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हल्का फुल्का

हल्का -फुल्का सा है जीवन बस सारा बोझ तो इच्छाओ का है …..
बात अपने आप में हल्की दुलकी नहीं तो बहुत भारी , बात सारी मन को समझ आने का है ।

हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
बात अपने आप में हल्की-दुलकी नहीं, तो बहुत भारी,
बात सारी मन को समझ आने का है।

हर दिन की दौड़ में खो रहे हैं हम,
कहाँ हैं हमारे अपने, खुद को भूल रहे हैं हम।
इच्छाओं की जंगली धूम में खो जाते हैं हम,
परमार्थ के बंधनों में बंध रहे हैं हम।

छिपा है सच्चाई का राज,
जीने की ख्वाहिशों से बनती है इसकी आवाज।
पर जब तक मन को न समझें, न सही राह चुनें,
हर क्षण बस नापसंद बिताएँ, खो दें अपनी खुशियाँ।

हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन के अन्दर की गहराइयों को समझने का है राज।
अपने अंदर के संघर्षों को न छिपाएँ,
उनसे मैत्री करके, समझ के आगे बढ़ जाएँ।

हर स्वास्थ्य समस्या का हल नहीं दवाओं में है,
हर परेशानी का समाधान नहीं सोच-विचार में है।
हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन को छूने के लिए, अपनी भावनाओं को पहचानो।

हमेशा खुश रहें, आत्माओं को सम्मान दें,
आपातकाल में भी आपने को न भूलें।
हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन को समझें, खुद को पहचानें, और ख्वाबों की उड़ान भरें।

अहंकार का कद

अहंकार का कद चार फीट ही ठीक….
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान ….
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।

आत्मसम्मान ज़रूरी होता वो मर्यादित….
उसकी सीमा में  रहना स्वय का हित ।
यह सफल स्वस्थ जीवन का पथ…..
ओ सारथी पथ पर सही से चलेगा रथ

अहंकार का कद चार फीट ही ठीक,
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान,
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।

यह जीवन का नियम, यह सत्य है,
अहंकार के बिना व्यक्ति अधूरा रहे।
पर ध्यान रहे, बड़ा अहंकार न करो,
वरना खो दोगे सबकुछ, हो जाओगे हरजाये।

चार फीट अहंकार से भरे रहो,
आत्मसम्मान को सदा बनाए रखो।
पर अहंकार में खुद को न खो दो,
अपने मूल्यों को न समझो छोड़ दो।

जीवन की ऊर्जा बढ़ाने का यह राज,
सम्मान का रखो आदर्श संग ताज।
घमंड और अभिमान से दूर रहो,
सच्चे आत्मसम्मान में बस जीने रहो।

अहंकार का क़द चार फीट ही ठीक,
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान,
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।



दुनिया के लिए

दुनिया के लिए मैं एक व्यक्ति , लेकिन वही  मैं परिवार के लिए पूरी दुनिया ….
ये सब नज़रिए का फ़र्क़ , जब फ़र्क़ ख़त्म होते  वहाँ नज़रिया बड़ा ये उसका नफ़ा ।

मानो तो सब है एक परिवार , सारी पृथ्वी के सारे प्राणी एक परिवार ….
वसुधैव कुटुंबकम इस बात का उचित आधार और पूर्ण विचार ।

ये धरती, ये आकाश, ये सृष्टि अपार,
मैं एक व्यक्ति, उसका छोटा सा अंश हार।
परिवार के लिए हूँ मैं पूरी दुनिया,
उनके लिए हर कठिनाईयों का नया सूर्य।

बच्चों के खेलने के लिए पार्क बनाता हूँ,
उनके सपनों को मैं हकीकत में लाता हूँ।
पत्नी के लिए चाँद लाता हूँ रोज़ाना,
उसके आँचल से मैं सबको रोशनी देता हूँ।

माता-पिता के लिए मैं एक आश्रय हूँ,
उनके सपनों को साकार करता हूँ।
उनकी ऊंचाइयों को मैं छूने का अधिकार,
मैं उनके लिए बढ़ने का प्रतिकार।

दोस्तों के लिए मैं हंसता हूँ और रोता हूँ,
उनकी परेशानियों को दूर भगाता हूँ।
खुशियों के मोमेंट्स में मैं साथ देता हूँ,
उनकी ज़िन्दगी को मैं सजाता हूँ।

