Posts tagged shabd ras

शब्दों की बाते

मैं आपको कुछ शब्दों की बाते बताता हूं
इनकी बाते सुनो इनको जानो तुम जरा पहचानो इनको
यह शब्द कौन है इनका जरा मेल मिलाप तो देखो, ये अद्भुत ये निराले इनके कार्य सारे मतवाले

शब्द हस्ते है 
ये ठहाके मार मार हँसते है 
तो कभी बहुत वेदना के साथ रोते है 
इनकी भी अजीब है कहानी

 हर पल में हो जाती है  इनकी बाते बेईमानी 
अपने मुह मिया मिट्ठू भी बन जाते 
अपनी प्रशंसा सुन खुश हो जाते 

शब्द बच्चे भी है
तो जवान भी है
ये बूढ़े भी है इनमें अब जान भी कुछ नही है 
यह  बड़े अनजाने है 
कभी कभी बहुत जाने पहचाने भी हो जाते है 

यह बड़े मतवाले भी बहुत है 
इनकी चाल निराली हर बात में है
इनमें निरालापन भी बहुत है 

इन शब्दों का मुस्कुराना देखो और
इनका  इतराना देखो
शब्द निराश भी बैठे है हतास भी है 

उदास भी बैठे कभी कभी ये लाजवाब भी बैठे है।
शब्द गुस्सा भी बहुत करते है और शांत भी हो जाते है 
शब्दों के चेहरे भी अलग अलग है इनकी बाते भी अलग है।

शब्दों का मटकना देखो, शब्दों का नाच भी देखो यह नाचते बहुत है 
इनके करतब अजीब है कभी कभी ये शब्द बहुत बत्तमीज है। 
कभी कभी सीखा डते ये सलीका और तमीज़ है
 
शब्द अपने ही शब्दों में करते कहानी बयान है
न इनकी कोई जुबान है और ना इन पर कोई लगाम है।
अगर लगाना चाहो इन शब्दो पर लगाम
 
तो ये क्रोधित  हो जाते है 
यह शब्द कभी कभी मौन भी हो जाते है 
तो कभी कभी ये रोते, चीखते और चिल्लाते है

शब्द तो कभी चुप भी इनमे मौन रहने की क्षमता भी है।
तो कभी इनमें कोई क्षमता नही नजर आती है 
शब्द सर्वशक्तिमान भी और अपने आपमें असहाय भी है
शब्द परिश्रम करता ही दूसरे शब्द के लिए है

स्वयं शब्द तो खुद को भूल ही गया है
शब्द ही शब्द का सहारा है वरना शब्द बेचारा बेसहारा है
शब्दों की भीड़ बहुत है, शब्द अकेले भी रह जाते है।
शब्द शोर बहुत मचाते है।शब्द शांत भी हो जाते है।

इनका होश तो देखो इनका जोश तो, जोश में होश खो देते है कभी तो , ओर कभी जोश ही नहीं रहता इनमे यह शब्द कही खुद में गुम हो जाते है,
देखो कभी कभी ये कितनी बड़ी बड़ी बातें कर जाते
मतलब जिन का सिर्फ यह सीखा पाते है। यह शब्दों की बाते है शब्द खुद ही बताते है, इनको समझना बड़ा मुश्किल है नया जाने यह शब्द कैसे इनको खुद ही समझ पाते है।









शब्द बन बैठा हूँ

शब्द तो बन बैठा हूँ

लेकिन शब्दों को कह नहीं पाता हूँ

बस खुद में ही कही नजर आता हूँ

शब्द हूँ शब्दों से कतराता हूँ

कभी छुपक जाता हूँ ,

कभी दुबक जाता हूँ ,

बाहर नहीं आ पाता  हूँ ,

घबरा कर बैठ भीतर ही जाता हूँ ,

यू मुझमे छिपा दर्द बहुत लेकिन कह कुछ नहीं पाता हूँ

बिना मतलब के चिल्लाता हूँ

हर किसी को बताता हूँ

शब्द हूँ मैं

लेकिन कुछ बोल नहीं पाता हूँ

भीतर की गहरी बाते जुबा पर ला नहीं पाता हूँ

जब भी बारी आई मेरी बोलने की सहमा सहमा नजर आता हूँ

शब्द हूँ मैं

लेकिन ज़्यादार मौन ही नजर आता हूँ

शब्द हूँ मैं

ना जाने ये बात भी कैसे जान पाया हूँ

लेकिन किसी को बता नहीं पाया हूँ

बस शब्द बन बैठा हूँ