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धर्म की राजनीति

धर्म की राजनीति इस समय जोरों पर चल रही है, एक समय था जब हम देख रहे थे की जात पात की राजनीति चलती थी लेकिन अब कुछ लोग धर्म की राजनीति पर आ चुके है। यह लोग सिर्फ नफरत की आग ही फैला रहे है, इसमे कोई नई सीख नहीं दे रहे , न ये प्यार , भाई चारा सीखने की कोशिश करते है।

नफरत फैलाना का काम तो हर कोई कर रहा है जरा गुरुद्वारे में जाकर देखो वो तो मालिक की सेवा कर रहा है, उसे नया तुम्हारे धर्म से मतलब है और ना ही तुम्हारे त्योहार से कोई आपत्ति वो बस अपना काम कर रहा है।

लेकिन तुम क्या कर रहे हो? नफरत के बीज दिलों में बो रहे हो, वह बीज तो सिर्फ नफरत का पेड़ ही बड़ा करेंगे।

आज रविवार के दिन मैं अपने दोस्त के साथ बांग्ला साहिब गुरुद्वारे गया, काफी समय के बाद गया था मैं गुरुद्वारे आज मैंने कुछ बाते सीखी जो आप सभी के साथ मैं सांझा करता हूँ।

1. जूतों को रखने की सेवा यह बांग्ला साहिब गुरुद्वारे मैं काफी लंबे समय से हो रही है, यह कुछ मंदिरों में होती है लेकिन सभी मंदिरों में नहीं होती जिस दुकान से हम प्रशाद लेते है उसी की दुकान पर अपने जूते व चप्पल रख देते है, या कोई और रखने का स्थान होता है तो वहाँ सेवा के बदले लोग पैसे ले लेते है या लोग दे देते है जो नहीं होना चाहिए।

2. बांग्ला साहिब गुरुद्वारे में फोन का इस्तेमाल निषेध है यह सभी मंदिरों में भी कर देना चाहिए और कैमरा व मोबाईल सिर्फ और सिर्फ मंदिर द्वारा ही लगाया जाए, जिससे की कुछ देर के लिए आप अपने फोन व अन्य कार्यों से स्वत ही दूर हो जाए।

3. सेवा भावना को बढ़ावा देना: बांग्ला साहिब गुरुद्वारे में जिस स्थान पर सरोवर था वहाँ अब गरीबों के लिए इलाज की व्यवस्था की जाएगी, अब वहाँ diognoistic सेंटर होगा, जिसके कार्य के लिए कोई मजदूर या किसी बुलिडेर को कान्ट्रैक्ट नहीं दिया गया, इस स्थान पर सभी लोग अपनी सेवा देकर कार्य को पूरा कर रहे है।

यदि हम मंदिरों की और देखे तो हम सभी चन्दा लेने के लिए बाहर निकल जाते है, और एक पत्थर भी उठा कर सेवा नहीं देना चाहते उल्टा ही सरकार और मंदिर परिसर को कोसना शुरू कर देते है की आने जाने में मुसीबत कर दी, इनकी वजह से परेशानी हो रही है ऐसी ऐसी बाते हम सुनते है।

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बड़ी कुटिल

बड़ी कुटिल
बड़ी छली
सी सोच लगती है,
जब मै राजनीति की बाते करने लगता हूं
जिंदगी ही जिंदगी पर एक बोझ लगती है
अभी शुरुआत है या अंत पता नहीं चलता
एक धर्म , एक जाती , एक देश , एक वर्ण
किसी दूसरे का अधिकार बस छलते हुए ही है दिखता
अपनी सत्ता , अपना लालच ,दम, अहंकार और साहस पर क्यों ए इंसान तू चलता है ?
कौन हिन्दू है ? और कौन मुस्लिम है ?
इसका फैसला क्यों ?
ये तुच्छ सा इंसान करता है
धर्म परिवर्तन तो कभी धर्म के नाम पर ही लड़ता है
तकलीफ किसको किससे है ?
भाषा से है या वर्ण से है
ये कोई क्यों नहीं समझता है ?
एक देश है उसके टुकड़े तुम करना चाहो
क्या ऐसा दुस्साहस भी कोई करता है? बड़ी कुटिल बड़ी चली सी सोच लगती है