथ ही यदि उनकी सीट पर बैठ जाओ तो वह वह से उठा देती है

कौन है ये लोग ? सवाल पूछिए इन लोगों की ऐसा क्यू करते हो भाई

आज कल लोगों में एक नई परतिस्पर्धा भी देखने को मिलती है हॉर्न बजने की लोग हॉर्न बहुत जोर जोर से बजाते  है और नया जाने कैसे कैसे हॉर्न अपनी गाड़ियों में लगवाते है, बिना सोचे समझे ये लोग सिर्फ हॉर्न बजते है बिना मतलब के जैसे की कोई इनके बस सामने नया आए इनको पूरा रास्ता खाली मिले भाई साहब गाड़ी रोड पर चल रहे हो आसमान में नहीं लेकिन अब ये बात इनको कौन समझाए और कैसे ?

न जाने कौन है ये लोग जो गॅलिओ को हाइवे और हाइवे को गली बना लेते है स्कूटर ओर बाइक वाले लोग गली में ऐसे गाड़ी चलते है जैसे हाइवे पर चल रहे हो और हाइवे या रोड पर पहुचते ही ये साइड में चलाने लग जाते है तब इनकी हक्कड़ी सब खतम हो जाती है फेर भूल जाते है गाड़ी चलाना ?

कौन है वो लोग ?

हम सभी में से है वो कुछ लोग जो ऐसी हरकते है और बिना सोचे समझे ये सारी हरकते करते ही जाते है!

नए नियम लागू

आज से नए नियम लागू हुए जानिए क्या है वो नियम जो आपको फॉलो करने होंगे, मेट्रो में सफर अब हुआ 50% और यात्रा को खड़े होकर तय करना अब दंडनीय अपराध होगा जिस पर जुर्माना लगाया जाएगा।

ऑटो, टैक्सी में सफर सिर्फ अब फिर से दो लोग ही कर पाएंगे।

बस में भी एक सीट पर एक व्यक्ति बैठेगा, मुह पर मास्क लगाना अनिवार्य नहीं तो होगा जुर्माना

दिल्ली की सभी बड़ी मार्केट अब ओड और इवन के आधार पर ही खुलेगी।

शर्तों के साथ अब दिल्ली में होगा सफर, सुरक्षा का ध्यान रखते हुए सरकार ने लिया फैसला इन्ही नए नियम लागू होने के साथ होगा सब चालू।

राजधानी दिल्ली

राजधानी दिल्ली के बारे कुछ बाते

दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है। भारत के चार महानगरों में से एक है। और एक ऐतिहासिक शहर भी है। दिल्ली महानगर में मुगल काल की भी कई विश्व विख्यात विरासते आज भी मौजूद है। इसी दिल्ली में 16वीं शताब्दी मे तब्दील हुई जामा मस्जिद लाल किला आज भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वही पास ही में चांदनी चौक जैसा एक भव्य बाजार मौजूद है जिसमें कि तरह-तरह के व्यंजन पकवान वह हर तरह की खरीदारी के सामान उपलब्ध हो जाता है।    

    दिल्ली को तीन और से हरियाणा की सीमा लगती है, जबकि इस के पूर्वी छोर पर उत्तर प्रदेश की सीमा लगती है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र लगभग 573 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली शहर की आबादी 11 मिलियन है जोकि मुंबई के बाद भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है।       

                                     अगर दिल्ली शहर की प्राचीनता की बात की जाए तो 10 वीं शताब्दी में यहां पर तोमर राजाओं का राज्य था। उन्हीं तोमर राजाओं का एक वंशज पृथ्वीराज चौहान था जिसने कि दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। और वही पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम हिंदू शासक था। उस पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली में लगातार तुर्क और मुगलों का आक्रमण होने लगा। जिसमें कि पृथ्वीराज चौहान के तुरंत बाद गुलाम राजवंश आया उसके बाद खिलजी, तुगलक , सैयद और लोरी राजवंश आए। यह सभी मुस्लिम शासक थे। इसके बाद अंत में पानीपत की लड़ाई में बाबर ने लोधी व राजवंश को हराकर दिल्ली में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी। इसी मुगलिया सल्तनत में बाबर के बाद बाबर का वंशज हुमायूं आया जिसने की दिनपनाह महल जो कि आज के समय में पुराने किले के नाम से मशहूर है का निर्माण करवाया। और हुमायूं की मृत्यु भी उसी दिन प्रणाम महल में सीढ़ियों से गिरकर हुई थी।     

