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कर्म से भाग्य

कर्म से भाग्य बदल सकते है, ये बात क्या पूर्णतया सत्य है ?
जी हाँ, कर्म से आपके भाग्य में बदलाव होता है साथ ही जो हाथ की रेखाए उन्मे भी परिवर्तन होता है, ऐसा अनुभव से ही कह पा रहा हूँ,

भूतकाल जिसमे हम जाकर कुछ भी ठीक नहीं कर सकते लेकिन कुछ फेर बदल की जा सकती है, जो आपके पूर्व के कर्म बन चुके है उनको पूर्णतया बदलना मुश्किल है परंतु असंभव नहीं असंभव का अर्थ यहाँ इस प्रकार है की जो घटना आपके साथ होनी थी उसका रुख बदल जाएगा, उसमे कई ओर रास्ते खुल जाएंगे , आपको दरवाजों की चाबी मिल जाएगी जिन दरवाजों पर आपके लिए ताले लगे हुए थे उनकी या तो चाबी मिल जाएगी या फिर पहले से ही खुले हुए मिलेंगे ( इसीको फेर बदल कहते है )

जैसे जैसे आपके कर्म , आपके विचार अच्छा सोचते है, आपके साथ फिर से कुछ नई घटनाओ का जमा घटा होता है जिसके कारण आने वाली घटनाए बदल जाती है उनका परिणाम बदल जाता है।

इसको करके देखे : आप किसी ज्योतिष के पास जाए ओर उनसे पूछे की क्या अंदेशा है मेरे साथ अगले 5-10-15 साल में घटनाओ का फिर आप उसके हिसाब से अपने विचार ओर कर्मों में बदलाव कीजिए ओर उन्हे लिखित रूप में अपने पास रखे आपको समझ आ जाएगा की घटना तो उन्होंने सही बताई लेकिन परिणाम बड़े रोचक आ रहे है यह सब आपके साथ तभी होगा जब आप अपने विचारों ओर कर्मों को एक साथ पूरी मेहनत के साथ कार्य करेंगे, और आप अपने कर्म से भाग्य को बदल पाएंगे।

स्वयं के अनुभव से

शब्द क्या है?

शब्द क्या है? 
हम लोग सुबह से शाम तक सारा दिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, परंतु फिर भी बहुत ही कम लोग ऐसे हैं जो शब्दों का महत्व जान पाते हैं। हमें अपनी सभी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। परंतु देखा जाए तो असल में शब्द है क्या?         
अधिकांश है हमारा सोचना होता है कि शब्द केवल ध्वनियों के मिलाने से बनते हैं। परंतु केवल ध्वनियों के योग से ही शब्द नहीं बनते शब्दों में भावनाएं अभिव्यक्त होती हैं। यह सारा संसार ही शब्दों के पीछे ही चल रहा है।                                     

शब्द क्या है?
शब्द

चाहे आप संसार के किसी भी विषय का अध्ययन करें आपको शब्दों की आवश्यकता जरूर होगी।      
हर शब्द मूल के है क्या?        
हमारे द्वारा बोला गया कोई भी शब्द या कोई भी ध्वनि कभी खत्म नहीं होती। वह ध्वनि इस अनंत ब्रह्मांड में गूंजती रहती है। इस ब्रह्मांड का कोई आदि व अंत नहीं है। और इसी अनंत ब्रह्मांड में हमारे द्वारा बोले गए शब्द व ध्वनियां गूंजती रहती हैं । 
      
 शब्दों के कई प्रकार के प्रभाव भी होते हैं।                                   

हमने ध्वनि चिकित्सा के बारे में भी पड़ा है। कई प्रकार के अलग-अलग संगीत की ध्वनि मनुष्य के इलाज के लिए फायदेमंद होती है। यहां तक कि हम जो विभिन्न भाषाओं में गीत संगीत सुनते हैं। चाहे वह आधुनिक संगीत हो या फिर शास्त्रीय संगीत या फिर किसी भी भाषा का संगीत सब शब्दों के योग से ही तो बने हैं। इसी संगीत से मनुष्य सदियों से अपना मनोरंजन करते आए हैं।
     
इसके अलावा मनुष्य के संपूर्ण जीवन के क्रियाकलापों में भी अलग-अलग प्रकार के संगीत का वर्णन मिलता है।

