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शब्द हूँ मैं

शब्द हूँ मैं लेकिन शब्द कौनसा ओर कैसा हूँ मैं ? शब्द क्यू लगाते हो पीछे अपने नाम के ये कैसा शब्द है? इस शब्द की कोई जाती नहीं है , तो ये कौनसा शब्द है ओर कैसा ? मुझसे बहुत सारे लोगो ने ये सवाल पूछा है कि आपने अपने नाम के पीछे यह शब्द कैसे और क्यों रखा है? यह कोई जाती तो नहीं है, यदि हो तो हमने कभी सुनी नहीं है।

मेरा जवाब भी यही होता है की जी हाँ यह कोई जाती नहीं है बस यह मैंने यह शब्द स्वयं ही लगाया है, क्युकी शब्द से मैंने बहुत पाया है इस शब्द के कारण ही मुझे बहुत समझ आया है, जगत के जीतने प्रश्न मेरे मन में आए उनको हाल कर पाया हूँ मेरी जिंदगी की उलझने भी इन शब्दों के कारण ही खत्म कर मैं पाया हूँ, इसलिए शब्द मेरे नाम संग मैं शब्द लगाया हूँ।

ओर हर सवाल का जवाब का ये शब्द ही क्यू है? क्या है? ये शब्द जिसे आप इतना महतव देते है जिसे आप आत्मा भी कहते है। ऐसा क्यू है ?

तो आज उसका जवाब भी दे देता हूं, कौन हूं मैं? का अर्थ जो अब तक समझ और खोज पाया हूं,
वो शब्द है जो अब तक मैं कहलाया हूं।

इसके आगे की खोज जारी है लेकिन उत्तर अभी तक सभी प्रश्नों पर ये शब्द उत्तर सभी प्रश्नों पर भारी है, सभी पर्श्नो का हल मुझे मिला, सभी सोच इसपर आकर पूरी हुई  निराकार यही आकर पूर्ण हुआ।

संपूर्ण भागवत, वेद पुराणों का ज्ञान शब्द में आकर समाया जगत शब्दम्य ओम उच्चारण से गूंज उठाया, शब्द से ही इस जगत का विस्तार हो रहा है, शब्द से जगत ही शब्दमय होता जा रहा है शब्द से ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड चलायमान है, शब्द हम सभी में विध्यमान है ये नजर आया है

हमारी यदि कोई इच्छा-अनिच्छा है तो भी वह शब्दों के कारण ही पूर्ण होती है, शब्द के कारण कोई भी वस्तु अकारण नहीं है सभी जीव और वस्तुए कारणों के कारण में बंधी हुई है।

कोई भी किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछो उसका जवाब शब्द है, प्रकाश की गति से भी तीव्र शब्द है, क्युकी शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए है शब्द का दूसरा रूप जिसे हम विचार या ॐ रश्मि भी कह सकते है, उन्हे तरंगित किरने जो हमारे भीतेर से निकल रही है।

शब्दो को पढ़ता हूं,
शब्दो को सुनता हूं,
खुद की पहचान भी शब्दो से करता हूँ मैं

शब्द हूँ मैं

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तेरी आंखे

तेरी आंखे मुझे नोच खचोट जाती है

ये जो तेरी आंखे है न
मुझे नोच डालती है
तेरी आंखे ही है
जो मुझे नोंच डालती है,
इन आंखों पर थोड़ी लगाम रख
इन आंखों में थोड़ी शर्म तो ला
इन्ह आंखों को अब और ना गिरा,
इस तरह से तू आंख निकाल ना बाहर

क्योंकि

ये जो तेरी आंखे है
न मुझे नोच नोच कचोट जाती है।

मैं भी एक इंसान हूं
फर्क की दीवार ना तैयार कर
इन आँखों  में थोड़ी शर्म ला,
शर्म का पर्दा तू भी तैयार कर
इन आंखों से मुझे ना तू
यू तार तार कर

लाज शर्म सिर्फ मेरा ही गहना नही,
खुद की आंखों के लिए तू भी इसे पहना कर
मुझे यू ना तू इन आंखों से रौंदा कर

इस तरह घुट घुट कर मरने से अच्छा,
एक बार मरना होगा ही सही
ये जो तेरी आंखे है ना
मुझे नोच खचोट जाती है

