कहते है दुख का होना भी जरूरी है, तभी सुख का अनुभव होता है, बिन दुख के सुख का कैसे पता चले, जब दुख होता है मन में तभी कुछ लिखने का मन करता है, बिना दुख के तो क्या लिखे सब अच्छा ही है, जब गलतिया होगी तभी तो सुधार होगा, बिन गलतियों के उन्मे सुधार कैसा फिर होगा,
इसलिए सिर्फ सुखी जीवन नहीं उसमे दुख का होना भी बहुत अच्छा होता है, उस दुख को समझो वो तुम्हें कुछ बताने, सिखाने आया है, नई चुनौतीयो से मिलाने आया है, नए जीवन को निर्मित कर फिर से नया बनाने आया है, उस नए बनने के सफर में दुख ही अपना साथी है।
दुख होगा तभी तो अच्छा अनुभव लिख सकोगे जब दुख नहीं तो फिर वो लिखना कैसे होगा, कुछ लिखने का मन नहीं करता, बस सुखी जीवन संग हम जीवन के साथ होते है।
जब किसी के प्रेम डूब हुआ होता है कोई इंसान ओर वो उसे नहीं मिलता तो उसकी तड़प ही उसे लिखने पर मजबूर कर देती है, वह अपना क्रोध पन्नों पर उतार देता है, उस प्रेमी का मन अशांत होता है ओर वो सिर्फ लिखना ही चाहता है, उस वक्त उसके अलावा वह प्रेमी कुछ ओर नहीं कर पाता लेकिन जब उसको उसकी प्रेमीका मिल जाए ओर वो आनंद में हो तो फिर वह लिखना नहीं चाहता उसके पास अभी कोई दुख नहीं है, बस वह प्रेम में डूबा हुआ है।
दुख हमे सुखी होने का एहसास दिलाता है, दुख ही है जो हमे जीवन की सच्ची राह दिखाता है, दुख से ही हमे अच्छे ओर बुरे की समझ आती है, जितना सुख जरूरी है उतना ही दुख भी जरूरी है।