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साफ पानी की समस्या

दिल्ली में साफ पानी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, हमे पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा, नल में साफ पानी नहीं आता, इसलिए आर ओ की मशीन लगवानी पड़ती है जिससे हम साफ स्वच्छ पानी पी सके, यदि आर ओ नहीं लगवाते बाजार से पानी खरीद कर पिन पड़ता है, यह आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है।

दिल्ली की सरकार ने हर रोज 700 लीटर पानी मुफ़्त कर रखा है, लेकिन मुफ़्त होना बहुत जरूरी नहीं है यदि पानी साफ ओर स्वच्छ हो तो बेहतर है, आज के समय में पानी की वजह से ही बहुत सारी बीमारिया हो जाती है, पेट की समस्या तो इसमे आम है जो हर किसी को हो ही जाती है।यह साफ पानी की समस्या खत्म हो तो बहुत सारी बीमारी होने से रुक जाए, दिल्ली के 60-65 प्रतिशत इलाकों में पानी गंदा आता है।

पानी की बर्बादी: जबसे पानी मुफ़्त हुआ लोगों को पानी को बर्बाद करने का जैसे हक मिल गया है, अधिकतर लोग अपनी पानी की मोटर चलकर ही भूल जाते है ओर पानी बहता ही रहता है, यह आप किसी भी एरिया में देख सकते है, जो नल खराब है वो महीनों तक लोग ठीक नहीं कराते इसके साथ ही 200 यूनिट तक तो बिजली भी फ्री है जिसकी वजह से दिल्ली के लोग बहुत ही लापरवाह हो चुके है।

दिल्ली की सरकार: दिल्ली की सरकार मुफ़्त में बिजली ओर पानी देकर उनकी समस्या को घट नहीं बल्कि ओर बढ़ा रही है, इस वजह से भी कुछ आलसी हो रहे है, ओर बिजली व पानी की बर्बादी कर रहे है, आने वाले समय में यह समस्या ओर बढ़ती हुई दिख रही है, यदि पानी इसी तरह से मुफ़्त मिलता रहेगा लोग बहाते रहेंगे, जिस तरह से मानव ने अपनी नदियों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी यह मानव स्वयं का ही दुश्मन है एक दिन ऐसा आएगा जब हमे साफ पानी नहीं मिल पाएगा ओर शायद हम पानी के लिए भी तरसे क्युकी हम बर्बादी करने में माहिर हो चुके है, जिस तरह से राजनीतिक दल हमे मुफ़्त का लालच देते है ओर हम उस लालच में फंस जाते है, लेकिन हम यह नहीं समझ पाते की उस जाल में हम एक खुद ही शिकार हो जाते है ओर घुट घुट कर मार जाते है।

क्या हम तैयार है

यह बात सोलह आने सच है हम चाहते तो है कि स्वछ भारत हो परंतु क्या हम तैयार है, अच्छे भारत के लिए, स्वच्छ व सुंदर भारत के लिए बस यही एक जरा सा सवाल हमे खुद से पूछ लेना चाहिए हम कही भी थूक देते है, खुले में शोच कर देते है गाड़ी से बाहर से कूड़ा फेक देते है, पानी की बोटल रास्ते में पीकर ही फेक देते है।

सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट हम ही पीते नजर आते है, कूड़ेदान को अपनी दुकान में ना रखकर दूसरे की दुकान के सामने हम डाल देते मेट्रो स्टेशन की दीवारों के बीच में गुटके के पाउच हम छिपा देते है, बस में सफर करते हुए ही हम बाहर थूकते हुए हम ही नजर आते है कितनी ही ट्रेन, बस हमारे लिए बनाई जा रही हो, परंतु हम ही उनको तोड़ देते है तथा गंदा भी हम ही करते हुए नजर आते है। क्या हम तैयार है?

एक सड़क का निर्माण हो रहा होता है तो उसके पत्थर भी हम लोग ही उठाकर घर ले जाते है।
दिल्ली, हरयाणा और उत्तर प्रदेश की सड़कें पूल जब बन रहे होते है तो पुलिस कर्मचारी लगाए जाते है ताकि कोई सामान ना चुरा ले जाये।

DDA के प्रोजेक्ट भी हमारे जैसे लोगो के कारण ही देर से होते है क्योंकि हमारे काम के लिए भी उन्हें सुरक्षा देनी पड़ती है ।

गाय, भेस रोज काट रही है क्योंकि ट्रैफिक पुलिस वाला रेड लाइट पर 500rs लेकर उस ट्रक को जाने देता है।

हम ही वो लोग है जिन्हें गाड़िया चाहिए और मुह पर मास्क भी हम ही को लगाना है उसके बाद चार लोगों मे बैठकर हम ही नजर आएंगे की बहार प्रदूषण व गर्मी बहुत है क्योंकि हमें यह कभी समझ नही आता कि इसका कारण हम ही है।

पानी नदी की तरह बहता रहता है तब परवाह नही है तब मेरा काम नही है यह सब बातें सामने आती है और जब चला जाता है तब रोते भी हम है फिर कोसते है सरकार को।

आज कल नई चीज देखने को मिल रही है parents ही अपने बच्चों को पनवाड़ी की दुकान पर लेकर जाते है फिर कहते है हमारा बच्चा गुटका सिगरेट और शराब पीने लग गया है
अब गलती किसकी ये कैसे समझ आये हमको रे।

क्या हम तैयार है? यह सवाल हमे स्वयं से पूछना चाहिए।

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