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दिल्ली की बस

मैं लगभग 3 साल बाद आज दिल्ली की बस से सफर कर रहा था, लेकिन आज बस में भीड़ को देखकर ऐसा लगा की बस पुरुषों के लिए तो रह ही नहीं गई, इन बसों में सिर्फ महिलाये ही सफर कर रही है, वो भी ऑफिस जाने के लिए नहीं सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने रिश्तेदारों व बाजार के लिए बस में सफर हो रहा है लेकिन जो महिलाये ऑफिस जा रही है वह इस योजना का सही ढंग से लाभ भी नहीं उठा पाती वो तो मेट्रो में जा रही या ऑटो में ही आना जाना कर रही है।

दिल्ली की बस का सफर भी कुछ ऐसा है मानो खचाखच भीड़ बस ओर कुछ नहीं केजरिवाल सरकार ने महिलाओ की टिकट मुफ़्त में कर रखी है अब पुरुष तो बस में दिख ही नहीं रहा, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है बेचारा पुरुष हर जगह महिलाये है बस, मुझे महिलाओ से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सरकारी बसों में पुरुषों को कोई स्थान ही न दे, एक तो सफर मुफ़्त ऊपर से सीट की जगह पर लिखा होता है की यह सीट महिलाओ की है लेकिन पुरक्षों की सीट कही भी रिजर्व नहीं होती, अब बेचारा पुरुष करे भी तो क्या करे।

कहाँ जाए जो चल चल कर थक जाता है वो किसी से बोल भी नहीं पाता की आज मैं बहुत थका हुआ हूँ मुझे सीट दे दो, वो बेचारा पुरुष कुछ रुपये बचाने की वजह से हर समय ऑटो में नहीं जाता, गाड़ी नहीं बुक करता भीड़ भाड़ भरी बस में लटकर भी चल देता है उन सरकारी बसों का घंटों तक इंतजार भी कर लेता है की ऑटो के पैसे बच जाएंगे, ज्यादा बस बदल लेगा तो ज्यादा पैसे लग जाएंगे इसलिए सीधे अपने रूट वाली बस का ही इंतजार वो करता है।

लेकिन महिलाये कितनी ही बस बदलकर चली जाती है, महिलाये तो बिना सोचे समझे ऑटो ओर गाड़ी भी कर के चलती है, क्युकी वो अपनी सहूलियत ज्यादा देखी है, उनको रिजर्व सीट तो हर जगह मिल ही जाती है, फिर चाहे उनकी सीट पर कोई बुजुर्ग भी बैठा हो वो उनको उठाकर खुद बैठ जाती इनको इसमे भी कोई शर्म नहीं आती।

क्या इस समय सरकारी बसे मुनाफे में चल रही है? जहां तक हमे लगता है की सरकारी बस घाटे में ही चल रही है क्युकी ज्यादातर संख्या तो महिलाये की होती है बस में जिनका किराया माफ है दिल्ली की सरकार की ओर से, ओर जो व्यक्ति चढ़ते है उनके पास होते है फिर सरकारी बस मुनाफे में कैसे हो पाएगी।

वादा

जो वादा हम साल की शुरुआत में अपने आपसे बहुत सारे वादे करते है, लेकिन जैसे ही कुछ दिन बीत जाते है हमारे वादे जो हमने खुद से किए वो टूटने लग जाते है, आखिर ऐसा क्यू होता है?

