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हिन्दू धर्म

हम सभी को अभी या बाद में हिन्दू धर्म स्वीकार करना ही होगा, यही असली धर्म है, मुझे कोई हिन्दू तो मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं इस बात बात को स्ववेकर करती हूँ क्युकी यही सच बात है ओर सही भी, इस बात को अस्वीकार करने जैसे कुछ नहीं है।

बड़ी कुटिल

बड़ी कुटिल
बड़ी छली
सी सोच लगती है,
जब मै राजनीति की बाते करने लगता हूं
जिंदगी ही जिंदगी पर एक बोझ लगती है
अभी शुरुआत है या अंत पता नहीं चलता
एक धर्म , एक जाती , एक देश , एक वर्ण
किसी दूसरे का अधिकार बस छलते हुए ही है दिखता
अपनी सत्ता , अपना लालच ,दम, अहंकार और साहस पर क्यों ए इंसान तू चलता है ?
कौन हिन्दू है ? और कौन मुस्लिम है ?
इसका फैसला क्यों ?
ये तुच्छ सा इंसान करता है
धर्म परिवर्तन तो कभी धर्म के नाम पर ही लड़ता है
तकलीफ किसको किससे है ?
भाषा से है या वर्ण से है
ये कोई क्यों नहीं समझता है ?
एक देश है उसके टुकड़े तुम करना चाहो
क्या ऐसा दुस्साहस भी कोई करता है? बड़ी कुटिल बड़ी चली सी सोच लगती है

धर्म के नाम पर

धर्म के नाम पर दंगे ना कर। तू हिन्दू है या मुसलमान जो भी हो पहले इंसान बन।

इस फोटो को कोई एक्सप्लेन करेगा ??
लगातार जब मै कोई पोस्ट डालता हूं तो लगातार मेरे साथ जिन्होंने बहुत अच्छा समय बिताया है वो मुझसे आकर बोलते है, कमेंट करते है धर्म , मजहब , हिन्दू , मुस्लिम यही सब बोलते है लेकिन मेरा धर्म इंसानियत है जैसा श्री मदभागवत गीता जी में उपदेश दिया गया है। और मै उसीको अपने आचरण में लगातार लाने के लिए प्रयासरत हूं मुझे तुम्हारी तरह नहीं बनना बिल्कुल भी नहीं बनना।
“धर्म को धारण करना धर्म कहलाता है” धारण अर्थात
और वो सनातन है आजकल असमाजिक तत्व अपनी तरह से तोड़ मरोड़ कर धर्म बना रहे है और बिगाड़ रहे है जिसे धर्म नहीं कहते और वो धर्म नहीं हो सकता जिसमे लड़ाई झगड़ा आदि सिखाया जाए।

धर्म के नाम पर
धर्म के नाम पर

मुझे तो नहीं लग रहा की ये दोनों भाई है जिस तरह से इन लोगो झगड़ा किया है क्या वो भाई भाई करते है ??
जवाब आपके पास है मेरे पास तो बिल्कुल नहीं है।

क्या यहां दो भाई लिखना उचित था ?? इस तरह के विचार रखने वाला व्यक्ति मेरा भाई कैसे हुआ ???
मेरे विचार , मेरे संस्कार तो इस तरह का उपद्रव करने के संस्कार नहीं देते
मेरे अंदर क्रोध , घृणा , अहंकार , लालच , हो सकता है लेकिन क्या इस हद तक है ??
बिल्कुल नहीं है और ना ही कभी होगा क्युकी यह इंसानियत नहीं है , आजकल लोग इंसान नहीं बनना चाहते वो हिन्दू – मुस्लिम बनना चाहते है यह आपको बनना है यह आपका रास्ता है मेरा नहीं और मै ऐसे आडंबर , ढोंगी,सत्ता के लालची लोगो की तरह बनने का बिल्कुल इच्छुक नहीं हूं।
यह दो भाई लड़ रहे है आपस नुक़सान किसका हुआ ??

