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पता नहीं मुझे

पता नहीं मुझे कैसे मेरी ओर तुम्हारी बाते हो जाती है, कुछ तो बात है हम दोनों के बीच जो कभी अधूरी रह जाती तो कभी पूरी हो जाती है, हम दोनों ना जाने किसलिए मिले, कौनसा था तार जो हम दोनों को जोड़ रखा था, कितनी दूरिया हो जाती है फिर एक मोड पर आकार हम मिल ही जाते है, फिर उनही बातों को सिरा बनाकर हम आगे की और बढ़ चल चले जाते है।

कुछ ऐसे ही बस तेरी यादों में डूब जाना चाहता हूँ, हर जगह से दूर हो जाना चाहता हूँ, कुछ ओर ना हो अब हम दोनों के बीच सिर्फ तेरे ही ख्यालों में अपने हर ख्याल को बिताना चाहता हूँ, खो जाना चाहता हूँ, तेरे ही सपने सजाकर तुम्हें अपनी आँखों में मुँदना चाहता हूँ।

क्या तुम भी मुझे अपनी यादों में रखना चाहती हो या फिर उन सभी यादों का भुलाना चाहती हो, जो सँजोई थी एक दूसरे के साथ रहकर उन यादों को कैसे तुम भुला दोगे।

पता नहीं मुझे हम दोनों के बीच में कौनसा संबंध है, जो ना टूटता है ना जुड़ता है फिर भी हम दोनों का संबंध अटूट सा लगता है, उस अटूट से संबंध में हम दोनों का नहीं पता ना नाम दिया उस संबंध ना कोई पता फिर भी होने को रिश्ता कहला रहा है।

मेरे भीतर ही कही

मेरे भीतर ही कही छिपे हो तुम , मैं तुम्हे टटोलता हूं दिल के हर एक कोने में लेकिन तुम दिखती नही हो , मेरी भूली हुई यादों में तुम छिपी हुई हो कही मेरे ख्वाबों की डोर पकड़ बाहर आती हो तुम, सिर्फ तुम

जब भी कोशिश करता हूं तुमसे दूर जाने की तुम बहुत करीब नजर आती हो लेकिन कहाँ हो ये नही पता चलता , तुम मेरी नजरो के सामने नही हो।

बस हर एक मुक्कमल कोशिश है तुम्हे पाने की ओर दूसरी ओर भूल जाने की जो हो सकेगा वो कर बैठूंगा।

मेरे भीतर ही कही छिपे हो तुम