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सवालों के कटघरे में

सवालों के कटघरे में खुद को
हर बार छोड़ देता हूं

तुम्हारे लिए में सपनों को
बार बार तोड़ देता हूं

इंतज़ार करता हूं तुम्हारा
की तुम आओगी लौटकर
और

तुम आ भी जाती हो
लेकिन फिर??
मेरे सामने फिर वही

सवालों का ढेर तुम लगा जाती हो
क्यों तुम आती हो ?

क्यों सवालों का ढेर लगाती हो ?
मुझे क्यों नहीं यह बताती हो
की छोड़ना बस तुम मुझे चाहती हो।

घटना घट रही

आज जुबान पर कुछ शब्द आना चाह रहे है,
जैसे
शब्द अपनी आप बीती सुनाना चाह रहे है, उन शब्दों को बाहर आने दो कुछ तुमसे कह जाने दो, उन शब्दों को भी तुम्हें अपना बना जाने दो, यह घटना घट रही इसे घट जाने दो।

कही से आज फिर शुरुआत होना चाहती है
मानो
आज फिर जिंदगी से बात होना चाहती है।

यु ना तुम रूठ जाओ जिंदगी मनाना चाह रही है,
बात अब
मान जाओ मौन होकर ना बैठो यह जिंदगी आज कुछ तुमसे 
कहना चाह रही है।

बात कुछ है तभी तो जिंदगी तुमसे आज बतियाना 
चाह रही है, दो शब्द बाते आज होना चाह रही, यह घटना घट रही रही है घाट जाने दो, जो होना है उसे हो ही जाने दो

जिंदगी से कुछ बात

जिंदगी की जिंदगी से कुछ बात होना चाहती है, आज जुबान पर कुछ शब्द आना चाह रहे है
जैसे
शब्द अपनी आप बीती सुनाना चाह रहे है।

कही से आज फिर शुरुआत होना चाहती है
मानो
आज फिर जिंदगी से कुछ बात होना चाहती है।

यु ना तुम रूठ जाओ जिंदगी मनाना चाह रही है
बात अब
मान जाओ मौन होकर ना बैठो यह कुछ तुमसे 
कहना चाह रही है।

बात कुछ है तभी तो जिंदगी तुमसे आज बतियाना 
चाह रही है।

जरा पास बैठो जिंदगी यह तुमसे आज कुछ कहना चाह रही है

शब्दों की बाते

मैं आपको कुछ शब्दों की बाते बताता हूं
इनकी बाते सुनो इनको जानो तुम जरा पहचानो इनको
यह शब्द कौन है इनका जरा मेल मिलाप तो देखो, ये अद्भुत ये निराले इनके कार्य सारे मतवाले

शब्द हस्ते है 
ये ठहाके मार मार हँसते है 
तो कभी बहुत वेदना के साथ रोते है 
इनकी भी अजीब है कहानी

 हर पल में हो जाती है  इनकी बाते बेईमानी 
अपने मुह मिया मिट्ठू भी बन जाते 
अपनी प्रशंसा सुन खुश हो जाते 

शब्द बच्चे भी है
तो जवान भी है
ये बूढ़े भी है इनमें अब जान भी कुछ नही है 
यह  बड़े अनजाने है 
कभी कभी बहुत जाने पहचाने भी हो जाते है 

यह बड़े मतवाले भी बहुत है 
इनकी चाल निराली हर बात में है
इनमें निरालापन भी बहुत है 

इन शब्दों का मुस्कुराना देखो और
इनका  इतराना देखो
शब्द निराश भी बैठे है हतास भी है 

उदास भी बैठे कभी कभी ये लाजवाब भी बैठे है।
शब्द गुस्सा भी बहुत करते है और शांत भी हो जाते है 
शब्दों के चेहरे भी अलग अलग है इनकी बाते भी अलग है।

शब्दों का मटकना देखो, शब्दों का नाच भी देखो यह नाचते बहुत है 
इनके करतब अजीब है कभी कभी ये शब्द बहुत बत्तमीज है। 
कभी कभी सीखा डते ये सलीका और तमीज़ है
 
शब्द अपने ही शब्दों में करते कहानी बयान है
न इनकी कोई जुबान है और ना इन पर कोई लगाम है।
अगर लगाना चाहो इन शब्दो पर लगाम
 
तो ये क्रोधित  हो जाते है 
यह शब्द कभी कभी मौन भी हो जाते है 
तो कभी कभी ये रोते, चीखते और चिल्लाते है