यह सब इसलिए होता है की हम अपने वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पाते, या फिर वो वादे बस इसी तरह के होते है रात गई बात ओर हम वो वादा भी उसी तरह से भूल जाते है।

लेकिन यदि आप चाहते है की जो वादे आपने अपने आपसे किए थे उनको पूरे साल तक निभाया जाए तो उन वादों की लिस्ट बनानी चाहिए।

उस लिस्ट को बनाने के बाद उसे अपने कमरे की दीवार पर लगा देना है ताकि आप हर रोज उन बातों पर हर रोज ध्यान दे सको।

आपको अपनी लिस्ट को हर रोज ट्रैक करना है की आप कुछ छोड़ तो नहीं रहे, ओर आपको कभी स्किप नहीं करना।

बाकी सारे कामों को छोड़कर अपनी लिस्ट के कार्यों को हर रोज जरूर पूरा करना है इससे आपको उन कार्यों की आदत बनने लगती है, ओर हर रोज इस कार्य को एक ही समय पर करना चाहिए अब उस कार्य का निश्चित समय आपको तय कर लेना है, ताकि आप उस कार्य को उसी समय पर करे जैसे की मैं भी अपने लिखने का कार्य एक ही समाए पर करता हूँ, चाहे मेरा मन हो या नहीं लेकिन उस समय मैं अपने लैपटॉप को लेकर बैठ जाता हूँ बिना मन के भी हमे उन कार्यों को करना चाहिए जब तक हमारी रुचि उन कार्यों में नहीं बढ़ जाती।

जैसे ही आपकी आदत उस कार्य के प्रति बन जाएगी आपकी रुचि भी अधिक हो जाएगी ओर फिर आपको उस कार्य को करने में मन लगने लगेगा ओर आप उस कार्य को कभी नहीं छोड़ना चाहेंगे, इसलिए हमे लगातार बने रहने की कोशिश रखनी चाहिए ताकि हम किसी भी दिन उस कार्य को छोड़े नहीं वो जो वादा हमने अपने आपसे किया था साल के पहले दिन उस वादे को साल के आखिरी दिन तक निभाते रहे ओर उसमे प्रगति करे, उस लक्ष्य को पूरा करे व सफलता हासिल करे।

शब्द

शब्द क्या है ? यह कैसे कार्य करते है ? यह कितने प्रकार के होते है, शब्द भाषा की मूल इकाई हैं जो वाक्य और भाषा को रचनात्मक ढंग से व्यवस्थित करते हैं। शब्द एक ऐसा स्थायी या अस्थायी ध्वनि या ध्वनियाँ होती हैं जो किसी विशिष्ट वस्तु, व्यक्ति, स्थान, भावना या विचार का व्यक्त करती हैं।

शब्दों का उपयोग भाषा के संरचनात्मक इकाई जैसे वाक्यों, वाक्यांशों और वर्णों को संभव बनाते हैं। वे भाषा के व्याकरण तत्वों में विभिन्न भूमिकाओं का निर्धारण करते हैं, जैसे कि कारक, विशेषण, संज्ञा, क्रिया, अव्यय आदि।

व्याकरण में, शब्द वर्णों का एक समूह होता है। हर भाषा में शब्दों की संख्या अलग-अलग होती है, लेकिन वे सभी एक विशिष्ट भाषा के संरचना में उपयोग किए जाते हैं। शब्दों का उपयोग भाषा की विभिन्न विधाओं में जैसे कि बोली, लेखन, पढ़ना, सुनना आदि करने में किया जाता है।

शब्दों को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि संज्ञा, क्रिया, विशेषण, सर्वनाम, अव्यय आदि। इन प्रकारों के अलावा, शब्दों को बहुत से अन्य वर्गों में भी वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि स्वर, व्यंजन, संयुक्त वर्ण, समास आदि।

शब्दों का उपयोग हमारी संवाद क्षमता को बढ़ाता है और हमें अपने विचारों, भावनाओं और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करने में मदद करता है। शब्दों का उपयोग हमें संवाद करने, समझने, लेखन करने, सुनने और पढ़ने के लिए आवश्यक होता है। अधिक संवेदनशील भाषाओं में, शब्दों के साथ भावनाओं और भावों को व्यक्त करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।

आगे भी हम शब्दों को समझेंगे, उन पहचानेंगे ओर इन शब्दों के अर्थ को समझेंगे, शब्द किस प्रकार से कार्य करते है? तथा इन शब्दों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसी तरह के मैंने कुछ और भी लेख लिखे हुए जिनकी सहायता से आप शब्दों के बारे में और भी गहराई से जान सकते है।

