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“आपकी सोच”

“सोच को बदलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए”  क्या आपकी सोच है? आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है, क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है, उस सोच को बदलों
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है, जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराने विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है, नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है, की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है, दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ? लेकिन सोच को बदलों तभी थ जीवन बदलेगा

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है, और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है, या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो , इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ ।

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है, परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है, पहले स्वयम को जानना होगा |

और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है, सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है, इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।