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रेलवे कर्मचारी

रेलवे कर्मचारी की कहानी 35 साल रेलवे में टीटी की नौकरी करने के बाद रिटायर हुए। घर पर रहने लगे।
एक महिने बाद ही पत्नी ने पति से कहा डाक्टर के पास जाना है, मुझे थोड़ा सा चैकअप कराना है।
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शाम पत्नी को डाक्टर के पास ले जाकर पति ने कहा जाइए दिखाईये,,
उसने रोनी सी सूरत बनाकर कहा आप आगे आईये
मेरा तो बहाना था
दरअसल आपको दिखाना था
?
डाक्टर साब , ये पिछले 35 साल रेलवे में टीटी रहे,
सप्ताह में केवल दो दिनों के लिये घर आते थे, बाकी दिन बाहर रहते थे।
लगातार “रेल यात्रा के वातावरण” को सहते थे।
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अब रिटायरमेंट के बाद घर आते ही कमाल कर दिया है,
चार फीट चौड़े पलंग को काट कर दो फीट का कर दिया है,
अटैची को सांकल से बांध कर ताला लगाते हैं,
तकिये में हवा भरते हैं और चप्पलें सिरहाने रखते हैं,
कमरे का ट्यूब लाइट अलग हटा दिया है और
उसकी जगह जीरो वाट का वल्ब लगा दिया है,
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टेप रिकार्डर से फिल्मी गानों का कैसेट निकाल कर,,
रेल्वे एनाउंसमेंट,
गाड़ी चलने की ध्वनि,
घंटी की घनघनाहट,
और
गरम चा,,इय समोसा की कर्कश आवाज का केसेट लगाते हैं,
मूंगफली के छिलके,और बीड़ी सिगरेट के टुकड़े पलंग के चारों ओर फैलाते हैं ,
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मैं तो रात भर जागती हूँ
और ये आराम से सो जाते हैं
पता नहीं कैसी जिंदगी जीते हैं
कप में चाय दो, तो कुल्हड़ में पीते हैं ,
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एक रात मेहमान आये तो मैंने इन्हें जगाया,
इन्होने करवट बदली और मेरे हाथ में ट्रेन का टिकट और सौ रुपये का नोट थमाया।
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मैने कहा ये क्या है,तो बोले रसीद नही बनाना
इंदौर आये तो ख्याल से उठाना
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पिताजी से,दहेज में मिला सोफासेट आधे दामों में बेंच आये है,
बदले में दो सीमेंट की ब्रेंच खरीद लाये है,
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बेडरूम में लगीं पेंटिग्स को अलग कर दिया है,
उनकी जगह,
भारतीय रेल आपकी अपनी सम्पत्ति है,
जंजीर खींचना मना है?
लिखवा दिया है,
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एक रात इनके पास आकर बैठी
इन्होने पांव मोड़े और कहा आइए
आइए आराम से बैठिये
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डाक्टर साब बताने में शर्म आती है पर आपसे क्या छिपाना है
इन्होने ने मुझसे पूंछा
बहन जी आपको कहाँ जाना है
?
डायनिंग टेबिल पर खाना खाने से मना करते हैं
पूड़ियां मिठाई के डिब्बे में और सब्जी को प्लास्टिक की थैली में भरते हैं,
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एक रात मेरे भाई और पिताजी आये
दोनों इनकी हरकत से बहुत लजाये
रात में भाई ने इनकी अटैची जरा सी खिसकाई
ये गुस्से में बोले जंजीर खींचू चोरी करते शर्म नहीं आई
?
सुबह सुबह बूढ़े पिताजी जल्दी उठ कर नहाने जा रहे थे
बालकनी पर इनके पास वाली खिड़की से आ रहे थे
उन्होंने खिड़की से हाथ डाल कर इन्हें जगाया
इन्होने गुस्से में कहा इस तरह से मत जगाओ
यहाँ कुछ नहीं मिलेगा,
? बाबा ,आगे जाओ
पिताजी आगे गये तो उन्हें वापस बुलाया
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उन्हें एक रुपये का सिक्का दिया और पूंछा कौन सा स्टेशन आया
?
इनका अजीब कारनामा है
एक पर एक हंगामा है
अभी कबाड़ी के यहाँ से एक पुराना टेबिल फेन मंगवाया
छत पर लटके अच्छे खासे सीलिंग फेन को उतार कर उसकी जगह टेबिल फेन लटकाया
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उसे चालू करने विचित्र तरीका अपनाते हैं
जेब से कंघी निकाल कर पंखा घुमाते हैं
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सुबह मंजन ब्रश साबुन निकाल कर बाथरूम की ओर जाते हैं,
मैं कहतीं हूँ बेटा गया है
तो वहीं लाइन लगाते हैं
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समझाती हूँ आ जाओ, तो रोकते हैं
हर दो मिनट के बाद बाथरूम का दरवाजा ठोकते हैं
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इन्होने पूरे घर को सिर पर उठा लिया है
घर को वेटिंग रूम और बैडरूम को ट्रेन का कम्पार्टमेंट बना दिया है
?
इनके साथ बाकी जिंदगी कैसे कटेगी हम यह सोच कर डरते हैं
और ये सात जनम की बात करते हैं
हम तो एक ही जनम में पछताये
भगवान किसी युवती को रेलवे के टीटी की पत्नी न बनाये…..

एक रेलवे कर्मचारी

सोना चांदी या लोहा

सोना चांदी या लोहा——

एक बार एक पूर्ण संत सत्संग में बता रहे थे कि मानव जन्म दुर्लभ है चौरासी लाख योनियों को पार करके मिलता है। तभी किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया —-
महात्मा जी पर हमने तो सुना है कि कई बार मनुष्य का पुनर्जन्म होता है और उसे सब याद रहता है तो समझाएं ऐसा कैसे होता है। क्या यह सत्य है.