यह भी पढे: शब्द किसे कहते है? शब्द हूँ मैं, शब्द क्या है?, शब्द जो चोटिल करदे,

ख्वाब

ख्वाबों को अपने जीवन में शामिल करने के लिए कुछ सुझाव दीजिए, ख्वाब हमारे जीवन का अहम हिस्सा होते हैं, जो हमें जीवन की दिशा तय करने में मदद करते हैं। यदि आप अपने जीवन में अपने ख्वाबों को शामिल करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित सुझावों का पालन कर सकते हैं:

1. ख्वाबों को लिखें: अगर आप अपने ख्वाबों को अपने जीवन में शामिल करना चाहते हैं, तो उन्हें लिखें। अपने ख्वाबों को नोटबुक में या अपने मोबाइल फोन में लिखें। इससे आपके ख्वाब स्पष्ट होगें और आप उन्हें जीवन में शामिल करने के लिए अधिक प्रोत्साहित होंगे।

2. एक कार्यात्मक योजना तैयार करें: जब आप अपने ख्वाबों को स्पष्ट कर लेते हैं, तो आप उन्हें जीवन में शामिल करने के लिए एक कार्यात्मक योजना तैयार कर सकते हैं। आप अपने ख्वाबों के लिए लक्ष्य तय कर सकते हैं और एक योजना बना सकते हैं जो आपको उन्हें पूरा करने में मदद करेगी।

3. संगठित रहें: अगर आप अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल करना चाहते हैं, तो आपको संगठित रहना होगा। आपको अपने ख्वाबों के लिए समय निकालना होगा और उन्हें पूरा करने के लिए उचित योजना बनाने की जरूरत होगी।

4. निरंतर मेहनत करें: अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल करने के लिए आपको निरंतर मेहनत करनी होगी। आपको अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहना होगा और सफलताप्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना होगा।

5. आपसे सहयोग मांगें: अगर आप अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल करना चाहते हैं, तो आप दूसरों से सहयोग मांग सकते हैं। आप उनकी सलाह और मार्गदर्शन ले सकते हैं जो आपको अपने ख्वाबों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।

6. सकारात्मक सोच रखें: अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल करने के लिए आपको सकारात्मक सोच रखना होगा। नकारात्मकता आपको अपने लक्ष्यों के प्रति निराश कर सकती है, इसलिए आपको सकारात्मक सोच रखनी चाहिए जो आपको अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है।

7. धैर्य रखें: अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल करने के लिए आपको धैर्य रखना होगा। सफलता का मार्ग अनिश्चित हो सकता है और इसलिए आपको निरंतर प्रयास करते रहना होगा। धैर्य रखना आपको अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए आवश्यक जानकारी, कौशल और अनुभव जुटाने में मदद करेगा।

इन सुझावों का पालन करते हुए आप अपने ख्वाबों को जीवन में शामिल कर सकते हैं और अपने जीवन को उन्नत बना सकते हैं।

युवा

“युवा साथीत्व के रंगमंच पर दिखाए अपार प्रतिभा और सहयोग” एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक नाटक का आयोजन रखा गया। इस नाटक के लिए गाँव के सभी लोग आए , जहां उन्हें एक रंगमंच तैयार करने के लिए आदेश दिया गया।

गांव के युवा समिति ने अपनी सोच और कला का प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित होकर रंगमंच की तैयारी शुरू कर दी। वे सभी अपनी कठिनाइयों के बावजूद मिलकर काम करने लगे।

कुछ लोग मोर्चे बनाने में लगे, कुछ लोग पैंटिंग का काम कर रहे थे, और कुछ लोग सेट डिजाइन और सीनरी के लिए जिम्मेदार थे। युवा सदस्यों ने आपस में सहयोग करते हुए एक सुंदर और आकर्षक रंगमंच तैयार किया।