सभी के लिए मैं एक दोस्त, एक साथी हूँ,
उनकी मुसीबतों में मैं उम्मीद का बाँसी हूँ।
जब फर्क़ ख़त्म होते, नज़रिए समाने के,
मैं उसका नफ़ा हूँ, ये ज़िंदगी बदलाने के।

धरती के मालिक, परिवार की आभारी,
मैं व्यक्ति और उसका अद्वितीय पारी।
जीवन का सफर, संघर्षों से भरा,
सबके लिए मैं आगे बढ़ता चला, दुनिया के लिए


वो नहीं है बराबर

अंगुलियाँ बताती की वो नहीं है बराबर
हर उँगली का अपना जादू और हुनर ।
देती उँगलियाँ परस्पर एक दूसरे का साथ…
हथेली संग मिलकर कहलाती वो हाथ ।

अंगुलियाँ से हाथ की सुंदरता….
प्यार करे सहलाये मारे बचाये ,थप्पड़ या मुक्का सब इनकी क्षमता ।
इसी प्रकार जीवन में कोई छोटा कोई बड़ा ….
परस्पर सहयोग से कार्य करे नहीं होगा झगड़ा ।

अंगुलियाँ बताती की वो नहीं है बराबर
हर उंगली का अपना जादू और हुनर।
देती उंगलियाँ परस्पर एक दूसरे का साथ,
हथेली संग मिलकर कहलाती वो हाथ।

बड़ी उंगली सभी को राह दिखा जाती,
मध्यम उंगली संगठन को बनाती।
अनामिका सृजनशीलता में निपुण,
कनिष्ठिका योग्यता से भरपूर है यह दुनिया किसी की नहीं।

अंगुलियों की संगठनशीलता,
अद्वितीयता का प्रतीक बनती है।
एक दूसरे को समर्थन देती,
संयोग का प्रभाव जगाती है।

हर उंगली में छिपी है अनगिनत शक्ति,
प्रतिभा, कौशल और संवेदनशीलता की लिप्त।
जब वे मिल जाती हैं, एकजुट होकर,
दुनिया को छूने का अवसर मिलता है सबको।

अंगुलियों की मिलनसार ताकत,
साकार और असाकार के बीच जो बांध लेती।
वे बनाती हैं हाथ को समृद्ध,
सफलता की ओर अग्रिम बढ़ाने की कल्पना खुद ही कर लेती।

अंगुलियाँ हैं बराबर नहीं होती,
पर अपने महत्व में सभी को झोंकती।
हर उंगली अपना जादू प्रगटाती,
हुनर की चमक दुनिया को दिखाती।

जीवन आप रहे

जो जीवन आप रहे जी वो लाखों लोगो का सपना…..
अपनी ख़ुशियाँ बनाये रखे, बस नहीं चाहिए दिल किसी का दुखना ।
बहुत सी ख्वाहिशें अभी होनी है पूरी….
ख़्वाहिशों अनगिनत रह जाती अधूरी ।

लाखों लोगो का सपना हमारा जैसा जीवन…..
जो मिला है रहे इसमें खुश ,स्वस्थ रहे तन मन ।
दिल न दुखे मेरे किसी कृत्य से किसी का…..
यह कमाए कर्म ही हमारे मित्र और सखा।

जो जीवन आप रहे जी वो लाखों लोगों का सपना…
अपनी ख़ुशियाँ बनाये रखे, बस नहीं चाहिए दिल किसी का दुखना।

बहुत सी ख्वाहिशें अभी होनी हैं पूरी…
ख़्वाहिशों अनगिनत रह जाती अधूरी।

जीवन की दौड़ में हम भटकते रहते हैं,
ख्वाहिशों की लहरों में उलझते रहते हैं।

हर एक सपना हमारा बनना चाहता है,
पर समय और परिस्थितियों की बाधाएं आतीं हैं।

मगर हम निरंतर चलते रहते हैं,
ख्वाहिशों के साथ अपना जीवन बिताते हैं।

हर एक सपना हमारा एक उम्मीद है,
जो हमें जीने का मार्ग दिखाती है।

बस नहीं चाहिए दिल किसी का दुखना,
अपनी ख़ुशियाँ बनाए रखें, यही है अपना कामना।

ख्वाहिशों की सीमाएं अधूरी न रहें,
हमेशा आगे बढ़ते रहें, ख्वाहिशों को पूरा करते रहें।