शब्द तो कभी चुप भी इनमे मौन रहने की क्षमता भी है।
तो कभी इनमें कोई क्षमता नही नजर आती है 
शब्द सर्वशक्तिमान भी और अपने आपमें असहाय भी है
शब्द परिश्रम करता ही दूसरे शब्द के लिए है

स्वयं शब्द तो खुद को भूल ही गया है
शब्द ही शब्द का सहारा है वरना शब्द बेचारा बेसहारा है
शब्दों की भीड़ बहुत है, शब्द अकेले भी रह जाते है।
शब्द शोर बहुत मचाते है।शब्द शांत भी हो जाते है।

इनका होश तो देखो इनका जोश तो, जोश में होश खो देते है कभी तो , ओर कभी जोश ही नहीं रहता इनमे यह शब्द कही खुद में गुम हो जाते है,
देखो कभी कभी ये कितनी बड़ी बड़ी बातें कर जाते
मतलब जिन का सिर्फ यह सीखा पाते है। यह शब्दों की बाते है शब्द खुद ही बताते है, इनको समझना बड़ा मुश्किल है नया जाने यह शब्द कैसे इनको खुद ही समझ पाते है।

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कुछ बाते करे

आओ जिंदगी से मिल कुछ पल हम बाते करे
      और 
पूछे दिल का हाल कैसा है ऐ जिंदगी तेरा,
कुछ सुनादे तू भी अपने बारे में आज हमको भी,
हम भी सुनादे कुछ हाल दिल का अपना तुझे ए जिंदगी 
हम बेखबर है, बैठे यहाँ बिना तेरे हम भटकते है 
ना जाने कहा- कहाँ
आओ कुछ पल बिताये हम जिंदगी के साथ
यहाँ ना जाओ कही बैठ जाओ बस यही
क्यों जिंदगी आज बात करना चाहती है तुमसे यहाँ

कुछ हाल तुम बताओ 
कुछ हाल हम बताये 
चले साथ हम और 
सफर बीत जाए और 
जो बीत गए है पल उसे 
आज फिर हम दोहराए 

थोड़ी खट्टी और 
थोड़ी मीठी कुछ बाते करे,  
गीले शिकवे जो रह गए 
उन्हें हम आज मिटाए 
कुछ हाल तुम बताओ 
कुछ हाल हम बिताए 


Rohit shabd

स्वयं को जानेंगे

एक दिन आप स्वयं को जानेंगे –
“One day you will know yourself”
लेकिन कैसे ? इससे पहले तो क्या आप जानना चाहते है स्वयम को?
यह भी एक जिज्ञासा है यदि आपके भीतर स्वयं को जानने की इच्छा है तभी आप अपने गंतव्य तक पहुंच सकते है।
क्या आप जिज्ञासु है स्वयम के प्रति ? स्वयं को जानने के लिए , स्वयम को जानने की इच्छा होना ही जिज्ञासु कहाँ जाता है।

इस पुस्तक के माध्यम से आप स्वयम को पहचान सकते है बहुत सारे सवाल जो मेरे भीतर उठ रहे है क्या को आपके भीतर भी उठ रहे है ? यदि हां तो आप इस पुस्तक के माध्यम से पड़ाव दर पड़ाव अपने लक्ष्य की ओर अगर हो सकते है।
ये पुस्तक आपके और आपके जीवन का दर्पण दिखाने में सहायक होगी,
सफर है स्वयं को पहचाने का , जानने का , समझने का आप स्वयं को जानेंगे

क्या है हमारा मूल स्वरूप इस बात का पता लगाने का है?  कैसे कैसे हम सभी इस जीवन की दूरी को तय कर रहे है इस सफर को पूरा करने की क्या क्या कोशिश कर रहे है इस जीवन को हम किस प्रकार से समझ रहे है,
इस सफर को किस और ले जा रहे है ?
इस जीवन का क्या महत्व है ?
हमारे जीवन में  सभी व्यक्ति समय के अनुसार आते है और जाते है जिसका एक अपना कारण है हर एक व्यक्ति का अपना ही अलग कारण और महत्व होता है, जिसकी वजह से ये सारी घटनाएं होती है।

इस पृथ्वी पर किसी एक व्यक्ति  की महत्वकांशा कैसी है
तो किसी दूसरे व्यक्ति की कैसी सबकी अलग अलग है ओर कुछ की समान हो सकती है
सभी व्यक्ति इच्छाओ को लेकर पैदा हो रहे है और इच्छाओ की पूर्ति करने के लिए ही अपना जीवन व्यतीत करते है सभी व्यक्तियों की महत्वकांशा एक जैसी नही होती
महत्वकांशा– महत्व + आकांशा
हम अपनी इच्छाओं को जितना महत्व देते है यह उतनी ही बढ़ती जाती है