नाटक का दिन आ गया और सभी गांववासी उत्सुकता से नाटक का आयोजन देखने के लिए आए। नाटक शुरू हुआ, और गांववासी नाटक के पात्रों की प्रतिभा, अभिनय और कथानक को देखकर प्रभावित हो उठे। रंगमंच पर उनकी रचनात्मकता और प्रतिभा की झलक दिखाई दी।

नाटक का समापन हो गया और सभी लोग आपस में गले मिले और बधाई देने लगे। यह नाटक और रंगमंच ने न सिर्फ एक कहानी को बयां किया, बल्कि गांव के युवाओं में आत्मविश्वास, सामर्थ्य और सहयोग की भावना को भी जगाया।

इस छोटी सी कहानी से स्पष्ट होता है कि रंगमंच हमें अपनी प्रतिभा का परिचय कराने के साथ-साथ समजबूत समाजी बंधन बनाने में भी मदद करता है। यह गांव के युवाओं को एक मंच प्रदान करता है जहां वे अपनी कला, संगठनशीलता, और सहयोग कौशलों का प्रदर्शन कर सकते हैं। यह एक उदाहरण है कि जब लोग साथ मिलकर काम करते हैं और एक लक्ष्य के लिए मेहनत करते हैं, तो उनकी सामरिकता और समृद्धि बढ़ती है।

इस कहानी से हमें यह संदेश मिलता है कि सामूहिक योगदान और टीमवर्क अद्यतन करने की आवश्यकता होती है। छोटी से छोटी उपलब्धियों के लिए भी सहयोग और समर्पण की आवश्यकता होती है, क्योंकि इससे हमारे आसपास के लोगों को प्रेरित करने और उन्हें उदाहरण स्थापित करने में मदद मिलती है।

यह भी पढे: जादू की छड़ी, कलाकार का जीवन, सब संभव, जब कोई आपसे पूछे, ज्यादा योग्य,

भागम भाग

जिंदगी एक भागम भाग दौड़ है जिसमे लाखो इच्छाएं है जिन्हें पूरा करने की एक नाकाम कोशिश है, उन सभी इच्छाओं को पूरा कर फिर यही छोड़ जाना है, ना कोई मुकाम पाना है ना कुछ कर दिखाना है फिर भी बस इस जिंदगी के साथ भागते ही जाना है।

बार बार असफल होने के बावजूद भी जीतने और कुछ कर दिखाने की इच्छा का नाम ही है जिंदगी 
कुछ करके दिखाना भी है जिंदगी 
क्या करना और क्यों करना, किसके लिए करना 
यह भी ना समझ पाना है जिंदगी
और समझ जाने का नाम ही तो है जिंदगी 

बहुत सारे सपनो को साकार करने का नाम भी है
जिंदगी उन सपनों से हार कर बैठ जाना भी है,
जो सपने देखे थे उनके लिए फिर से उठ जाना है 
जिंदगी और उनके साथ फिर नए सपनो को देखना और 
उठ कर हिस्सा लेना भी है यह जिंदगी 

जिंदगी भी गणित के उस 0 और इंफिनिटी की तरह लगती है, जो शुरुआत तो 0 से करती है और खत्म इंफिनिटी मतलब कभी ना खत्म होने वाली है यह जिंदगी 

एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने की बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को जिंदगी कहते है। 
जीत और हार का सिलसिला है जिंदगी 
कभी जीत है तो हार भी है जिंदगी 

जिंदगी एक भागम भाग दौड़ है।

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लॉर्ड शब्द

लॉर्ड शब्द का प्रयोग आजकल कलाकारों, क्रिकेटर के लिए किया जा रहा है, क्या अब आने वाले समय में यह मानव भगवान बनने जा रहे है क्या? 

क्या हमारी आस्था हमारी सोच बदल गई है? 

