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शब्दों के भीतर ही

शब्दों के भीतर ही हम अटक जाते है ,जब इनका मन करता है तब ही बाहर आते है ,इन शब्दों पर किसी का राज नहीं चलता ,ये तो अपना ही राज चलाते है , शब्द की चाबी, शब्द की डोर किसके हाथ में है ,यह किसीको नहीं पता, शब्द अलग कहानी बयान करते है ओर अपना जीवन स्वयं ही बनाते है  

शब्दों के भीतर ही एक जहाँ होता है,
जिसमें दर्द और सुख का समान होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ अक्षर नजर आते हैं,
वे जीवन के संघर्षों की झलक दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक समंदर होता है,
जिसमें खुशियों की लहरें भी तैरती हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ विचार नजर आते हैं,
वे नये सपनों की उमंग दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक आग होती है,
जो उत्साह और जोश से जलती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ उत्साह नजर आते हैं,
वे नए सपनों के आगार में जलते हैं।

शब्दों के भीतर एक ख्वाब होता है,
जिसमें असंभव भी संभव लगता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ ख्वाब नजर आते हैं,
वे नये सपनों की दुनिया बसाते हैं।

शब्दों के भीतर एक महफ़ूज़ होता है,
जहाँ अनजान भी अपना होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ भाव नजर आते हैं,
वे नए संबंधों की उमंग दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर एक अजीब सा दर्द होता है,
जिसमें अक्सर अपनों का दर्द छिपता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ दर्द नजर आते हैं,
वे अपनों के दर्द के एहसास दिलाते हैं।

शब्दों के भीतर एक असीम खामोशी होती है,
जिसमें खुशियों और दर्द का एक साथ अहसास होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ आभास नजर आते हैं,
वे जीवन के रहस्यों कोसमझाते हैं और उन्हें व्यक्त करते हैं।

शब्दों के भीतर अनगिनत विचार होते हैं,
जो अक्सर स्वयं को ढूँढते हुए खो जाते हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ विचार नजर आते हैं,
वे जीवन के रहस्यों को सुलझाते हैं।

शब्दों के भीतर एक अद्भुत शक्ति होती है,
जो संसार को बदलने की ताकत रखती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ शक्ति नजर आती है,
वे संसार की बदलती तस्वीर दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक अनंत संभावनाओं का समुंदर होता है,
जो नए और अनजान सपनों को जीवंत रखता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ संभावनाएं नजर आती हैं,
वे सपनों की उमंगों को भरते हैं।

शब्दों के भीतर एक अद्भुत वास्तविकता होती है,
जो संसार को समझने की ताकत देती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ वास्तविकता नजर आती है,
वे संसार की सच्चाई को दर्शाते हैं।

शब्दों के भीतर एक ही अनंत दुनिया होती है,
जिसमें अनगिनत संभावनाएं बसती हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ एक साथ सब कुछ नजर आता है,
वे जीवन की उमंगों से भरी दुनिया बनाते हैं।

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शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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