महात्मा जी– आपकी बात भी सत्य है ऐसा भी होता है क्योंकि
कबहु करि करूणा नर देहि
दाँत ईस बिनु  हेतु  स्नेही
ईश्वर बिना किसी कारण जीव पर कृपा करते हैं क्योंकि चौरासी लाख योनियों में जीव नया कर्म नहीं कर सकता। ईश्वर प्रेम वश कृपा कर दोबारा मानव तन प्रदान करते हैं परन्तु जीव के भावानुसार
व्यक्ति–“देवी देवता कैसे बनते हैं क्या उनके भी कर्म होते हैं या,,,,
महात्मा जी– मानव के पुण्य कर्म ही देवी देवता के लोक भी ले जाते हैं।
मानव चाहे तो दानव बन जाए चाहे तो देवता बन जाए और चाहे तो मोक्ष और मुक्ति पा ले
व्यक्ति– कौन सी योनि उत्तम है देवी देवता की या मानव की
महात्मा जी– मानव योनि लोहे के समान है और देवता योनि चाँदी के समान है। आप बताओ किसका मूल्य और सौंदर्य अधिक होगा
व्यक्ति– चाँदी का।
महात्मा जी– ठीक ! पर लोहे का मूल्य और सौंदर्य कम है चाँदी से पर यदि लोहा पारस मणि का स्पर्श कर ले तो वह सोना बन जाता है और उसका मूल्य और सौंदर्य चाँदी से अधिक हो जाएगा।
मानव यदि पूर्ण संत के सानिध्य में चला जाए तो वह सोना बन जाता है।
और चाँदी वैसी ही रहती है
मानव योनि एक ऐसी योनि है जो मुक्ति का द्वार है।
हर व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि वो कोन सा मार्ग चुनता है।
व्यक्ति– अगर पूर्ण सन्त के सानिध्य से ही सोना बन सकते हैं तो फ़िर सभी मानव योनि प्राप्त जीव सोना क्यों नहीं बन जाते हैं
महात्मा जी– क्योंकि सभी पूर्ण सन्त के शरण में नहीं जाते हैं।
व्यक्ति– ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि कई लोग तो सन्त के पास जाना पसंद नहीं करते हैं तो कई लोग ग़लत गुरु के हाथों में पड़ जाते हैं और बचते हैं कुछ लोग तो उनमें से वे लोग पूर्ण सन्त के शरण में जाते हैं।
व्यक्ति– ग़लत सन्त के शरण में जाते हैं तो ऐसा क्यों
महात्मा जी– क्योंकि उन्हें अपने पूर्व सन्तों के वचनों पर विश्वास नहीं होता है अपने धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जानकारी नहीं होती है या फ़िर जानकर भी अंधे की तरह अपनी श्रद्धा और भक्ति को लुटाते हैं और अधर्मी-पाखंडी लूटते हैं।
व्यक्ति– महात्मा जी ! कृपया कर हमें पूर्ण सन्त की कोई पहचान बताएं ताकि हम भी अपने मानव जन्म को सोना बनाकर सफ़ल कर सकें।


महात्मा जी– गुरु कई प्रकार के होते हैं। तंत्र गुरु तो मन्त्र गुरु तो बाहरी ज्ञान प्रदायक गुरु, शस्त्र गुरु तो शास्त्र गुरु लेकिन इन सब के अलावा भी एक गुरु होते हैं जिन्हें पूर्ण सन्त की संज्ञा दी गई है। पूर्ण सन्त की संज्ञा इसलिए दिए हैं क्योंकि पूर्ण परमात्मा से जुड़े हुए होते हैं। वे पूर्ण परमात्मा को स्वयं देखे हुए होते हैं और केवल उनमें ही सामर्थ्य होता है कि चाहे कैसा भी मानव प्राणी हो चाहे उसमे पात्रता हो या नहीं उसका मानव जन्म ही काफ़ी है परमात्मा के दर्शन के लिए और पूर्ण सन्त वहीं करवाते हैं। सभी धार्मिक-ग्रन्थों में और महापुरुषों ने यहीं पहचान बताया है और चाहे जो गुरु के शरण में चले जाएं लेकिन जब तक पूर्ण सन्त के शरण में नहीं गए तब तक सोना बनना असम्भव है।
व्यक्ति– क्या आप हमें परमात्मा के दर्शन करा सकते हैं महात्मा जी
महात्मा जी ने उस जिज्ञासु को उसके भीतर ही परमात्मा का दर्शन करवा दिया। और वो जिज्ञासु भी अपने भीतर दर्शन कर धन्य-धन्य हो गया।


    लोहा हो या चांदी या सोना लेकिन मानव जन्म पाकर ही मानव को निर्णय लेना पड़ता है कि उसे क्या बनने की चाह है। मानव जन्म मिला है सोना बनने के लिए लेकिन ये पूर्णसंत के शरण में जाने के बाद ही होगा लेकिन आज कलयुग में इतने सारे गुरु हो गए हैं कि सोना बोलकर पीतल थमा देते हैं और अज्ञानी मानव थाम भी लेते हैं क्योंकि उनके पास पहचान नहीं होता है। इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि जब भी पूर्ण सन्त धारण करने जाएं तो धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर जाएं।
मानव जन्म आपका है अब आपको निर्णय लेना है कि आपको क्या बनना है लोहा या चांदी या सोना
                                           
अनुज अवस्थी