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छोले भटूरे

छोले भटूरे दिल्ली वालों की सबसे पसंदीदा चीज है, जिस वो सुबह नासते में खाना पसंद करते है, और दिन में खाते है, यह सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग ही खाते है ऐसा भी नहीं है, लेकिन हाँ शाकाहारी लोगों की यह पहली पसंद है।

मैंने दिल्ली में बहुत सारी जगह भटूरे खाए है जैसे राधे श्याम, सीता राम, ॐ भटूरे , गोपाल और भी बहुत सारे बीकानेर , हल्दीराम इनके साथ साथ रेहड़ी ओर पटरी पर भी अलग अलग जगह छोले भटूरे का स्वाद लिया है।

लेकिन आज तक मैंने उस जगह कभी भटूरे नहीं खाए जहां नॉन वेज भी मिलता हो, हालांकि मैंने कभी देखा भी नहीं था की जहां शाम को चिकन बनता हो ओर सुबह छोले भटूरे बनते हो, ऐसी जगह पर मैं तो खाना बिल्कुल पसंद नहीं करता जहां पर चिकन भी ओर वही छोले भटूरे मिले।

ऐसे ही हमारे इधर पिशोरी चिकन वाला है जो सुबह से लेकर शाम 5 बजे तक भटूरे बेचता है ओर सके बाद वही चिकन बेचने लग जाता है, यह देखकर भी बहुत अजीब लगता है, जो लोग शुद्ध शाकाहारी होंगे, ओर जिनको नहीं पता की यह आदमी शाम को चिकन बेचता है ओर दिन में छोले भटूरे तो उन लोगों के साथ तो यह व्यक्ति एक तरह से धोखा ही कर रहा है, क्युकी ज्यादातर लोग वही उसके पास खा रहे है जो उस रास्ते से निकल रहे है।

क्या यह सही है इसका मैं एक और उदाहरण देता हूँ जब आप किसी नॉर्मल परचून की दुकान से दूध ओर दही लेने जाते है तो क्या वो व्यक्ति अंडे भी बेचता है?

क्या आपके घर में कान्हा जी सेवा होती है और आप दूध दही का भोग लगाते है, क्या आपका दूध और दही सही जगह से आ रहा है?

कृष्ण जन्माष्टमी, शिवरात्री, नवरात्र और भी कई त्योहार जिनमे दूध और दही का अधिक महाताव होता है, हम सभी उन परचून वालो से सामान लेते है या अनलाइन मंगाया लेते है जहां पर इन चीजों को अलग नहीं रखते और वही हम भोग व अपने खाने पीने के सामान में शामिल कर लेते है।

क्या यह उचित है? क्या हमे इन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, हम क्या खा रहे है और हमारा सामान कहाँ से आ रहा है इस बात का हमे बहुत ध्यान रखना चाहिए।

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दिल वालो की दिल्ली

दिल वालो की दिल्ली
बंदे  सब मस्ती में टल्ली ।

दिल्ली में हम हुए पेदा…..
यही की चड़ी चर्बी और मैदा ।

दिल्ली का इतिहास पुराना…
हर जगह के लोगो का यहाँ ठिकाना ।

चाँदनी चौक कृष्ण नगर कमला नगर..
सरोजिनी नगर  रोहिणी हजारो डगर  ।

दिल्ली में पड़ती कड़क ठंड और भड़की गर्मी …
अपना नहीं यह मौसम की समीकरण उसकी हठधर्मी ।

दिल्ली राजधानी है राजनैतिकअखाड़ा…
हमेशा पड़ा रहता यहाँ राजनैतिक जाड़ा ।

राष्ट्रपति भवन इंडिया गेट या देखो लालक़िला….
बड़े बड़े फ़्लाइओवर पे लगता गाड़ियो का क़ाफ़िला ।

मेरी दिल्ली आने वाले का करती स्वागत करती बाँहें खोल के…
इसका दिल बड़ा है सब को सम्भाल लेती समानता से मीठा मीठा बोल के ।

