सौदा फिर कोई कर रहा है, जो बार बार मेरे ख्यालों में आ रहा है, बहुत निकालने की कोशिश की है उन्हे अपने ख्यालों से लेकिन वो ख्यालों का पिच नहीं छोड़ रहे है, सौदा फिर कोई कर रहा है
मेरे ख्यालों का
तुम याद रखना इस बात को सौदा कोई कर रहा है
फिर मेरे ख्यालों का
जुबान ,दिल ,दिमाग , सब अस्त व्यस्त हो रहे है, उन्हे मालूम नहीं है
क्युकी
अब सवाल उठ रहा है जहन में उनसे दूर हो जाने का, उनसे रूठ जाने का,
उनको भूल जाने का,
उनको सच्चा ओर खुद झूठा बनाने का,
उनका चित्र सजाने का खुद को चरित्रहीन बताने का, उनको मासूम बताने का और खुद शैतान बनाने का वक्त है।
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उलझने
कुछ उलझने पैदा करती है ये जिंदगी, ना जाने कैसे इन उलझनों को सुलझा मैं पाऊँगा, या फिर उलझनों में फंस कर ही मैं मर जाऊंगा, अजीब सी उलझन का शिकार भी हूँ मैं इन उलझनों से कैसे निकल मैं पाऊँगा क्या यू ही घुट घुट कर मैं यू ही मार जाऊंगा, कोई तो सुलझाए ये किस्सा जिंदगी का, कैसे सुलझेगा ये कोई तो मुझे भी बताएगा।
मुझसे ही कैसे छुटकारा मिलेगा, या यू ही अपने ख्यालों, अपने सवालों के ढेर में राख हो जाऊ , अब मैं अपने ख्यालों से दूर भी तो कहां जाऊंगा, इन्ही सवालों में फंसा ही नजर आऊँगा, इन सवालों की उलझन बढ़ती ही रहती है कैसे इन सवालों से मैं बच पाऊँगा।
उलझने भी बहुत है इस जिंदगी में क्या मैं उन सभी उलझनों को कभी सुलझा पाऊंगा, या फिर बिना सुलझाए ही रह जाऊंगा।
हम सभी अपनी समस्याओ को सुलझाना चाहते है लेकिन सुलझा नहीं पाते बल्कि उसे ओर उलझा देते है, कुछ ना कुछ गड़बड़ कर देते है, उस गड़बड़ से बचने के लिए हमे हमेशा अपने दिमाग को शांत रखना चाहिए ओर जिंदगी की हर समस्या को ध्यान से देखना चाहिए जिससे की उन समस्याओ को समझने में हमे मदद मिले ओर हम उसे आसानी से सुलझा सके।
शब्दों की गठरी
शब्दों में गाठ जो लगी है उन्हे खुल जाने दो इनको शब्दों की गठरी ना बनाओ तुम, इनका खुलना ही बेहतर होगा यदि ये गाठे नहीं खुली तो भीतर तकलीफ होगी, तुम्हारा शरीर , तुम्हारा मन , तुम्हारी बुद्धि रोग से ग्रसित हो जाएगी।
इन शब्दों को ध्यान, योग आदि क्रिया से हल्का करो तभी तुम अच्छा महसूस करोगे, यदि तुम्हारे मन, मस्तिष्क में प्रश्न घूम रहे है तो उन्हे पूछ डालो निसंकोच होकर यही हल है भीतर से शांत होने का कब तक, तुम इन अपाच्य शब्दों को भीतर ही रखोगे।
तुम्हारा ख्याल
तुम्हारा ख्याल कुछ इस तरह से आना
ओर जिंदगी का बेहाल सा हो जाना
इन ख्यालों को रोकू कैसे
इन ख्यालों को टोकू कैसे
जरा सा रुक ओर ख्याल कर मेरा भी
हर बात में इन ख्यालों से सवाल कैसे
अगर ना पुछू तो जवाब कैसे
उखड़ा हुआ है कुछ कुछ
