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सरकारी बस

दिल्ली की सरकारी बस जिनमें अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है, कुछ बसे नई लेकर भी आए है लेकिन उनकी भी हालत वही है, जितना बोलते है उतना यह करते नहीं है। 

वैसे तो अरविंद केजरीवाल जी कहते है कि हमारी माता , बहने हमारी जिम्मेदारी है उनकी सुरक्षा , उनका आदर हम करेंगे लेकिन यह स्लोगन दर्शाता है कि कोई जिम्मेदारी कोई भागीदारी नहीं है।

मैने पहले भी कई बार दिल्ली की सरकारी बस का फोटो लेकर सोशल मीडिया पर अपलोड किया है तथा काफी बार इसके बारे में कंपलेंट भी की है, लेकिन उसका निष्कर्ष व परिणाम कुछ नहीं निकला दिल्ली की बसों में यह स्लोगन अभी तक नहीं बदला, ओर बहुत जल्दी यह स्लोगन बदलने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही जब तक नई बसे नहीं आएगी तब तक यह स्लोगन नहीं बदलेगा ऐसा ही कुछ प्रतीत होता है।

लेकिन इनकी सरकारी बसों की अवधि भी खतम हो रही है परंतु इनकी नई बसे भी नहीं आ रही है, यह दिल्ली की सरकार सारा पैसा विज्ञापन में ही लगाए जा रही है लेकिन काम कुछ कर नहीं रही है फिर कैसे इनसे उम्मीद की जाए की यह लोग कुछ काम करेंगे।

और कितना समय लगेगा ?

कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा ?

क्या यह जिम्मेदारी नहीं है आम जनता की वह इस तरह की हरकत करने वालो को रोक कर उन्हें सजा दिलवाए

प्रकृति का संदेश

प्रकृति का संदेश इस समय पूरी दुनिया शाकाहारी भोजन ही प्रधानता है कुछ पढ़े लिखे गवार जो हमेशा यही कहते है को फूड चैन, लेकिन क्या अब नहीं सब कुछ सही चल रहा है, या अगले 21 दिन तक नहीं चलेगा ?

भगवत गीता में आहार पर भी कहां गया है।
तामसिक
राजसी
सात्विक

इस समय आप कौनसा भोजन कर रहे है ? पूरा विश्व सात्विक भोजन ही कर रहा है, प्रकृति भी तामसी आवरण को हटाकर सात्विक आवरण की और बढ़ रही है। विचारो में को शुद्धि आ रही है वह भी सात्विक हो रही है।

कर्मो के द्वारा भी किसी कोई हानि नहीं ही रही है इसका भी यही निर्देश मिल रहा है कि कर्म भी सात्विक ही रहे है।

हम किसी के लिए बुरा नहीं सोच रहे बल्कि हर किसी की मदद करने की सोच रहे है , वाणी सेभी किसी का अहित नहीं कर रहे यदि हम दूर भी है, तो भी किसी भी सोशल मीडिया साइट के द्वारा किसी को बुरा नहीं बोल रहे।

यहां पर एक और संदेश मिल रहा है self Isolation ka , स्वयं को असंग रखने का
हम यूं कहे कि स्वयं के साथ रहे , लोगो से भावनात्मक दूरी रखे , शारीरिक दूरी रखे तथा स्वाध्याय में जुट जाए स्वयं का अध्यन करे यही भागवत ज्ञान सप्ताह सात दिन , चौदह दिन और इक्कीस दिन चलता है आपको 21 दिन मिले है, आप कितने तेयार हो सकते है अब यह आप पर निर्भर करता है।

राजा परीक्षित को 7 दिन मिले थे उन्होंने अपना जीवन पूर्णतया बदल लिया था हमें इस समय का लाभ उठाना चाहिए जीवन बहुत अमूल्य वस्तु है, इस शरीर को यूं ही व्यर्थ ना कीजिए इससे जो अनुभव मिलते है वो बहुत आनंदित होते है विश्वास कीजिए अपने अनुभव से कह रहा हूं। 

कुछ लोग कहते है अभी यह भागवत पढ़ने की उम्र नहीं हुई , या बहुत कुछ है डर लगता है, पढ़ने से ऐसा बिल्कुल नहीं है मै 14 साल की उम्र से अब तक पढ़ रहा हूं,और बहुत बार पढ़ चुका और सुन चुका और अब भी लगातार पढ़ता हूं, और सुनता हूं, जीवन की सभी समस्यायों के हल , जीवन से जुड़े जितने रहस्य है, सभी बहुत स्पष्ट शब्दों में दिए हुए है।

इस समय की स्तिथि और परिस्थिति भी मैने आपको भागवत के शब्दों से ही बताई है।
प्रकृति का संदेश समझिए।