जहा जाती हूं
मेरे शरीर को,
ऊपर से नीचे तक मुझे देखती हुई
तेरी आंखे मुझे नजर आती है,
यह आंखे मुझे रौंद डालती है
लाख बार मेरी इज्जत तार तार कर देती है
ये आंखे मुझे हजारो बार मारती है

इन आंखों से बचु कैसे?
हर वक़्त हर जगह मुझे,
ये आंखे नजर आती है
घर से बाहर जब निकलती हू,
रोड पर जब मैं चलती हूं

लाखो आंखे मुझे घूर घूर मार डालती है,
लाखो बार एक दिन में मैं मर जाती हूं
ये आंखे मुझे रौंद डालती है

कभी ये उन स्कूल कॉलेज  जाते हुए बच्चो की
तो कभी मनचलों की सड़को पर नजर आती है
 
ये आंखे मुझे रौंद डालती है
बस स्टॉप हो या बस का सफर
ऑटो में हूं या कार में,
तेरी आंखे भीतर तक घुस जाती है मेरे….

तन और मन को छल्ली कर नजर आती है
मुड़ मुड़ क्यों देख मुझे तेरी आंखे सताती है
कुछ शर्म लाज रख इन्ह आंखों में
ये तेरी आंखे मुझे क्यों नोंच खाती है
 
बस मुझे ढूंढ कर रौंदना
ये आँखें चाहती है,
ऐसा कौनसा गुनहा किया है मेने
जो ये आंखे मुझे रौंदना चाहती है
छिन्न भिन्न हो मैं जाती हूं,
तिल तिल  मर मैं जाती हूं
जब ये आंखे मुझे रौंद जाती है
अकेली लाचार बेसहारा खड़ी,
नजर में खुद को आती हूं


क्यों
बस एक यही
सवाल खुद से करती हूं मैं,
बेचैन अकेले  हर पल,  हर जगह इस समाज में क्यों  हो जाती हूं मैं
सुबह हो या शाम  कही नही मैं जा पाती हूं।

गली मोहहल्ले
मैं भी चल नही खुलकर मैं सकती हूं,
बंद चार दिवारी में भीतर घर के हो जाती हूं मैं
लगता है डर बहुत,
अब तो डर डर के  बस इस जिंदगी को बिताती हूं
तेरी आंखे जो मुझे नोंच डालती है यह मैं सह नही पाती हूं।

ये हदे पार ना करो
कौनसी सी जिद्द है ये तुम्हारी
कौनसा बदला लेना चाहते हो,
जो तुम इस तरह से मुझे देखते हो

मेरे जिस्म को यू देख कर तार तार ना करो
मैं भी किसी की बेटी, बहन, माँ हूं

मुझे खुद की आंखों में शर्मशार ना करो

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जिंदगी एक सफर है

जिंदगी एक सफर है, और हम सभी यात्री है, हम थक जाते है, ठहर जाते है, कभी कभी चल नही पाते है बस फिर भी आगे बढ़ने की इच्छा है, इसलिए जिंदगी के साथ आगे बढ़ते जाते है।

यह जीवन एक चलता हुआ सफर है
और हम मंजिल से बस बेखबर है
मंजिल से बेखबर है लेकिन
इस चलते हुए सफर में,
इंसान तू ठहर मत जाना

थक हार कर तू कही बैठ नही जाना
यह जिंदगी एक चलता हुआ सफर है
बस चलते ही तू जाना,
रुक ठहर तू मत जाना
हौसला टूटता है तो टूट जाने दे लेकिन
तू हौसला टूटता देख मत लड़खड़ाना।

मेने हिम्मत की हार होते हुए बहुतो की देखी है
उन बहुतों में तू भी ना शामिल हो जाना,
तू भी उनकी तरह टूट-फुट, बिखर  ना जाना

जिंदगी की मौज में सवार होकर तू आगे बढ़ना
कभी जिंदगी को थका हुआ ,
हारा हुआ एहसास न तुम कराना

आगे देख बस बढ़ते ही तुम जाना
पीछे जो मुड़कर देखते है,
वही अक्सर रुके हुए नजर आते है
और फिर कभी आगे नही वो बढ़ पाते है ,
इसलिए सफर को
मुड़कर ना तू  देखना