जीवन का सफर है यह अनंत और अद्वितीय,
ख्वाहिशों के संग बिताएं यह अद्वितीय समय।

सपनों की दुनिया में हम बस रहें,
ख्वाहिशों की परछाईयों में खो रहें।

हमारे दिल के सपने हमेशा जीवित रहें,
ख्वाहिशों के संग चलते रहें, पूरी करते रहें।

पुराने पत्ते

पुराने पत्ते गिरते प्रकृति नये पत्ते से होती सुशोभित….
पुराने पत्ते होते धरती माँ की गोद में समाहित ।
यह जीवन चक्र है स्वीकारता का नियम…
नया आ और पुराना जा रहा है ,आनंद का आदित्य संगम ।
प्रकृति का बदलाव में विश्वास ….
सब सतत घटता सब कुछ अनायास ।
पुराने पत्ते गिरते धरती की गोद में…
छोटी बढ़ी घटनाये हो रही विचित्र संयोग से ।

पवित्र धरा पर फूलों की चादर बिछाई है,
नये पत्तों ने रंगों का मेल दिखाई है।
वृक्षों की छाया में बचपन की यादें चमकती हैं,
पुराने पत्तों की आहट में मन हर्षित हो जाता है।

जैसे जीवन का नियम है स्वीकारता का,
पुराना जाता है, नया आता है बिना ठहरता।
पत्ते गिरते हैं वृक्षों से एक नयी उम्मीद के साथ,
नये पत्ते आते हैं खुशियों की लहरों के साथ।

हर रंग पुराने पत्तों की कहानी सुनाता है,
हर नया पत्ता नयी उम्मीदों को जगाता है।
धरती माँ की गोद में पत्तों की छाया रहती है,
वो अनन्त सृष्टि की गाथा सुनाती है।

यह जीवन चक्र है सुंदरता की कहानी,
पुराना जाता है, नया आता है सदैव जवानी।
प्रकृति की गोद में हर रोज़ उत्थित होते हैं,
नये पत्ते जीवन को नवीनता से भरते हैं।

चलो, आओ इस खेल में सम्मिलित हो जाएँ,
पुराने पत्तों की यात्रा में संगीत खिलाएँ।
हर एक पत्ता अनमोल है, चमकता है यह संसार,
धरती माँ की गोद में हम सब समाहित हैं प्यार।

यह जीवन चक्र है स्वीकारता का नियम,
पुराना जाता है, नया आता है सदैव निरंतर।
चलो, इस आदित्य संगम में खो जाएँ हम,
नयी उम्मीदों के साथ जीवन को समर्पित करें।

दरिया और झरने

दरिया और झरने का हुआ संवाद….
दरिया बोला जानते हो सुमंद्र का स्वाद ।
झरना बोला सुमंद्र विशाल पानी खारा ….
दिखता नहीं किनारा जल की अथा धारा।
दरिया बोला झरने बनोगे तुम समुंद्र…
झरना बोला छोटा हूँ मेरा पानी मीठा
नहीं होना खारा रुद्र और रहूँ सदा क्रुद्ध ।

दरिया और झरने के बीच हुआ एक संवाद,
बोला दरिया, “जानते हो सुमंद्र का स्वाद।”
झरना बोला, “सुमंद्र विशाल पानी खारा,
दिखता नहीं किनारा, जल की अथा धारा।”

फिर दरिया ने कहा, “झरने बनोगे तुम समुंद्र,
महासागर की तरह बहोगे नदियों की वंदर।”
झरना बोला, “मैं छोटा हूँ, मेरा पानी मीठा,
झरने के रूप में जनता हूँ अपनी महिमा।”

समय बिता, दिन बिता, संवाद रहा चलता,
दरिया और झरना, एक-दूजे से बहुत प्यार करता।
दरिया बड़ा, विशाल होता गया,
झरना छोटा, मधुर होता बना रहा।

फिर एक दिन आया, बादलों का तांडव,
बरसने लगी जल धाराएं ऊँची-ऊँची आवाज़।
दरिया और झरना, एक-दूजे को देखा,
हंस पड़े दोनों, आपस में बोले एक साथ।

दरिया बोला, “झरना, तू बहुत मीठा है,
तेरी धाराएं जैसे अमृत की वंदना है।”
झरना बोला, “दरिया, तू नदी का राजा है,
तेरी महिमा को देखकर हर कोई चाहे ताजा है।”

दरिया और झरना, एक-दूजे को गले लगाएं,
प्यार और सम्मान से एक-दूजे को भर जाएं।
वे हमेशा आपस में मिलकर बहते रहें,
सुंदरता और एकता की दुनिया बनाएं।

