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क्या लिखू मैं

क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
हर लफ्ज़ भी तुझसे हारा है।
तेरी हंसी में चाँदनी बसती,
तेरी आँखों में सारा नज़ारा है।

फूलों की खुशबू तुझसे कम,
बादल भी तुझपे बरसें हैं।
तेरी जुल्फ़ों की छाँव तले,
हवाएँ भी धीरे-धीरे तरसें हैं।

सूरज की किरण भी मंद पड़े,
जब तेरा चेहरा दमकता है।
तेरे लबों की उस मासूम हँसी पे,
हर दिल पिघलकर बहकता है।

तेरी चाल में कशिश ऐसी,
कि लहरें भी संग चल पड़ें।
तेरी बातों में मिठास ऐसी,
कि हर मौसम रंग बदल पड़ें।

खुदा भी तुझसे कहे कभी,
“क्या तुझे मैंने खुद बनाया है?”
या मेरी कल्पना से चुरा लिया,
कोई सपना साकार कराया है?

अब क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
लफ्ज़ भी तुझसे कम पड़ जाते हैं।
जो देख ले तुझे एक दफा,
वो तेरा दीवाना बन जाते हैं।

कैसी लगी ये कविता? चाहो तो इसमें कुछ और जोड़ सकते हैं! प्लीज आप कमेन्ट कर हमे भेजिए 💕

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कुछ सुनहेरी यादें हैं

कुछ सुनहेरी यादें हैं तेरी,
जो दिल को छू जाती हैं खुशी से भरी।
तेरी हँसी की मुस्कान, तेरे प्यार की मिठास,
हर लम्हे को यादगार बनाती हैं वो आस्था।

यादें वो धुंधली सी, मधुर सी और सुहानी,
जो भर देती हैं दिल को अमन और भरोसा नयी।
तेरे साथ बिताए हर वो पल, जो अद्वितीय हैं,
हमेशा याद रहेंगे, वे अनमोल दिन और रातें।

तेरी हंसी का चमकता है आसमान,
तेरे साथ बिताए हर वो पल हैं महान।
जीवन की यात्रा में, तू है मेरी साथी,
तेरी यादें बनी हैं मेरी आत्मा की अभिलाषी।

जब भी याद आती हैं तेरी हंसी की धुन,
मन होता है प्रसन्न, खुशियों से भर जाता हूँ।
तेरी यादों के संग, चलता हूँ जीवन की राहों पर,
मुस्कान बनाती हैं वो यादें, अनमोल हैं वो लम्हों की बारिश।

कुछ सुनहेरी यादें हैं तेरी जिनके संग, जीता हूँ खुशियों से भरी ज़िन्दगी,
हर एक पल बनता हैं यादों का एक सुंदर पहरी।
तेरी यादों के जरिए, जीने को मिला सच्चा अर्थ,
बन गई हैं वो सुनहेरी यादें, जो हैं मेरी आत्मा की मृदुल अर्ग्य।

चाय की चुस्की

चाय की चुस्की की तलब सुबह के समय तो ऐसी होती है,
मानो बिना चाय मेरे दिन की शुरुआत ही न हो रही हो।
लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा,
चाय की महक तुम तक भी पहुच रही है, यही बस बात होगी।

चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है,
मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।
चाय की चुस्की, चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है,
की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।

कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना,
चाय के बिना दिन की शुरुआत अधूरी सी महसूस होना।
चाय की तलब जैसे जीवन की एक आधारभूत आवश्यकता,
जो मन को शांति देकर दिल को बहुत सुकून देती है।

चाय की चुस्की लेने से लगता है दिल खुश हो जाता है,
कलम और कागज़ की जोड़ी बनती है, जब चाय की मिठास के साथ।
चाय की तलब इतनी है कि अक्सर शब्दों की कमी हो जाती है,
की सिर्फ एक चाय की मुलाक़ात से ही सब कुछ कह जाती है।

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काहे को खाली खाली

काहे को खाली खाली , खाली , खाली
खाली क्या है ???
समय
खाली कौन है ??

इंसान
खाली किस से है
पैसों से या समय से
यह खाली भी अजीब शब्द है

आजकल खाली वैसे कोई है क्या ?????
एक तरफ लगता है
सब खाली है
एक तरफ लगता है

दूसरी तरफ देखो तो कोई भी ना खाली
खाली कोई नही है,
कभी खाली तो कभी भरा सा लगता है इंसान
कहते है खाली दिमाग होता है।

शैतान का घर
खाली बड़ा या छोटा
मुट्ठी खाली , जेब खाली ,

रहता नही कोई तो मकान खाली ,

खाया नही कुछ तो पेट भी खाली
खाली डब्बा ,खाली बोटल
अगर तुम भी हो खाली तो

हर कोई आकर बके दो गाली
अरे बुड़बक काहे तू है खाली
यह जब होते है खाली
गेम खेले, जुआ खेले ,
ना जाने क्या क्या है ये खेले
बस दिखते है हरदम खाली, काहे को खाली खाली

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एकला चलो रे

एकला चलो रे, जीवन की यही राह है,
जब तक मन में हो ज्ञान का उजागर होना नहीं,
तब तक अभिव्यक्ति का रूप नहीं पा सकते हैं।

जीवन की यात्रा में एकला चलो रे,
जो बनती है आत्मविश्वास की ऊंचाइयों की ओर,
जो देती है सफलता की राह पर बढ़ने का हौसला,
जो बनती है खुद को समझने की ताकत का आधार।