जो कभी पूरी नही होती सिर्फ वहीं इच्छाएं पूरी होती है जिनके साथ आधार मिल जाता है इसके विपरित नहीं इसलिए कुछ ना कुछ इच्छा हमारे साथ जुड़ी ही रहती है जिसका हमे पता भी नही चलता परत दर परत वो इच्छाएं हमसे जुड़ी है जो कभी ना समाप्त होती का एक फेर है हर एक असावधानी पर कुछ और घटना हमारे जीवन के साथ जुड़ जाती है जिनसे हट पाना बहुत मुश्किल सा प्रतीत होता है

हम सभी अलग अलग दिशा में कार्य करने की कोशिश करता है तथा उसी क्षेत्र में ही सफल होना चाहता है तथा इनमें कुछ बहुत सारे कार्यो को एक साथ करना चाहते है और उन सभी कार्यो में सफलता प्राप्त करना चाहते है , परंतु कुछ ही व्यक्ति उनमें से सफल हो पाते है और कुछ अपने जीवन स्तर से ऊपर भी नही उठ पाते

ऐसा क्या कारण है की वो अपने जीवन को एक उन्नत जीवन नही बना पाते ? या बनाना नही चाहते?
कौनसा है हमारे जीवन स्थान का बिंदु ? किस स्थान पर पहुचना है हमे ? कहाँ पहुचना चाहते है हम ? कैसे उस स्थान पर पहुचा जा सकता है ?
लेकिन इन प्रश्नों से पहले तो हमारे मन में शायद कितने ही प्रश्न उठते है हर व्यक्ति जानना चाहता है ऋषि मुनि कितने ही पुरुषों महापुरषो के मन में ऐसे प्रश्न आते रहते है ?
की  कौन हूँ मै ?
मैं इस पृथ्वी पर क्यों आया हूँ ?
कहाँ से आया हूं, कहाँ जाना है ?
अथवा जाउ तो कहाँ जाउ जैसा प्रश्न भी हो सकता है ? आप स्वयं को जानेंगे जब आप स्वयं से इसी तरह के प्रश्न पूछेंगे।

यदि हम नही भी जाना चाहते है तो हम अपनी मंजिल की और अग्रसर होते है। परंतु इन बातो में कुछ अंतर होता है इस जीवन से  हम क्या प्राप्त करना चाहते है ?
क्या कुछ है जो बाकी रह गया है ? जिसको हम पूरा करना चाहते है
किस और जाना चाहते है तथा क्या कारण है और क्यों ?

क्यों आवश्यक है हमे इस जीवन अर्थ को जानना यदि हम अपनी गति में नही चल रहे है तो भी चलना पड़ता ही है परंतु तब हम पृकृति के अनुसार नही चल रहे है इसका मतलब ये है की हमे एक सहयोगी तत्व बनाना है उसके अनुसार चलना है हमे अपनी खोज करनी है हमे हमारा वास्तविक स्वरूप जानना है उसका सही रूप से अवलोकन करना है की हम किस कारण से यहाँ आये है तथा हमारा वास्तिविक स्वरूप क्या है।

ये शरीर , बुद्धि और मन और मन के भीतर के विचार किस प्रकार के है
हमे इनको जानना है,
ये शरीर क्या चाहता है? इस शरीर की इच्छा और अनिच्छा क्यों और कैसे उतपन्न हो रही है?
क्या इच्छा है और ये इच्छाएं किस प्रकार से कार्य करती है?
हमारे शरीर के अंग हमारी किस प्रकार से सहायता करते है?
ये शरीर हमे किस स्तिथि की और अग्रसर कर रहा है? हमारा जीवन किस और जा रहा है ? ये सफर लंबा है इस जीवन की यात्रा हमे किस और लिए जा रही है ? हमारा अस्तित्व क्या है ? क्या है हमारा मूल स्वरूप हम सभी यह जानना चाहते है

इस जीवन की यात्रा को कैसे सुखद जीवन बना सकते है? हमने यह सफर कहाँ से शुरू किया और ये सफर हमे कहाँ ले जा रहा है, क्या इस यात्रा का कोई अंतिम चरण है या ये यात्रा इसी प्रकार से चलती जा रही है ? कहते है हमे 84 लाख योनियों से होकर गुजरना पड़ता है यह हमारी इस जीवन यात्रा का सच है लेकिन क्यों हमे इन 84 लाख योनियो से गुजरना पड़ता है क्या कारण है?
यदि हमे ना जाना हो तो?