                अनेक दर्शनीय स्थल जैसे की कुतुब मीनार, सिकंदर लोदी का मकबरा, इंडिया गेट आदि कई विरासत ए आज भी मौजूद है।  

राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर
राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर

   अगर हम नई दिल्ली की बात करें तो नई दिल्ली को अंग्रेजों ने सन 1911 में अपनी राजधानी बनाया। अंग्रेजों ने भी दिल्ली में कई भव्य इमारतों का निर्माण करवाया। आज इतना भव्य इंडिया गेट हम देखते हैं असल में यह प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विरासत के रूप में तैयार किया गया वह उन सैनिकों के नाम आज भी इंडिया गेट पर लिखे हुए हैं। उसके अलावा राष्ट्रपति भवन विधान सभा वह कनॉट प्लेस भी अंग्रेजों के द्वारा ही बसाई गई विरासत है।    

          आध्यात्मिक तौर पर भी दिल्ली शहर में काफी पुरानी विरासत ए रही है। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया भी इसी दिल्ली में रहे हैं जिन्होंने दिल्ली में 15 राजाओं का शासन देखा और उन्हीं के शिष्य अमीर खुसरो जोकि तबले के अविष्कारक और खड़ी बोली के जनक भी हैं उन्होंने भी 10 राजाओं का शासन देखा वह उन 10 राजाओं के दरबार में रहे। उसके अलावा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार भी हमें महरौली क्षेत्र में देखने को मिल जाएगी राजा कुतुबुद्दीन ने इन्हीं के नाम पर कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।

Written by Pritam Mundotiya

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चुनाव के बाद


चुनाव के बाद क्या होता है, आप सभी एक बात समझिए हम लोग क्या देखते है ? क्या पढ़ते है ? टीवी देखते है और अख़बार पढ़ते है आजकल तो क्या दिखाया जा रहा है और क्या पढ़ाया हा रहा है यह सबको पता है इसके साथ ही मोबाइल के द्वारा हम सोशल मीडिया पर जो समय बिताते है उसमे भी बहुत सारी बाते झूठी होती है और कुछ वॉट्सएप बाबा का ज्ञान अब किस पर विश्वास करे ओर किस पर नहीं यह हम सभी के लिए एक चुनौती भरा विषय है।

हम सभी लोग अपने अनुभव पर वोट दे रहे है जैसा हम लोगो के साथ हो रहा है उसी के आधार पर वोट जाता है जो सुनते है देखते है बस वही सब इसी आधार पर वोट दिया गया है यह बात स्पष्ट हो चुकी है।

दिल्ली वालो के बारे में बहुत कुछ लोग बोल रहे है लगातार कुछ ना कुछ लिखा जा रहा है दिल्ली वाले मुफ्तखोर हो गए है दो कौड़ी की बिजली पानी के लिए बिक गए है।

दिल्ली की जनता ने फ्री के लिए कोई वोट नहीं किया उन्होंने काम भी किया इस बात से आपको सहमत होना चाहिए हर बात में नकारना गलत बात है। और काम नहीं भी किए ऐसा भी है। उसके लिए मै दुबारा लिखूंगा की उन्होंने क्या किया है और क्या नहीं

यह बात बहुत गलत है जिस प्रकार से लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिए।

कौन किसको वोट देना चाहता है यह उसका मौलिक अधिकार है आप उसे उसका निर्णय लेने से नहीं रोक सकते

बहुत सारे विचार मंथन करते हुए लोगो ने अपना दिया है और इस बात को स्वीकार करना चाहिए

जीत अब किसी भी पार्टी की हुईं है इसका यह तात्पर्य नहीं है आपको देशद्रोही बोलने का अधिकार है दिल्ली देश की राजधानी है और यह अधिकार आपको बिल्कुल भी नहीं है कि आप अभद्र शब्दो का प्रयोग करे

अपने शब्दो पर नियंत्रण रखना अतिआवश्यक है बहुत जल्दी कुछ लोग अपना आपा खो देते है यदि आप स्वयं  विवेकी नहीं हो तो आप दूसरों को क्यों कोश रहे हो ??

खुद के विचार इतने सीमित दायरे में सिमट गए और आप इल्जाम दिल्ली की जनता पर लगा रहे है।

यह समय आत्ममंथन का है , देशमंथन, विचारमंथन का है दिल्ली मंथन का है अपने विचार ओर मत के लिए ही अपना नेता चुनने का अधिकार दिया है और उसके चलते ही दिल्ली का चुनाव तय हुआ है, अब आप इसमें घृणा के बीज ना बोए तो बेहतर है।

चुनाव के बाद सोचिए और समझिए।