जीवन की यात्रा में एकल चलो रे,
जो बनती है अपनी अलग पहचान का आधार,
जो देती है खुद को जानने का विश्वास,
जो बनती है जीवन के हर मोड़ पर ताकत का स्रोत।

एकला चलो रे, जीवन की यही राह है,
जब तक मन में हो ज्ञान का उजागर होना नहीं,
तब तक अभिव्यक्ति का रूप नहीं पा सकते हैं।

जीवन की यात्रा में एकल चलो रे,
जो देती है खुद को जानने की लगातार उमंग,
जो बनती है जीवन के हर पल का आनंद,
जो देती है खुद को समझने की ताकत का आधार।

एकल चलो रे, जीवन की यही राह है,
जब तक मन में हो ज्ञान का उजागर होना नहीं,
तब तक अभिव्यक्ति का रूप नहीं पा सकते हैं।

यह भी पढे: एकला चलो, दृढ़ निश्चय, मौन सही में परिपूर्ण, मेरी आवारगी में,

जिंदगी क्या है?

क्या है जिंदगी? मुस्कराहट का ही तो एक नाम है जिंदगी

जरा इसे मुस्कुराने ही दो,

ना गम के साये में खो जाने दो

यह है जिंदगी

बस ये जानने की एक कोशिश है

समझने की एक इच्छा है,

उस इच्छा को पूरा करना और जीवंत होकर

जीना ही तो है  जिंदगी

सबको बताना जरूरी नही है कि क्या है जिंदगी

बस खुद जान लेना बेहद जरूरी है जिंदगी

क्योंकि

जिसे मिली उसे कदर नहीं है

जिसे न मिली उससे पूछो जरा

क्या है जिंदगी ?

न तड़पाओ न रोने दो बड़ी प्यारी है जिंदगी

इसे खिलने दो जरा, यह खिलना चाहती है

क्योंकि खिलखिलाती सी है यह जिंदगी

गुदगुदाती – फुसफुसाती सी है जिंदगी

कभी बहुत हसाती है तो

रुलाती भी बहुत है जिंदगी

मिलकर जीने का नाम है जिंदगी

बिछड़ना भी है जिंदगी

फिर मिल जाने का नाम भी है जिंदगी

प्यारी सी मुस्कान है यह जिंदगी

खुद में जीने का नाम है जिंदगी

रूठे हुए को मनाना है तो

किसी अपने से रूठ जाना भी है जिंदगी

इंतज़ार भी है जिंदगी

अधूरी प्यास है जिंदगी

सहलाती हुई माथे पर हाथ रखती माँ है

माँ का आँचल है और

पिता की डांट का नाम है जिंदगी

खुदसे प्यार करने का नाम है जिंदगी

मैं से मैं में मिल जाना है जिंदगी

“तुम” और “मैं” को खत्म कर देना है जिंदगी

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मन को कैसे रोके

इस मन को कैसे रोके जो मन भीतर हो रही है उछल कूद है

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन भीतर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

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मन भीतर

मन भीतर हो रही है उछल कूद

इस मन को कैसे रोके

इस मन के आवेश में कितने है झोंके

इस मन को कैसे रोके

यह मन यह मन

इधर उधर ले जाए

जीवन संग सतरंगी सपने सजाए

जीवन की उधेड़ बुन में लगाए

नए नए रंग जीवन संग जोड़े  

इन रंगों में इंसान खुद ही गुम हो जाए

इस मन के अंदर अनेक कल्पना सज रही है

जो ये मन सजाए

इस मन को कैसे कैसे

हम समझाए

नित नए कार्यों में यह मन लग जाए

यह भी पढे: छोटी कविता, मन की मनघडन्त बाते, हमारा जीवन, भीतर का मन,

मैं कुछ लिखना चाहू

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

मन भीतर की कल्पनाओ से

इस जीवन को जैसा चाहू वैसा मैं बनाऊ

इस मन को

इस मन को

जीवन की

उधेड़ बुन में

मैं ना उलझाऊ – मैं ना उलझाउ

मन अलग अलग राहों में उलझे

कैसे मैं इसको सुलझाऊ

मन भीतर

मन भीतर

मन भीतर करे राग द्वेष

तन बैरी हो जाए

इच्छाओ का लगाके मेला

इस तन को खूब नाच नचाए

जगत के इन दृश्यों में

यह मन अटक बार बार जाए

जगत जाल में यह तन फँसता जाए

अरे मेरा तन बैरी हो जाए

यह तन बैरी हो जाए

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

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यह जिंदगी ना तेरी

यह जिंदगी ना तेरी ना मेरी
जिंदगी रूठ ना जाये कही

चलता रहा साथ जिंदगी के
यह थम ना जाये कही

तू सांस लेले खुलकर
कही सांस रुक ना जाये यही

जी ले थोड़ा सा जिंदगी को यही
कौन जाने अगला पल है या नही

दम भर ले जितना तू चाहे
फिर दम भरने को तू होगा या नही

फिर कही ये दम छूट ना जाये
हुंकार मार , दहाड़ , चिल्ला

जीवन को जी खुलकर आज और यही
अगला पल किसको खबर है या नही

आज तू इसका यही बुगल बजा
नाच हंस खिलखिला बस तू यही

पता चलने दे हर लोक को गाथा तेरी ,
अगला पल किसको खबर है या नही

यह जिंदगी ना तेरी ना मेरी
यह जिंदगी रूठ ना जाये कही

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