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जीवन में उलझन

उलझन क्या है ? उलझन एक अवसर होता है, जो हमें अपने दोषों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है। जब हम उलझन से निपटते हैं, तो हम अपने अनुभवों से सीखते हैं और अपने दोषों को स्वीकार करते हैं। ये हमें अपने आप को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है, जो हमें अपनी सीमाओं को छोड़कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जब हम उलझन से निपटते हैं, तो हम अपनी आत्मा को विकसित करते हैं और जीवन में एक नयी दिशा के साथ आगे बढ़ते हैं।

जिंदगी में उलझन एक स्थिति है जो हर किसी को सामने आती है। जब हम अपने जिंदगी में उलझे हुए होते हैं, तो हमें अधिक सोचने की आवश्यकता होती है। ये उलझन हमारे मन को अधिक चिंतित और उत्तेजित करती हैं।

उलझन से निपटने के लिए, हमें धैर्य और संयम रखने की आवश्यकता होती है। हमें उलझन से निपटने के लिए अपनी आत्मविश्वास और विश्वास को बढ़ाने की आवश्यकता होती है। जब हम अपने आप में विश्वास रखते हैं तो हम उलझन से निपटने में सफल होते हैं।

उलझन एक संदेश होता है: जो हमें बताता है कि जीवन में सफलता के लिए हमें संकटों का सामना करने की क्षमता होनी चाहिए। जब हम उलझन से निपटते हैं, तो हम जीवन में सफल होने के लिए तैयार होते हैं।

जिंदगी कैसी है

जिंदगी कैसी होनी चाहिए ?

जिंदगी कैसी है ? जैसा आप पसंद करते है, जिंदगी बिल्कुल वैसी ही है, इसके विपरीत कभी नहीं होती बेशक हम हर समय कोसते है। अपनी जिंदगी को लेकिन यह हमारी नासमझी है, ओर कुछ नहीं क्युकी जैसी आप इच्छा कर रहे है, जिंदगी बिल्कुल वैसी ही बनती है।

जिंदगी ठीक वैसी ही है जैसा तुमने जिंदगी के बारे में सोचा  है
ज़िंदगी वैसी है जैसी तुम चाहते हो

हमारी जिंदगी बस ज़िंदगी बचपन में बिना चाहे मोड ले लेती थी, क्युकी उस जिंदगी की जिम्मेदारी कुछ समाज , परिवार , माता-पिता , रिश्तेदार , दोस्त, विधालय उठा रहा होता है।

और जैसा वो सभी चाहते है, उसी तरह से हमारी जिंदगी मुड़ती, तुड़ती जाती है, जिनकी वजह से अनचाहे मोड जिंदगी को मिल जाते है, फिर वो मोड कैसे भी हो हम भी उसी ओर दौड़ने लग जाते है, उस दौरान हमे कुछ नहीं पता होता की हमे क्या बनना है , कहाँ जाना है? क्या करना है? क्यों करना है बस कुछ होना , पहुचना ओर जाना होता है।

इसी अनजान दौड़ में हम कहाँ से कहाँ निकल जाते है हमे खुद ही नहीं पता होता उसमे कुछ गलतिया , नादानिया हो जाती है जिनका हरजाना बस जिंदगी भर चलता है।

ओर वो भी कही न कही भीतर गहरे मन में तुमने चाहे होंगे, तभी वो सारे विचार ऊपरी सतह पर आ जाते है, ओर जिंदगी को नए नए मोड देकर चले जाते है।

लेकिन यह सब आपके हाथ में ही है, की आप उस जाल से बाहर आ पाते हो या फिर उसीमे गोल गोल घूमते रह जाते हो।

इसलिए जिंदगी गणित सवाल भी है तो उसका जवाब भी है जिंदगी।

जिंदगी कैसी है ? बहुत अटकती भटकती सी है जिंदगी तो फिर उसी मोड पर वापस भी ले आती है, जैसा तुम चाहे हो ज़िंदगी तो साहब वैसी ही हो जाती है।

ज़िंदगी को प्रेम भरी नजरों से देखो प्रेममय ही नजर आएगी जिंदगी , उमंगों से सजती हुई , फूलों सी खुलती हुई , खुसबू सी महकती हुई सी है ज़िंदगी।

पछतावा

पछतावा कब होता है ? गलती जों हर कोई करता है वो गलती है घर छोड़ने की एक युवा अवस्था में बहुत सारे लोगों के मन यह ख्याल आता है कि हमें घर छोड़ कहीं वन , आश्रम , या पहाड़ों पर कहीं चले जाना चाहिए।
लेकिन क्या यह उचित है ? क्या सहज ही यह संभव है ?

हम एक बार को मां लेते है की यह संभव है परन्तु उस घर को छोड़ने का कारण ओर परिणाम कभी सोचा है ??

यह गलती 100 प्रतिशत लोग करते है जिनको अपनी भूल का पछतावा होता है ओर फिर वही साधु आपकोंथ सलाह भी देते है की संत क्यों बनना ? गृहस्थ जीवन बिताए वहीं सबसे बड़ा आश्रम है परन्तु गृहस्थ ? जरूरी नहीं कि शादी भी करो जो लोग जीवन को बांधना नहीं चाहते उन लोगो को शादी भी नहीं करनी चाहिए इस जीवन को मुक्त रखना सभी बंधनों से विचारो से , कार्यों से इसलिए में तो गृहस्थ जीवन की भी सलाह नहीं देता।

यदि आप घर में भी रहे तो को पहले से संबंध बन चुके है उन्हीं के साथ निर्वाह कीजिए मरा पिता , भाई बहन , बंधु बांधव रिश्तेदारों के साथ यही संबंध धीरे धीरे स्वत ही छूट जाएंगे ओर बंधन मुक्त हो जाएंगे इन्हे जबरदस्ती मत छोड़िए जबरदस्ती कुछ भी संभव नहीं है इसलिए जीवन को स्वत ही होने दीजिए।

यदि कोई आपको अब भी गृहस्थ जीवन की सलाह देता है इसका सिर्फ एक ही कारण है वह बहिर्मुखी होते है उनका अंतर्मुखी ना होना ही इस बात का पछतावा है कि उन्होंने घर क्यों छोड़ा
यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति विशेष की व्यथा नहीं है यह उन लाखो , करोड़ों लोगों की व्यथा है जो साधु , संत बन जाते है परन्तु उनका उद्देश्य का है यह समझ नहीं पाते
बस इतना ही कारण है इसके विपरित कुछ भी नहीं

मेरे मन में भी लगातार याहिंद्वांध चलता रहता है, कि घर में रहू या घर छोड़ कर भाग जाऊ
लेकिन घर छोड़कर जाना क्यों ?

सीधा ओर सरल प्रश्न जो मैंने स्वयं से हजारों , लाखो बार किया है, ओर उसका उत्तर सीधा ओर सरल यही है बाहर जाकर भी कोई ना कोई कार्य इत्यादि तो करना ही पड़ेगा चाहे आप आश्रम में जाए या फिर कहीं ओर, इसके विपरीत आपको  भिक्षुक भी बनना हो सकता है, इस पर के निर्वाह के कारण ओर भी कई अन्य स्तिथि ओर परिस्थिति का सामना भी करना पड़ेगा।

फिर क्यों ना घर पर रहकर ही चिंतन मनन स्वयं का अध्यन किया जाए , क्यों छोड़ जाना घर को
हम इस समय जिस परिवार के साथ रहते है, वह सबकुछ हमारे ही द्वारा किया गया चुनाव है, फिर क्यों इस स्तिथि ओर परिस्थिति से विमुख होना।