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क्या गर्मी

क्या गर्मी बहुत हे
अधिकतर हाँ जी बहुत हे
भाई अधिकतर A.C में रहते हो
नहीं छोड़ते उसको किसको यह कहे,

जब कभी दिन में पड़ता निकलना
जैसे हो गया आफ़त से सामना
शरीर पसीने पसीने होता
शरीर में ख़त्म होता पानी का कोटा

शरीर लगता जैसे लाल टमाटर
लगता बंद हो रहा सांसो का शटर
a.c थोड़ी देर अच्छा वरना
घर वो बीमारी का

बीमारी की नई नई क़िस्म
नई नई दुश्वारियों का
रोज़ बाहर निकलिए
शिकंजी लस्सी पीजिए

आपने वो तो सुना हे गाना
गाना गुनगुनाना सबको सुनाना
क्या हे बोल
बहुत अनमोल

ठंढे ठंढे पानी से नहाना चाहिए
गाना आए या न आए गाना चाहिए
तो न कहे बहुत हे गर्मी
गर्मी में गर्मी नहीं तो क्या होगा हठधर्मी

गर्मी आई तुझे मज़बूत करने
धन्यवाद करे उसका न लगे उससे डरने ।

क्या गर्मी बहुत है,
अधिकतर हाँ जी, बहुत है।
भाई, अधिकतर A.C. में रहते हो,
इस ज़माने में यह सच है या झूठ है कोई पता नहीं।

धूप में जलती खामोशी,
गर्मियों की छुट्टियों में छुपी सर्दी।
एयर कंडीशन की ठंडक में,
जी भरकर जीने की चाह रखते हो सब।

गर्मी की छुट्टियों में भीषण गर्मी,
जलती धूप में भटकती जीवनी।
अधिकतर अंधेरे के बगैर देखते हो तुम,
अपने ही आसपास की उस खामोशी को।

क्या गर्मी बहुत है,
या फिर वो तुम्हारी भावनाएँ हैं?
अधिकतर A.C. की ठंडक में रहना,
या फिर खुद को ढूँढना धुप-छाँव के बीच?

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बारिश की उन बूंदों

एक प्यारी सी कविता जिसमे मेरा बचपन कही छूट गया है, बारिश की उन बूंदों ने इस बात आज मुझे एहसास दिलाया है।

फिर से आज एहसास हुआ है मुझको
की मेरा बचपन कही छूट गया है

उन छोटी छोटी खुशियों से
शायद मेरा रिश्ता अब टूट गया

बारिश की उन बूंदों ने आज एहसास दिलाया है
बहुत दूर निकल आया हूं बचपन के
उन नन्हे नन्हे हाथो से , उन नन्हे नन्हे कदमो से
जो थका कभी नही करते थे
घंटो खेलने के बाद भी कुछ देर और खेल लू क्या? बस यही कहा करते थे

वो बचपन की बाते बड़ी अजीब सी होती थी, जो खुद को तो समझ आती थी लेकिन औरो को पागल बहुत बनाती थी

उसी के चलते आज एहसास हुआ की मेरा बचपन
कही पीछे छूट गया है

जिंदगी से जिंदगी का नाता
थोड़ा कम और थोड़ा ज्यादा
बस छूट गया है

सवाल बहुत किये अपने आपसे
जवाब यही था
की मेरा बचपन कही पीछे छूट गया है

आज फिर बारिश की बूंदों ने यह एहसास दिला दिया है
प्यार से भरा और प्यारा था मेरा बचपन जिसमे गम ना था , ये हर रोज की आपाधापी ना थी वो लड़कपन और कुछ शरारते थी , बतमीजी थी बहुत लेकिन दिल में मैल नही था

आज एहसास हुआ मुझे की मेरा
बचपन जो कही छूट गया है

बारिश में भीग जाने का डर नही था,
बारिश में भीगने से घमोरियां ठीक हो जाएगी
इसलिए बारिश में भीग जाया हम करते थे,
आज मोबाइल रखा है जेब में इस बात से डरा हम करते है

आज आधुनिक तकनीको ने छीन लिए वो सारे खेल
जिनकी वजह से ही होते थे हम बच्चो के दिल के मेल

घंटो मिट्टी में खेला हम करते थे,
कपड़े गंदे होंगे इस बात से घबराया नही करते थे
आज हल्की सी शर्ट की क्रीज खराब न हो जाए,
इस बात से भी चीड़ हम जाते है

तब लड़ाई सिर्फ ताकत बढ़ाने के लिए होती थी
आज ताकत दिखाने के लिए लड़ा हम करते है।

उन छोटे छोटे कदम और
नंगे पांव से मिलो का सफर
तय हम कर लेते थे

कांटे चुभ रहे है या नही
इस बात पर भी सोचा हम नही करते थे

खेलते थे खूब
जब तक मन करता था
घर जाना है
हम इस बात पर भी सोचा नही करते थे
आज एक मिनट देर हो जाए
फ़ोन पर फ़ोन बज जाया करते है

थक जाने के बाद हम यह नही देखते थे
फर्श है या गद्दे वाला पिलंग बस जहा
जगह मिली सो जाया हम करते थे

एक टिफिन में चार लोग खा लेते थे
एक पिलंग पर चार लोग सो जाते थे
एक बल्ले से 10 लोग खेल लेते थे
3 दोस्त
3 रुपये के प्लास्टिक वाले अंडे में
1-1 रुपया मिलाकर ले आते थे।
हॉफ प्लेट चाऊमीन में 3 दोस्त घपड घपड खा लेते थे,
गली में जगह नही खेलने की तो गली को अपने तरीके से मोड़ हम लेते थे

एक किराये की साईकल लेकर
उस पर तीन लोग सवार हो जाते थे

लेकिन

आज मत भेदों ने इस तरह से घेर रखा है
की हम कहने लगे है यह तेरा है यह मेरा है

आज एहसास हुआ है कि
मेरा बचपन कही छूट गया है