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भगवांथ केसरी

भगवांथ केसरी में नंदमुरी बालाकृष्ण, श्रीलीला, काजल अग्रवाल और अर्जुन रामपाल जैसे सितारों वाली फिल्म अक्टूबर में रिलीज हुई थी और जैसे ही फिल्म रिलीज हुई हर तरफ इसी के चर्चे होने लगे. इसी का असर था कि कई बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म इस फिल्म को खरीदने की होड़ में थे. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर फिल्म किस ओटीटी प्लेटफॉर्म ने भगवंत केसरी के राइट्स खरीदे हैं तो आपको बता दें कि अमेजन प्राइम वीडियो पर ये फिल्म रिलीज हो गई है.

सिनेमाघरों में कुछ ऐसी फिल्में भी रिलीज होती हैं, जिन्हें देखने के लिए सिेमाघरों के बाहर दर्शकों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है. भले ही ये फिल्में कम बजट में बनी हों, लेकिन इनकी कहानी इतनी जबरदस्त होती है कि कोई भी खुद को ये फिल्में देखने से रोक नहीं पाता. पिछले महीने ऐसी ही एक फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी, जिसे देखने वालों की सिनेमाघर में भीड़ लग गई. इस फिल्म की सफलता को देखते हुए अब फिल्म के मेकर्स इसे ओटीटी पर रिलीज करने की तैयारी में जुट गए हैं. ये फिल्म है ‘भगवंत केसरी’, जो ‘गणपत’ और ‘टाइगर नागेश्वर राव’ के साथ सिनेमाघरों में रिलीज हुई और दोनों ही फिल्मों को जबरदस्त पटखनी देते हुए कमाई के मामले में काफी आगे निकल गई.

भगवांथ केसरी फैंस लंबे समय से फिल्म के ओटीटी पर रिलीज होने का इंतजार कर रहे थे, जो अब खत्म हो गया है. नटसिंह्मा नंदमुरी बालकृष्ण और श्री लीला की फिल्म के राइट्स ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम ने खरीद लिए हैं. यानी अब आप ये फिल्म अमेजन प्राइम पर आसानी से देख सकेंगे. फिल्म 24 नवंबर को ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की जा चुकी है, अब इसका हिन्दी वर्जन अमेज़न उपलब्ध है, फिल्म बहुत ही शानदार है। फिल्म की कहानी में दम है,

नंदा बालकृष्ण मूरी अपनी बेहतरीन ऐक्टिंग के लिया बहुत ही विख्यात है, इनका अपना ही एक अलग अंदाज है, इनके डाइअलॉग दर्शकों को बहुत लुभाते है, गुंडे तो कांपने लगते है इनको देखकर फिल्मों में जब ये बोलते है सब चुप हो जाते ओर जब मारते है तो बचते नहीं मार ही जाते है।

भीड़ तंत्र का हिस्सा

क्या आप भी इस भीड़ तंत्र का हिस्सा है? जो सोचते है ऐसे ही जीना चाहिए ओर मर जाना चाहिए बिना कुछ किये बस घर से आफिस या दुकान यही सब में बीत जाती है, जिंदगी और कुछ नही कर पाते खुद को भी हम खो बैठते  शादी करना बच्चे पैदा करना बस यही एक जीवन है।

मसक्कत भरी सी लगती है क्या जिंदगी? या फिर कुछ करने की इच्छा होती है, या जो इच्छा होती है उसको दबा कर मार दिया और कुचल दिया गया है, कही अब कोई ठिकाना नही मिलने वाला उन्ह इच्छाओ को जो तुमने दबा दी है वो इच्छा अब इच्छा नही है ऐसा लगता है।

क्या आप भी भीड़ तंत्र के शिकार है ? क्या आप भी उसी भीड़ में चल रहे जिसमे लाखो करोड़ो लोग भी है जिसका  नाम समाज का दे दिया गया है परंतु वास्तविकता कुछ और ही है जहां आपको मत देने का अधिकार है परंतु खुद की एक अलग सोच रखने का कोई अधिकार नही है,
क्या ऐसा सच में है ??

मैं भी फ़िल्म और क्रिकेट खेल प्रेम हूं परंतु अपने विचारो को पूर्णतया जानता हूं और समझ सकता हूं की मैं क्यों? क्योंकि कुछ समझाने के लिए समझना बहुत जरूरी है फिल्में जो हमे सर्फ और सिर्फ चार दिवारी और प्रेम, और इस जीवन के जो किस्से हो रहे है बस वही बता रही है।

जिसके अलावा कुछ भी नही जैसे की आत्ममंथन कैसे करे या अपने जीवन को और बेहतर कैसे बनाये या खुद को कैसे जाने इन विषयो के बारे में कोई फ़िल्म जगत का प्राणी नही बताता सिर्फ अपनी मन की सीमाओं ओर आप बीती तथा जो आज के समय में हो रही है या हो सकने वाली घटनाओ के बारे ही एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है इसके अलावा कुछ भी नही।

आज कल सिर्फ लोगो के मन में शादी करलो और अपना जीवन चक्र चलाओ बस इन्हें यही सिखाया जा रहा है जो बिल्कुल ही जीवन के विपरीत एक स्तिथि लगती है क्योंकि आपका उत्थान होना बहुत काम हो जाता है जब आप एक वैवाहिक जीवन जीने की और अग्रसर होते है।