रात के उन ख्यालों को कैसे अकेला छोड़ दु
उन ख्यालों संग ना खेलू क्या ………………………
ख्यालों को कैसे अकेला छोड़ दु जो अकेले है
रात में उन के साथ क्या खेलू नहीं
उन ख्यालों से क्या मिलू भी नहीं
वो ख्याल ही है जिनकी वजह से नींद का मज़ा आता है
ये ख्याल मुझे हर रोज नई दुनिया की सैर कराते है
मेरी कल्पनाए एक रूप ले लेती है
उन कल्पनाओ के साथ मैं इन ख्यालों को सजाता हूँ,
देखता हूँ , ओर खूब खेलता हूँ मुझे इन ख्यालों संग अच्छा लगता है
ये ख्याल मेरा बहुत ख्याल रखते है
मैं उठू या नहीं उस रात के बाद इस बात की भी चिंता नहीं
यह ख्याल मुझसे दूर कर देते है फिर कैसे ना देखू मैं ख्याल,
फिर कैसे रहू रात भर बिन ख्याल