क्या कोई जबरदस्ती है की यही सफर तय करना पड़ेगा और कोई रास्ता नही है क्या ?
जो इतनी लंबी यात्रा है, इस जीवन की असल में ये लंबी नही बल्कि छोटी है, उन सभी के लिए जिनकी इच्छओं की पूर्ति नही हो रही क्योंकि वो जीवन मरण के चक्र को छोड़ना ही नही चाहते उनकी छोटी इच्छाएं इस प्रकार से चिपकी हुई है मानो वो कभी छोड़ना ही नही चाहते है।

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शब्द से शुरू

शब्द की यात्रा शब्द से शुरू होती है, ओर निशब्द होने पर रुक जाती है। शब्द को मौन भी होना होगा, शब्द को एक दिन शांत तो होना ही होगा, कब तक शब्द बजते रहेंगे।

एक दिन दिन वो मौन में ठहरने की कोशिश करेंगे।

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मुस्कुराओ

मुस्कुराओ ….क्युकी दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है, जो मुसकुराता है वो दुनिया को बदलने की हिम्मत रखता है, उसका विश्वास अपनी मुस्कुराहट से ओर बढ़ जाता है, वो मुरझाए हुए चेहरों को फिर से नई जान देता है, उनके भीतर नई ऊर्जा भर देता है।

मुस्कुराओ क्युकी दुनिए का हर आदमी कहिले फूलों ओर कहिले चेहरे को पसंद करता है।
मुस्कुराओ

मुसकुराना मानो दुनिया का खुद से ही बदल जाना है, मुसकुराना एक कला है भीतर चाहे कितने ही दुखी दुखी लेकिन आपके होंठों पर मुस्कुराहट दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट भर देता है।

यह भी पढे: मेरी मुस्कुराहट, मुस्कुराहट छुआ छूत, चेहरे की खूबसूरती, चेहरे पे मुस्कान,

परिस्थितियां

हमारे जीवन की परिस्थितिया किस प्रकार की बन रही है, और हमारे जीवन से इन परिस्थितियों का क्या संबंध है। जीवन का परिस्थितियों के साथ बड़ा गहरा संबंध है जीवन में अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रकार की परिस्थितियां आती- जाती है और यह सब परिस्थितियां हमारे द्वारा किये गए कर्मो के अनुसार ही आती है।

अच्छा और बुरा समय तो सबके साथ आता- जाता है सब अपने अपने तरीके से  अपनी परिस्थितियां निकालते है, कुछ लोग बुरा समय देखकर टूट जाते है तो कुछ निखर जाते है।
आप टूटना चाहते है या निखरना अब यह आप पर निर्भर करता है।

कुछ लोग किसी तरह से जीते है तो कुछ लोग किसी तरह से कौन बेहतर ढंग से जीता है ? यह निर्भर करता है उस समय पर तथा आपके मस्तिष्क के विचारो पर निर्भर करता है।
परिस्थितिया कैसी भी हो परंतु इंसान को हारना नही चाहिए हर एक व्यक्ति के जीवन में अलग अलग प्रकार की परिस्थितिया आती है।

सभी को अपनी परेशानिया और परिस्थितियां ज्यादा मुश्किल लगती है।
वह व्यक्ति किस प्रकार के निर्णय लेता है किस तरह से चलता है क्या संभल पाता है या नही यह उसका अनुभव ही तय करता है।

उसको संभल कर कदम बढ़ाना चाहिए और उस समय को बहुत सजगता से जीना चाहिए।
यह कहना हमारे लिए आसान है परंतु उस समय हर एक व्यक्ति की मानसिकता भिन्न होती है।
आप किस प्रकार के इंसान हो ? और आप अपने समय और परिस्थितितयो से किस प्रकार से सामना करते हो ?

यह आप पर ही निर्भर करता है कोई और आपको संभालने के लिए नही आता सिर्फ एक दिलासे के रूप में आपके साथ दिखाई तो देते है परन्तु वो साथ नही होते अक्सर परिस्थितियां देख कर लोग मुह मोड़ लेते है। लेकिन कुछ साथ भी होते है।
बुरा समय ही आपको आपके जीवन में सबसे बेहतर लोगो से मिलवाता है।