अब बिन बात के इन ख्यालों में बवाल कैसे
बस तेरा आना
तेरा जाना इन ख्यालों से दूरी बनाना
अब कैसे इन ख्यालों बिन खुद के साथ हो जाना
सवालों में गुम
सवालों में गुम हूँ में कुछ तरह से गुम हूँ, जैसे उत्तर सिर्फ मैं ही हूँ प्रश्न जो पूछता हूँ खुद से उत्तर भीतर से बाहर निकल मुझको मुझसे ही रूबरू करता हो जैसे , बस बताऊ क्या हाल अपना सवाल पर सवाल बढ़ रहा था जबसे भीतर से आवाज का सिलसिला चल उठा है बाहर सब खाली हो रहा है।
ख्यालों को अधूरा कैसे
ख्यालों को अधूरा कैसे छोड़ दु , जिन ख्यालों के सहारे जी रहा हूँ , ख्यालों को अधूरा कैसे छोड़ दु,
जो मेरे साथ चला हर वक़्त मुझसे जुड़ा हुआ है।
कैसे छोड़ दूँ उन्हें जो मेरे दिल के कोने में बसे हुए हैं,
जो मुझे हमेशा याद रखने को कहते हैं।
ख्यालों की दुनिया में मैं हर पल बसता हूँ,
तनहाई में भी वो मुझसे मुलाकात करते हैं।
उनके बिना मेरी ज़िन्दगी मायूष सी लगती है,
ख्यालों के सहारे ही तो मैं जी रहा हूँ अब तक।
लेकिन ऐसा होता है कभी-कभी,
कि ख्यालों का साथ छूट जाता है मेरे से।
कौनसा वो तार है जो टूट जाता है , उनकी यादों के साथ मैं अकेला रह जाता हूँ,
उनके बिना जीना मुश्किल स हो जाता है।
अधूरा कैसे छोड़ दूँ उन्हें जो मेरे दिल में बसे हुए हैं,
जो मुझे हमेशा याद रखने को कहते हैं।
ख्यालों को अधूरा छोड़ने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ,
वो मुझसे जुड़े हुए हैं, मेरे साथ हमेशा रहेंगे।
ख्यालों को अधूरा छोड़ने से पहले,
मैं उन्हें पूरा कर लूँगा जी भर के।
उनसे बातें करूँगा, खुशियों के पल बिताऊंगा,
और उनसे कहूँगा कि वो मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं, कहानी है, वो किस्सा है
रात के ख्याल
रात के उन ख्यालों को कैसे अकेला छोड़ दु
उन ख्यालों संग ना खेलू क्या ………………………
ख्यालों को कैसे अकेला छोड़ दु जो अकेले है
रात में उन के साथ क्या खेलू नहीं
उन ख्यालों से क्या मिलू भी नहीं
वो ख्याल ही है जिनकी वजह से नींद का मज़ा आता है
ये ख्याल मुझे हर रोज नई दुनिया की सैर कराते है
मेरी कल्पनाए एक रूप ले लेती है
उन कल्पनाओ के साथ मैं इन ख्यालों को सजाता हूँ,
देखता हूँ , ओर खूब खेलता हूँ मुझे इन ख्यालों संग अच्छा लगता है
ये ख्याल मेरा बहुत ख्याल रखते है
मैं उठू या नहीं उस रात के बाद इस बात की भी चिंता नहीं
यह ख्याल मुझसे दूर कर देते है फिर कैसे ना देखू मैं ख्याल,
फिर कैसे रहू रात भर बिन ख्याल
मन यू हलचल
कभी कभी मन यू हलचल सी मचाए , कभी जिंदगी यह घबराए ,कभी ख्वाब खूब सजाए ,कभी गम भुलाये ,नज़रों की तारीफ़ों से मैं खुद को भगाऊ ,न उसकी सहमतों से ओर न मेरी अड़हतों , यह पंछी अब पिंजरों से न ठगे, इतनी शरारत करे ये मन