Posts tagged kavita by rohit shabd

तालिया

मुझे तालियों की गड़गड़ाहट का शोर नही चाहिए
इसमे भी मुझे हिंसा दिखती है
दो हाथो के बीच जो आवाज होती है उसे शब्दो की
की गूंज को दबाना कहते है, इसलिए तालिया ना बजाओ

तालिया बजाकर मेरी तौहीन ना करो
ये दो हाथो के बीच का शोर बस इसे थोड़ा कम ही करो,अच्छा तो यही होगा की तुम इसे बंद करो

ये जो तुम्हारी तालियो की गड़गड़ाहट है न मुझे अच्छी नही लगती
आजकल तो ये तालिया हर गली चौराहे पर 10-10rs में बिकती है,

तुम्हारे जो इन हाथो के बीच का शोर है ना
किसी ने इसे भी हिंसा कहाँ है, इस हिंसा को बंद करो

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चाय की चुस्की

चाय की चुस्की की तलब सुबह के समय तो ऐसी होती है,
मानो बिना चाय मेरे दिन की शुरुआत ही न हो रही हो।
लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा,
चाय की महक तुम तक भी पहुच रही है, यही बस बात होगी।

चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है,
मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।
चाय की चुस्की, चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है,
की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।

कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना,
चाय के बिना दिन की शुरुआत अधूरी सी महसूस होना।
चाय की तलब जैसे जीवन की एक आधारभूत आवश्यकता,
जो मन को शांति देकर दिल को बहुत सुकून देती है।

चाय की चुस्की लेने से लगता है दिल खुश हो जाता है,
कलम और कागज़ की जोड़ी बनती है, जब चाय की मिठास के साथ।
चाय की तलब इतनी है कि अक्सर शब्दों की कमी हो जाती है,
की सिर्फ एक चाय की मुलाक़ात से ही सब कुछ कह जाती है।

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जिंदगी क्या है?

क्या है जिंदगी? मुस्कराहट का ही तो एक नाम है जिंदगी

जरा इसे मुस्कुराने ही दो,

ना गम के साये में खो जाने दो

यह है जिंदगी

बस ये जानने की एक कोशिश है

समझने की एक इच्छा है,

उस इच्छा को पूरा करना और जीवंत होकर

जीना ही तो है  जिंदगी

सबको बताना जरूरी नही है कि क्या है जिंदगी

बस खुद जान लेना बेहद जरूरी है जिंदगी

क्योंकि

जिसे मिली उसे कदर नहीं है

जिसे न मिली उससे पूछो जरा

क्या है जिंदगी ?

न तड़पाओ न रोने दो बड़ी प्यारी है जिंदगी

इसे खिलने दो जरा, यह खिलना चाहती है

क्योंकि खिलखिलाती सी है यह जिंदगी

गुदगुदाती – फुसफुसाती सी है जिंदगी

कभी बहुत हसाती है तो

रुलाती भी बहुत है जिंदगी

मिलकर जीने का नाम है जिंदगी

बिछड़ना भी है जिंदगी

फिर मिल जाने का नाम भी है जिंदगी

प्यारी सी मुस्कान है यह जिंदगी

खुद में जीने का नाम है जिंदगी

रूठे हुए को मनाना है तो

किसी अपने से रूठ जाना भी है जिंदगी

इंतज़ार भी है जिंदगी

अधूरी प्यास है जिंदगी

सहलाती हुई माथे पर हाथ रखती माँ है

माँ का आँचल है और

पिता की डांट का नाम है जिंदगी

खुदसे प्यार करने का नाम है जिंदगी

मैं से मैं में मिल जाना है जिंदगी

“तुम” और “मैं” को खत्म कर देना है जिंदगी

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मन को कैसे रोके

इस मन को कैसे रोके जो मन भीतर हो रही है उछल कूद है

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन भीतर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

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मन भीतर

मन भीतर हो रही है उछल कूद

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन के अंदर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

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नाम था उस शहर का

मेरी कविता का शीर्षक है “नाम था उस शहर का”