लोग भेड़ चाल में चल रहे है उन्हे यह नहीं पता की यह अच्छा है, या बुरा बस वो चल रहे है उन्हे लगता है वो यह करके अमीर या फेमस हो गया है, तो हम भी उसी तरह से हो जायेंगे लेकिन उन्हें उनके पीछे की सोच का नही पता जिस तरह से गाने के बोल कितने अश्लील होते है लेकिन वो गाना रील में बहुत तेज़ी से वायरल हो गया तो अब बाकी के लोग भी वही गाना अपनी रील में जोड़ने लग जाते है बजाए उसका बहिष्कार करने के उन्हे लगता है, इतने लोग कर रहे है तो यह सही होगा, जबकि ऐसा नहीं होता सोशल मीडिया हमेशा सही नही होता, और सोशल मीडिया पर बहुत सारी गलत चीजों को फैलाया भी जाता है, जो बल्कि भी सही नही है लेकिन हम भी उन्ही के जाल में फंस जाते है हम लगता है की वह सही है हम इस समय अपनी बुद्धि का उपयोग ही नही करते बस उनको फॉलो करना शुरू कर देते है। 

क्या हम इन शब्दो का उचित प्रयोग कर रहे है लॉर्ड शब्द से संबोधन करना किसी भी व्यक्ति को जब वह व्यक्ति बहुत अश्लील और कत्ल करने जैसे निंदनीय कार्य करता हो फिल्म में, इस प्रकार के संदेशों को फैलाना समाज को किस में बढ़ावा दे रहा है उस पर हमे ध्यान देना चाहिए। 

क्या अश्लील हरकतों के लिए आप किसी व्यक्ति को लॉर्ड बना देंगे? आप अपने धर्म को नीचा गिराने में ही लगे हुए है फिर कोई और आपके धर्म का आदर कैसे करेगा, वह भी इसी तरह के मजाक बनाएगा।

बॉबी देओल ने यह नाम खुद नही रखा यह दर्शक उन्हें ये नाम दे रहे है जो बिल्कुल निंदनीय है सिर्फ गलती किसी कलाकार की नही होती समाज की भी बहुत भूमिका होती है, किसी को गलत बनाने और उनका गलत कार्यों में साथ देने की हम ही है, जो इस तरह की फिल्मों को बनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित कर रहे है, इसलिए लगातार इस तरह को फिल्मे आजकल बन रही है और इसके साथ इस प्रकार की फिल्मे अच्छी कमाई भी कर रही है।

क्या हमे लॉर्ड शब्द का प्रयोग करना चाहिए या नहीं इसका निर्णय आप स्वयं ले ओर इस बात को समझे की यह सही है या गलत।

यह भी पढे: अपने शब्दों पर जोर, समाज में अधिकता, शब्दों में सहजता, आपके शब्द,

धूप और ठंड

धूप और ठंड का मज़ा घर से बाहर की यह खिलखिलाती धूप ओर भीतर कमरे की ठंड दोनों ही बहुत मजेदार है, जब बाहर जाते है तो मन नहीं करता धूप से घर वापस जाने का ओर जब भीतर होते है तब बाहर निकलने का मन नहीं होता बस लगता है कंबल में यू ही दुबककर बैठे रहे ओर आलस से भरे रहे।

उस आलस में भी जीवन का आनंद आने लगता है, लगता है कुछ काम नहीं हो बस आराम ही आराम हो, यही बैठ सारे सुख है बाहर क्यू जाना इस ठंड में लेकिन बाहर निकल देखो तो सूरज भी तुमसे कहता है की बैठ यह मैं तेरे शरीर के तापमान को ठीक कर दू, तू बस बैठ जा चाहे खड़ा हो जा कुछ देर यही, सर्दी की धूप भी ऐसी लगती मानो गर्मी में तुम ठंडी ठंडी आइसक्रीम खा रहे हो।