बचपन के खिलौने

बचपन के खिलौने
लट्टू कंचे फोटो रंग चिट ….
पढ़ते नंदन चंदामामा की
कॉमिक्स ,रहते थे हम फिट।

बचपन की यादे मीठी मीठी….
नींबू शिकंजी भी लगती थी अनूठी।
पड़ोसियों से माँग कर बर्फ….
इंजॉय ही इंजॉय थी सब तरफ़।

बचपन के खिलौने, अनमोल और खूबसूरत,
लट्टू, कंचे, फोटो, रंग, चिट-चिट छोटे-मोटे।
दिनभर खेलते थे हम उनसे,
खुशियों के रंग में रंगे जीवन के आखिरी पल तक।

नंदन चंदामामा की कहानियों का सफर,
हर रात नए चमत्कार से सजा आसमान।
उड़ जाते थे हम उस अंधेरे गगन में,
चंद्रमा की दुनिया में छुपी थी हर खुशियों की पहचान।

कॉमिक्स के पन्नों का जादू,
पल-पल बदलती थी दुनिया की भाषा।
शीर्षकों में खो जाते थे हम विश्वास की गाथा,
अपनी दुनिया में बसे थे हम जीवन की अपार साथा।

बचपन की यादों का जादू बना,
हमारे दिलों में बसी थी विनोद की धुन।
खेल-खिलौने, कविताएं और कहानियों का संगम,
हमारा बचपन था सच्ची खुशियों का ध्यान।

प्यारे खिलौनों की यादें आज भी ताजगी से भरी हैं,
बचपन की मस्ती और खुशियों की वह फुहारी हैं।
जीवन की इस रेलगाड़ी में, जब भी बहुत हो जाए थकी,
एक नजर डालते हैं हम बचपन के खिलौनों की दुकान पे।

बचपन के खिलौने, वो सुंदर और मधुर यादें,
हमारे दिल की आस्था और ख्वाहिशों की पहचान।
बस एक खिलौना नहीं, वो हमारी पूरी दुनिया थी,
जो हमेशा रहेगी हमारी जीवन की मधुर कहानी।

तन्हाई का रास्ता

तुमने जो तन्हाई का रास्ता मुझे दिखाया था उस पर आज भी मैं तन्हा ही हूं, तुमने जो तन्हाई का रास्ता मुझे दिखाया था,उस पर आज भी मैं तन्हा ही हूं।

ज़िन्दगी की जगमगाहट में खो गया हूं,
किसी के साथ न जाने कितनी रातें बिताया हूं।

तेरे जाने के बाद ये दुनिया सुनी हो गई,
हर रोशनी भी चली गई, अँधेरे में डूब गई।

तन्हाई की इस राह पर आज भी चलता हूं,
यादों के साथ आँसू बहाता हूं।

मेरी आवाज़ को धड़कनें सुनती हैं,
मगर खुद को तन्हा ही पाता हूं।

ये तन्हाई भरी ज़िंदगी अजनबी सी हो गई,
खुद को खो बैठा हूं, खुद से अलग हो गई।

क्या ये तन्हाई ही ज़िंदगी का मतलब है?
या कोई और मुझे समझा ही नहीं है।

छोटी शंका

छोटी सोच
ख़ुशियों को लेती वो नोच ।
शंका छोटी सोच का सपुत्र…
दोनों परस्पर बंधे एक सूत्र ।

स्वयं का करे आत्मनिरीक्षण ….
बड़ी सोच से करे सब परीक्षण
क्षण क्षण जीवन हो रहा पूरा….
देखा सपना न रह जाये अधूरा ।

छोटी शंका है अघोर,
ख़ुशियों का रोग जिसे था अभिमान।
इस सोच में उमड़ आती है शंका,
जो विचारों को बाँध देती है अभिमान की जंजीरों में।

जगत की सीमाओं से ज्यादा छोटी है,
इस सोच के आगे सब बेसर हैं।
ख़ुशियों के परिंदे उड़ जाते हैं,
जब इस सोच का सपुत्र नोच लेता है उन्हें।

प्रगति का पथ छोटी सोच से ढका होता है,
आगे बढ़ने की भीड़ को इससे बचना होता है।
हर व्यक्ति अनन्त संभावनाओं से युक्त है,
लेकिन छोटी सोच उसे हकीकत से दूर ले जाती है।

दोनों परस्पर जुड़े हैं एक सूत्र से,
बढ़ते जाते हैं वे साथ समय के साथ।
ख़ुशियों का रास्ता खोलने की कुंजी,
है महान सोच में, नहीं छोटी सोच की राजी।