दिल वालो की दिल्ली

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दिल्ली की बस

मैं लगभग 3 साल बाद आज दिल्ली की बस से सफर कर रहा था, लेकिन आज बस में भीड़ को देखकर ऐसा लगा की बस पुरुषों के लिए तो रह ही नहीं गई, इन बसों में सिर्फ महिलाये ही सफर कर रही है, वो भी ऑफिस जाने के लिए नहीं सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने रिश्तेदारों व बाजार के लिए बस में सफर हो रहा है लेकिन जो महिलाये ऑफिस जा रही है वह इस योजना का सही ढंग से लाभ भी नहीं उठा पाती वो तो मेट्रो में जा रही या ऑटो में ही आना जाना कर रही है।

दिल्ली की बस का सफर भी कुछ ऐसा है मानो खचाखच भीड़ बस ओर कुछ नहीं केजरिवाल सरकार ने महिलाओ की टिकट मुफ़्त में कर रखी है अब पुरुष तो बस में दिख ही नहीं रहा, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है बेचारा पुरुष हर जगह महिलाये है बस, मुझे महिलाओ से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सरकारी बसों में पुरुषों को कोई स्थान ही न दे, एक तो सफर मुफ़्त ऊपर से सीट की जगह पर लिखा होता है की यह सीट महिलाओ की है लेकिन पुरक्षों की सीट कही भी रिजर्व नहीं होती, अब बेचारा पुरुष करे भी तो क्या करे।

कहाँ जाए जो चल चल कर थक जाता है वो किसी से बोल भी नहीं पाता की आज मैं बहुत थका हुआ हूँ मुझे सीट दे दो, वो बेचारा पुरुष कुछ रुपये बचाने की वजह से हर समय ऑटो में नहीं जाता, गाड़ी नहीं बुक करता भीड़ भाड़ भरी बस में लटकर भी चल देता है उन सरकारी बसों का घंटों तक इंतजार भी कर लेता है की ऑटो के पैसे बच जाएंगे, ज्यादा बस बदल लेगा तो ज्यादा पैसे लग जाएंगे इसलिए सीधे अपने रूट वाली बस का ही इंतजार वो करता है।

लेकिन महिलाये कितनी ही बस बदलकर चली जाती है, महिलाये तो बिना सोचे समझे ऑटो ओर गाड़ी भी कर के चलती है, क्युकी वो अपनी सहूलियत ज्यादा देखी है, उनको रिजर्व सीट तो हर जगह मिल ही जाती है, फिर चाहे उनकी सीट पर कोई बुजुर्ग भी बैठा हो वो उनको उठाकर खुद बैठ जाती इनको इसमे भी कोई शर्म नहीं आती।

क्या इस समय सरकारी बसे मुनाफे में चल रही है? जहां तक हमे लगता है की सरकारी बस घाटे में ही चल रही है क्युकी ज्यादातर संख्या तो महिलाये की होती है बस में जिनका किराया माफ है दिल्ली की सरकार की ओर से, ओर जो व्यक्ति चढ़ते है उनके पास होते है फिर सरकारी बस मुनाफे में कैसे हो पाएगी।

बचपन के दिन

मेरे जो बचपन के दिन थे, कुछ अजीब तो कुछ कमाल ही थे, जैसे पढ़ाई से जी चुराया मैं करता था, स्कूल ना जाने के कितने ही बहाने बनाया करता था , बचपन से ही मुझे ये बात समझ आ गई थी की मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता ओर शायद मैं उतना पढ़ भी नहीं पाउ, लेकिन पढ़ाई करने के अलावा उस समय कुछ ओर समझ भी नहीं आता था, की नहीं पढ़ेंगे तो क्या करेंगे।

बचपन से ही एक सवाल जिसने मेरा पीछा नहीं छोड़ा उस सवाल का जवाब लगातार ढूंढता रहा, मैं हर जगह चाहे वो निर्जीव हो या सजीव लेकिन मैं उस सवाल को सबसे पूछता था, कि कोई तो होगा जो मुझे मेरे सवाल का जवाब देगा, सवाल पूछने की आदत थी मेरे अंदर लेकिन मुझे अपने सवाल दूसरों से पूछने में डर लगता था, पता नहीं क्या सोचेंगे , कुछ बोल न दे कही मारेंगे तो नहीं कच पूछने पर , मेरी हंसी तो नहीं उड़ाई जाएगी यदि मैं ऐसे सवाल पूछूँगा तो बस इसलिए मैंने किसी से अपने सवाल नहीं पूछे, खुद से सवाल करता था मैं , मुझे उस समय जवाब नहीं मिलते थे ओर मिल भी जाते होंगे तो मुझे जल्द समझ नहीं आते थे क्युकी वो बचपन के दिन ही थे।

