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जानवर

जानवर तो हम सभी के भीतर ही छुपा हुआ है उस जानवर का सिर्फ बदलाव करना होता है, हम बहुत बार उस जानवर की तरह हरकते करते है, किसी को मारना, बिना वजह ही लड़ाई करना, बिना वजह किसी पर गुस्सा करना यह सब मानवीय स्वभाव नही है, मानव तो शांत सरल स्वभाव का होना चाहिए था, लेकिन जानवर जिसे समझ नहीं है की क्या सही है क्या गलत है, बुद्धि का अभाव है जिसके कारण वह उन कार्यों को करता है जो उसे जानवर प्रवती की ओर बढ़त है।

मानव तो शांत सरल स्वभाव का है मानव को शांति चाहिए उसे अशांति नही उसे जानवरो की तरह शारीरिक संबंधो में नही लिप्त होना उसे तो संभोग से समाधि की ओर अगसर होना है। उसका जीवन संभोग में भोग को नही ढूंढना बल्कि उस भोग से निकलकर समाधि की ओर जाना है।

उसे स्त्री के शरीर पर शासन नही करना है उसे स्त्री के साथ संभोग कर पवित्र आत्मा को इस धरती पर उतारना है। जानवर जैसी मानसिकता वाले जीवों को पैदा नहीं करना बल्कि मानव को जन्म देना है उच्च विचारों वालों जीवों को जन्म देना है, यदि हमारी मानसिकता जानवरो जैसी होगी तो हमारे वीर्य से उत्पन्न संताने भी उसी तरह को होगी इसलिए हमे अपने विचारो को शुद्ध रखना है, जो जब संभोग किया जाए तो अपने विचारो में संयम रखना है।

जिस प्रकार से सेक्स को इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है, उससे समाज को ऐसी मानसिक स्थिति दी जा रही है जिससे वह भ्रष्ट हो, दुष्ट प्रवृत्ति का बने, उसके विचार गंदे हो, जिसका आचरण ही शुद्ध ना हो, ऐसे लोग कैसे सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे, सेंसर बोर्ड ए सर्टिफिकेट देता है लेकिन क्या सभी लोग सिनामाघरो में ही फिल्म देखते है, आजकल टेलीग्राम , यूट्यूब ऑनलाइन पर सभी पायरेसी के द्वारा फिल्म आ जाती है, फिर कहां तक आप इन्हे देखने से रोकने पाएंगे इससे ज्यादा अच्छा यही होगा की इस प्रकार की फिल्मों पर रोक लगे और न बने तभी समाज एक अलग दिशा में चल पाएगा, ऐसा नहीं है की लोग फिल्मों से प्रभावित नही होते लोग प्रभावित होते है।

आजकल की युवा पीढ़ी बहुत प्रभावित होती है इस प्रकार की फिल्मों से जब कबीर सिंह आई थी तब मैने कनाट प्लेस में एक लड़के को बोर्ड हाथ में लेते हुए देखा था, जिस पर लिखा था क्या आप मेरे होंठों पर चुम्बन कर सकते है, में भी उत्सुक हूं चुम्बन के लिए और कई लड़कियों ने उस लड़कों को चुंबन भी किया ये बिल्कुल शर्म से सर झुका देनी वाली बात है, हमारे समाज के लिए हम उस समाज का निर्माण कर रहे है जो प्रभावित है, हमारा खुद का कोई व्यवहार नही है , हमारी कोई शिक्षा नही है।

क्रिकेट

क्रिकेट पूरी दुनिया में इतना लोकप्रिय क्यू है ? यह खेल सिर्फ खेल नहीं है, इस खेल को देखने में रुचि तो बढ़ती ही है साथ ही यह खेल आपको बहुत कुछ सिखाता है, आपके जीने के नजरिया को बदल देता है, आपके भीतर कुछ कर गुजरने की इच्छा को प्रबल करता है, आपको हिम्मत देता है।

कभी न हार मानने जैसी सोची बढ़ावा देता है।

जैसा की कहा जाता है क्रिकेट अनिश्चित घटनाओ का खेल है कब हो जिंदगी में ओर क्रिकेट ये किसी को नहीं पता इसलिए आखरी बाल तक मैच का रुख बादल सकता है, किसकी जीत किसकी हार ये कोई नहीं कह सकता बाजी कभी भी पलट सकती है। यही आपकी जिंदगी भी आपको सिखाती है।

