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धूप और ठंड

धूप और ठंड का मज़ा घर से बाहर की यह खिलखिलाती धूप ओर भीतर कमरे की ठंड दोनों ही बहुत मजेदार है, जब बाहर जाते है तो मन नहीं करता धूप से घर वापस जाने का ओर जब भीतर होते है तब बाहर निकलने का मन नहीं होता बस लगता है कंबल में यू ही दुबककर बैठे रहे ओर आलस से भरे रहे।

उस आलस में भी जीवन का आनंद आने लगता है, लगता है कुछ काम नहीं हो बस आराम ही आराम हो, यही बैठ सारे सुख है बाहर क्यू जाना इस ठंड में लेकिन बाहर निकल देखो तो सूरज भी तुमसे कहता है की बैठ यह मैं तेरे शरीर के तापमान को ठीक कर दू, तू बस बैठ जा चाहे खड़ा हो जा कुछ देर यही, सर्दी की धूप भी ऐसी लगती मानो गर्मी में तुम ठंडी ठंडी आइसक्रीम खा रहे हो।

बाहर की उस खिलखिलाती धूप को देख ऐसा लगता है की बस इसी धूप के साथ वक्त गुजार लू, भीतर आकार तो सर्दी लगती है, समय अभी 11:45 का दोपहर होने लगी थी, सर्दी की धूप तो बहुत ही अच्छी लगने लगती है, धूप और ठंड का मज़ा यह दोनों एकसाथ सर्दी में ही मिलते है, गर्मी में इन दोनों का आनंद नहीं अछूता ही रहता है।

सर्दी में शरीर तो ठंडा ठंडा हो गया है, जैसे सर्दी में शरीर पूरी तरह अकड़ ही गया हो, घर में तो जैसे सीलन सी आई हुई हो, घर की चार दिवारे एकदम ठंडी बर्फ सी हो गई है, घर में जब होते है तो लगता है की रजाई औढकर बस बैठे रहो, ओर रजाई से बाहर ही नहीं निकलो लेकिन बाहर की धूप देख कर ऐसा लगता है की अब भीतर ना जाऊ यही खड़ा रहु या फिर बस चारपाई बिछा कर लेट जाऊ अब तो यही एक मन में चलता है।

शरीर भी गजब की चीज है बहुत आलस ओर आराम चाहता है, कभी कुछ खास मेहनत नहीं करना चाहता कठिन परिस्थितियों का सामना भी नहीं करना चाहता, बस यू ही आरामदायक जिंदगी को जीना चाहता है, लेकिन यदि इसी तरह से आराम चाहेगा तो कभी मजबूत नहीं बन पाएगा इसलिए जब सर्दी ओर गर्मी इन दोनों मौसम का आनंद लेना चाहिए, इस शरीर को ठंड की भी आदत हो ओर गर्मी की भी आदत होनी चाहिए।