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पंगा फिल्म

इस वक्त इस बात को कहने में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि वर्तमान समय में कंगना बहुत ही बेहतरीन अदाकारा हैं , पंगा फिल्म केवल एक फिल्म भर नहीं बल्कि सपनों को पूरा करने में केवल जया निगम ही नहीं बल्कि भारत और दुनिया के अन्य देशों की “जया” भी पीछे हट जाती हैं ।

विवाह के बाद नौकरी छूटना या छोड़ना आम बात है तो खेलों की तरफ देखना तो और भी मुश्किल होता है । पति और बच्चों का साथ न देना या देने भर का नाटक भी देखा जाता है ।

अपने सपनों को छोड़ पति और बच्चों के सपनों और जरूरतों को पूरा करने में जुड़ जाना आज भी औरतें अपना परम सौभाग्य मानती हैं ।

पंगा फिल्म कंगना की अदाकारी के साथ साथ अश्विनी तिवारी की दाद देनी होगी जिन्होंने इतनी बारीकी से खेल,परिवार ,शादी और उसके बाद के जीवन को पर्दे पर उकेरा # देखना तो बनता है
साथ साथ नीना गुप्ता की एक्टिंग भी बहुत अच्छी है जिस तरह से उन्होंने एक मां का किरदार निभाया है  इस फिल्म को बहुत ही बारीकी से पिरोया गया सारे सपने पूरे नहीं होते लेकिन जिद्द हो तो उन्हें पूरा करने की तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रह सकता।

पंगा फिल्म
panga movie

इसमें औरत अपनी बात को किस तरह से मनवाती है वो भी बहुत खूबसूरती के साथ दिखाया गया है फिल्म के  कुछ दृश्य तो आपका मन पूरी तरह से मोह लेते है मै पहले से ही कंगना का फैन हू इस फिल्म को देखने के बाद और भी ज्यादा बड़ा फं हो गया क्युकी एक औरत को सेंटरिक करके फिल्म को बड़े स्तर तक ले जाना कोई आसान बात नहीं होती।

लेकिन जिस तरह से इस फिल्म बनाया गया है उसमे परिवार , अपने सपने और नौकरी आदि की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया गया है इसलिए फिल्म को जरूर देखने जाइए और अपने सपनों को पूरा करने इच्छा को कभी मरने मत दीजिए

मन क्या है?

मन क्या है ? मन क्या चाहता है ? मन शरीर का एक अंग नही है, यह शरीर से अलग है,
मन हमेसा हम नए नए कार्यो उलझता है मन सिर्फ नए कार्य ही करने चाहता है, यह मन का स्वभाव है, यह मन की पृकृति है की यह सिर्फ नए की खोज में लगातार लगा रहे यह पुराने को भूल जाता है, छोड़ देता है हर दूसरे पल में कुछ ना कुछ नया करने की इच्छा इस मन में रहती है।

जिसकी वजह से हम कुछ ना कुछ कार्यो को करना चाहते है, और खाली बैठ नही पाते मन तो कभी इस दिमाग को व्यस्त रखता है। खाने, घूमने, खेलने, आदि कार्य करने या कुछ भी सोचने आदि के कार्यो में हमेसा उलझाए रखता है।

हम क्यों खाली खाली महसूस कर रहे है या करते है ? क्या हमारे पास कुछ नही है करने को ?
या हम कुछ अलग कुछ नया हम करना चाहते है।

हम क्यों अपने आपको खाली खाली देखते हैै ?

क्यों हमारा मस्तिष्क खाली खाली सा महसूस कर रहा है हमारा मन हमेसा नए कार्यो में नई चीज़ों की तरफ आकर्षित होता है, तथा शरीर पुराने की मांग करता है जो पिछले दिन किया था उसी कार्य को करना चाहता है परंतु मन नए कार्यो में लगाना चाहता है, ये सिर्फ कुछ स्थानों पर शांति चाहता है जैसे बीते हुए दिन में क्या हुआ था ? वही दुबारा चाहता है।

उसी को बार बार दोहराना चाहता है शरीर आलसी है, मन नित नए कार्यो की अग्रसर होता है, अर्थात यह मन नया चाहता है, इसलिए हमेसा हम एक छोर को छोड़ते है, तो दूसरे छोर की और भागते है, एक कार्य पूरा नही होता बस दूसरेे कार्य में लग जाना चाहते है, एक मिनट भी हम मन हमे खाली बैठने नही देता बस किसी ना किसी कार्य में लगातार लगाए रखता है।

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