इस खेल पूरी टीम एक तालमेल के साथ चलती है अकेला कोई नहीं जीत नहीं सकता उसने इतने रन बना दिए जिसकी वजह से हम जीत गए , परंतु बोलर ने गेंद भी डाली है तभी उतने रन बने है, फील्ड का योगदान, जो आपके साथ रन लेने के लिए दौड़ रहा है उसका योगदान हर किसी का योगदान होता है आपकी सफलता के पीछे आप अकेले भी बहुत अच्छे है लेकिन उन सभी के साथ आप बहुत अच्छे बन गए है तभी आप यहाँ तक पहुच पा रहे है, ओर इस बात को आप ना भूले

जो खेल में सफल नहीं हो पाते ओर आपकी टीम के साथ होते है आपको योगदान देते है लेकिन उनका साथ भी बहुत जरूरी होता है। सबका साथ ही आपकी सफलता है।

इस खेल में आप की हार के साथ ओर भी बहुत लोग हारते है सिर्फ आप नहीं हारते आप एक टीम होकर हारते है, आपको पूरा देश समर्थन करता है, बहुत सारे को तो हम लोग जानते भी नहीं है, ओर उन खेलों को हम लोग तवज्जो भी नहीं देते है जिस खेल को हम आदर सम्मान दे रहे है लोगों की भावना इस खेल के साथ जुड़ी हुई है,

क्या करता हूँ मैं

क्या करता हूँ मैं दिन भर ? वैसे तो मैं कुछ नहीं बस अगर सच बताऊ तो सिर्फ लिखने की कोशिश करता हूँ, ओर जो मन में आता है वही अब लिखता हूँ, चाहे मैंने कितना ही सोच रखा हो दिमाग में लेकिन वो एक दम शब्दों को पन्नों पर नहीं उतार पाता है।

इसलिए घंटों बैठ जाता हूँ खुद के साथ अकेले में ताकि मैं कुछ कुछ लिखू जो विचार आ रहे है उन शब्दों में उतार सकु, बस यही एक वो जरिया है , जिसकी वजह से मुझे बहुत शांति मिलती है , लगता है भीतर बहुत कुछ भरा हुआ जिसे बाहर निकाल देना है।

इसलिए मैं अपने लैपटॉप के सामने बैठ जाता हूँ ओर गूगल कीप जिसमे मैं लिखता हूँ, उसको खोल लेता हूँ, जैसे ही कोई विचार मेरे मन में आता है मैं उसे लिख लेता हूँ, यही मैं पहले भी करता था, तब मैं अपनी छोटी सी नोटबुक ओर पेन लेकर बैठ जाता था।

किस तरह से मैं लिखता था उस समय: अपने मस्तिष्क के विचारों पर गौर किया करता था की मेरे दिमाग में चल क्या रहा है? मैं सोच क्या रहा हूँ? असल मैं नहीं, मेरा दिमाग सोचा करता था बस उस दिमाग को मैं देखता था।

मैं आपको बताता हूँ, वो शुरुआत कैसे हुई जब मुझे घंटों बैठना पड़ता था, सिर्फ एक विचार के लिए , सिर्फ कुछ शब्दों के लिए की मैं लिख पाउ उन विचारों को पन्नों पर उतार मैं सकु बस इसलिए तब भी घंटों कॉफी होम में बैठता था। क्युकी एक एक विचार बहुत देर में आता था।

वो विचार जो ब्रह्मांड से आते थे , जो मुझे प्रकृति से जोड़ते थे , एक संबंध स्थापित करते थे , उन शब्दों को मैं सुनता ओर लिखता था , मुझे कुछ नहीं पता बस मैं लिख लेता था, जैसे मैं सवाल पूछ रहा हूँ ओर मेरे जवाब मुझे मिल जाते थे , कुछ बस सवाल ही बनकर भी रह जाते थे की इनका जवाब कुछ समय बाद मिलेगा अभी नहीं।

मैं हर रोज शिवाजी स्टेडियम के पास कॉफी होम है उधर जाता था, जिससे की आराम से बैठकर लिख सकु जो नया विचार आए उसको पकड़ सकु , उस समय मैं अपनी पुस्तक “कौन हूँ मैं” की शुरुआत पर था बस मन में यही विचार था ओर इसी किताब के इर्द गिर्द सभी प्रश्न ओर उत्तर बन रहे थे।

क्या करता हूँ मैं यह बात मैंने आपको बताई अब आप मुझे बताए की आप क्या करते है।