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जानने की शुरुआत

जानने की शुरुआत कहाँ से हुई , यह सवाल जीवन में एक बार तो सबके मन में उठता ही है, की मैं कौन हूँ ? और इस जीवन का क्या अर्थ है? फिर चाहे वो इन प्रश्नों पर गौर करे या नहीं बहुत सारे सवालों की भांति इन सवालों को छोड़ देता है ओर जीवन की व्यस्तता में खुद को खो देता है।

लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ यह वो प्रश्न था जिस पर मैं अटक गया मैं इस प्रश्न से हटने को तैयार नहीं था, इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा था उससे पहले मैं आपको बताता हूँ यह प्रश्न मेरे मन में कब ओर कैसे आया? स्वयं को जानने की शुरुआत होती है।

कौन हूँ मैं यह प्रश्न कब ओर कैसे उठा मेरे मन में

मेरी उम्र 13 साल थी जब मैं कक्षा 8 के फाइनल पेपर देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहा था, हम एक सयुक्त परिवार में रहते थे अभी सब अलग अलग रहते है जैसे जैसे परिवार बड़े होते गए जगह छोटी पड़ती गई ओर हम इधर उधर बस गए, तो उस दिन घर पर सभी लोग नहीं थे क्युकी बड़े बड़े भाई माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए निकले थे शाम को उसी शाम अचानक मेरी दादी जी की तबीयत खराब हो गई ओर तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, घर वालों को लगा की अब इनका अंतिम समय आ गया है तो अब गीता का पाठ कर लेना चाहिए ताकि अच्छे शब्द कानों में जाए।

तो मैं श्रीमद भागवत गीता अपने कमरे से ले आया ओर मैंने पढ़ना शुरू कर दिया कुछ देर पढ़ने के उपरांत ही दादी जी का देहांत हो गया।

सुबह होते ही उन्हे किरयाकर्म के लिए यमुना घाट ले जय गया जैसे जैसे यह सभी किरयाए चालू हुई मेरे मन में प्रश्न उठने शुरू हो गए की मैं भी एक दिन मरूँगा , मुझे भी इसी तरह से जाना होगा ? जब शरीर अग्नि में दाह हो रहा था तब सिर्फ वह शरीर राख का ढेर हो रहा था तभी मेरे मन से विचार उत्पन्न हुआ यह मिट्टी का शरीर एक दिन यू ही राख ढेर बन जाएगा फिर इस जीवन का क्या फायदा जब यह तन यू ही राख में मिल जाएगा। उस समय प्रश्न यह नहीं उठा की मैं कौन हूँ लेकिन वो शुरुआत हुई जब पूरा शरीर राख ही होना है तो इस शरीर का होना ही क्यू है? इसका क्या करू मैं?

मुझे घर आने के बाद बहुत अजीब से ख्याल आने लगे ओर मेरी तबीयत ठीक न थी मुझे यह सोच घबराहट होने लागि बस उलटी हो रही हो बार ऐसे जी कर रहा था तब मेरी ममी ने मुझे मामी जी के साथ उनके घर भेज दिया था की मैं 2-4 दिन वही रह आऊ बस फिर मैं 2-3 दिन वापस आया घर तब तक सब ठीक लग रहा दुबारा उस समय तो विचार शांत हुए लेकिन मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कुछ समय बाद फिर

पसंद और नापसंद

पसंद और नापसंद

अपनी पसंद का कार्ये करे हम सभी लोग, परंतु अपनी पसंद का काम क्यों नहीं कर पाते?

कहते है जो काम आपको नापसंद है फिर भी आप उसी काम को कर रहे है तो वह काम आपके लिए वैसा ही है जैसे किसी बच्चे से पढ़ाई को छुड़वाकर उसको काम पर लगा दिया हो।

अब उस बच्चे के जीवन की कल्पना करो की क्या होता है उस बच्चे के जीवन के साथ वही दशा आपके साथ होती है जब आप अपनी पसंद का कार्य नहीं करते।

इसलिए अपनी पसंद और नापसंद के कार्य के लिए सोचो जब आप अपनी पसंद का कार्य करेंगे तो आपका मन ज्यादा काम में लगेगा इधर उधर नहीं भटकेगा, आपकी कार्य करने की क्षमता भी बढ़ेगी , साथ ही आप नए नए तरीके सोचोगे उस कार्य को करने के लिए

लेकिन जिस काम में आपका मन नहीं उस काम को उतनी अच्छी तरह से नहीं करते हमेशा चिड़चिड़ापण लगता है , गुस्सा आता है आपकी खुशी कही खो जाती है फिर वो काम सिर्फ साधनों को जुटाने के लिए ही कर रहे होते है।

