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पता नहीं

“पता नही” यह एक ऐसा जवाब है

जो अनेको दुविधाएं उतपन्न करता है और इसका निष्कर्ष कुछ भी नही है

और इस कुछ भी नही से प्राप्त होता है

आपके समय की हानि जिसका हर्जाना कोई भी नही भुगत सकता।

पता नहीं

पता नहीं सिर्फ दो शब्द लेकिन मन में अनेकों प्रश्नों को जन्म दे देते है यह दो शब्द मान लीजिए आप किसी को अपने दिल का हाल बता दे, ओर उससे आपको एक बेहतर जवाब की अपेक्षा हो उसके बदले वो सिर्फ यह कह दे की पता नहीं तो आप समझेंगे, ना जवाब हा में आया ओर न ही ना में आया ओर साफ साफ शब्दों में आपके प्रश्न का उत्तर भी नहीं आया तो मन में तो हजारों पर्ष्णि का आना सहज ही है, यह एक दुविधा है आपको फिर से दुबारा वही प्रश्न पूछना होगा ओर फिर जवाब की तलाश में आप रहेंगे।

हो सकता है आप एक लंबा इंतजार भी करे उस जवाब के लिए जवाब आपके बहुत जरूरी है परंतु जवाब तो नहीं आया आप सिर्फ में लटके हो क्युकी जवाब ना हाँ था ओर ना ही ना उनका जवाब “पता नहीं” था जिसका यह अर्थ निकलता है तो इसका उत्तर उन्हे भी पता नहीं जवाब हाँ ओर ना कुछ भी हो सकता है।

समय तो अपनी गति में भाग रहा है ओर इंतजार जवाब के लिए लंबा होता जा रहा है, मन में सवाल बढ़ रहे है, मन में दवंध बढ़ रहा है, मन में चिड़चिड़ापन ओर परेशानी बढ़ती जा रही है जिसकी वजह से हम उस एक स्थिति में बंध जाते है

ना आप पीछे हट पा रहे हो ओर ना ही आगे बढ़ पा रहे हो जिस संबंध को या तो खत्म हो जाना था या आगे बढ़ जाना था उन दोनों में से कुछ नहीं हो रहा बस इनके विपरीत ही परिस्थिति बन रही होती है।

क्युकी जवाब “पता नही” था

चुनाव के बाद


चुनाव के बाद क्या होता है, आप सभी एक बात समझिए हम लोग क्या देखते है ? क्या पढ़ते है ? टीवी देखते है और अख़बार पढ़ते है आजकल तो क्या दिखाया जा रहा है और क्या पढ़ाया हा रहा है यह सबको पता है इसके साथ ही मोबाइल के द्वारा हम सोशल मीडिया पर जो समय बिताते है उसमे भी बहुत सारी बाते झूठी होती है और कुछ वॉट्सएप बाबा का ज्ञान अब किस पर विश्वास करे ओर किस पर नहीं यह हम सभी के लिए एक चुनौती भरा विषय है।

हम सभी लोग अपने अनुभव पर वोट दे रहे है जैसा हम लोगो के साथ हो रहा है उसी के आधार पर वोट जाता है जो सुनते है देखते है बस वही सब इसी आधार पर वोट दिया गया है यह बात स्पष्ट हो चुकी है।

दिल्ली वालो के बारे में बहुत कुछ लोग बोल रहे है लगातार कुछ ना कुछ लिखा जा रहा है दिल्ली वाले मुफ्तखोर हो गए है दो कौड़ी की बिजली पानी के लिए बिक गए है।

दिल्ली की जनता ने फ्री के लिए कोई वोट नहीं किया उन्होंने काम भी किया इस बात से आपको सहमत होना चाहिए हर बात में नकारना गलत बात है। और काम नहीं भी किए ऐसा भी है। उसके लिए मै दुबारा लिखूंगा की उन्होंने क्या किया है और क्या नहीं

यह बात बहुत गलत है जिस प्रकार से लोग अपनी प्रतिक्रिया दे रहे है उन्हें सोच समझकर बोलना चाहिए।

कौन किसको वोट देना चाहता है यह उसका मौलिक अधिकार है आप उसे उसका निर्णय लेने से नहीं रोक सकते

बहुत सारे विचार मंथन करते हुए लोगो ने अपना दिया है और इस बात को स्वीकार करना चाहिए

जीत अब किसी भी पार्टी की हुईं है इसका यह तात्पर्य नहीं है आपको देशद्रोही बोलने का अधिकार है दिल्ली देश की राजधानी है और यह अधिकार आपको बिल्कुल भी नहीं है कि आप अभद्र शब्दो का प्रयोग करे

अपने शब्दो पर नियंत्रण रखना अतिआवश्यक है बहुत जल्दी कुछ लोग अपना आपा खो देते है यदि आप स्वयं  विवेकी नहीं हो तो आप दूसरों को क्यों कोश रहे हो ??

खुद के विचार इतने सीमित दायरे में सिमट गए और आप इल्जाम दिल्ली की जनता पर लगा रहे है।

यह समय आत्ममंथन का है , देशमंथन, विचारमंथन का है दिल्ली मंथन का है अपने विचार ओर मत के लिए ही अपना नेता चुनने का अधिकार दिया है और उसके चलते ही दिल्ली का चुनाव तय हुआ है, अब आप इसमें घृणा के बीज ना बोए तो बेहतर है।

चुनाव के बाद सोचिए और समझिए।