Posts tagged UMEED KYA HAI

उम्मीद एक भावना है

उम्मीद किसे कहते है ?उम्मीद एक भावना है, जो किसी व्यक्ति या समूह को अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की आशा देती है, यह आशा व्यक्ति के मन में उत्पन्न होती है, कि वह एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकता है या कुछ सकारात्मक हालात से निकल सकता है।

उम्मीद के कारण कई हो सकते हैं, जब तक हम जीवित हैं, तब तक उम्मीद हमारे साथ होती है। कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

समर्थन: जब व्यक्ति किसी और की समर्था और सहयोग प्राप्त करता है, तो वह उम्मीदवादी बनता है।

सफलता का इतिहास: जब व्यक्ति के पास एक सकारात्मक सफलता का इतिहास होता है, तो वह उम्मीदवादी बनता है और उसे विभिन्न स्थानों पर सफलता की उम्मीद होती है।

आशावादी भावना: जब व्यक्ति आशावादी होता है, तब वह उम्मीदवादी बनता है।

मनोवृत्ति: जब व्यक्ति उदार मनोवृत्ति वाला होता है तो वह उम्मीदवादी होता है।

आशा की अभिवृद्धि: जब व्यक्ति के अंदर आशा की भावना बढ़ती है, तो वह उम्मीदवादी बनता है।

इन सभी कारणों से उम्मीद उत्पन्न होती है, और व्यक्ति को अगले कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है।

क्या उम्मीद के बिना जीवन संभव है? उम्मीद के बिना जीवन संभव है, लेकिन उम्मीद जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है, उम्मीद एक भावना है, जो हमें अपने ज़िंदगी के बदलाव और सकारात्मक नतीजों की उम्मीद देती है, उम्मीद की मदद से हम अपने जीवन की समस्याओं का सामना करते हैं, और उन्हें हल करने का तरीका ढूंढते हैं।

जीवन में अनेक बार ऐसी स्थितियां आती हैं, जब हमारी सारी उम्मीद खत्म हो जाती है, और लगता है, कि हम अपनी समस्याओं का कुछ नहीं कर सकते, लेकिन इस समय भी हमें उम्मीद रखना चाहिए क्योंकि उम्मीद ही हमें आगे बढ़ने की शक्ति देती है, उम्मीद रखने से हमारी मनोदशा भी सकारात्मक होती है जो हमें अपनी समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करती है।

इसलिए, उम्मीद के बिना जीवन संभव हो सकता है, लेकिन उम्मीद के अभाव में जीवन थोड़ा अधिक असंभव और अधिक दुखद हो सकता है, हमे अपनी उम्मीद को बनाए रखना है ओर किसी भी स्थिति में हिम्मत से काम लेना है।

इस उम्मीद

उम्मीद यह शब्द है जो हमे कही से कही तक ले जा सकते है और फिर वापस घूम कर ज्यों का त्यों खड़ा कर देता है, यह शब्द है जिसकी वजह से सारा संसार चक्कर पर चक्कर लगा रहा है यदि आपको किसी ने बोल दिया बस उम्मीद लगा कर रखो की सब ठीक हो जाएगा, तो आप इस उम्मीद का ऐसे साथ पकड़ लोगे और उसके साथ नए नए अनेको शब्दों को जोड़ने की कोशिश करने लगोगे की कुछ और आपको समझ नही आएगा।
जैसे की मुझे उम्मीद है , जो तुम कह रहे हो वही ठीक है , भरोसा है मुझे , उम्मीद करता हूं ऐसा ही हो , इत्यादि अनेको शब्द आप उसी भरोसे पर अब जीने लग जाओगे तथा उन शब्दों को अपना सहारा बना लोगे।
यदि इस उम्मीद के बीच एक शब्द ऐसा जुड़ गया “शंका”
तो अब क्या होगा ?? आपने जितनी उम्मीद लगाई है उसमे शंका आने लगेगी जिसकी वजह से मन के भीतर “भय” शब्द उतपन्न होगा उस भय के कारण आपके भीतर एक और सोच उतपन्न होगी नकरात्मक यदि ऐसा हुआ तो फिर आप दो शब्दों के मध्य में आ जाओगे “हुआ तो” ,
“नही हुआ तो” फिर आप अपने मस्तिष्क में कुछ विचार लाते हो।

अब इसके ऐसा होने पर मैं तो बिल्कुल ही समाप्त हो जाऊंगा अगर ऐसा होता है , तो बहुत सारे अन्य अन्य विचारो का हमारे भीतर प्रकट होना जिस के कारण मानसिक असन्तुलन हो सकता है और जिस वजह से हमारे सुख और दुख की निर्भरता बढ़ती और घटती है तथा जिन कारणों से हम हमेसा दुख को कम और सुख को ज्यादा करने में लगे रहते है तथा इसी सुख के कारण हम अनेको शब्दों का सहारा लेते है।

इसका उदाहरण मैं आपको इस तरह से दे सकता हूं जैसा की हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने जी नारा दिया अच्छे दिन आने वाले है। अब हम सभी इस उम्मीद में रहने लगे की अच्छे दिन आने वाले है जिसके साथ हमारे भीतर बहुत सारे ऐसे विचार , शब्द जुड़ गए जिनकी वजह से हमने अपने सपने , अपनी , अकांशाएँ बढ़ा ली और और हम भविष्य की और देखने लगे ,

जैसे की
“हमारा स्वछ भारत”
“युवा वर्ग को नौकरी ”
मंहगाई पर अंकुश
जल्दी तरक्की
चोर बाजारी बन्द
सुनहरे अवसर उधोगपतियो के लिए
बेहतर जीवन
हमारे धन का उचित प्रोयोग
और इत्यादि बहुत सारे ऐसे सपने जो हम देखने लगे
लेकिन जैसे जैसे समय बित्त रहा था हमारे मन मस्तिष्क में शंका पैदा होने लगी
क्या सच में ?
ऐसा होगा क्या ?