बस आगे तू बढ़ते जाना
उचाऊ से कभी मत डरना
और नीचाई को अकड़ मत दिखाना,

ऊँचाई को पकड़ लेना लेकिन
गहराई को भूल ना जाना,

धीरे धीरे चल
आराम से चलना जिंदगी की मौज में चलना
हर कदम संभाल कर चलना
कभी लड़खड़ाना, डगमगाना तो रुक जाना
लेकिन मुड़ कर वापस तू ना आना

बाहँ पकड़ खुदकी तू चलना
बाहे तेरी पकड़ने, साथ तेरा निभाने
कोई ना आएगा
पथ ना कोई दिखायेगा तुझे,
अलग अलग पथों पर भटकाएगा
तुम्हे लेकिन अडिग हो अपने पथ पर चलते जाना है
बल्कि
इसके विपरीत नीचे जो साथ है वो गिरायेगा तुझे
पहले मैं – पहले मैं करता नजर आयेग वह

भरोसा चाहकर भी तू नही उन पर कर पायेगा
खुद संभल उठ खड़ा हो
तभी इस जहांन को नजर आएगा,
वरना ना जाने कहाँ गुम तू हो जाएगा
तू रुकना नही

दिन के उजाले को देख खुश ना होना
और रात के अंधेरे में घबरा मत जाना

मंजिल नजदीक ही है बस उसे पाने के लिए
तू अपने पथ पर अडिग चलते ही तू जाना……

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शब्द ही शब्द को जाने

शब्द ही शब्द को जाने, बिन शब्द हम किसको माने,
शब्दो से शब्दो का मिलन हो रहा है, शब्दों से बिछड़ना भी अनोखा है , इन शब्दो से  इस ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा यह रहसे अनोखा है कौन इसको समझ रहा है,
शब्दो का अनूठा जीवन इनका रहस्य ना कोई जान पाया, शब्दों ने अपना अनेक रूप दिखाया , शब्द एक होकर भी आया ओर भिन्न होकर भी इन शब्दों ने समझाया, लेकिन इन शब्दों के रहसे कोई नहीं समझ पाया ,
शब्द ही शब्द को उदघोष करते है, शब्द का जीवन बहुमूल्य
है, शब्दो का सहयोग शब्दो के लिए अनोखा है इस जीवन में ,
शब्द में प्रीति , शब्द में भाव , शब्द का बदलाव, शब्दों का अर्थ, शब्द कभी व्यर्थ तो शब्दों का कभी अनर्थ भी है।

शब्दो की चर्चा भी खूब होती है कभी यह
शब्द का मान – अपमान
शब्दो का क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार ,
शब्दो का मिलना बिछड़ना , शब्दो का एकजुट होना और शब्दो का अलग अलग हो जाना
यह शब्द ही जो तुम्हे खोखला कर देते है यह शब्द ही है जो तुम्हारा जीवन खुशियों से भर देते है , शब्द के अलग अलग रूप , आकर है इनको समझना बुद्धि के पार है।

शब्दो का क्रम, शब्दो का लयबद्ध होना इनका यही एक विचार है शब्द कर रहे अपना प्रचार प्रसार यही इनका कार्य यही इनका आचार है, शब्दो में कितने ही भेद और मतभेद है, शब्द स्थिर है और अस्थिर भी है इनका प्रयास एकमत है लेकिन मतलब अनेक है इसलिए बढ़ रहा भेद नहीं हो पा रहे है ये एक!

फिर से एक और पड़ाव पार करने को हूं अब जिंदगी को इस पार से उस पार करने को हूं,
जिंदगी के कई पड़ाव पार किए है लेकिन ये पड़ाव और भी महत्वपूर्ण है जिसमे शब्द को जाना शब्द में जिया था, अब शब्द से मौन की और होने को हूं या शब्दातीत होऊंगा मैं।

जिंदगी के साथ चलना

जिंदगी के साथ चलना और जिंदगी एक लगातार चलने वाला सिलसिला है, जो रुकेगा नहीं बस बदल जाएगा, जो जिंदगी का नई जिंदगी के साथ परिवर्तन कहलाएगा

जिंदगी क्या है, ये तो हम सभी जानते हैं,
पर जिसे जीने का तरीका नहीं पता, उसे ये समझाना हमारा काम है।