कुछ लोग खराब समय को देख कर भाग जाते है और
कुछ लोग समय को तब तक देखते है। जब तक वो समय निकल नही जाता।
जब तक वो ठीक ना हो जाए उस पर पूरी तरह से निगरानी रखते है की समय अब कोई हरकत तो नही कर रहा वह हर प्रकार का मौका ढूंढते है की समय या परिस्थितियां एक मौका दे, और हम फिर से करवट ले अपनी परिस्थितयो को बदले वह लोग डर कर भागते नही है सामना करते है और हिम्मत से खड़े रहते है। आख़िरी वक़्त तक जब तक समय बदलता नही है।
कुछ लोग समय के साथ समझौता कर लेते है की हमारा तो समय खराब है, हम कुछ नही कर सकते है और हार कर बैठ जाते है।

फिर आगे वो उसी जगह खुद को एडजस्ट कर देते है जिसकी वजह से वे लोग अपने सपने , अपनी इच्छाये मार डालते है। तथा वे
कुछ लोग समय और परिस्थितियों को दोष देते है बस और कुछ भी नही करते ,  ना वो कुछ कर पाते है।

समय बलवान है ऐसा सोचकर लोग हार मान लेते है,समय के साथ जो दुख और अनेको चीज़ आती है उसको  भी साथ पकड़ लेते है और इंसान कमजोर पड़ जाता है हार मान लेता है तथा डरने लग जाता है जिसके कारण ना जाने वो क्या क्या कर बैठता है इस बात की समझ नही आती ओर वक़्त गुजर जाता है। परिस्थितियां उनको अपने साथ बहा कर ले जाती है।

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शब्दों का प्रभाव

शब्दों का प्रभाव होता है तथा इस शरीर के प्रभाव में कौन-कौन से शब्द आते है? हमारा शरीर शब्दों के प्रभाव को किस प्रकार से समझता है। यह शरीर शब्दों के कारण क्यों तथा कितना प्रभावित होता है? शब्दों का प्रभाव शरीर पर किस प्रकार का होता है?
और कैसे ? 

क्या हम सभी यह जानते है तथा यह जानने की कोशिश की है? शब्द ही है जो हमारे जीवन को निर्मित कर रहे है, जो भी हम बोल सुन रहे है उनका हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

यह शरीर एहसास का सागर है,शब्दों की परिभाषा है। शब्दों का सागर है ये पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ शरीर है।
जल,धरती, आकाश,अग्नि,हवा
फिर हम क्यों डरते है?

इनसे  इनको पहचानो जानो और समझो हम ही है  क्योंकि वो अधिकतम मात्रा में है और हम कम मात्रा में है  इसलिए हमे लगता है हम कमजोर तथा असहाय है अपने जीवन में परंतु हम इन्ही पांच तत्वों का रूप है

यह शरीर के मुख्य तत्व है। यही हमारे शरीर की शक्तिया है। हमारे शरीर का एहसास हम संजोते और संवरते है। हाव भाव जो हमारा शरीर है पूर्ण बनता है,  हमारे शरीर में शक्तियो का संचार होता रहता है, यह लगातार चलने वाला कार्य है।

जिसकी जैसी भावना होती है। उसको वैसा ही मिलता है। मतलब एहसास के कारण ही हमे जन्म और मृत्यु का निर्णय होता है तथा कौन-सा शरीर मिलेगा यह भी हमारे एहसास के कारण ही

र्धारित होता है। जीवन का बहुत ही मजेदार खेल है, इसको खेलना इतना आसान नहीं है। 

हर चाल में कुछ नयापन है। हर एक पल कुछ नया देता है। सिखाता है, नया एहसास देता और समझाता है। कोई भी पल जीवन का व्यर्थ नहीं होता है। हर पल कुछ ना कुछ सिखाता है जब आप कुछ पाना चाहते है तो प्रकृति भी आपको देने के लिए तैयार बैठी है और वो देती है।
परंतु यह आप पर निर्भर करता है। की आप उस पल को किस तरह से समझते है? क्या महसूस और एहसास करते है? उस वातावरण से कौन-कौन से शब्दों को प्राप्त करते है ?

कोशिश करो स्वयं को देखने की, महसूस करने की, एहसास करो, कौन सा शब्द आपके आसपास गूंज रहा है? आपका एहसास आपकी मंजिल आपके पास ही है। आप उसको देख भी रहे हो परंतु फिर भी उससे हम दूर हो रहे है क्यों? क्या हम मंजिल को देखना ही नहीं चाहते या ऐसे ही भटकना किसी और चाह रहे है।

हमारी छोटी-छोटी बाते जब बड़ी होती जाती है। हम उन बातो को सँभालने में असमर्थ होते है। हम हमेशा छोटी छोटी लड़ाई झगड़ो में अपना समय नष्ट करते रहते है और अपने जीवन को नीचे की ओर धकेल देते है जिसके कारण हम कमजोर होते जाते है और अपनी शक्तियो को भूलते जाते है।

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