दरिया और झरने का हुआ संवाद….
दरिया बोला जानते हो सुमंद्र का स्वाद ।
झरना बोला सुमंद्र विशाल पानी खारा ….
दिखता नहीं किनारा जल की अथा धारा।
दरिया बोला झरने बनोगे तुम समुंद्र…
झरना बोला छोटा हूँ मेरा पानी मीठा
नहीं होना खारा रुद्र और रहूँ सदा क्रुद्ध ।
दरिया और झरने के बीच हुआ एक संवाद,
बोला दरिया, “जानते हो सुमंद्र का स्वाद।”
झरना बोला, “सुमंद्र विशाल पानी खारा,
दिखता नहीं किनारा, जल की अथा धारा।”
फिर दरिया ने कहा, “झरने बनोगे तुम समुंद्र,
महासागर की तरह बहोगे नदियों की वंदर।”
झरना बोला, “मैं छोटा हूँ, मेरा पानी मीठा,
झरने के रूप में जनता हूँ अपनी महिमा।”
समय बिता, दिन बिता, संवाद रहा चलता,
दरिया और झरना, एक-दूजे से बहुत प्यार करता।
दरिया बड़ा, विशाल होता गया,
झरना छोटा, मधुर होता बना रहा।
फिर एक दिन आया, बादलों का तांडव,
बरसने लगी जल धाराएं ऊँची-ऊँची आवाज़।
दरिया और झरना, एक-दूजे को देखा,
हंस पड़े दोनों, आपस में बोले एक साथ।
दरिया बोला, “झरना, तू बहुत मीठा है,
तेरी धाराएं जैसे अमृत की वंदना है।”
झरना बोला, “दरिया, तू नदी का राजा है,
तेरी महिमा को देखकर हर कोई चाहे ताजा है।”
दरिया और झरना, एक-दूजे को गले लगाएं,
प्यार और सम्मान से एक-दूजे को भर जाएं।
वे हमेशा आपस में मिलकर बहते रहें,
सुंदरता और एकता की दुनिया बनाएं।