जिंदगी एक अनमोल उपहार है,
जिसे सदा संतोष से सम्मान करना चाहिए।
हर पल खुश रहने का तरीका सीखना होता है,
जिंदगी के साथ सामंजस्य बनाना होता है।

जिंदगी के साथ बदलना होता है,
कभी हंसते हुए, कभी रोते हुए।
जिंदगी के साथ जीना होता है,
कभी जीते हुए, कभी हारते हुए।

जिंदगी के साथ चलना आगे बढ़ते जाना होता है,
जब तक जीवन हमारे साथ होता है।
जिंदगी के साथ संघर्ष करना होता है,
जब तक मंजिल हमारी नजदीक नहीं होती है।

जिंदगी क्या है, ये तो हम सभी जानते हैं,
पर जिसे समझना होता है, उसे उसका मूल्य समझना होता है।
जिंदगी के साथ चलते जाना होता है,
जब तक जीवन हमारे साथ होता है।

शब्दों के भीतर ही

शब्दों के भीतर ही हम अटक जाते है ,जब इनका मन करता है तब ही बाहर आते है ,इन शब्दों पर किसी का राज नहीं चलता ,ये तो अपना ही राज चलाते है , शब्द की चाबी, शब्द की डोर किसके हाथ में है ,यह किसीको नहीं पता, शब्द अलग कहानी बयान करते है ओर अपना जीवन स्वयं ही बनाते है  

शब्दों के भीतर ही एक जहाँ होता है,
जिसमें दर्द और सुख का समान होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ अक्षर नजर आते हैं,
वे जीवन के संघर्षों की झलक दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक समंदर होता है,
जिसमें खुशियों की लहरें भी तैरती हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ विचार नजर आते हैं,
वे नये सपनों की उमंग दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक आग होती है,
जो उत्साह और जोश से जलती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ उत्साह नजर आते हैं,
वे नए सपनों के आगार में जलते हैं।

शब्दों के भीतर एक ख्वाब होता है,
जिसमें असंभव भी संभव लगता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ ख्वाब नजर आते हैं,
वे नये सपनों की दुनिया बसाते हैं।

शब्दों के भीतर एक महफ़ूज़ होता है,
जहाँ अनजान भी अपना होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ भाव नजर आते हैं,
वे नए संबंधों की उमंग दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर एक अजीब सा दर्द होता है,
जिसमें अक्सर अपनों का दर्द छिपता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ दर्द नजर आते हैं,
वे अपनों के दर्द के एहसास दिलाते हैं।

शब्दों के भीतर एक असीम खामोशी होती है,
जिसमें खुशियों और दर्द का एक साथ अहसास होता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ आभास नजर आते हैं,
वे जीवन के रहस्यों कोसमझाते हैं और उन्हें व्यक्त करते हैं।

शब्दों के भीतर अनगिनत विचार होते हैं,
जो अक्सर स्वयं को ढूँढते हुए खो जाते हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ विचार नजर आते हैं,
वे जीवन के रहस्यों को सुलझाते हैं।

शब्दों के भीतर एक अद्भुत शक्ति होती है,
जो संसार को बदलने की ताकत रखती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ शक्ति नजर आती है,
वे संसार की बदलती तस्वीर दिखाते हैं।

शब्दों के भीतर ही एक अनंत संभावनाओं का समुंदर होता है,
जो नए और अनजान सपनों को जीवंत रखता है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ संभावनाएं नजर आती हैं,
वे सपनों की उमंगों को भरते हैं।

शब्दों के भीतर एक अद्भुत वास्तविकता होती है,
जो संसार को समझने की ताकत देती है।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ वास्तविकता नजर आती है,
वे संसार की सच्चाई को दर्शाते हैं।

शब्दों के भीतर एक ही अनंत दुनिया होती है,
जिसमें अनगिनत संभावनाएं बसती हैं।
वहाँ शब्द नहीं सिर्फ एक साथ सब कुछ नजर आता है,
वे जीवन की उमंगों से भरी दुनिया बनाते हैं।

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दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ

