सामान्य दृष्टि को जो दिखता है,
समाज में अधिकता से वही बिकता है।
कागजों पर शब्द बिखेरने से क्या होगा,
जब विचारों को अनदेखा कर चला जाएगा।
व्यक्ति की क्षमताओं का क्या महत्व है,
जब उसकी जन्मभूमि हो इंद्रधनुष का रंगबिरंगा दाग है।
समाज ने तथाकथित मान्यताओं को बना लिया धर्म,
जहां प्रेम और सद्भावना को हुआ है अपमान।
प्रतिभा की नगरी में निर्माण सब करते हैं,
लेकिन नाम और शोहरत उन्हीं के होते हैं।
गरीबी के अश्रु और धन के प्याले,
समाज के अस्तित्व को करते हैं खाली।
जब आदर्श बन गए हैं न्याय के मंदिर,
क्या आशा रखें अच्छाई के विचारों की?
सामान्य दृष्टि को जो दिखता है,
समाज में अधिकता से वही बिकता है।
सोचो, समझो, करो विचार नये,
समाज को बदलो, देश को बदलो, जग को बदलो।
जब एक हो जाएंगे सब एक सोच और भावना में,
तब होगा समाज में समता का उदय और विकास।