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सारी शिकायते

तुम्हारी सारी शिकायते सुनूंगा , तुम्हे सुलझा लूंगा , तुम्हे लिखना है मुझे, तुम्हे सुनाना है मुझे, एक खामोशी हटानी है तुम्हारे भीतर की जो तुम्हे फिर से नायब करे तुम्हे वक़्त दूंगा तुम्हारे हिस्से का

तुम्हारी सारी शिकायते सुनूंगा,
तुम्हें सुलझा लूंगा, तुम्हें सुनाऊंगा।
इक खामोशी हटानी है तुम्हारे भीतर की,
जो तुम्हें फिर से नायाब करे, तुम्हें वक्त दूंगा।

दर्द और गम के रास्ते तुम्हारे संग चलूंगा,
खुशियों की बहारें तुम्हें संग दिखलाऊंगा।
कागज़ पर तेरे इश्क़ की कहानी लिखूंगा,
हर एक अक्षर में तुम्हें अपना दिल सुनाऊंगा।

ज़ख्मों को तेरे दवा बनाकर लिखूंगा,
आँसूओं को मुस्कान में रंगाऊंगा।
तेरे अंदर छिपी ख़ामोशियों को जगाऊंगा,
तुझे वक्त के साथ फिर से पास लाऊंगा।

अपने शेरों में तुम्हें चाँद सितारे दूंगा,
ख्वाबों की मस्ती को तुम्हें सुनाऊंगा।
हर गम को तेरे दिल से उठा लूंगा,
मुसीबतों के साथ तुम्हें फिर से जीना सिखाऊंगा।

तू लिखना ज़रूरी है मुझे, तू सुनाना ज़रूरी है मुझे,
एक नया अध्याय तेरी कहानी में लिखना है मुझे।
तेरी बातों को समझने का वक्त दूंगा मैं,
तेरे हर अल्फ़ाज़ को दिल के करीब लाऊंगा मैं।

सारी शिकायते

मेरी आवारगी में

मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है,
तेरी याद जब सताती है, दिल बेकरारा हो जाता है।

घर की चाहरदी सब अजनबी सी लगती है,
तेरे बिना यहां रहना, बस कठिन हो जाती है।

आवारगी में घूमते हैं ये रास्ते जहां,
तेरी यादों की महक साथ लेकर चलते हैं।

दिल की तनहाई में जब तेरी याद आती है,
घर बिखर जाता है, अकेलापन सताता है।

आवारगी में जब दिल तेरी तलाश में होता है,
तू घर की याद बनकर, दिल को संभालता है।

तेरी यादों की मधुर सुरी जब घर को छू जाती है,
खुशियों की चादर ओढ़ कर, दिल को भर जाती है।

मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है

मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है, क्यों की जब तेरी याद आती है तो घर अच्छा नही लगता