जैसे हम देखते हैं यदि कोई मनुष्य बहुत खुश है तो वह अलग प्रकार से गुनगुनाने लगता है। अगर कोई मनुष्य किसी बहुत ही व्यथा में है पीड़ित है तो वह आंसुओं के साथ कुछ ना कुछ गुनगुनाने लगता है। रोता हुआ मनुष्य भी अपनी भावनाओं के साथ कुछ शब्दों को व्यक्त करता है मनुष्य के जीवन सभी भावनाओं में मनुष्य संगीत का इस्तेमाल करता है।


  इन्हीं शब्दों के योग से ज्योतिष, खगोल शास्त्र, मंत्र शास्त्र आदि अनेकानेक विषय बनते हैं,जब हम किसी भी शब्द का उच्चारण करते हैं, तो उस शब्द के साथ कुछ ध्वनि तरंगे निकलती हैं वे ध्वनि तरंगे इस ब्रह्मांड में गूंजती हैं, और अलग-अलग ध्वनि तरंगों का अलग-अलग प्रभाव भी होता है।

जिस प्रकार हिंदू धर्म में ओम शब्द का वर्णन है, उसी प्रकार बौद्ध व जैन धर्मों में भी ओम शब्द का वर्णन है, भले ही यह अपने मतों को लेकर अलग-अलग हो परंतु इस एक शब्द पर यह सभी धर्म एकमत हैं,  अगर हम पाश्चात्य धर्मों को देखें जैसे कि इस्लाम व ईसाई धर्म में भी आमीन शब्द का प्रचलन है, हिंदी शब्दों में कुछ ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं, जो कि मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

हम सनातन धर्म में भी ओम, ऐऺ , क्लीम, श्री आदि बीज अक्षरों का वर्णन है। यह सभी कुछ सकारात्मक ध्वनि तरंगों को पैदा करके मनुष्य के जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव लाने में सक्षम है।

हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में न जाने कितने ही अच्छे और बुरे शब्दों का इस्तेमाल पूरा दिन होता है, परंतु हमें अपने द्वारा इस्तेमाल की जाने वाले शब्दों को ध्यान से इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि मुख से निकले हुए शब्द वापस नहीं आते, और अगर कोई व्यक्ति शब्दों का अच्छे से इस्तेमाल करने में सक्षम है, शब्दों के द्वारा मनुष्य के मन पर घाव भी किया जा सकता है।

हम आज के समय में देखते हैं कि इतने लोग मनोचिकित्सक के पास जाते हैं, जबकि वह केवल मनोरोगी से बात करता है, वह केवल सामने बैठे मनोरोगी के विचारों को उसके शब्दों के रूप में सुनता है, और अपने विचारों को अपने शब्दों के रूप में उसके मस्तिष्क की ओर प्रवाहित करता है, यह सभी खेल केवल शब्दों का ही है।

हम अपने मुंह से न जाने कितने ही अपशब्द निकालते हैं, और शब्दों के ही द्वारा हम परमात्मा का स्मरण भी करते हैं। हम सोचते हैं कि जिस समय हम परमात्मा का स्मरण कर रहे हैं, और शब्द निकाल रहे हैं, उस समय हमें परमात्मा देखता है और अपने मुखमंडल से  अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए यह नहीं सोच पाते।

अगर हमें शब्दों की असली महत्व को जानना है तो कुछ समय हमें निशब्द होकर रहना चाहिए, अर्थात मौन धारण भी करना चाहिए। अगर हमें अपने शब्दों में प्रभाव लाना है तो हमें शब्दों का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए। अगर हम दिन रात व्यर्थ के शब्द ही बोलते रहेंगे तो हमारे शब्दों की अहमियत नहीं रह जाएगी और हमारे शब्दों का प्रभाव भी कम हो जाएगा।

इसलिए हमें प्रत्येक शब्द को बहुत ही सोच समझ के इस्तेमाल करना चाहिए, संत कबीर दास जी ने भी अपने दोहे में कहा है, कि हर एक शब्द को हमें तराजू में तोल कर तब मुख से निकालना चाहिए।  
                                                
“भर सकता है घाव तलवार का बोली का घाव भरे ना”

Written by Pritam Mundotiya

शब्द का घाव न भरे कभी
शब्द के घाव ना भर पाए