जिस तरह मुझे गणित बिल्कुल पसंद नही थी और समझ भी नही आती थी, टीचर तो अच्छा पढ़ते थे क्युकी सभी बच्चों को समझ आती थी लेकिन मेरे दिमाग में गणित कभी घुस नहीं पाती थी, मुझे दुबारा पूछने में डर लगता था, इसलिए नहीं पूछता था, बस उस गणित से ज्यादा अच्छी मुझे अपनी जिंदगी ही लगती थी, बस जिंदगी को समझू यही हमेसा अच्छा लगता था।

कभी वृत का गोल, लंबाई – उचाई , गुना भाग , जोड़- घटा , Permutation, Combination, Probability, कभी समझ ही नही आती थी, लेकिन जिंदगी की सारी गुना भाग पल भर में समझ आ जाती थी और इसको समझने और सीखने में जो मजा आता था वो मुझे गणित में कभी समझ नही आया।

अपने विचारो को अपने ऊपर हावी होने दे रहे हो ? किस तरह से आपके विचार आ रहे है ? किस और से आ रहे है ? आप क्रोधित हो फिर भी आपने विचारों को सजगता से देख रहे हो यह भी एक प्रकार का मनन है चिंतन है हमारे विचारो में द्वंद्व है लेकिन कब तक भागेंगे एक दूसरे के विपरीत यह विचार एक समय तो आएगा जब यह दोनों एकमत होंगे दोनो कब तक विपरीत दिशा में भागेंगे किसी ना किसी अंतिम छोर पर टकरा कर वापिस आ ही जाएंगे।

राजधानी दिल्ली

राजधानी दिल्ली के बारे कुछ बाते

दिल्ली जो कि भारत की राजधानी है। भारत के चार महानगरों में से एक है। और एक ऐतिहासिक शहर भी है। दिल्ली महानगर में मुगल काल की भी कई विश्व विख्यात विरासते आज भी मौजूद है। इसी दिल्ली में 16वीं शताब्दी मे तब्दील हुई जामा मस्जिद लाल किला आज भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वही पास ही में चांदनी चौक जैसा एक भव्य बाजार मौजूद है जिसमें कि तरह-तरह के व्यंजन पकवान वह हर तरह की खरीदारी के सामान उपलब्ध हो जाता है।    

    दिल्ली को तीन और से हरियाणा की सीमा लगती है, जबकि इस के पूर्वी छोर पर उत्तर प्रदेश की सीमा लगती है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र लगभग 573 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली शहर की आबादी 11 मिलियन है जोकि मुंबई के बाद भारत का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है।       

                                     अगर दिल्ली शहर की प्राचीनता की बात की जाए तो 10 वीं शताब्दी में यहां पर तोमर राजाओं का राज्य था। उन्हीं तोमर राजाओं का एक वंशज पृथ्वीराज चौहान था जिसने कि दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। और वही पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम हिंदू शासक था। उस पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली में लगातार तुर्क और मुगलों का आक्रमण होने लगा। जिसमें कि पृथ्वीराज चौहान के तुरंत बाद गुलाम राजवंश आया उसके बाद खिलजी, तुगलक , सैयद और लोरी राजवंश आए। यह सभी मुस्लिम शासक थे। इसके बाद अंत में पानीपत की लड़ाई में बाबर ने लोधी व राजवंश को हराकर दिल्ली में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी। इसी मुगलिया सल्तनत में बाबर के बाद बाबर का वंशज हुमायूं आया जिसने की दिनपनाह महल जो कि आज के समय में पुराने किले के नाम से मशहूर है का निर्माण करवाया। और हुमायूं की मृत्यु भी उसी दिन प्रणाम महल में सीढ़ियों से गिरकर हुई थी।     

                अनेक दर्शनीय स्थल जैसे की कुतुब मीनार, सिकंदर लोदी का मकबरा, इंडिया गेट आदि कई विरासत ए आज भी मौजूद है।  

राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर
राजधानी दिल्ली में इंडिया गेट की तस्वीर