बाहर की उस खिलखिलाती धूप को देख ऐसा लगता है की बस इसी धूप के साथ वक्त गुजार लू, भीतर आकार तो सर्दी लगती है, समय अभी 11:45 का दोपहर होने लगी थी, सर्दी की धूप तो बहुत ही अच्छी लगने लगती है, धूप और ठंड का मज़ा यह दोनों एकसाथ सर्दी में ही मिलते है, गर्मी में इन दोनों का आनंद नहीं अछूता ही रहता है।

सर्दी में शरीर तो ठंडा ठंडा हो गया है, जैसे सर्दी में शरीर पूरी तरह अकड़ ही गया हो, घर में तो जैसे सीलन सी आई हुई हो, घर की चार दिवारे एकदम ठंडी बर्फ सी हो गई है, घर में जब होते है तो लगता है की रजाई औढकर बस बैठे रहो, ओर रजाई से बाहर ही नहीं निकलो लेकिन बाहर की धूप देख कर ऐसा लगता है की अब भीतर ना जाऊ यही खड़ा रहु या फिर बस चारपाई बिछा कर लेट जाऊ अब तो यही एक मन में चलता है।

शरीर भी गजब की चीज है बहुत आलस ओर आराम चाहता है, कभी कुछ खास मेहनत नहीं करना चाहता कठिन परिस्थितियों का सामना भी नहीं करना चाहता, बस यू ही आरामदायक जिंदगी को जीना चाहता है, लेकिन यदि इसी तरह से आराम चाहेगा तो कभी मजबूत नहीं बन पाएगा इसलिए जब सर्दी ओर गर्मी इन दोनों मौसम का आनंद लेना चाहिए, इस शरीर को ठंड की भी आदत हो ओर गर्मी की भी आदत होनी चाहिए।

सुकून की जिंदगी

मैं कभी काम के पीछे इतना नहीं भागा बस जो काम करना अच्छा लगता था वही किया ओर जितना करना चाहता था उतना ही करता था, समय के बाद काम को कभी महत्व नहीं दिया, घर आने के बाद फिर बस काम नहीं करता था, ओर ना ही काम की बाते क्युकी मझे हर समय काम की बाते करना पसंद नहीं था, मैं जो भी काम करता था घर से निकलने के बाद ही करता था, घर पर नहीं, दुकान का बचा हुआ काम भी घर नहीं लाता था, बस सुकून की जिंदगी हो ओर आराम से जीउ बहुत भागा दौड़ी भरी जिंदगी का मुझे कोई लाभ नहीं दिखता, हर समय काम के पीछे लगे रहने से भी क्या लाभ है।  

जितना भी कमा लो लेकिन एक दिन तो मौत की आगोश में सो ही जाना है, जब सब कुछ छूट ही जाएगा फिर क्यू इतना सब कमाना, क्यू इतनी मेहनत करनी उन कार्यों के लिए, क्यू इतना सब कुछ जोड़ना यही सब सोचकर मैं रुक जाता हूँ ओर आराम से बैठ जाता हूँ, यदि मुझे कुछ करना होगा तो मैं ध्यान, जप करूंगा स्वयं का जीवन शांति से व्यतीत करूंगा, इस सांसारिक जीवन की भागा दौड़ में नहीं व्यतीत करूंगा, कुछ बनकर भी क्या होगा? यदि कोई बड़ी पहचान नहीं होगी तो क्या जीवन अच्छा नहीं चलेगा, कितनी ही बड़ी पदवी पर बैठ जाओ लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं होता जब तक आपके मन में शांति- सुकून नहीं है, यदि सुकून की जिंदगी नहीं फिर क्या अर्थ इस जीवन का

बहुत सारे लोग ऐसा भी कहते है की यह सोच उनकी होती है जो काम नहीं करना चाहते लेकिन उस सोच का क्या जो ये कहते है, की इंसान की औकात उनके जूतों से पता चलती है, यह बात भी किसी जूते बेचने वाले या बनाने वाले ने ही कही होगी, यह शब्द आज हर दिल को ठेस करते है