गलतफहमी

हर लड़के को यही लगता है की वो लड़की उसे घूर रही है,लेकिन वह लड़की ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर रही होती ,यह लड़कों की गलतफहमी है जिसमे वह सुधार नहीं कर रहे है। एक दिन उनको पछतावा होता है इस बात का की वो गलत थे इस बारे में

कोई लड़की हँसे इसका मतलब बिल्कुल भी नहीं की वो फंस रही है, इसलिए कृपया कर ऐसी गलतफहमी बिल्कुल न रखे।

जिंदगी को समझने

बड़ी कोशिश है जिंदगी को समझने की

इस जिंदगी से कुछ रूबरू होने की

इस जिंदगी को मैं समझता लेकिन

फिर भी समझ से पार हो जाती है जिंदगी लेकिन समझ नही आती है जिंदगी कही दूर निकल जाती है फिर लौटकर भी नही आती है यह जिंदगी

वो ख्वाब मंजिलों सी

वो ख्वाब मंजिलों सी दूर हो गई, यह जिंदगी अब जिंदगी सी मजबूर हो गई इस जिंदगी के ख्यालों में कही ओर जिंदगी हो गई , क्या जिंदगी है ख्वाब सी जो ये मजबूर हो गई इस जिंदगी के जख्म इतने गहरे के ये नासूर हो गई , संभालो इसे यह जिंदगी अब मरने को मजबूर हो गई.

जिंदगी की नई सोच

जिंदगी की नई सोच के साथ जीवन को नया बनाओ

हर रोज नया कुछ सोचो

हर रोज अच्छा सोचे

हर रोज नया कुछ करने की सोचो

हर रोज क्या नया कर सकते हो ?

हर रोज नए सपनों को उन कोर कागज पर लिखो

जिसको आप पूरा कर सकते हो, या कर चाहते हो

हर रोज एक नयापन हो जीवन में इस तरह से सोचो

हर रोज को किस तरह से बेहतर बना सकते हो इस तरह से कुछ करो

अपने हर रोज के काम में

क्या जोड़ सकते हो उसके बारे में सोचो, कितना बेहतर हो यह जीवन

जिंदगी की नई सोच के साथ

सब्र रख

सब्र रख सब ठीक होगा आज नहीं तो कल होगा , हमारा सब्र हमारा इम्तिहान लेता है सब्र का बांध टूट जाता है, ओर हम बेसब्री में कुछ का कुछ कर जाते है जिसकी वजह से हम अपने रास्ते भटक जाते है, हम अपनी मंजिल से ही कही दूर हो जाते है जिसका हमे पता नहीं चलता उस समय हमारे दिमाग में सिर्फ वही चल रहा होता है की कब होगा , कैसे होगा लेकिन सवाल इतना बड़ा हो जाता है की सब्र का बांध टूट जाता है इस सब्र को पकड़ कर रखना बहुत जरूरी है वरना यह सब्र, धैर्य टूट गए तो हम इसके विपरीत दिशा में बहने लग जाते है इसलिए यह टूटना नहीं चाहिए।

जीवन में, हमें कई बार ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब हम थक जाते हैं और उम्मीद खो देते हैं। इन समयों में, सब्र रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है। सब्र से काम लेने से हम भविष्य में सफलता हासिल कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी धैर्य बनाए रख सकते हैं।

हालांकि, सब्र का मतलब यह नहीं है कि हमें कुछ नहीं करना चाहिए। सब्र से काम लेने के साथ हमें अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए निरंतर काम करना चाहिए। इसके अलावा, हमें अपने मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को स्वीकार करने की भी आवश्यकता होती है।

इसलिए, सफलता हासिल करने के लिए सब्र रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है। हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए सब्र से काम लेने की जरूरत होती है, और अपने मार्ग में आने वाली कठिनाइयों के साथ निरंतर काम करना होगा, ताकि हमारे जीवन में से सभी कठिनाई खत्म हो जाए।

क्या है जिंदगी

क्या है जिंदगी ? यह एक बहुत बड़ा विषय है और जिंदगी को आसानी से समझ पाया है। जिसने समझने की कोशिश की है वो खुद ही उलझा हुआ नजर आया है।

जीवन का पहला पड़ाव है जिंदगी उस पहले पड़ाव से मिलों तक का लंबा सफर तय कारणए का नाम है जिंदगी
क्या है जिंदगी