मैं घूमता हूँ दिन भर , दिन भर ढूँढता भी हूँ मैं
खुद को ही ना जाने कहाँ कहाँ ढूँढता हूँ मैं
कहाँ मिलूँगा-कहाँ मिलूँगा
खुद से बस
यही एक सवाल है जो
मैं खुद से बार बार पूछता हूँ
क्या मैं खुद को ढूंढ पाऊँगा
खुद के सवालों से ही मैं जूझ रहा हूँ
खुद से ही बस यही एक सवाल पूछ रहा हूँ
ढूँडु खुद को कैसे यह एक सवाल कर रहा हूँ
कहाँ कहाँ ढूढू खुद को
खुद से
बस यही एक सवाल है जो मैं खुद से कर रहा हूँ
जवाब तो नहीं पता मुझे इसका कब मिलेगा
ये मुझको नहीं खबर है बस लापता हूं, इस दुनिया की भीड़ में
निकला हूँ उस ठिकाने को ढूँढने जिसका पता नहीं मालूम मुझे