यदि कोई व्यक्ति देखता है की उसके जूते बेकार है, अब उसे जूते बदलने चाहिए, इसलिए आजकल जूतों पर लोग अधिक मूल्य खर्च करते है, ताकि उसे ऐसा न लगे की वह किसी से कम है, उसके हृदय पर चोट लगी उसे आहात कर गई यह बात की जूतों से उसकी पहचान होती है, इसलिए अब ज्यादातर लोग जूतों पर खर्च करने लगे है, लेकिन वही दूसरी तरफ लोगों ने किताबों पर पैसा खर्चना कम कर दिया की बार ऐसा लगता है की उन्होंने किताबों पर पैसा खर्चना अब बिल्कुल बंद ही कर दिया है।

किताब यदि 300 रुपये की है तो उसको बोलते है कितने की दोगे कम कार्लो, इसकी इतनी कीमत नहीं है, लेकिन यही बात जूतों के लिए नहीं बोलते लोग, जूते की कीमत चाहे 4000 रुपये हो वो लेकर चल देते है, क्युकी यह उनको जूतों में अपनी औकात दिखती है, लेकिन किताबों में बुद्धि, ज्ञान, स्वभाव में परिवर्तन, सफलता, जीने का तरीका, जिम्मेदारी, अनुभव, आदते, बहुत सारी बाते जो उसे सिर्फ कुछ रुपयों में सीखने को मिलती है।

लेकिन आज का व्यक्ति इन सब बातों को भूलकर जूतों की ओर आकर्षित हो जाता है, ओर किताबों को भूल जाता है, अब शोरूम में जूते दिखते है ओर पटरी पर किताबे दिखती है, जो लोगों को कोड़ियों के दाम में चाहिए। इससे यही स्पष्ट होता है की आप अपने अनुसार उन शब्दों को ढूंढ लेते हो जो आपके हित में हो। जिन शब्दों से आपको कोई लाभ होता है उस प्रकार के शब्दों को ढूँढना ही आपका कार्य है, आप अपने चातुर्य को बढ़ाना चाहते हो, आप किसी से हारना नहीं चाहते यह तुम्हारा अहंकार है, ओर कुछ नहीं।

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बिना कुछ कहे

बिना कुछ कहे, उन्होंने कुछ ज्यादा ही समझ लिया अक्सर यही कुछ होता है, जब हम कहते कुछ नहीं है लेकिन वो समझ ज्यादा लेते है, बात कुछ होती नहीं है, लेकिन बढ़ बहुत जाती है, अक्सर यही कुछ होने लगता है, नजदीकिया बहुत होती है लेकिन एकदम से ना जाने क्यू दूरिया होने लग जाती है, मेने कुछ कहा नहीं उन्होंने सुन ज्यादा लिया, मेने कुछ समझाया नहीं 

उन्होंने समझ ज्यादा लिया,मेने कुछ देखा भी नहीं,उन्होंने देख भी ज्यादा लिया 

मेने कुछ सोचा भी नहीं उन्होंने सोच भी ज्यादा लिया 

बस इतना हुआ उसके बाद ना जाने वो रिश्ता ही कही खो गया नासमझी और समझी हुई बातो के बीच जो भेद था, उनकी वजह से वर्षो का रिश्ता अब रिश्ता नहीं रहा बस कुछ था ही नहीं ऐसा  कुछ हो गया। मेरी भीगी हुई पलके भी ना समझा सकी उनको कुछ ना जाने जो बिताया था हिस्सा समझने के लिए वो कुछ लम्हो में सिमट कही खो गया। 

बिना कुछ कहे ना जाने कितनी कितनी बाते हो जाती है, उन बातों से दूरिया भी बढ़ जाती है, पता नहीं चलता सालों का रिश्ता कब खत्म हो जाता है,