   अगर हम नई दिल्ली की बात करें तो नई दिल्ली को अंग्रेजों ने सन 1911 में अपनी राजधानी बनाया। अंग्रेजों ने भी दिल्ली में कई भव्य इमारतों का निर्माण करवाया। आज इतना भव्य इंडिया गेट हम देखते हैं असल में यह प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विरासत के रूप में तैयार किया गया वह उन सैनिकों के नाम आज भी इंडिया गेट पर लिखे हुए हैं। उसके अलावा राष्ट्रपति भवन विधान सभा वह कनॉट प्लेस भी अंग्रेजों के द्वारा ही बसाई गई विरासत है।    

          आध्यात्मिक तौर पर भी दिल्ली शहर में काफी पुरानी विरासत ए रही है। सूफी संत निजामुद्दीन औलिया भी इसी दिल्ली में रहे हैं जिन्होंने दिल्ली में 15 राजाओं का शासन देखा और उन्हीं के शिष्य अमीर खुसरो जोकि तबले के अविष्कारक और खड़ी बोली के जनक भी हैं उन्होंने भी 10 राजाओं का शासन देखा वह उन 10 राजाओं के दरबार में रहे। उसके अलावा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार भी हमें महरौली क्षेत्र में देखने को मिल जाएगी राजा कुतुबुद्दीन ने इन्हीं के नाम पर कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।

Written by Pritam Mundotiya

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पहाड़ गंज

पहाड़ गंज एरिया की कृष्णा गली घी मंडी चौक की तारे बहुत सारे लोगो के लिए एक ऐसा स्पॉट बना हुआ

जिसे देख कर बहुत सारे लोग स्तब्ध हो जाते है, कभी सिर झुक कर चलते है तो कभी ऐसे देखते है, जैसे उन्होंने पहले कभी तारे देखि ही नहीं।

इन बिजली, केबल , वाईफाई, टेलीफोन की तारों देखने के बाद लोगो के पास शब्द नही होते और उन तारो को देखकर फ़ोटो खिंचने लग जाते है।

जब विदेशी पर्यटक इस गली से गुजरते है तो वह इन तारो की फोटोज लेते है, और इनकी ड्राइंग भी बनाते है, आज से थोड़े टाइम पहले मेरी मुलाकात साशा बेजुरोव से हुई थी जो बहुत ही मशहूर फोटोग्राफर है उन्होंने भी इन तारो की बहुत सारी फोटोज ली एवं चित्र भी बनाया था।

कहने का तात्पर्य यह है, कि यह तारे सभी को अचंभित करती है क्युकी यह बहुत नीचे है, तथा आने जाने वालो को परेशानी भी होती है यह पूरी तरह से एक झुंड बनाए हुए है।

इनको यह नीचे लटकी हुई तारे बड़ी अदभुत सी लगती है, मानो उन्होंने ऐसे तारो को नीचे की और कभी देखा ना हो, यह नजारा कभी देखा ही ना हो इसलिए यह तारे उन्हें आकर्षित करती है, परंतु यह तारे खतरनाक तारे है, यदि किसी दिन कोई हादसा हो गया तो कौन कैसे बच पायेगा एक तो पहाड़ गंज की गालियां इतनी संकरी और उसके बाद यह नीचे लटकी हुए तारे जिनका कोई समाधान नही मिल रहा है।

क्या इनका कोई समाधान है ? क्या सरकार इन लटकी हुई तारो के बारे में कुछ सोच रही है , यह तारे सिर्फ पहाड़ गंज में ही नही है। दिल्ली की काफी जगह ऐसी जहाँ इस प्रकार से तारे लटकी हुई है , नई सड़क, चावड़ी बाजार , चांदनी चौक आदि जगहों पर भी इसी तरह से तारे नीचे की और लटकी हुई है, तथा इससे भी बदतर हालात में है, और इनका कोई समाधान होता हुआ नही दिख रहा है।

दिल्ली की काफी जगह ऐसी जहाँ इस प्रकार से तारे लटकी हुई है , नई सड़क, चावड़ी बाजार , चांदनी चौक, आदि जगहों पर भी इसी तरह से तारे नीचे की और लटकी हुई है, तथा इससे भी बदतर हालात में है, और इनका कोई समाधान होता हुआ नही दिख रहा है।