चल दिए वो जिस शहर की ओर नाम था उस शहर का कुछ और , बस वो अपनी मस्ती में हो रहे थे धुन सवार कही कोई न कह दे , कुछ उनसे के वापस चलो फिर उसी ओर

चल दिए बस ना जाने कही, इस तरह छोड़ कर अकेले मुझे,
जीवन की इस भीड़ में छूट गए आप, मेरे दिल के साथ तुम्हारी याद भी गयी।

आज तक नहीं भूल सकता, वह दिन जब हम साथ थे,
खुशियों से भरी हर पल था, हम दोनों के लिए तय।

पर अब आप चले गए, चले गए मेरी जिंदगी से दूर,
मेरे दिल में आपकी यादें बसी हैं, जो हमेशा मेरे साथ हैं और रहेंगी।

चल दिए बस ना जाने कही, ये बात हमें हमेशा सताती है,
पर मैं जानता हूँ कि कहीं ना कहीं आप भी मेरे साथ हो,
क्योंकि हमारी यादों को कोई दूर नहीं कर सकता।

चल दिए बस ना जाने कही, लेकिन आपकी यादें हमेशा हमसे होंगी,
जब भी तन्हाई के लम्हे होंगे, तो आपकी यादें हमेशा हमारे साथ होंगी।

चल दिए बस ना जाने कही, ये बात हमेशा दर्द देती है,
पर मैं जानता हूँ कि आप हमेशा मेरे साथ होंगे,
क्योंकि हमारी यादों को कोई दूर नहीं कर सकता।

चल दिए वो जिस शहर की ओर नाम था उस शहर का कुछ और , बस वो अपनी मस्ती में हो रहे थे धुन सवार कही कोई न कह दे ,

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मैं कुछ लिखना चाहू

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

मन भीतर की कल्पनाओ से

इस जीवन को जैसा चाहू वैसा मैं बनाऊ

इस मन को

इस मन को

जीवन की

उधेड़ बुन में

मैं ना उलझाऊ – मैं ना उलझाउ

मन अलग अलग राहों में उलझे

कैसे मैं इसको सुलझाऊ

मन भीतर

मन भीतर

मन भीतर करे राग द्वेष

तन बैरी हो जाए

इच्छाओ का लगाके मेला

इस तन को खूब नाच नचाए

जगत के इन दृश्यों में

यह मन अटक बार बार जाए

जगत जाल में यह तन फँसता जाए

अरे मेरा तन बैरी हो जाए

यह तन बैरी हो जाए

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

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जिंदगी कुछ ऐसी

जिंदगी कैसी है, तेरे बिना कुछ ऐसी है
और कुछ वैसी है

जिंदगी और जब तू साथ है
जिंदगी और जब तू साथ है
तो लगता है कि कुछ है जिंदगी

हाल क्या बताऊँ ?
कुछ हाल ऐसा है कुछ हाल वैसा है
बस मसक्कत से भरी है जिंदगी

जब तू दूर जाती है तो रूठ जाती है
जिंदगी तू पास आती है
तो मुस्कुराती और खिलखिलाती भी खूब है
ये जिंदगी

गम ए छुपाये नहीं ये छुपता लगता है
बेमुरम्मद सी है जिंदगी
आंसुओ से आँखे भर भर जाती है
जब तू इन आँखों से दूर चली जाती है
चिरागे रोशन तू कर जाती है
जब तू फिर से पास आती है

ना जाने क्यों तेरे बिना ?
बेतहासा बेहाल सी है जिंदगी लगता है, कुछ फटेहाल सी है जिंदगी
लेकिन जब तू पास होती है
तो कमाल सी है जिंदगी
ना जाने क्या क्या करती धमाल सी है ये जिंदगी

इसलिए तू दूर जाना मत मुझे छोड़ कर
वरना लगेगी दुर्भर सी ये जिंदगी
अगर तू पास है तो हर हाल में मस्त है ये जिंदगी
तू साथ है इसलिए जबरदस्त भी है ये जिंदगी

तेरे बिना कुछ ऐसी है कुछ वैसी है जिंदगी

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