मैं घोषणा करता हूँ मुझे हुआ हे वो दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ
शर्मा जी वर्मा जी ने पूछा है क्या ज्ञान हुआ आपको श्रीमान ?
मैं बताऊँ मुझे हुआ हे दिव्य सत्य ज्ञान पत्नी देवी ही शुद्ध भगवान।
घर में बैठा हे भगवान….
ऐ शेतान् इस परम ज्ञान को नहीं रहा जान ।
क्या बुद्धि तेरी जल गई बुझ गई ओ अहंकारी ओ बुद्धि नुक़सान।
मेरा ज्ञान व्यावहारिक टन टनाटन….
यह समझ का गेम मुझे हुआ परम ज्ञान।

इस ज्ञान हम 24×7 करते प्रचार….
खाओ गोलगप्पे और खट मीठिया आचार।

जय श्री पत्नी सर्व देवाये नमों नमः
संकट कटे कटे सब पीड़ा ओम फट।

दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ

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यौवन शरीर या मन

यौवन शरीर या मन से या ज़्यादा मन की स्थिति….
हो सोच का हिस्सा मन में हो उपस्थिति ।
समय अब तो भीतर के यौवन को सँवारो….
समझ से कार्य लो ताकि हम बने हीरो।

यौवन एक सोच ये समाप्त तो फिर बेसाख़ी वाला जीवन…
नहीं मरने देना इसको दो क़ीमती एक बचपन और एक यौवन ।
अभी आपने बहुत क़िले हे फ़तहे करने….
दुश्मन भिड़े तो उसे चबाने पड़े लोहे के चने ।

राम ललवानी के विचार

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हमारा दिमाग

जब हम घर बैठे होते है तब हमारे दिमाग की हालत कैसी होती है? हमारा दिमाग क्या सोचता है या फिर सोचना ही बंद हो जाता है?

जानते इस बात को हमारे विचारों पर क्या असर आता है, जब हम घर से बाहर ही नहीं निकलते

हम सिर्फ इस बारे में ही सोचते है की क्या करे ओर क्या नहीं क्युकी हमारे खुद के काम तो कुछ होते नहीं है लेकिन घरवालों के बहुत काम होते है, जैसे की दूध लाना , दही लाना घर का कोई भी समान खतम हो जाता है तो बस अब आपको ही याद किया जाएगा, खाली बैठे कुछ नहीं कर कपड़ा ले ओर सफाई करले, झाड़ू मारले, पोचा मारले कुछ तो करले निकम्मे लेकिन खाली नहीं बैठ तू बस कुछ करले लेकिन खाली ना बैठ।

किसी का फोन आ गया है लेकिन घरवाले क्या बोलेंगे

इसके जैसे आवारा, निकम्मे लड़कों के फोन ही आ रहे होंगे काम का कोई ना फोन होगा बस पूरे दिन या तो गेम खेलता है या इसके फालतू दोस्तों के फोन आते है कोई काम नहीं करता कुछ ना कुछ चरता रहता है।

सुना सुना कर बुरा हाल कर देंगे लेकिन यह नहीं पूछेंगे की तू क्या करना चाहता है, तेरा मन किसमे लगता है जो तेरा मन करे वही कर तू, अच्छे से तैयारी करले तू , जितना चाहे उतना समय ले तू हम तेरे साथ है बस यही वो शब्द है जो एक बच्चा सुनना चाहता है, अपने घरवालों से लेकिन उसे यही शब्द सुनने को कभी नहीं मिलते, ओर वह बच्चा अपनी जिंदगी के लक्ष्य को छोड़ जैसा घरवाले बोलते है वही करने लग जाता है वो बच्चा।

दिखावा करना

दुनिया में दिखावा करना ….
कोई नहीं हमसाया ।
कही न कही यह स्वय का दोष …
जो चाहता तो हे स्वय के लिए मिले
ऐसा व्यक्तित्व लेकिन नहीं किसी के लिए मैं इस शिद्दत से जी पाया ।
बाहर तो हम कह सकते है आसान हे यह सही नहीं वो कितना ग़लत…..
प्रश्न स्वय से किया कभी मैंने किसके लिये क्या किया ? क्यूँ में माँग रहा कितनी मेरी हे समझ ।

स्वय को कम आंकना नहीं मेरा मक़सद….
बस उम्मीदों के कारवाँ से बचना ही सही मायने की स्वय की सही अर्थों में मदद।