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भीड़ तंत्र का हिस्सा

क्या आप भी इस भीड़ तंत्र का हिस्सा है? जो सोचते है ऐसे ही जीना चाहिए ओर मर जाना चाहिए बिना कुछ किये बस घर से आफिस या दुकान यही सब में बीत जाती है, जिंदगी और कुछ नही कर पाते खुद को भी हम खो बैठते  शादी करना बच्चे पैदा करना बस यही एक जीवन है।

मसक्कत भरी सी लगती है क्या जिंदगी? या फिर कुछ करने की इच्छा होती है, या जो इच्छा होती है उसको दबा कर मार दिया और कुचल दिया गया है, कही अब कोई ठिकाना नही मिलने वाला उन्ह इच्छाओ को जो तुमने दबा दी है वो इच्छा अब इच्छा नही है ऐसा लगता है।

क्या आप भी भीड़ तंत्र के शिकार है ? क्या आप भी उसी भीड़ में चल रहे जिसमे लाखो करोड़ो लोग भी है जिसका  नाम समाज का दे दिया गया है परंतु वास्तविकता कुछ और ही है जहां आपको मत देने का अधिकार है परंतु खुद की एक अलग सोच रखने का कोई अधिकार नही है,
क्या ऐसा सच में है ??

मैं भी फ़िल्म और क्रिकेट खेल प्रेम हूँ, परंतु अपने विचारो को पूर्णतया जानता हूं और समझ सकता हूं की मैं क्यों? क्योंकि कुछ समझाने के लिए समझना बहुत जरूरी है फिल्में जो हमे सर्फ और सिर्फ चार दिवारी और प्रेम, और इस जीवन के जो किस्से हो रहे है बस वही बता रही है।

जिसके अलावा कुछ भी नही जैसे की आत्ममंथन कैसे करे या अपने जीवन को और बेहतर कैसे बनाये या खुद को कैसे जाने इन विषयो के बारे में कोई फ़िल्म जगत का प्राणी नही बताता सिर्फ अपनी मन की सीमाओं ओर आप बीती तथा जो आज के समय में हो रही है या हो सकने वाली घटनाओ के बारे ही एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है इसके अलावा कुछ भी नही।

आज कल सिर्फ लोगो के मन में शादी करलो और अपना जीवन चक्र चलाओ बस इन्हें यही सिखाया जा रहा है, जो बिल्कुल ही जीवन के विपरीत एक स्तिथि लगती है, क्योंकि आपका उत्थान होना बहुत काम हो जाता है, जब आप एक वैवाहिक जीवन जीने की और अग्रसर होते है।

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मैं पुरुष हूँ

मैं पुरुष हूँ, पुरुष जिसे जल्दी समझदार बनना है और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ भी उठाना है , चाहे उसे जिम्मेदारी समझे या जिम्मेदारियों का बोझ लेकिन उठाना पुरुष को ही है, शादी करनी है, ताकि माँ बाप की इच्छाये पूरी हो, लेकिन खुद की इच्छा का दम घोट दो, तुम अकेले रहना चाहते हो लेकिन समाज आपको बंधनो में बाँधना चाहता है, वो चाहता है की हम उनके अनुसार चले, जो समाज चाहता है वही हम करे।

क्योंकि आप  पुरुष हो आपको बहुत सारी जिम्मेदारियां उठानी है , परिवार की खुशी के लिए अपनी खुशियो का गला घोट देना है, आप क्या बनना चाहते हो ओर क्या होना चाहते हो ये बाद में है पहले आपके परिवार की इच्छा महत्व रखती है। वो आपसे क्या चाहते है।

आपको एक अनुशासित पुरुष होना है आपको अपने माता पिता , भाई बहन , बीवी बच्चों सबके लिए ideal बनना है।

क्योंकि आप पुरुष हो,

एक दिल जो टूटा भी है ओर जुड़ भी गया है, रहने की चाहत अकेले की है फिर भी कही खालीपन सा भी महसूस होता है लेकिन ये सिर्फ कभी कभी होता है जो कभी कभी वाला रिक्त स्थान है वो भर लेना चाहता हूं।

एक डर है जो बयान नही कर पाता हूं, खुल कर रो नही पाता क्योंकि मैं एक आदमी हूं, सिर्फ इसलिए मैं अपने आसुओ को भीतर ही रोक नजर आता हूँ, कुछ चाहकर भी नहीं किसी को इस दिल का हाल नहीं बता पाता हूँ, बताना चाहू भी अगर तो लोग क्या कहेंगे तू एक पुरुष है ओर पुरुष होते हुए रोता है, शायद इसलिए भीतर ही सब दुख दर्द रोक रह जाता हूँ मन का हाल किसी को नहीं बताता हूँ इसलिए भी मैं पुरुष, कहलाता हूँ।

कितना ही भीतर मचा रहे कोहराम लेकिन उसको बाहर नहीं छलकाता हूँ अपने भीतर ही अपनी भावनाओ को मैं छिपाता हूँ।

क्योंकि मैं एक पुरुष हूं।

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