आपकी जमीन ,आपका घर , और आपके आसपास के लोगों का भी आपने घर , मकान , गाडियां यह सब जला दिया लेकिन किसलिए यह तो बता दो ??
हॉस्पिटल बंद रहेगा उस एरिया में सिर्फ तुम दो भाई लोगो की वजह से
रोड पर खड़ी रिक्शा और गाडियां सब जलाई तुम दो भाईयो ने , अब स्कूल कैसे जाएंगे बच्चे , हॉस्पिटल में दवाई तो तुम ही लोग लेने जाते हो अबकही ओर जाओगे पैसे भी तुम्हारे खर्च होंगे या कोई और आएगा ??

रोड तोड़ दी अब सरकार बनवाए तुम्हारे लिए ??
हॉस्पिटल बनवाए तुम्हारे लिए ताकि तुम फिर तोड़ दो
मस्जिद, मंदिर तोड़ दिए अब कहां जाओगे वैसे तुम दोनों भाई इस लायक नहीं हो की मंदिर ओर मस्जिद जाओ तुम्हे इतनी अक्ल ही नहीं है कि लड़ाई नहीं करते लड़ाई भी ऐसी मेरे पास लफ्ज़ भी नहीं है तुम दी भाईयो के लिए।
बहुत गुस्सा आ रहा है तुम दोनों भाइयों के लिए कितना लिखूं उतना कम है बेशर्मी की सारी हदे पार तुमने कर दी।

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चुनाव के बाद


चुनाव के बाद क्या होता है, आप सभी एक बात समझिए हम लोग क्या देखते है ? क्या पढ़ते है ? टीवी देखते है और अख़बार पढ़ते है आजकल तो क्या दिखाया जा रहा है और क्या पढ़ाया हा रहा है यह सबको पता है इसके साथ ही मोबाइल के द्वारा हम सोशल मीडिया पर जो समय बिताते है उसमे भी बहुत सारी बाते झूठी होती है और कुछ वॉट्सएप बाबा का ज्ञान अब किस पर विश्वास करे ओर किस पर नहीं यह हम सभी के लिए एक चुनौती भरा विषय है।

हम सभी लोग अपने अनुभव पर वोट दे रहे है जैसा हम लोगो के साथ हो रहा है उसी के आधार पर वोट जाता है जो सुनते है देखते है बस वही सब इसी आधार पर वोट दिया गया है यह बात स्पष्ट हो चुकी है।

दिल्ली वालो के बारे में बहुत कुछ लोग बोल रहे है लगातार कुछ ना कुछ लिखा जा रहा है दिल्ली वाले मुफ्तखोर हो गए है दो कौड़ी की बिजली पानी के लिए बिक गए है।

दिल्ली की जनता ने फ्री के लिए कोई वोट नहीं किया उन्होंने काम भी किया इस बात से आपको सहमत होना चाहिए हर बात में नकारना गलत बात है। और काम नहीं भी किए ऐसा भी है। उसके लिए मै दुबारा लिखूंगा की उन्होंने क्या किया है और क्या नहीं

यह बात बहुत गलत है जिस प्रकार से लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिए।

कौन किसको वोट देना चाहता है यह उसका मौलिक अधिकार है आप उसे उसका निर्णय लेने से नहीं रोक सकते

बहुत सारे विचार मंथन करते हुए लोगो ने अपना दिया है और इस बात को स्वीकार करना चाहिए

जीत अब किसी भी पार्टी की हुईं है इसका यह तात्पर्य नहीं है आपको देशद्रोही बोलने का अधिकार है दिल्ली देश की राजधानी है और यह अधिकार आपको बिल्कुल भी नहीं है कि आप अभद्र शब्दो का प्रयोग करे

अपने शब्दो पर नियंत्रण रखना अतिआवश्यक है बहुत जल्दी कुछ लोग अपना आपा खो देते है यदि आप स्वयं  विवेकी नहीं हो तो आप दूसरों को क्यों कोश रहे हो ??

खुद के विचार इतने सीमित दायरे में सिमट गए और आप इल्जाम दिल्ली की जनता पर लगा रहे है।

यह समय आत्ममंथन का है , देशमंथन, विचारमंथन का है दिल्ली मंथन का है अपने विचार ओर मत के लिए ही अपना नेता चुनने का अधिकार दिया है और उसके चलते ही दिल्ली का चुनाव तय हुआ है, अब आप इसमें घृणा के बीज ना बोए तो बेहतर है।

चुनाव के बाद सोचिए और समझिए।